योनि
यह योनिद्वार से शुरू होकर गर्भाशय तक जाती है. संभोग क्रिया के दौरान लिंग का प्रवेश और घर्षण योनि में ही होता है. इसके अलावा बच्चे का जन्म भी इसी नलिका के द्वारा होता है. इसलिये इसे जन्म नलिका भी कहते हैं. सामान्यतः योनि की लंबाई 3 इंच होती है. जो बच्चे को जन्म के बाद 4 इंच हो सकती है. इससे यह पता चलता है कि संभोग क्रिया के लिये योनि को संतुष्टि प्रदान करने लिंग की लंबाई का ज्यादा लंबा रिश्ता महत्वपूर्ण नहीं होता है. लेकिन सेक्स उत्तेजना के दौरान जितनी जरूरत लिंग को योनि की होती है गर्भाशय उतना ही उपर की ओर खिसक जाता है. संभोग के पश्चात योनि का संकुचन गर्भद्वार को फोरनिक्स के उपर सुस्ताने की अनुमति देती है. इस अवस्था में गर्भाशय कटोरे की तरह फोरनिक्स में फिट हो जाता है. जो कि वीर्य के प्रवेश के लिये सही अवस्था होती है. वहीं दूसरी ओर योनिद्वार के पास बार्थोलिन ग्रंथि पाई जाती है. यह थोडी-थोड़ी मात्रा में स्निग्ध द्रव प्रवाहित करती है जो आन्तरिक भगोष्ठ को सेक्स उत्तेजना के दौरान गीला रखता है. इसके आगे की ओर योनिच्छद ग्रंथि पाई जाती है जो बहुत कम मात्रा में योनि नलिका में चिकनाहट बनाए रखती है.
जी-स्पॉट
इस शब्द का उल्लेख करना इसलिये जरूरी है क्योंकि इसके अस्तित्व और उद्देश्य हमेशा बहस का केन्द्र बने रहते हैं. ऊपर के चित्र में जी-स्पॉट दिखाया गया है. मूलतः जी-स्पॉट वह क्षेत्र है जहा स्कीनिस ग्रंथि पाई जाती है और उसका उद्देश्य अज्ञात है साथ ही कई विवादों को समेटे हुए है. जिनमें से एक यह है कि कई महिलाओं को जब इस क्षेत्र में योनि के अंदर दबाव महसूस होता है तो परम आनंद की अनुभूति होती है. इस दबाव के लिये योनि मार्ग के अन्दर दो अंगुलियों को डाला जाता है क्योंकि यह योनि दीवार के अंदर गहराई पर होता है. इन उत्तकों को स्पर्श करने के लिये दबाव की आवश्यकता होती हैक्योंकि यह ग्रंथियां मूत्राशय से सटी होती हैं. कई महिलाओं को पेशाब करने की आवश्यकता महसूस होने के वक्त पड़ रहे अतिरिक्त दबाव के दौरान इसका अनुभव होता है.
गर्भद्वार
गर्भद्वार गर्भाशय की शुरुआत है. इसका ब्यास 1 से 3 मिलीमीटर तक होता है. जो कि मासिक चक्र पर निर्भर करता है कि कब उसे मापा गया है. गर्भद्वार कई बार ग्रीवा श्लेष्मा से जुड़ा होता है जो कि उसे निषेचन के दौरान संक्रमण से बचाता है. इस श्लेष्मा में पतला द्रव पाया जाता है जो शुक्राणु के प्रवाह में मदद करता है.
गर्भाशय
गर्भाशय या गर्भस्थान स्त्रियों का प्रमुख प्रजनन अंग होता है. गर्भाशय की आंतरिक दीवार को endometrium कहते हैं. जो कि मासिक धर्म के दौरान बढ़ता और अपना आकार परिवर्तित करके अपने को निषेचित अण्डे के लिए तैयार करता है. साथ ही हर मासिक धर्म के दौरान इस परत को बाहर निकाल देता है, यदि निषेचन की क्रिया पूर्ण नहीं होती है. गर्भाशय शक्तिशाली मांसपेशियों से घिरा होता है. जो प्रसव के दौरान बच्चे को बाहर निकालने में मदद करती है.
अण्डाशय
अण्डाशय दो क्रियाओं के लिये जिम्मेदार होता है. पहला महिला सेक्स हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रान को बनाता है व स्त्रावित करता है. साथ ही गर्भावस्था की समाप्ति पर रिलैक्सिन हार्मोन बनाता है और स्त्रावित करता है. दूसरा परिपक्व अण्ड बनाता है. प्रारंभिक अवस्था में अण्डाशय लगभग 400000 अण्डाणु रखता है जो कि औसत जीवन अवधि के दौरान लगभग 500 अण्डाणु मासिक चक्र के दौरान बाहर कर दिये जाते हैं. परिपक्व (बालिग) अवस्था के दौरान सिर्फ एक अण्डाणु फेलोपियन ट्यूब में आता है और यह यात्रा तीन चार दिन की होती है और यही वह समय होता है जब अण्डाणु निषेचित हो सकता है तथा महिला गर्भ धारण कर सकती है. यदि इस दौरान निषेचन नहीं हो पाया तो यह अण्ड मासिक चक्र के दौरान बाहर निकल आता है.
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