किसी महिला के बारे में किसी पुरुष द्वारा सर्वाधिक जिज्ञासा का केन्द्र यही अंग होते हैं. इसके अलावा सेक्स क्रिया के दौरान इन अंगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इनकी संरचना कुंवारेपन और बच्चे के जन्म के बाद अलग-अलग होती है.
भगनासा या भगशिश्न( Clitoris)
स्पंजी उत्तकों से बना हुआ अंडाकार आकृति का छोटा हिस्सा होता है जो लीबिया मिनोरा और क्लिटोरी हुड के बीच होता है. यह सेक्स के लिये उत्तेजना का महिला के शरीर में सबसे सेन्सटिव अर्थात संवेदनशील अंग होता है. थोड़े से भी तनाव या दबाव से क्लिटोरी बाहर दिखने लगती है. यह उत्तेजना और आवेग के दौरान खून से भरकर कड़ा और बड़ा हो जाता है. यहां क्लिटोरी एक कोश संरचना से घिरी रहती है जिसे क्लिटोरी हुड कहते हैं जो कि सेक्स क्रिया के दौरान पीछे की ओर खिसक जाता है. कई महिलाओं की भगनासा छोटी होती है तो कई की काफी बड़ी होती है जो क्लिटोरी हुड द्वारा पूरी तरह बंद भी नहीं हो पाती है.
बाह्य भगोष्ठ( Labia Majora)
भग का वह बाहरी हिस्सा जो गुद्देदार होता है बाह्य भगोष्ठ कहलाता है. यह छूने पर काफी उत्तेजक होता है. यह सामान्यतः रोएं(बाल) से आच्छादित होता है. इनमें पसीने और तैलीय ग्रंथियां पाई जाती हैं. इनसे होने वाला प्रवाह आपके पार्टनर को सेक्सुअली जागृत करता है.
आन्तरिक प्रकोष्ठ( Labia Minora)
बाह्य भगोष्ठ के अंदरूनी हिस्से में ओंठ नुमा तथा हल्की उभरी हुई कठोर संरचना आंतरिक भगोष्ठ कहलाती है.इसका मुख्य काम भगनासा (clitoris) और मूत्रद्वार को आवरण प्रदान करना है. यह बाह्य भगोष्ठ से ज्यादा संवेदी तथा कम गुद्देदार होता है.
मूत्रद्वार( Urethra)
इससे मूत्र शरीर से बाहर निकलता है. यह सेक्सुअल अंगों का हिस्सा नहीं है. यह भगनासा के नीचे और योनिद्वार के सामने पाया जाता है. लेकिन जी-स्पाट सेक्स क्रिया के दौरान द्रव्यपात यहीं से होता है. अपनी स्थिति के कारण कई बार संभोग के दौरान यह रोग संक्रमण का कारण भी बनता है.
योनिद्वार( Vaginal Orifice)
योनि संभोग क्रिया का यह सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है. यह योनिद्वार से शुरू होकर गर्भाशय के मुख तक जाती है. इसे जन्म नलिका के नाम से भी जाना जाता है. इसमें काफी संख्या में ग्रंथियां पाई जाती हैं जो स्निग्ध द्रव का स्त्राव करती हैं. जिससे पूरी नलिका में उत्तेजना और संभोग क्रिया के दौरान चिकनाहट बनी रहती है. संभोग क्रिया के दौरान इसी अंग में लिंग का प्रवेश होता है.
योनिच्छद( Hymen)
यह एक पतली झिल्ली होती है जो योनि मार्ग को ढंके रहती है. यह सिर्फ मासिक बहाव को प्रवाहित होने देती है. यह झिल्ली संभोग के दौरान ही टूटती है या क्षतिग्रस्त होती है. इस दौरान हल्का रक्त स्त्राव होता है और दर्द होता है. इसलिये इस कई बार कुंवारेपन की पहचान भी माना जाता है. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि यह झिल्ली सिर्फ सहवास के दौरान ही टूटती है. कई बार यह खेलकूद के दौरान भी टूट जाती है. इसलिये झिल्ली का टूटना या प्रथम संभोग के दौरान रक्तस्त्राव न होने को यह नहीं कहा जा सकता है कि महिला का कौमार्य भंग हो चुका है.
भगनासा या भगशिश्न( Clitoris)
स्पंजी उत्तकों से बना हुआ अंडाकार आकृति का छोटा हिस्सा होता है जो लीबिया मिनोरा और क्लिटोरी हुड के बीच होता है. यह सेक्स के लिये उत्तेजना का महिला के शरीर में सबसे सेन्सटिव अर्थात संवेदनशील अंग होता है. थोड़े से भी तनाव या दबाव से क्लिटोरी बाहर दिखने लगती है. यह उत्तेजना और आवेग के दौरान खून से भरकर कड़ा और बड़ा हो जाता है. यहां क्लिटोरी एक कोश संरचना से घिरी रहती है जिसे क्लिटोरी हुड कहते हैं जो कि सेक्स क्रिया के दौरान पीछे की ओर खिसक जाता है. कई महिलाओं की भगनासा छोटी होती है तो कई की काफी बड़ी होती है जो क्लिटोरी हुड द्वारा पूरी तरह बंद भी नहीं हो पाती है.
बाह्य भगोष्ठ( Labia Majora)
भग का वह बाहरी हिस्सा जो गुद्देदार होता है बाह्य भगोष्ठ कहलाता है. यह छूने पर काफी उत्तेजक होता है. यह सामान्यतः रोएं(बाल) से आच्छादित होता है. इनमें पसीने और तैलीय ग्रंथियां पाई जाती हैं. इनसे होने वाला प्रवाह आपके पार्टनर को सेक्सुअली जागृत करता है.
आन्तरिक प्रकोष्ठ( Labia Minora)
बाह्य भगोष्ठ के अंदरूनी हिस्से में ओंठ नुमा तथा हल्की उभरी हुई कठोर संरचना आंतरिक भगोष्ठ कहलाती है.इसका मुख्य काम भगनासा (clitoris) और मूत्रद्वार को आवरण प्रदान करना है. यह बाह्य भगोष्ठ से ज्यादा संवेदी तथा कम गुद्देदार होता है.
मूत्रद्वार( Urethra)
इससे मूत्र शरीर से बाहर निकलता है. यह सेक्सुअल अंगों का हिस्सा नहीं है. यह भगनासा के नीचे और योनिद्वार के सामने पाया जाता है. लेकिन जी-स्पाट सेक्स क्रिया के दौरान द्रव्यपात यहीं से होता है. अपनी स्थिति के कारण कई बार संभोग के दौरान यह रोग संक्रमण का कारण भी बनता है.
योनिद्वार( Vaginal Orifice)
योनि संभोग क्रिया का यह सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है. यह योनिद्वार से शुरू होकर गर्भाशय के मुख तक जाती है. इसे जन्म नलिका के नाम से भी जाना जाता है. इसमें काफी संख्या में ग्रंथियां पाई जाती हैं जो स्निग्ध द्रव का स्त्राव करती हैं. जिससे पूरी नलिका में उत्तेजना और संभोग क्रिया के दौरान चिकनाहट बनी रहती है. संभोग क्रिया के दौरान इसी अंग में लिंग का प्रवेश होता है.
योनिच्छद( Hymen)
यह एक पतली झिल्ली होती है जो योनि मार्ग को ढंके रहती है. यह सिर्फ मासिक बहाव को प्रवाहित होने देती है. यह झिल्ली संभोग के दौरान ही टूटती है या क्षतिग्रस्त होती है. इस दौरान हल्का रक्त स्त्राव होता है और दर्द होता है. इसलिये इस कई बार कुंवारेपन की पहचान भी माना जाता है. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि यह झिल्ली सिर्फ सहवास के दौरान ही टूटती है. कई बार यह खेलकूद के दौरान भी टूट जाती है. इसलिये झिल्ली का टूटना या प्रथम संभोग के दौरान रक्तस्त्राव न होने को यह नहीं कहा जा सकता है कि महिला का कौमार्य भंग हो चुका है.
पेरिनियम( Perineum)
योनि और गुदाद्वार के बीच की त्वचा का हिस्सा पेरिनियम कहलाता है. यह काफी उत्तेजक हिस्सा होता है और इसके निचले हिस्से में नसों का संजाल फैला होता है. संभोग क्रिया के पूर्व (fore play के दौरान) इस अंग को थपथपाने से आनंद की काफी अनुभूति होती है और उत्तेजना का संचार होता है. चित्र में जो गुलाबी संरचना दिखाई दे रही है वह योनिच्छद है.
नीचे वीडियो में देखे योनि के बारे में
योनि और गुदाद्वार के बीच की त्वचा का हिस्सा पेरिनियम कहलाता है. यह काफी उत्तेजक हिस्सा होता है और इसके निचले हिस्से में नसों का संजाल फैला होता है. संभोग क्रिया के पूर्व (fore play के दौरान) इस अंग को थपथपाने से आनंद की काफी अनुभूति होती है और उत्तेजना का संचार होता है. चित्र में जो गुलाबी संरचना दिखाई दे रही है वह योनिच्छद है.
नीचे वीडियो में देखे योनि के बारे में
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