Tuesday, August 14, 2007

सेक्स संबंधी मिथक (भाग 1)

सेक्स को लेकर तमाम तरह की गलत भ्रांतियां हैं. अज्ञानतावश पुरातन काल से चली आ रही सेक्स व इससे संबंधी गलत जानकारियां आज भी लोगों को भयभीत करती हैं या उन्हें गलत रास्ते में भेजती हैं. यहां उन मिथकों की सच्चाई उजागर करने का प्रयास किया गया है.

मिथक 1- यदि लड़की का योनिच्छद (hymen) टूटा है तो वह कुंवारी नहीं है या यदि सेक्स के दौरान योनि से रक्तस्त्राव नहीं होता तो वह कुंवारी नहीं है.

सच्चाईः किसी महिला के कौमार्य का पैमाना यह मिथक काफी पुरातन काल से चला आ रहा है. यदि सेक्स के दौरान उपर दिये दोनों मिथकों में एक भी पाया जाता है तो यह माना जाता है कि वह महिला अपना कौमार्य खो चुकी है. जबकि यह गलत है . वास्तव में योनिच्छद चमड़ी की काफी पतली परत (झिल्ली) होती है जो आंशिक रूप से योनि को ढंके रहती है. जिसका मुख्य उद्देश्य योनि को वैक्टीरिया और हानिकारक रोगाणुओं से बचाना होता है. यह झिल्ली काफी संवेदनशील होती है और आसानी से हल्के से धक्के में भी फट जाती है. कुछ लड़कियों के तो जन्म से ही योनिच्छद नहीं होता है तो कई बार खेलने के दौरान , घुड़सवारी व साइकिल की सवारी के दौरान भी लड़कियों की योनिच्छद क्षतिग्रस्त हो जाती है. ज्यादातर एथलीट खेल के दौरान अपनी योनिच्छद तोड़ चुकी होती है. वहीं कई बार टैम्पून लेने पर भी योनिच्छद टूट सकता है तो हस्तमैथुन के दौरान भी योनिच्छद टूट जाता है. इसलिये यह कहना गलत है कि योनिच्छद टूटा है या क्षतिग्रस्त है तो लड़की अपना कौमार्य खो चुकी है.वहीं दूसरी ओर यदि सेक्स के दौरान योनिच्छद टूटता है तो कुछ रक्तस्त्राव होता है , क्योंकि झिल्ली के उत्तकों में रक्तवाहिनियां होती है. लेकिन यह वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है कि कई बार कुछ महिलाओं का योनिच्छद टूटने के बाद भी रक्त स्त्राव नहीं होता वहीं पहले बताई जा चुके कारणों से यदि सेक्स के पूर्व झिल्ली फट या टूट चुकी है तो भी रक्त स्त्राव नहीं होगा. वहीं कुछ महिलाओं को शुरुआती दौर के सेक्स में कई बार रक्तस्त्राव होता है. इस आधार यह नहीं माना जा सकता कि यदि सेक्स के दौरान रक्त स्त्राव नहीं होता तो वह कौमार्य खो चुकी महिला है.
मिथक 2- सेक्सुअल आनंद के लिये लिंग का बड़ा होना जरूरी.


सच्चाईः यह मिथक भी काफी प्रचलित है कि महिला को सेक्सुअली संतुष्ट करने के लिये लिंग का बड़ा होना जरूरी है. जबकि यह गलत है. सेक्स संतुष्टि व आनंद के लिये लिंग की ज्यादा लंबाई महत्वपूर्ण नहीं होती है. वहीं यह भी बता देना महत्वपूर्ण है कि किसी भी महिला की योनि का संवेदनशील हिस्सा पहले तीन सेंटीमीटर तक में ही होता है. इसलिये इस लंबाई के लिंग भी महिला को संतुष्ट करने में सक्षम होते हैं. वहीं सेक्स विशेषज्ञों ने प्रमाणित कर दिया है कि यदि उत्तेजित लिंग की लंबाई 2 इंच है तो वह महिला को पूर्ण सेक्स सुख दे सकता है. पुरुषों द्वारा पूछा जाने वाला यह सबसे प्रचलित मिथक है. कई पुरुष तो इसी मिथक के चलते अपने पार्टनर को पूरा सेक्स सुख नहीं दे पाते कि उनका लिंग छोटा है जबकि पार्टनर को उसके लिंग की शुरुआती तीन सेंटीमीटर की लंबाई से मतलब होता है.

मिथक 3- स्खलन के पूर्व योनि से शिश्न निकाल लेने पर गर्भधारण नहीं होता.

सच्चाईः वास्तविकता मिथक के विपरीत है. दरअसल यह विधि वे लोग ज्यादा अपनाते है जो गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल नहीं करते और सोचते हैं कि स्खलन से पूर्व योनि से लिंग निकाल लेने पर गर्भ नहीं ठहरेगा. वास्तव में होता यह है कि जब पुरुष का लिंग उत्तेजित होता है तो उसके मूत्रमार्ग से एक स्निग्ध द्रव निकलता है. जिसमें कुछ संख्या में शुक्राणु होते हैं और यही शुक्राणु गर्भ धारण करा सकते हैं. दरअसल यह स्निग्ध द्रव मूत्रमार्ग को लावणिक प्रभाव से निष्प्रभावी करने के लिये निकलता है. जिससे स्खलन के समय निकलने वाले शुक्राणु जीवित रह सके लेकिन स्खलन से पूर्व निकलने वाले इस द्रव में भी शुक्राणु रहते है. शोध के अनुसार स्खलन के समय 3000लाख शुक्राणु बाहर आते हैं लेकिन स्खलन के पूर्व निकलने वाले द्रव में स्खलन के दसवें हिस्से अर्थात 300 लाख शुक्राणु बाहर आ सकते हैं, और यह सर्वविदित है कि गर्भधारण के लिये एक शुक्राणु ही काफी होता है. वहीं एक मजेदार तथ्य यह भी है कि यदि कोई लड़की कोई गर्भनिरोधक प्रयोग नहीं करती है तो पहले साल उसे गर्भधारण की संभावना 90% होती है.


मिथक 4- खड़े होकर सेक्स करने, संभोग के पश्चात पेशाब करने या उपर नीचे कूदने से गर्भधारण नहीं होता.

सच्चाईः यह मिथक पूरी तरह से गलत है. योनि मार्ग में किसी भी तरीके से सेक्स करने पर गर्भधारण हो सकता है. क्योंकि शुक्राणु योनि में काफी समय तक जीवित रह सकते हैं और जैसे ही उन्हें अवसर मिलता है वह डिम्ब से जा मिलते हैं. वहीं यह भी सत्य है कि शुक्राणु और डिम्ब गति कर सकते हैं इस लिये आपका शरीर किसी भी पोजीशन में हो यह खिसक कर निषेचित हो सकते हैं.
वहीं संभोग के बाद पेशाब करने के बाद भी गर्भधारण की पूरी संभावना होती है. क्योंकि महिला के गुप्तांग की संरचना इस तरह होती है कि मूत्रमार्ग और योनिमार्ग अलग-अलग होते हैं . इसलिये यदि शुक्राणु योनि में पहुंच गया है तो फिर पेशाब करने से निषेचन को नहीं रोका जा सकता है.

इसी तरह संभोग के बाद उपर-नीचे कूदने पर भी गर्भधारण नहीं रोका जा सकता क्योंकि शुक्राणु योनि की दीवार पर चिपक जाते हैं जिन्हे कूदने पर भी कोई असर नहीं होता.

मिथक 5- हस्तमैथुन से दुर्बलता, कमजोरी, पुरुषत्वहीनता व नपुंसकता आती है.

सच्चाईः यह काफी पुराना व विश्वव्यापी मिथक है जबकि यह सच्चाई से कोसों दूर है. चिकित्सकीय परीक्षणों से सिद्ध किया जा चुका है कि हस्तमैथुन एक महिला-पुरुष के बीच किये गए संभोग की ही तरह है. इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिससे दुर्बलता, कमजोरी या नपुंसकता आए. हस्तमैथुन के बाद कुछ लोगों को कमजोरी का आभाष विशुद्ध तौर पर मानसिक कारण होता है न की शारीरिक. हस्तमैथुन सामान्य मैथुन की ही तरह है.


मिथक 6- एक बूंद वीर्य 40 बूंद खून से बनता है.

सच्चाईः यह भारत और मुस्लिम देशों का सबसे ज्यादा बताया जाने वाला मिथक है. जबकि सच्चाई का इससे दूर-दूर का नाता नहीं है. वीर्य और खून पूरी तरह से शरीर के दो अलग-अलग पदार्थ हैं जिनका आपस में कोई लेना देना नहीं है. वीर्य का निर्माण शुक्र ग्रंथि, शुक्र वाहिनी और प्रोस्टेट ग्रंथि द्वारा होता है. और इसमें खून का कोई योगदान नहीं होता. इसलिये यह कहना कि वीर्य की एक बूंद खून की 40 बूंदों से बनती है पूरी तरह गलत है.

मिथक 7- पीरियड के दौरान सेक्स करने से लड़कियों को गर्भ नहीं ठहरता.

सच्चाईः सिद्धांततः यह माना जाता है कि महिला पीरियड के पहले अण्डोत्सर्ग करती है और पीरियड के दौरान वह अण्डाणु गर्भाशय से बाहर निकल जाते हैं, इसलिये जब अण्डाणु ही नहीं रहेंगे तो गर्भ धारण नहीं हो सकता है. लेकिन वास्तव में यह सिद्धांत काफी अविश्वसनीय है वह भी खासतौर पर किशोरावस्था के लिये. ज्यादातर किशोरवय लड़कियों के पीरियड काफी अनियमित होते हैं क्योंकि इस दौरान उनका शरीर खुद को नियमित व विधिवत करने का प्रयास कर रहा होता है. ऐसे में किसी किशोरा का पीरियड अपने नियत चक्र से थोड़ा उपर चढ जाता है लेकिन उसके अण्डाणु इस समय की मार के बाद भी स्थिर रह जाते हैं. ऐसे में यह बताने का कोई रास्ता नहीं बचता है कि कब अण्डाणु मौजूद होगा और कब नहीं. वहीं शुक्राणु योनि में पांच से सात दिन तक जीवित रह सकता हैं. ऐसे में इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पीरियड के दौरान गर्भधारण नहीं हो सकता. विशेषकर किशोरावस्था में और अनियमित मासिक धर्म वाली महिलाओं के लिये तो पीरियड के दौरान सेक्स करने पर हमेशा गर्भ धारण का खतरा बना रहता है. हां नियमित और नियत तिथि पर होने वाले पीरियड के दौरान गर्भधारण की संभावना काफी न्यून होती है.

मिथक 8- ‘किस’ करने से HIV नहीं फैलता.

सच्चाईः यह तथ्य गलत है. यदि साधारण तरीके से चूमते है अर्थात सूखा चुंबन लेते हैं
तो HIV नहीं फैल सकता है. लेकिन यदि गहरा और गीला चुंबन लेने पर जिसमें शारीरिक
द्रव्य या लार हो इससे HIV फैलने की संभावना बनी रहती है. साथ ही यदि मुंह में छाले
या घाव होने पर भी चूमने के दौरान HIV की संभावना होती है.

मिथक 9- सामान्य तौर पर स्खलन का समय आधे घंटे होता है.

सच्चाईः हिन्दुस्तान में तो यह मिथक काफी सुनने को मिलता है. जबकि यह सच्चाई से कोसों दूर होता है. हिन्दुस्तान का ज्यादातर युवा यदि कहीं सेक्स क्रिया की चर्चा करता है तो वह बड़ी शान से यह कहता हैं कि वह लगातार आधे घंटे (कई बार इससे ज्यादा) तक सेक्स करता रहा . जबकि हकीकत में वह झूठ बोल रहा होता है या फिर उसने फोर प्ले का भी समय जोड़ लिया होता है. जबकि सच्चाई यह है कि योनि के अंदर लिंग के प्रवेश के बाद बिना रुके लगातार सेक्स करने पर स्खलन का औसत समय 3 से 10 मिनट का होता है. यह अलग बात है कि लोग कई बार सेक्स के दौरान स्खलन से पूर्व घर्षण को विराम देकर स्खलन का समय बढ़ा लेते हैं.

मिथक 10- पहले सेक्स के दौरान लड़की को काफी पीड़ा होती है.

सच्चाईः ज्यादातर महिलाओं को यह कहते या बताते सुना या पढ़ा जा सकता है कि पहली बार सेक्स के दौरान उन्हे काफी पीड़ा हुई थी. कई बार तो पुरुष भी यह चाहते हैं कि जब पहली बार सेक्स किया जाता है तो महिला को काफी पीड़ा होनी चाहिए नहीं तो उसका कौमार्य भंग हो चुका है या वह सेक्स की आदी है. जबकि वास्तविकता यह है कि सेक्स के दौरान महिला को पीड़ा का अनुभव होना पुरुष की अज्ञानता है. दरअसल वह सेक्स के पूर्व महिला को उत्तेजित नहीं कर पाता जिससे योनि में पर्याप्त फैलाव नहीं हो पाता जिससे सेक्स पीड़ा दायी हो जाता है. दरअसल योनि एक तरह से मांसपेशी है. यह फैल सकती है तथा संकुचित हो सकती है यह काफी लचीली होती है. इस लिये योनि के लिये ऐसा कोई आधार नहीं जिससे उसे “टाइट” या “लूज” कहा जा सके. नही इन शब्दों को आधार बना कर यह कहा जा सकता है कि कितने पुरुषों के साथ महिला ने सेक्स किया है. सेक्स क्रिया के
दौरान महिला के उत्तेजित होने पर योनि फैल जाती है तथा गर्भाशय उपर उठकर योनि को और खाली स्थान दे देता है. इस लिये सेक्स से पहले पर्याप्त उत्तेजित करने से सेक्स पीड़ादायी नहीं रह जाता है. इसके अलावा लिंग जितना मोटा या पतला होगा योनि स्वयं में फैलाव या संकुचन के द्वारा खुद को लिंग के हिसाब से एडजस्ट कर लेती है. एक न्यूज चैनल की वैबसाइट की रिपोर्ट पर बताया गया है कि अमेरिका में एक पेशेवर महिला सेक्स वर्कर की आंख में पट्टी बांध कर उसके साथ अलग अलग लंबाई व मोटाई के लिंग वाले से सेक्स कराया गया. फिर पट्टी खोल कर उससे लिंग के संबंध में पूछे जाने पर वह बताने में असफल रहीं. वह रिपोर्ट यथा यहां दी जा रही है-

“There was an experiment performed in US where a beautiful professional prostitute, who was not carrying any sexually transmitted disease, was invited for an experiment. Her eyes were kept closed, and three men were told to perform intercourse with her. One man had a penis only two inches in length on erection, another man had a penis four inches long on erection and the third man had a penis six inches in length on erection. She did not know who was performing intercourse with her. After all the three men performed intercourse her eyes were opened and she was asked by a team of doctors to tell them what according to her was the size of the penis of the three men. She was unable to tell the size. Even a professional prostitute who was experienced could not make out what the length of their penis was, even though the difference was two inches, four inches and six inches. So the satisfaction of women does not depend on the size of the penis”

यह अलग है जब सेक्स के दौरान योनिच्छद या योनि की झिल्ली टूटती है तो दर्द होता है , या फिर जब महिला सेक्स के लिये पर्याप्त उत्तेजित न हो या सेक्स के लिये मानसिक तौर पर तैयार न हो.

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