Monday, January 29, 2007

सेक्सुअल अंगो को लेकर शंका समाधान



जी स्पॉट क्या है?

ग्रेफेनबर्ग स्पॉट या जी-स्पॉट वह क्षेत्र है जो योनि की दीवार के अंदरूनी हिस्से में पाया जाता है. यह सतह से लगभग 1 सेंटीमीटर पर और योनिद्वार से योनि की लंबाई के एक तिहाई या आधी दूरी पर स्थित होता है. यदि इस क्षेत्र के उत्तकों को दो उंगलियों द्वारा गहराई तक दबाएंगे तो यह उत्तेजना के लिये काफी असरकारी होता है. जी-स्पॉट का पता चल जाने पर ज्यादातर (लगभग 50 फीसदी ) महिलाओं का कहना है कि चरम उत्तेजना के लिये यह अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है. उत्तेजना के दौरान इस क्षेत्र पर दबाव पड़ने पर परम आनंद की अनुभूति होती है. कई महिलाओं के लिये तो उत्तेजना का यह पहला प्रारंभिक सोर्स होता है. जबकि कुछ महिलाओं का कहना है कि यह भी सामान्य उत्तेजना की ही तरह है तो कुछ अन्य महिलाओं का मानना है कि उन्हे ऐसा अनुभव होता है मानों उन्हे पेशाब जाने की आवश्यकता महसूस हो रही है. लेकिन ज्यादातर महिलाओं ने जिन्होने अपना जी-स्पॉट पता लगा लिया उन्हे इससे जबर्दस्त सेक्स उत्तेजना का अनुभव होता है साथ असीम परमानंद की अनुभूति होती है. चित्र में रतिक्रिया के दौरान जी-स्पॉट की स्थिति दिखाई गई है. जी - स्पॉट महिलाओं द्वारा शक्तिशाली और तीव्र स्खलन की घटना से जुड़ा है. यदि इस क्षेत्र पर दबाव बनता है तो महिलाएं परमानंद के साथ चरम उत्तेजना को प्राप्त कर स्खलित होती है और यही घटना उन्हे परम संतुष्टि (चरमोत्कर्ष ) प्रदान करती है.

जी-स्पॉट द्वारा तीव्र स्खलन

जी-स्पॉट उत्तेजना के दौरान महिलाए काफी मात्रा में योनि से पानी छोड़ती है(देखें चित्र ) . कई बार इसकी गति फुहारे के रूप में तक होती है. लेकिन यहां यह बता देना चाहता हूं कि योनि द्वारा निकला यह पानी मूत्र कतई नहीं होता है. यह रंगहीन और गंधहीन होता है. जब योनि से महिलाएं यह पानी छोड़ती हैं तो आनंदातिरेक में डूबी होती हैं और संभोग का पूर्ण संतुष्टिकारक आनंद ले रही होती हैं. महिलाओं यह जी-स्पॉट उत्तेजना का सेक्स क्रिया के दौरान काफी महत्व है. हालांकि भारत में अभी जी-स्पॉट स्खलन उतना प्रचलन में नहीं आया है या फिर अभी इसकी जानकारी ही नहीं है कि यह योनि में कहां पाया जाता है, लेकिन विदेशों की ज्यादातर महिलाएं जी-स्पॉट स्खलन अपने पार्टनर द्वारा काफी पसंद करती हैं.
लिंग का औसत आकार क्या है ?

मैन्डेस क्रॉप की किताब के अनुसार औसतन लिंग की लंबाई 15 से.मी. मानी जाती है. इसके साथ ही 90 फीसदी लोगों के लिंग की लंबाई 13 से 18 से.मी. के बीच पाई जाती है. पूर्णतः काम कर रहे लिंग में सबसे छोटे लिंग की लंबाई 1.5 से.मी. तथा अधिकतम लंबाई 30 से.मी. रिकार्ड की गई है.

क्या सेक्स के लिए लिंग का आकार महत्वपूर्ण है ?
यह सेक्स मामलों के लिये सबसे ज्यादा पूछा जाने वाला प्रश्न है. जबकि वास्तव में यह गैर महत्वपूर्ण प्रश्न है क्योंकि सेक्स क्रिया के लिये लिंग की लंबाई से कोई लेना देना नहीं होता. लिंग की लंबाई महत्वपूर्ण तब होती है जब सिर्फ आप इस बारे में सोचते हैं. यदि आप किसी से सेक्स कर रहे हैं और आप की आकांक्षा लंबे लिंग की है तब लिंग का आकार महत्वपूर्ण होगा वह भी सिर्फ आपके लिये . सेक्स क्रिया के लिये यदि आपको लगता है लिंग का लंबा होना जरूरी हैतब और तब सिर्फ आपके लिये मात्र ही लिंग की लंबाई महत्वपूर्ण होगी. जबकि कई महिलाओं का कहना है कि ज्यादातर आदमी लिंग की लंबाई को लेकर झूलते , परेशान होते रहते हैं जबकि उन्हे इससे कोई लेना देना नहीं है . विशेषज्ञों के अनुसार योनि की लंबाई मात्र 8 से.मी. से 13 से.मी. (3 से 5 इंच ) होती है और छोटा से छोटा लिंग भी इसके व्यास के आकार को छू सकता है. इसलिये कुल मिलाकर सेक्स के लिए लिंग की लंबाई कोई मायने नहीं रखती यह सिर्फ पुरुषों के दिमाग का भ्रम है.

क्या लिंग का आकार बढ़ाया जा सकता है?
हां लिंग का आकार बढ़ाया जा सकता है लेकिन वह सिर्फ सर्जिकल तरीके से . एक तरीका बायहेरी और दूसरा फैट इंजेक्शन है. बायहेरी तरीके में शरीर के एक हिस्से से लिगमेंट( ligament) काट कर लिंग में जोड़ा जाता है. इस तरीके से सिर्फ 2 इंच तक ही लिंग की लंबाई बढ़ाई जा सकती है. दूसरा तरीका फैट इंजेक्शन का है. इसमें शरीर के हिस्से से फैट निकाल लिया जाता है और उसे लिंग में इंजेक्ट किया जाता है. इसके अलाबा लिंग बढाने के जो भी तरीके दवा या अन्य बताए जाते है वह सिर्फ ठगी का कारण बनते है.

लिंग की लंबाई कैसे मापी जाती है?
हेराल्ड रीड जो रीड सेंटर फॉर एम्बुलैटरी यूरोलॉजिकल सर्जरी के डॉक्टर हैं के अनुसार लिंग की लंबाई नापने का सही तरीका निम्न है-
सर्वप्रथम आप सीधे खड़े हो जाएं फिर लिंग को पूर्ण उत्तेजित अवस्था में ले आएं. इसके बाद लिंग को पकड़ कर तब तक नीचे झुकाएं जब तक कि वह जमीन के समानान्तर अवस्था में न आ जाए. इसके पश्चात लिंग जहां शरीर से शुरू होता है वहां से शिश्न मुण्ड की सीध तक स्केल से नाप लें. जो लंबाई आएगी वही लिंग की वास्तविक लंबाई है.

लिंग का एक ओर झुकाव (दाएं या बायें ) कुछ गलत है ?
लगभग सभी लिंग उत्तेजना के दौरान किसी न किसी दिशा में झुके रहते हैं. इनमें से कुछ नीचे की ओर झुके होते हैं. यदि उत्तेजना के दौरान यह झुकाव न हो तो यह लिंग में दर्द का कारण बन सकता है. इसलिये लिंग में झुकाव कुछ गलत नहीं है और न ही यह लक्षण आपके लिंग के साथ कुछ असामान्य है. इस झुकाव से सेक्स क्रिया पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ता है.
अपवाद स्वरूप कुछ केस जिसे पेरोंस सिन्ड्रोम कहते है में लिंग का झुकाव बीमारी माना जाता है. यह बचपन से होता है. इस अवस्था में झुकाव की सीमा काफी अधिक कभी-कभी तो 90डिग्री तक पहुंच जाती है. यदि ऐसी परिस्थितियां होती हैं तो फिर चिकित्सक(यूरोलॉजिस्ट ) को दिखाना जरूरी होता है.
सभी जवाब - डॉ. आर.के. जैन
जिला चिकित्सालय सतना



आगे कुछ और प्रश्नों के जवाब दिये जाएंगे , यदि आपके कोई प्रश्न हो तो मेल कर सकते हैं...

पुरुषों की आंतरिक सेक्सुअल संरचना


कार्पस् गुहा( The Corpus Cavernosum / Spongiosum)
कई लोग लिंग उत्तेजना का कारण यह समझते है कि लिंग में रक्त प्रवाहित होने से यह होता है पर इनमें से ज्यादातर यह नहीं जानते कि यह रक्त जाता कहां है. जब रक्त लिंग में उत्तेजना के लिये प्रवाहित होता है तो यह उत्तकों से बनी दो स्पंजी संरचनाओं में जाता है. यह संरचना लिंग की लंबाई के समानान्तर होती है. इसमें से पहली corpus cavernosum लिंग के उपरी हिस्से की होती है तो दूसरी corpus spongiosum मूत्रनलिका के निकट से गुजरती है. इन्ही दोनों स्पंजी संरचनाओं में स्थित छोटी-छोटी धमनियों के जाल में जब सेक्स उत्तेजना के दौरान रक्त का प्रवाह होता है तोये कठोर होकर तन जाती हैं जिसकी वजह से लिंग में तनाव व कठोरता आ जाती है.


अण्डकोश थैली व वृषण(Scrotum and Testicles)
वृषण पुरुष जनन ग्रंथि कहलाते हैं जो कि अण्डकोष थैली मे पाए जाते हैं. यह पुरुषों में महत्वपूर्ण प्रजनन संरचना है. थैली पेशियों की दीवार की सहायता से दो भागों में विभक्त होती है और यही पेशियां वृषण का तापमान नियत रखने के लिये उसे शरीर के पास ले जाती हैं ताकि वृषण में शुक्राणु उत्पादन प्रभावित न हो. जब तापमान ज्यादा हो जाता है तब पेशियां आराम की स्थिति में आ जाती हैं और थैली अपना आकार बढ़ा लेती है ताकि वृषण की शरीर से दूरी बढ़ सके . इस तरीके से वृषण का बढ़ा हुआ तापमान पुनः घटने लगता है. वृषण का आकार बड़े बादाम की तरह होता है और यह स्पर्श और दबाव के प्रति संवेदनशील होते हैं. वृषण टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन और शुक्राणु का उत्पादन करते हैं.


शुक्रवाहिनी( The Epididymis)
यह एक छोटी संरचना है जो वृषण के उपर पाई जाती है. यह छोटी नलिकाओं के समूह की बनी होती है जिसमें शुक्राणु का भण्डारण होता है. इसी संरचना में शुक्राणु स्खलन होने के पूर्व तक स्थिर रहता है. यह संरचना और वृषण को थैली में स्परमैटिक कार्ड द्वारा सहारा दिया जाता है. यह कार्ड नसों और रक्तवाहिनियों का समूह होता है.


शुक्रनलिका( The Vas Deferens)
यह शुक्रवाहिनी (epididymis) और शुक्रथैली (seminal vesicles) को जोड़ने वाली नली है. यह शुक्रवाहिनी से शुरू होकर शुक्रथैली में खुलती है. जहां शुक्राणु में कई अन्य द्रव पदार्थ मिलकर वीर्य का निर्माण करते हैं. स्खलन के दौरान निकले कुल वीर्य में उसके कुल द्रव्यमान के २ से ५ फीसदी शुक्राणु होते हैं. शेष हिस्सा दूसरे द्रव्यों का होता है. ये द्रव्य अलग-अलग ग्रंथियों से निकलते हैं और स्खलन के पूर्व तक अलग-अलग जगहों से वीर्य में मिलते जाते हैं.


कॉपर्स ग्रंथि( The Cowper’s Glands)
कॉपर्स ग्रंथि मुख्यतः एक चिकने तरल द्रव का उत्पादन करती है. यह द्रव कई बार स्खलन से पूर्व तब बाहर आता है जब व्यक्ति चरम उत्तेजना में होता है. वीर्य स्खलन के पूर्व निकलने वाला यह चिकना और चिपचिपा द्रव मूत्रद्वार में स्थित अम्ल (जो मूत्र द्वारा बन जाता है) को निष्क्रिय कर देता है. यह अम्ल मूत्रद्वार में पेशाब करने के दौरान रह जाता है जो शुक्राणुओं के लिये हानिकारक होता है. इस तरह शुक्राणु को एसिड(अम्ल ) का कोई खतरा नहीं रहता है.


प्रोस्टेट ग्रंथि (Prostate gland)
यह बड़ी और आखरोट के आकार की होती है. यह मूत्रनलिका के छोटे हिस्से को घेरे रहती है जो कि मूत्राशय के ठीक नीचे होती है. यह उसे क्षेत्र को लक्ष्य करती है जहां शुक्र थैली मूत्राशय की ओर खाली होती है. इस तरह यह मूत्र को वीर्य में मिलने से रोकती है. यह ग्रंथि दबाव और स्पर्श के प्रति काफी संवेदनशील होती है. इसके अलावा यह अपने से निकले द्रव को भी वीर्य में मिलाती है. इसके पश्चात ही वीर्य स्खलन के लिये पूर्णतः तैयार होता है.

Sunday, January 21, 2007

पुरुषों की शारीरिक संरचना


पुरुषों की शरीरिक संरचना महिलाओं की अपेक्षा कम जटिल होती है. हालांकि इनमें भी बाल्यावस्था से यौवनावस्था तक काफी परिवर्तन होते है. पुरुषों की शारीरिक संरचना भी दो भागों में बांटी जा सकती है. उनमें एक वह संरचना जो बचपन से यौवन तक बदलती है और दूसरी वह जिसके तहत उसमें सेक्सुअल परिवर्तन आते हैं. इसे हम सेक्सुअल संरचना कह सकते हैं. यह भी दो प्रकार की होती है. बाह्य सेक्सुअल संरचना और आंतरिक सेक्सुअल संरचना. सेक्सुअल संरचना के प्रति खुलापन और जागरुकता आपको बेहतर प्रेमी( lover) बना सकती है. यह जानना कि आपके पार्टनर के सबसे संवेदनशील अंग कौन से हैं. उत्तेजना के दौरान उनकी प्रतिक्रिया क्या होती है और कौन सा तरीका चरमोत्कर्ष और परम आनंद दे सकता है. यह न सिर्फ महिलाओं के लिये बल्कि पुरुषों के लिये भी जानना जरूरी है.

बाह्य सेक्सुअल संरचनाः
पुरुषों की बाह्य सेक्सुअल संरचना महिलाओं की अपेक्षा पूर्ण दृश्य और शरीर से बाहर लटकती है. इनमें लिंग और अण्डकोश थैली मुख्य हैं.

लिंग या शिश्न( Penis):
किसी पुरुष की सेक्स संरचना का यह मुख्य हिस्सा है. इसका कार्य मूत्र की निकासी और संभोग क्रिया के दौरान योनि में वीर्य निकासी करना है. लिंग का आकार आदमी और मूल के अनुसार बदलता रहता है. लिंग मांसपेशियों से घिरा रहता है और इसमें रक्त वाहिनी का अच्छा खासा जाल बिछा होता है( उत्तेजना के दौरान इन रक्त वाहिनियों में रक्तर जाने से लिंग का आकार बड़ा हो जाता है) लिंग की त्वचा (चमड़ी) पतली और काफी खिंचावदार होती है. इसमें कई संवेदनशील नसें होती हैं. जिनके स्पर्श से उत्तेजना का संचार होता है. यहां चित्र में लिंग की अवस्थाएं दिखाई गई हैं . चित्र (A) में लिंग की अग्र त्वचा कटी हुई है. चित्र (B) में अग्र त्वचा के साथ लिंग और अंतिम चित्र (C) मे उत्तेजित अवस्था में लिंग को दिखाया गया है. लिंग के पांच मुख्य भाग हैं जो बाहर से दिखाई देते हैं वे हैं-
· मूत्रनलिका द्वार( the urethral meatus)
· शिश्न मुण्ड( the glans or head)
· शिश्न पर्वत पृष्ठ( the corona)
· (the frenum)
· चर्म दण्ड( the shaft)
मूत्रनलिका द्वार( the urethral meatus):
शिश्न के मुख्य भाग चर्मदण्ड( shaft) और शिश्न मुण्ड( glans) होते हैं. इनके अंदरूनी हिस्से में एक नलिका होती है. जिसे मूत्रनलिका कहा जाता है. इस नलिका का अंतिम द्वारा जो शिश्न मुण्ड में खुलता है मूत्रनलिका द्वार (Urethral Meatus) कहलाता है. दूसरी ओर यह मूत्राशय में खुलती है जहां से मूत्र निकलता है. यह मूत्रनलिका शिश्न मुण्ड के शीर्ष में एक छिद्र या दरार के रूप में खुलती है. दोनों के खुलने के तरीके लगभग समान होते हैं. इसी नलिका से संभोग क्रिया के दौरान वीर्य उत्सर्जित होता है. मूत्रद्वार की स्थिति सामान्यतः शिश्न मुण्ड के बीच में होती है जो कि हेलमेट की आकृति का शिश्न के अंतिम छोर में होता है.

शिश्न मुण्ड( Glans):
शिश्न मुण्ड सर्वप्रथम दिखाए गए चित्र (A) में स्पष्ट दिखाई दे रहा है. शिश्न मुण्ड सामान्यतः अग्र त्वचा से ढंका रहता है यदि वह उत्तेजित अवस्था में नहीं होता है. लेकिन कुछ लोगों के शिश्न की अग्र त्वचा शिश्न मुण्ड के नीचे खिंची रहती है और मुस्लिमों में यह कटवा दी जाती है. शिश्न मुण्ड अत्यंत संवेदनशील होता है. मुख्यतः वहां पर जहां शिश्न पर्वत पृष्ठ (corona) शिश्न मुण्ड ((glans) और चर्म दण्ड (shaft) मिलता हैं.

शिश्न पर्वत पृष्ठ और फ्रेनम( Corona and Frenum):
शिश्न मुण्ड के निचले हिस्से के चारों ओर का वह छोटा उभरा हुआ किनारा शिश्न पर्वत पृष्ठ(करोना) कहलाता है. इसी से लगा हुआ वह स्थान जहां करोना छोटी v की आकृति बनाती है उसे फ्रेनल कहते हैं कई बार इस फ्रेनुलम के नाम से भी जाना जाता है. यह शिश्न का तीव्र संवेदनशील अंग है. विशेषतः यह उनके लिये ज्यादा संवेदनशील होता है जिनकी अग्र त्वचा शिश्न मुण्ड के नीचे से होती है.

चर्म दण्ड(Penis Shaft):
चर्म दण्ड मांसपेशियों का बना होता है. इसमें तीन उत्तेजक उत्तक नलिकाएं पाई जाती हैं. जिसमें काफी खाली स्थान होता है. उत्तेजना के दौरान इस खाली स्थान में रक्त प्रवाहित होता है. जो शिश्न को कठोर और बड़ा बना देता है. जब शिश्न उत्तेजित अवस्था में होता है तो त्वचा के नीचे स्थित नसे दिखाईदेने लगती हैं. यह शिश्न शरीर के अंदर काफी गहराई तक स्थित होता है. और इसकी जड़े गुदा के निकट स्थित प्रोस्टेट ग्रंथि तक जाती हैं. यह कई लोगों के लिये एक संवेदी उत्तक है जिन्हें स्खलन के लिये इस हिस्से से आनंद की अनुभूति होती है. यह हिस्सा गुदा (anus) और अण्डकोश थेली(scrotum)के बीच का होता है.

अग्र त्वचा (Foreskin):
अग्र त्वचा आगे पीछे सरकने वाली चमड़ी की नलिका होती है.जो शिश्न मुण्ड को ढंके हुए होती है और उसे सुऱक्षित आवरण देती है. अग्र त्वचा सामान्यतौर पर लिंग की उत्तेजना के दौरान पीछे की ओर सरक जाती है. कई लोगों की यह त्वचा हटा दी जाती है जिसे मुसलमानी करना कहते हैं. लिंग का अग्र त्वचा के बिना और उसके साथ अलग-अलग स्वरूप होता है, लेकिन उसके कार्य में कोई अन्तर नहीं आता है. हर आदमी अग्र त्वचा के साथ पैदा होता है. यदि उसके अभिभावक उसकी मुसलमानी करना चाहते हैं जो वह जन्म के पश्चात कर दी जाती है लेकिन इस अग्र त्वचा को हटाने का कोई चिकित्सकीय कारण नहीं है. अग्र त्वचा मुलतः एक ढीली त्वचा की नली के समान है जो नसों से भरी रहती है. जो कि शिश्न मुण्ड के नीचे स्थित चर्मदण्ड को घेरे रहती है. यह काफी संवेदनशील होती है. जब इसे छुआ जाता है. साथ ही संभोग क्रिया के दौरान स्खलन के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. सामान्य अवस्था में इस त्वचा का रंग शरीर की त्वचा के रंग से गहरा होता है और उत्तेजना के दौरान यह रंग हल्का हो जाता है.

स्मेग्मा(Smegma):
लिंग की चमड़ी के नीचे का चिकना पसेव स्मेग्मा कहलाता है. यह सफेद रंग का गंध युक्त द्रव्य होता है जो फ्रेनुलम के दोनों ओर स्थित ग्रंथियों से छोड़ा जाता है. यह स्थिति उनमें होती है जिनके शिश्न मुण्ड में अग्र त्वचा पाई जाती है.

अण्डकोश थैली(Scrotum):
यह एक झिल्लानुमा थैली है जो शिश्न के नीचे की ओर झूलती रहती है. यह अपने अन्दर वृषण या अण्डकोष (पौरुष ग्रंथि) रखे रहती है. इस थैली का मुख्य काम अण्डकोष का तापमान 34 डिग्री बनाए रखना होता है. क्योंकि शुक्राणु बनने के लिये यह तापमान सहायक होता है. यह दो खानों में विभक्त होता है और दोनों खानों में एक-एक अण्डकोष रहता है. जब इसका तापमान गिरता है तो यह थैली तापमान स्थिर करने के लिये शरीर की ओर खिसक जाती है. इसलिये वृषण ठण्डे नहीं होने पाते.


Thursday, January 18, 2007

आंतरिक सेक्सुअल इन्द्रियां


योनि
यह योनिद्वार से शुरू होकर गर्भाशय तक जाती है. संभोग क्रिया के दौरान लिंग का प्रवेश और घर्षण योनि में ही होता है. इसके अलावा बच्चे का जन्म भी इसी नलिका के द्वारा होता है. इसलिये इसे जन्म नलिका भी कहते हैं. सामान्यतः योनि की लंबाई 3 इंच होती है. जो बच्चे को जन्म के बाद 4 इंच हो सकती है. इससे यह पता चलता है कि संभोग क्रिया के लिये योनि को संतुष्टि प्रदान करने लिंग की लंबाई का ज्यादा लंबा रिश्ता महत्वपूर्ण नहीं होता है. लेकिन सेक्स उत्तेजना के दौरान जितनी जरूरत लिंग को योनि की होती है गर्भाशय उतना ही उपर की ओर खिसक जाता है. संभोग के पश्चात योनि का संकुचन गर्भद्वार को फोरनिक्स के उपर सुस्ताने की अनुमति देती है. इस अवस्था में गर्भाशय कटोरे की तरह फोरनिक्स में फिट हो जाता है. जो कि वीर्य के प्रवेश के लिये सही अवस्था होती है. वहीं दूसरी ओर योनिद्वार के पास बार्थोलिन ग्रंथि पाई जाती है. यह थोडी-थोड़ी मात्रा में स्निग्ध द्रव प्रवाहित करती है जो आन्तरिक भगोष्ठ को सेक्स उत्तेजना के दौरान गीला रखता है. इसके आगे की ओर योनिच्छद ग्रंथि पाई जाती है जो बहुत कम मात्रा में योनि नलिका में चिकनाहट बनाए रखती है.


जी-स्पॉट
इस शब्द का उल्लेख करना इसलिये जरूरी है क्योंकि इसके अस्तित्व और उद्देश्य हमेशा बहस का केन्द्र बने रहते हैं. ऊपर के चित्र में जी-स्पॉट दिखाया गया है. मूलतः जी-स्पॉट वह क्षेत्र है जहा स्कीनिस ग्रंथि पाई जाती है और उसका उद्देश्य अज्ञात है साथ ही कई विवादों को समेटे हुए है. जिनमें से एक यह है कि कई महिलाओं को जब इस क्षेत्र में योनि के अंदर दबाव महसूस होता है तो परम आनंद की अनुभूति होती है. इस दबाव के लिये योनि मार्ग के अन्दर दो अंगुलियों को डाला जाता है क्योंकि यह योनि दीवार के अंदर गहराई पर होता है. इन उत्तकों को स्पर्श करने के लिये दबाव की आवश्यकता होती हैक्योंकि यह ग्रंथियां मूत्राशय से सटी होती हैं. कई महिलाओं को पेशाब करने की आवश्यकता महसूस होने के वक्त पड़ रहे अतिरिक्त दबाव के दौरान इसका अनुभव होता है.


गर्भद्वार
गर्भद्वार गर्भाशय की शुरुआत है. इसका ब्यास 1 से 3 मिलीमीटर तक होता है. जो कि मासिक चक्र पर निर्भर करता है कि कब उसे मापा गया है. गर्भद्वार कई बार ग्रीवा श्लेष्मा से जुड़ा होता है जो कि उसे निषेचन के दौरान संक्रमण से बचाता है. इस श्लेष्मा में पतला द्रव पाया जाता है जो शुक्राणु के प्रवाह में मदद करता है.


गर्भाशय
गर्भाशय या गर्भस्थान स्त्रियों का प्रमुख प्रजनन अंग होता है. गर्भाशय की आंतरिक दीवार को endometrium कहते हैं. जो कि मासिक धर्म के दौरान बढ़ता और अपना आकार परिवर्तित करके अपने को निषेचित अण्डे के लिए तैयार करता है. साथ ही हर मासिक धर्म के दौरान इस परत को बाहर निकाल देता है, यदि निषेचन की क्रिया पूर्ण नहीं होती है. गर्भाशय शक्तिशाली मांसपेशियों से घिरा होता है. जो प्रसव के दौरान बच्चे को बाहर निकालने में मदद करती है.


अण्डाशय
अण्डाशय दो क्रियाओं के लिये जिम्मेदार होता है. पहला महिला सेक्स हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रान को बनाता है व स्त्रावित करता है. साथ ही गर्भावस्था की समाप्ति पर रिलैक्सिन हार्मोन बनाता है और स्त्रावित करता है. दूसरा परिपक्व अण्ड बनाता है. प्रारंभिक अवस्था में अण्डाशय लगभग 400000 अण्डाणु रखता है जो कि औसत जीवन अवधि के दौरान लगभग 500 अण्डाणु मासिक चक्र के दौरान बाहर कर दिये जाते हैं. परिपक्व (बालिग) अवस्था के दौरान सिर्फ एक अण्डाणु फेलोपियन ट्यूब में आता है और यह यात्रा तीन चार दिन की होती है और यही वह समय होता है जब अण्डाणु निषेचित हो सकता है तथा महिला गर्भ धारण कर सकती है. यदि इस दौरान निषेचन नहीं हो पाया तो यह अण्ड मासिक चक्र के दौरान बाहर निकल आता है.

Saturday, January 13, 2007

बाह्य जनन इन्द्रियां

किसी महिला के बारे में किसी पुरुष द्वारा सर्वाधिक जिज्ञासा का केन्द्र यही अंग होते हैं. इसके अलावा सेक्स क्रिया के दौरान इन अंगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इनकी संरचना कुंवारेपन और बच्चे के जन्म के बाद अलग-अलग होती है.
भगनासा या भगशिश्न( Clitoris)
स्पंजी उत्तकों से बना हुआ अंडाकार आकृति का छोटा हिस्सा होता है जो लीबिया मिनोरा और क्लिटोरी हुड के बीच होता है. यह सेक्स के लिये उत्तेजना का महिला के शरीर में सबसे सेन्सटिव अर्थात संवेदनशील अंग होता है. थोड़े से भी तनाव या दबाव से क्लिटोरी बाहर दिखने लगती है. यह उत्तेजना और आवेग के दौरान खून से भरकर कड़ा और बड़ा हो जाता है. यहां क्लिटोरी एक कोश संरचना से घिरी रहती है जिसे क्लिटोरी हुड कहते हैं जो कि सेक्स क्रिया के दौरान पीछे की ओर खिसक जाता है. कई महिलाओं की भगनासा छोटी होती है तो कई की काफी बड़ी होती है जो क्लिटोरी हुड द्वारा पूरी तरह बंद भी नहीं हो पाती है.
बाह्य भगोष्ठ( Labia Majora)
भग का वह बाहरी हिस्सा जो गुद्देदार होता है बाह्य भगोष्ठ कहलाता है. यह छूने पर काफी उत्तेजक होता है. यह सामान्यतः रोएं(बाल) से आच्छादित होता है. इनमें पसीने और तैलीय ग्रंथियां पाई जाती हैं. इनसे होने वाला प्रवाह आपके पार्टनर को सेक्सुअली जागृत करता है.
आन्तरिक प्रकोष्ठ( Labia Minora)
बाह्य भगोष्ठ के अंदरूनी हिस्से में ओंठ नुमा तथा हल्की उभरी हुई कठोर संरचना आंतरिक भगोष्ठ कहलाती है.इसका मुख्य काम भगनासा (clitoris) और मूत्रद्वार को आवरण प्रदान करना है. यह बाह्य भगोष्ठ से ज्यादा संवेदी तथा कम गुद्देदार होता है.
मूत्रद्वार( Urethra)
इससे मूत्र शरीर से बाहर निकलता है. यह सेक्सुअल अंगों का हिस्सा नहीं है. यह भगनासा के नीचे और योनिद्वार के सामने पाया जाता है. लेकिन जी-स्पाट सेक्स क्रिया के दौरान द्रव्यपात यहीं से होता है. अपनी स्थिति के कारण कई बार संभोग के दौरान यह रोग संक्रमण का कारण भी बनता है.
योनिद्वार( Vaginal Orifice)
योनि संभोग क्रिया का यह सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है. यह योनिद्वार से शुरू होकर गर्भाशय के मुख तक जाती है. इसे जन्म नलिका के नाम से भी जाना जाता है. इसमें काफी संख्या में ग्रंथियां पाई जाती हैं जो स्निग्ध द्रव का स्त्राव करती हैं. जिससे पूरी नलिका में उत्तेजना और संभोग क्रिया के दौरान चिकनाहट बनी रहती है. संभोग क्रिया के दौरान इसी अंग में लिंग का प्रवेश होता है.
योनिच्छद( Hymen)
यह एक पतली झिल्ली होती है जो योनि मार्ग को ढंके रहती है. यह सिर्फ मासिक बहाव को प्रवाहित होने देती है. यह झिल्ली संभोग के दौरान ही टूटती है या क्षतिग्रस्त होती है. इस दौरान हल्का रक्त स्त्राव होता है और दर्द होता है. इसलिये इस कई बार कुंवारेपन की पहचान भी माना जाता है. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि यह झिल्ली सिर्फ सहवास के दौरान ही टूटती है. कई बार यह खेलकूद के दौरान भी टूट जाती है. इसलिये झिल्ली का टूटना या प्रथम संभोग के दौरान रक्तस्त्राव न होने को यह नहीं कहा जा सकता है कि महिला का कौमार्य भंग हो चुका है.
पेरिनियम( Perineum)
योनि और गुदाद्वार के बीच की त्वचा का हिस्सा पेरिनियम कहलाता है. यह काफी उत्तेजक हिस्सा होता है और इसके निचले हिस्से में नसों का संजाल फैला होता है. संभोग क्रिया के पूर्व (fore play के दौरान) इस अंग को थपथपाने से आनंद की काफी अनुभूति होती है और उत्तेजना का संचार होता है. चित्र में जो गुलाबी संरचना दिखाई दे रही है वह योनिच्छद है.

नीचे वीडियो में देखे योनि के बारे में

Wednesday, January 10, 2007

शारीरिक रचना


स्त्री पुरुष की शारीरिक रचना निश्चित तौर पर भिन्न होती है. बाल्यकाल में दोनो की शारीरिक रचना में महज थोड़ी ही भिन्नता होती है जो उम्र के अनुरूपक्रमशः परिवर्तित होती जाती है. पूर्ण वयस्क होने पर दोनो में काफी भिन्नता आ जाती है. यूं तो शरीर की आंतरिक संरचना भी भिन्न होती है लेकिन यहां अभी स्त्री पुरुषों के उन बाह्य अंगो की जानकारी दी जा रही है जो उनमें महिला या पुरुष होने का भान कराते हैंसाथ ही इसी संरचना को लेकर सर्वाधिक जिज्ञासा रहती है.
महिलाओं की शारीरिक संरचनाः
सर्वाधिक जटिल शारीरिक संरचना महिलाओं की ही होती है. बाल्यावस्था के पश्चात तरुणाई से लेकर यौवनावस्था तक इनमें परिवर्तन होते हैं. जहां इनके स्तन विकसित होना शुरू होते हैं तो योनि प्रदेश में भी काफी परिवर्तन होते हैं. सर्वप्रथम इनकी सेक्सुअल शारीरिक रचना पर गौर करते हैं-
दिमागः
किसी महिलाकी सबसे महत्वपूर्ण सेक्सुअल इन्द्रिय उसका दिमाग है. किसी महिला की सेक्स क्षमताके उत्तरदायित्व की सर्वाधिक सामर्थ्य दिमाग रखता है. महिला की सेक्स के प्रति रुचि का जितना जिम्मेदार उसका दिमाग होता है कई मामलों में पुरुष भी इस क्षेत्र में पीछे रहते हैं.
स्तनः
महिला के स्तनों का प्रारंभिक काम तो शिशुओं का पालन-पोषण करना है. यह सीने के सामने के हिस्से में होता है. स्तन मुख्यतः दूध बनाने वाली ग्रन्थि है. इसमें छोटे मांसपेशियों के रेशे की संरचना होती है जो चुंचुक (nipple) के नाम से जानी जाती है. उत्तेजना के क्षणों में यह कड़ी और उच्च अवस्था में आ जाती है.
पिट्यूटरी ग्रंथिः
यह मुख्य ग्रंथि होती है जो अपने हार्मोन के द्वारा ज्यादातर ग्रंथियों को प्रभावित करती है. यह ग्रंथि FSH (फॉलिकिल स्टिमुलैटिंग हार्मोन) और LH (लूटिनाइजिंग हार्मोन ) का निर्माण करती है. ये हार्मोन अण्डाशय( ovary) को बताते हैं कि कब एस्ट्रोजन या प्रोजेस्ट्रान हार्मोन का निर्माण करना है. यह अण्डाशय को यह भी बताता है कि यौवनावस्था के दौरान अब स्त्राव प्रारंभ करने का समय है तभी मासिक धर्म प्रारंभ होता है. एस्ट्रोजन हार्मोन से स्त्रियों को यौवनावस्था प्राप्त होती है एक विशेष अवस्था के बाद स्त्रियों में जननेन्द्रियां, नितंब और स्तनों के विकसित होने में यही सहायक होता है साथ ही यह अण्डाणु को अण्डाशय में परिपक्व होने का निर्देश देता है. वहीं प्राजेस्ट्रान हार्मोन गर्भाशय( uterus) को भीतरी आवरण या अस्तर के निर्देश देता है. इसी हार्मोन के कारण गर्भाशय भ्रूण धारण करता है.
थायराइड ग्रंथिः
यह शरीर की मास्टर ग्रंथि है. यदि यह सही काम कर रही है तो ठीक अन्यथा आपका मासिक सही नहीं होगा.
यहां के बाद दो भिन्न और सेक्स के लिये महत्वपूर्ण शारीरिक संरचनाएं होती है. जो बाह्य सेक्सुअल इन्द्रियां (बाह्य जननेन्द्रियां) और आंतरिक सेक्सुअल इंन्द्रियां(आंतरिक जननेन्द्रियां) कहलाती हैं.

Wednesday, January 03, 2007

बच्चे से सेक्स के बारे में चर्चा


बच्चों द्वारा उठाए गए सेक्स संबंधी सवाल या चर्चा अभिभावकों के लिये काफी कठिन विषय बन जाता है. इस स्थिति में उचित माहौल में बच्चों की जिज्ञासाओं का जवाब देना उनके स्वस्थ व्यवहार और विकास में सहायक होता है. ऐसे में अभिभावकों को बच्चों के सामने अच्छे उदाहरण रखने चाहिये.
ऐसे अभिभावक जो अपने बच्चों की जिज्ञासाओं पर चर्चा करने से बचते हैं वे अपने बच्चे को एक तरह से क्षति पहुंचाते हैं या यह कह सकते हैं कि वे उसे गलत राह की ओर उन्मुख करते हैं. ऐसे में बच्चे के मन में गलत धारणा बनती हैजो आगे जाकर उसकी जिन्दगी में गलत प्रभाव डाल सकती है.कई बार बच्चे अभिभावकों से जानकारी न मिलने पर अन्यत्र से जानकारी लेने का प्रयास करते हैं और इन परिस्थितियों में उसे जो जानकारी मिलती है या तो अधूरी होती है या फिर गलत होती है.
छोटे बच्चे से सेक्स चर्चा
इन बच्चों से सेक्स चर्चा उनके स्वीकार्य स्तर तक ही करें. अभिभावक इस बात का खास ख्याल रखे कि बच्चे की परिपक्वता का स्तर क्या है. भाषा साधारण और वाक्य छोटे ऱखें. यहां महत्वपूर्ण यह है कि जो भी चर्चा करनी है वह सेक्स पर करनी है न कि संभोग या सहवास पर. परन्तु बच्चा यदि बड़ा है तो शरीर रचना और विकसित हो रहे अंगों आदि पर चर्चा की जा सकती है. बच्चा सेक्स की शुरूआत को लेकर कम उम्र में काफी जिज्ञासु रहता है. देखने में आया है जो बच्चे अपने माता पिता से इन विषयों में चर्चा करते हैं वे काफी सहज रहते हैंसाथ ही वे अपनी अन्य समस्याओं के समाधान के लिए भी माता पिता के काफी निकट आ जाते हैं. जो बाद में उनके मार्गदर्शन में सहायक होता है. जब बच्चे के साथ सेक्स पर चर्चा कर रहें हों तो अभिभावक यह जताना न भूले कि यह एक महत्वपूर्ण विषय है जो शांत और सच्चाई का विषय है. बच्चों की नई बातों में ग्राह्यता और जिज्ञासा काफी अधिक होती है ऐसे में यदि अभिभावक उनके प्रश्नों को लेकर असहज होते हैं तो उनकी जिज्ञासा और बढ़ती हैतब या तो वह मन में यह धारणा बना लेगा कि सेक्स गलत या बुरी चीज है या रोक या अवरोध का विषय है.
ज्यादातर अभिभावक यह सोचते हैं कि इस विषय की शुरुआत करना काफी कठिन है तो ऐसे में वे रोजमर्रा की घटना, अवसर आदि को लेकर सेक्स पर चर्चा कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर यदि बच्चा बड़ा है तो उसे कपड़े बदलते वक्त उसे उसके गुप्तांगों सहित शरीर के सभी अंगो(सही नामों के साथ) की जानकारी दी जा सकती है. यदि बच्चा किसी गर्भवती महिला को देखता है और उसके बढ़े हुए पेट के बारे में जानकारी चाहता है तो अभिभावक इस अवसर को प्रसव की चर्चा शुरू करने का उचित अवसर के रुप में प्रयोग कर सकते हैं. बच्चा जब तरुणाई में प्रवेश कर रहा हो तो ऐसे में अभिभावको को ध्यान देना चाहिए कि उनके बच्चे में कुछ परिवर्तन (आवाज बदलना, स्तनों में विकासआदि ) हो रहे हैं इस अवसर पर उसे बताना चाहिए कि तु्म्हारी शरीर संरचना यौवनावस्था की ओर बढ़ रही हैऔर इस दौरान यौवनावस्था के बारे में बताना चाहिए. इस तरह हर दिन रोजमर्रा में सैकड़ो ऐसे अवसर आते हैं जिन्हे सेक्स चर्चा का विषय बनाया जा सकता है. मसलन यदि बच्चा छोटा है तो उसे पशु पक्षियों के संबंधो के आधार पर सेक्स की जानकारी दी जा सकती है.
अंगो के सही नाम बतायें
शुरुआत में ही अभिभावकों को बच्चों को अंगों के सही नाम बताना चाहिए. चाहे वह शरीर की सामान्य संरचना हो या गुप्तांग. जिस तरह अभिभावक यह बताते हैं कि यह नाक आंख कान आदि है ठीक उसी तरह उसे यह बताना चाहिये कि यह लिंग, योनि, स्तन है. इस तरह शुरुआती दौर में ही बच्चे को जानकारी मिल जाने पर उसे संदेह नहीं होगा और ना ही गलत जानकारी मिलेगी.
प्रश्नों की सीधे और ईमानदारी से जवाब दे
सेक्स को लेकर बच्चा जब कोई जानकारी चाहता है तो सीधे और ईमानदारी से जवाब देना चाहिये क्योंकि इस दौरान यदि उसे संदेह हो गया तो वह सेक्स के बारे में गलत भ्राति बना सकता है या सेक्स के विकृत रूप की कल्पनाकर सकता है. साथ ही उसके द्वारा पूछे गए सवाल को नजरअंदाज न करें न ही उसकी जिज्ञासाओं पर उसकी जिज्ञासाओं पर उसे डांटें इससे बालमन में सेक्स को लेकर गलत धारणा बन जाएगी जिसका आगे जाकर वह गलत प्रयोग कर सकता है.
स्कूल पूर्व उम्र के बच्चों से सेक्स चर्चा
इस उम्र में बच्चे थोड़ा ज्यादा जागरुक होते हैंऔर उनका सामना कई लोगों से होता है. इस वजह से उनकी जिज्ञासाएं कुछ ज्यादा होती है. इस समय वे अपनी शरीर संरचनाको लेकर भी सजग होने लगते है. तब उनके मन में विपरीत लिंग और उसके शरीर विन्यास सहित कई अन्य बातों को लेकर जिज्ञासाएं बलवती होती है.
अंगो और उनकी निजता के बारे में बताएं
बड़े बच्चों में अपने अंगो को लेकर उत्सुकता कुछ ज्यादा ही रहती है. कई बार सामान्य तौर पर वे अपने गुप्तांगों को हाथ लगाने लगते हैं. उनके इस सामान्य व्यवहार पर नाराज होने की बजाय उन्हे पर्याप्त जानकारी दें साथ ही उस अंग की निजता या प्राइवेसी की जानकारी दें ताकि वह दोबारा ऐसी हरकत न करें.
इस उम्र में विपरीत लिंग को लेकर भी काफी जिज्ञासा होती है. ऐसे में उसे बताना चाहिए कि लड़के में क्या लक्षण होते हैं तो लड़कियों की शारीरिक संरचना थोड़ी अलग होती है.
प्राथमिक स्कूलवय उम्र के बच्चों से सेक्स चर्चा
जैसे बच्चा बड़ा होता है उसका दिमाग और खुलता जाता है उसकी सेक्स को लेकर जिज्ञासा कुछ ज्यादा ही होती है . उसकी सोच और समझ का नजरिया भी बदल चुका होता है.
इस उम्र में अभिभावक उसे आसानी से बता सकते हैं कि बच्चा पेट में कैसे बड़ा होता है. मां के पेट में कैसे पहुंचता है निषेचन क्या होता है. क्या होता है जब अण्डाणु और शुक्राणु आपस में मिलते हैं. इन बातों को समझाने में अभिभावक को यदि दिक्कत हो रही हो तो प्रकृति (पशु पक्षी पेड़ पौधे) का सहारा ले सकते हैं. धीरे धीरे उसे मानव में समेंटें.
बालिकाओं को जरूरत होती है कि उनकी माता द्वारा उसे उसके मासिक धर्म के पहले ऋतुस्त्रावके बारे में जानकारी दे दें. जो कि अक्सर दस या ग्यारह साल की उम्र से शुरू होता है. यह किसी नवकिशोरी के लिये पहला अनुभव भयभीत करने वाला होता हैकि यह रक्त स्त्राव क्या है और क्यों हो रहा है. कई बार बालक भी ऋतुस्त्राव के बारे में जानने को उत्सुक होते है. ठीक इसी तरह बालकों को भी वीर्यपात की जानकारी दी जानी चाहिये तथा उन्हे बताना चाहिये यह एक प्रकृति प्रदत्त घटना है.
पूर्ण तरुण (Adolescents) से सेक्स चर्चा
इस उम्र में चर्चा करना वास्तव में थोड़ा असहज होता है. लेकिन यदि पूर्व में इन जैसे विषयों पर बातचीत हो चुकी हो तो मामला सहज होता है.
यह न सोचे कि खुद समझ जाएगाः इस उम्र में अभिभावक यह सोचते हैं कि बच्चा खुद ही समझ जाएगा लेकिन इस उम्र में वह सेक्स के बारे में कुछ ज्यादा ही जानना चाहता है. पर उसे अपने तरीके से जो पता चलता है वह या तो अधूरा होता है या फिर गलत होता है. मेरे अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि काफी समय तक मैं यह सोचता रहा कि महिला पहले सहवास के दौरान गर्भवती नहीं हो सकती.
किशोरावस्था( teens) की प्रतीक्षा न करें
बताएं सेक्स प्राकृतिक है
बच्चों को यह विश्वास दिलाएं की सेक्स प्राकृतिक और सामान्य घटना है. यह ठीक उसी तरह है जिस तरह विश्वास प्रेम न कि बुरा और घृणा करने योग्य है. इस तरह अभिभावक बच्चों को इसकी अहमियत और समय बताएं.
बताएं कि सेक्स का आशय सहवास नहीं है.
सेक्सुअल मित्रता के खतरों से आगाह कराएं
अभिभावकों को चाहिये वे बच्चोंको सेक्सुअल मित्रता के खतरों की जानकारी दें. मसलन उन्हे यह बताया जाना चाहिये कि इस दौरान गर्भ ठहरने का खतरा होता है. साथ ही कई तरह की सेक्सुअल बीमारियां भी हो सकती हैजिसमें एड्स जैसी भयानक बीमारी भी शामिल है. इसके अलावा भावनात्मक रूप से दिल टूटने का भी खतरा रहता है.
गर्भ निरोध की जानकारी दें
पूर्ण किशोर बच्चों को गर्भ निरोधकों की भी जानकारी देनी चाहिए और उनके बारें में बताना चाहिए साथ ही उन्हें सेक्सुअल रूप से स्थानान्तरित होने वाली बीमारियों की भी जानकारी देनी चाहिये तथा उससे बचाव के बारे में भी बताना चाहिए.