Tuesday, March 18, 2008

यौन व जनन स्वास्थ्य संबंधी समाधान

शासकीय चिकित्सालय के गुप्त रोग परामर्श विभाग में आए सवालों के चिकित्सकीय नजरिये से जवाब. यह हमें भेजा है विभाग के एक शासकीय चिकित्सक ने.

1 यौवनारम्भ क्या होता है?
यौवनारम्भ वह समय है जबकि शरीरपरक एवं यौनपरक लक्षण विकसमत हो जाते हैं। हॉरमोन मे बदलाव के कारण ऐसा होता है। ये बदलाव आप को प्रजनन के योग्य बनाते हैं।

2. यौवनासम्भ का समय कौन सा है?
हर किसी में यह अलग समय पर शुरू होता है और अलग अवधि तक रहता है। यह जल्दी से जल्दी 9 वर्ष और अधिक से अधिक 13-14 वर्ष की आयु तक प्रारम्भ हो जाता है। यौवन विकास की यह कड़ी सामान्यतः 2 से 5 वर्ष तक की होती है। कुछ किशोरियों में दूसरी हम उमर लड़कियों में यौवन के शुरू होने से पहले यौवन विकास पूरा भी हो जाता है।

3. लड़कों में यौवनारम्भ के क्या लक्षण है?
यौवनारम्भ के समय सामान्यतः लड़के अपने में पहले की अपेक्षा बढ़ने की तीव्रगति को महसूस करते हैं, विशेषकर लम्बाई में। कन्धों की चौड़ाई भी बढ़ जाती है। 'टैस्टोस्ट्रोन' के प्रभाव से उनके शरीस में नई मांसलता और इकहरेपन की आकृति बन जाती है। उनके लिंग में वृद्धि होती है और अण्डकोष की त्वचा लाल-लाल हो जाती है एवं मुड़ जाती है। आवाज गहरी हो जाती है, हालांकि यह प्रक्रिया बहुत धीरे-धीरे होती है फिर भी कोई आवाज फटने जैसा अनुभव कर सकता है। यह स्वाभाविक और प्राकृतिक है, इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं होती। लिंग के आसपास बाल, दाड़ी और भुजाओं के नीचे बाल दिखने लगते हैं और बढ़ने लगते हैं। रात्रिकालीन निष्कासन (स्वप्नदोष या 'भीगे सपने') सामान्य बात है। त्वचा तैल प्रधान हो जाती है जिससे मुहासे हो जाते हैं।

4. लड़कियों में यौवनारम्भ के क्या लक्षण है?
शरीर की लम्बाई और नितम्बों का आकार बढ़ जाता है। जननेन्द्रिय के आसपास, बाहों के नीचे और स्तनों के आसपास बाल दिखने लगते हैं। शुरू में बाल नरम होते हैं पर बढ़ते- बढ़ते कड़े हो जाते हैं। लड़की का रजोधर्म या माहवारी शुरू हो जाती है जो कि योनि में होने वाला मासिक रक्तस्राव होता है, यह पांच दिन तक चलता है, जनन तंत्रपर हॉरमोन के प्रभाव से ऐसा होता है। त्वचा तैलीय हो जाती है जिससे मुंहासे निकल आते हैं।

5. यौवनारम्भ के दौरान स्तनों में क्या बदलाव आता है?
स्तनों का विकास होता है और इस्ट्रोजन नामक स्त्री हॉरमोन के प्रभाव से बढ़ी हुई चर्बी के वहां एकत्रित हो जाने से स्तन बड़े हो जाते हैं।

6. यौवनारम्भ के परिणाम स्वरूप औरत के प्रजनन अंगों में क्या बदलाव आता है?
जैसे ही लड़की के शरीर में यौवनारम्भ की प्रक्रिया शुरू होती है, ऐसे विशिष्ट हॉरमोन निकलते हैं जो कि शरीर के अन्दर के जनन अंगों में बदलाव ले आते हैं। योनि पहले की अपेक्षा गहरी हो जाती है और कभी कभी लड़कियों को अपनी जांघिया (पैन्टी) पर कुछ गीला- गीला महसूस हो सकता है जिसे कि यौनिक स्राव कहा जाता है। स्राव का रंग या तो बिना की जरूरत नहीं। गर्भाषय लम्बा हो जाता है और गर्भाषय का अस्तर घना हो जाता है। अण्डकोष बढ़ जाते हैं और उसमें अण्डे के अणु उगने शुरू हो जाते हैं और हर महीने होने वाली 'अण्डोत्सर्ग' की विशेष घटना की तैयारी में विकसित होने लगते हैं।

7. अण्डकोत्सर्ग क्या है?
एक अण्डकोष से निकलने वाले अण्डे के अणु को अण्डोत्सर्ग कहते हैं। औरत के माहवारी चक्र के मध्य के आसपास महीने में लगभग एक बार यह घटना घटती है। निकलने के बाद, अण्डा अण्डवाही नली में जाता है और वहां से फिर गर्भाषय तक पहुंचने की चार-पांच दिन तक की यात्रा शुरू करता है। अण्डवाही नली लगभग पांच इंच लम्बी है और बहुत ही तंग है इसलिए यह यात्रा बहुत धीमी होती है। अण्ड का अणु प्रतिदिन लगभग एक इंच आगे बढ़ता है।

8. उर्वरण क्या है?
यौन सम्भोग के परिणामस्वरूप जब पिता के वीर्य का अणु मां के अण्ड अणु से जा मिलता है तो उसे उर्वरण कहते हैं। जब वह अण्ड अणु अण्डवाही नली में होता है तभी यह उर्वरण घटित होता है। शिशु के सृजन के लिए अण्डे और वीर्य का मिलना और जुड़ना जरूरी है। जब ऐसा होता है, तब और गर्भवती हो जाती है।

9. रजोधर्म/माहवारी क्या है?
10 से 15 साल की आयु की लड़की के अण्डकोष हर महीने एक विकसित अण्डा उत्पन्न करना शुरू कर देते हैं। वह अण्डा अण्डवाही नली (फालैपियन ट्यूव) के द्वारा नीचे जाता है जो कि अण्डकोष को गर्भाषय से जोड़ती है। जब अण्डा गर्भाषय में पहुंचता है, उसका अस्तर रक्त और तरल पदार्थ से गाढ़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि यदि अण्डा उर्वरित हो जाए, तो वह बढ़ सके और शिशु के जन्म के लिए उसके स्तर में विकसित हो सके। यदि उस अण्डे का पुरूष के वीर्य से सम्मिलन न हो तो वह स्राव बन जाता है जो कि योनि से निष्कासित हो जाता है।

10. माहवारी चक्र की सामान्य अवधि क्या है?
माहवारी चक्र महीने में एक बार होता है, सामान्यतः 28 से 32 दिनों में एक बार।

11. मासिक धर्म/माहवारी की सामान्य कालावधि क्या है?
हालांकि अधिकतर मासिक धर्म का समय तीन से पांच दिन रहता है परन्तु दो से सात दिन तक की अवधि को सामान्य माना जाता है।

12. माहवारी मे सफाई कैसै बनाए रखें?
एक बार माहवारी शुरू हो जाने पर, आपको सैनेटरी नैपकीन या रक्त स्राव को सोखने के लिए किसी पैड का उपयोग करना होगा। रूई की परतों से पैड बनाए जाते हैं कुछ में दोनों ओर अलग से (Wings) तने लगे रहते हैं जो कि आपके जांघिये के किनारों पर मुड़कर पैड को उसकी जगह पर बनाए रखते हैं और स्राव को बह जाने से रोकते हैं।

13. सैनेटरी पैड किस प्रकार के होते हैं?
भारी हल्की माहवारी के लिए अनेक अलग-अलग मोटाई के पैड होते हैं, रात और दिन के लिए भी अलग- अलग होते हैं। कुछ में दुर्गन्ध नाषक या निर्गन्धीकरण के लिए पदार्थ डाले जाते हैं। सभी में नीचे एक चिपकाने वाली पट्टी लगी रहती है जिससे वह आपके जांघिए से चिपका रहता है।

14. पैड का उपयोग कैसे करना चाहिए?
पैड का उपयोग बड़ा सरल है, गोंद को ढकने वाली पट्टी को उतारें, पैड को अपने जांघिए में दोनों जंघाओँ के बीच दबाएं (यदि पैड में विंग्स लगे हैं तो उन्हें पैड पर जंघाओं के नीचे चिपका दें)

15. पैड को कितनी जल्दी बदलना चाहिए?
श्रेष्ठ तो यही है कि हर तीन या चार घंटे में पैड बदल लें, भले ही रक्त स्राव अधिक न भी हो, क्योंकि नियमित बदलाव से कीटाणु नहीं पनपते और दुर्गन्ध नही बनती। स्वाभाविक है, कि यदि स्राव भारी है, तो आप को और जल्दी बदलना पड़ेगा, नहीं तो वे जल्दी ही बिखर जाएगा।

16. पैड को कैसे फेंकना चाहिए?
पैड को निकालने के बाद, उसे एक पॉलिथिन में कसकर लपेट दें और फिर उसे कूड़े के डिब्बे में डालें। उसे अपने टॉयलेट मे मत डालें - वे बड़े होते है, सीवर की नली को बन्द कर सकते हैं।

17. मुंहासे से क्या होता है?
मुंहासे - त्वचा की एक स्थिति है जो सफेद, काले और जलने वाले लाल दाग के रूप मे दिखते हैं। जब त्वचा पर के ये छोटे - छोटे छिद्र बन्द हो जाते हैं तब मुंहासे होते हैं। सामान्यतः हमारी तैलीय ग्रन्थियां त्वचा में चिकनापन बनाए रखती है और त्वचा के पुराने अणुओं को निकालने में मदद देती है। किशोरावस्था में वे ग्रन्थियां बहुत अधिक तेल पैदा करती हैं जिससे कि छिद्र बन्द हो जाते हैं, कीटाणु कचरा और गन्दगी जमा हो जाती है जिससे काले मस्से और मुंहासे पैदा होते हैं।

18. मुहांसों के प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है?
मुंहासों के प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित स्व- उपचार की प्रक्रिया को अपनाये- (1) हल्के, शुष्कताविहीन साबुन से त्वचा को कोमलता से धोयें (2) सारी गन्दगी अथवा मेकअप को धो दें, ताजे पानी से दिन में एक दो बार धोयें, जिसमें व्यायाम के बाद का धोना भी शामिल है। जो भी हो, त्वाचा को बार-बार धोने या ज्यादा धोने से परहेज करें। (3) बालों को रोज शैम्पू करें, खासतौर पर अगर वे तेलीय हों। कंघी करें या चेहरे से बालों को हटाने के लिए उन्हें पीछे खीचें। बालों को कसने वाले साधनों से परहेज करें। (4) मुंहासों को दबाने, फोड़ने या रगड़ने से बचने का प्रयास करें। (5) हाथ या अंगुलियों से चेहरो को छूने से परहेज करें। (6) स्नेहयुक्त प्रसाधनों या क्रीमों का परहेज करें। (7) अब भी अगर मुंहासे तंग करें, डाक्टर आपको और अधिक प्रभावशाली दवा दे सकता है या अन्य विकल्पों पर विचार विमर्श कर सकता है।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

सभी के लिए ज्ञानवर्धक और जरुरी पाठ। खास कर किशोरों के लिए निहायत जरुरी। आप आगे की समस्याओं के बारे में भी लिखें, खास तौर पर मीनोपॉज पर अवश्य ही।

arun prakash said...

आपके सभी लेख ज्ञानवर्धक हैं काश भारत के लोग इसका ज्ञान अर्जित करते तो इतनी सेक्स विकृतियाँ न उत्पन्न होतीं आपके प्रयास को साधुवाद आपके इस ब्लॉग पर आपत्ती करने वाले लोग दोगली प्रवित्ति के हैं