क्या आपको तलाश है अपने - या अपने पार्टनर की उत्तेजना को और तेज करने के रास्ते की? यदि हां तो यहां हम दें रहे हैं आपकी तलाश को एक रास्ता. महिला के जननांगों में शामिल योनि मार्ग और उसे घेरे हुए भगोष्ठ क्षेत्र में कामुक संवेदना के चार छोटे-छोटे केन्द्र होते हैं. जो कि महिला के उत्तेजना की स्थिति में लाने में कामुकता की दृष्टि से काफी संवेदनशील होते हैं. और ये चार केन्द्र हैं भगशिश्न (clitoris), यू-स्पॉट, जी-स्पॉट और ए-स्पॉट. इनमें से पहले दो योनि से बाहर हैं और बाद के दो योनि के अंदर.
भगशिश्न(Clitoris)
यह महिला जननांग के सर्वश्रेष्ठ ज्ञात हॉट स्पॉट के रुप में जाना जाता है, जो कि भग के शीर्ष पर स्थित होता है. इसी स्थान पर आन्तरिक भगोष्ठ बाह्य भगोष्ठ से जुड़ता है. इसका दृश्य भाग काफी छोटा तथा निप्पल के आकार का होता है. महिलाओं में यह पुरुष के लिंग के अगले सिरे के समकक्ष होता है. यह आंशिक रूप से सुरक्षा कवच(protective hood) से ढंका होता है. मूल रूप से यह 8000 तंत्रिका तंतुओं (nerve fibres) का बंडल होता है, जो कि इसे महिला के शरीर का सबसे संवेदनशील अंग बनाती है. यह विशुद्ध रूप से यौन कार्य के लिये ही है. यह मैथुन क्रिया के दौरान दीर्घ (बड़ी, फूली हुई ,तनी हुई) तथा ज्यादा संवेदनशील हो जाती है. फोरप्ले के दौरान अक्सर यह सीधे छूने मात्र से ही उत्तेजित हो जाती है. दूसरी ओर वे महिलाएं जो योनि संभोग से पूर्ण कामोत्तेजना को नहीं पाती है वे इसे भगशिश्न उत्तेजना (विभिन्न तरीकों व माध्यमों) से जल्दी पा लेती हैं. हाल ही में एक आस्ट्रेलियन सर्जन ने बताया बताया कि इसका जितना आकार दिखाई देता है हकीकत में यह उससे काफी बड़ा है. इसका काफी कुछ हिस्सा सतह के नीचे छिपा हुआ है. इसका जो हिस्सा दिखाई देता है वह नोंक मात्र है. अंदर इसकी लंबाई इसके नीचे से - छड़ नुमा - योनि द्वार तक के बराबर होती है. इस तरह जैसे ही योनि में शिश्न की हरकत होती है तो यह सख्ती से संदेश भेजती है. इसलिये योनि संभोग के दौरान भले ही भगशिश्न (clitoris) को नहीं छूते फिर भी वह उत्तेजना के अनुरूप उठाव में आ जाती है. कई महिलाओं का कहना है कि जब इसमें एक लयबद्ध घर्षण होता है तो वह फंतासी के काफी करीब तक पहुंच जाती है. इस लिये महिला को कामोन्माद की चरम अवस्था तक पहुंचाने के लिये इस अंग की प्रभावी भूमिका होती है जिसकी कई बार पुरुष अवहेलना कर देते हैं या फिर इस ओर ध्यान नहीं देते हैं.
यू-स्पॉट(U-Spot)
यह संवेदनशील, उत्तेजित होने योग्य उत्तकों का छोटा सा पैच होता है जो कि मूत्र द्वार के ऊपर और दोनो ओर पाया जाता है लेकिन यह मूत्र मार्ग के नीचे(जो कि मूत्रद्वार व योनिद्वार के बीच का छोटा हिस्सा होता है) नहीं पाया जाता है. हालांकि इसके बारे में अभी भगशिश्न से कम ही जानकारी हो पाई है. अभी इसकी कामुक क्षमता के बारे में अमेरिका के चिकित्सीय अनुसंधानकर्ता जांच कर रहे हैं. अब तक की जांच में उन्होंने पाया है कि यदि इस क्षेत्र को धीरे-धीरे उंगली, जीभ या शिश्न के सिरे की सहायता से सहलाया(caresse) जाय तो वहां अप्रत्याशित रूप से शक्तिशाली कामुक प्रतिक्रिया होती है.
वहीं दूसरी महिला के मूत्रमार्ग के विषय में एक बात और है जो काफी उल्लेखनीय है वह है महिला स्खलन(female ejaculation). पुरुष के मामले में मूत्रनलिका से ही मूत्र और शुक्राणु मिश्रित वीर्य बाहर आता है. लेकिन महिलाओं के मामले में माना जाता है कि वे सिर्फ मूत्र उत्सर्जन ही करती हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. जब कोई असामान्य रूप से शक्तिशाली संभोग करता है तो कुछ महिलाएं अपने मूत्रमार्ग से एक द्रव छोड़ती है लेकिन यह द्रव मूत्र नहीं होता है.दरअसल मूत्रनलिका के चारों ओर कुछ विशेष ग्रंथियां होती हैं. जिन्हें स्कीनी(skene) ग्रंथियां या अर्ध मूत्रमार्ग (para-urethral) ग्रंथियां कहते हैं(देखें चित्र) जो कि पुरुष की प्रोस्टेट ग्रंथियों के ही समान होती है. ये ग्रंथियां चरम उत्तेजना के दौरान तरल रासायनिक क्षारीय(alkaline) द्रव का उत्पादन करती हैं जो पुरुष वीर्य संबंधी द्रव के समान ही होता है. वे महिलाएं जो ऐसे स्खलन(जो कुछ बूंद या कुछ चम्मच के बराबर हो सकता है) का अनुभव रखती हैं उन्हे चरम उत्तेजना के क्षणों में अत्यधिक पेशीय थकान की अनुभूति होती है. इस सामान्य शरीरक्रिया विज्ञान को न समझने की वजह से वे इसे अनैच्छिक पेशाब की भी संज्ञा दे देती है या कई बार वे इसे पेशाब की अनुभूति भी कह सकती है. कई बार तो कुछ अज्ञान चिकित्सकों ने भी इस घटना की जानकारी न होने पर अप्रत्याशित तरीके से इलाज की भी सलाह दे डाली तो कुछ पुरुष इस स्खलन से यह कहकर घृणा करते हैं कि उस की पार्टनर सेक्स के दौरान पेशाब करती है. हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि इस स्खलन का तात्पर्य क्या है या इसके मूल्य क्या हैं. हालांकि कुछ लोग इसे योनि स्नेहन(lubrication) जोड़ते जबकि हकीकत में यह क्रिया योनि दीवारों द्वारा स्वयं की जाती है. हम तो इसे यौन क्रिया के चरम में इसे महिला की एक तरल फंतासी मानते हैं जो यौन क्रिया को उत्सकर्ष के अत्यधिक समीप ले जाती है.
जी-स्पॉट(G-Spot)
यह योनि के अन्दर की ओर ऊपरी दीवार पर 5-8से.मी.(2-3इंच) की गहराई में पाया जाने वाला छोटा लेकिन काफी संवेदनशील क्षेत्र होता है. इसकी खोज प्रसिद्ध जर्मन स्त्री रोग विशेषज्ञ अर्नस्ट ग्रेफेनबर्ग ने की थी. सन् 1940 में जब महिला संभोग की प्रकृति पर अनुसंधान चल रहा था तब पाया गया कि योनि के उपर की ओर मूत्र नलिका उत्तेजित होने योग्य उत्तकों से घिरी हुई है यह ठीक उसी तरह का व्यवहार करती है जिस तरह पुरुष का शिश्न. जब महिला सेक्सुअली उत्तेजित हो जाती है तब ये ऊत्तक फूलने लगते हैं. ऊत्तकों का यही विस्तार योनि के अंदर उपरी दीवार पर छोटे पैच के रूप में समझ में आता है जिसे जी-स्पॉट के नाम से जाना जाता है. ग्रेफेनबर्ग ने इसी उठे हुए पैच को प्राथमिक कामुक क्षेत्र की संज्ञा दी तथा बताया कि उत्तेजना के मामले में यह भगशिश्न(clitoris) से ज्यादा संवेदनशील है. साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जब लोग यौन व्यवहार के लिये 'मिशनरी पोजीशन' अपनाते हैं तो यह स्पॉट अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाता है लेकिन अन्य कई सेक्स पोजीशन इस कामुकतायुक्त क्षेत्र को उत्तेजित करने और चरमोत्कर्ष पाने में काफी प्रभावी होती है. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इसके खोजकर्ता ग्रेफेनबर्ग स्वयं इस क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर पाये उन्होंने बस इस क्षेत्र को 'कामुक क्षेत्र' मात्र घोषित किया था.हालांकि यह काफी बेहतर वर्णन योग्य क्षेत्र है लेकिन दुर्भाग्य से आज के इस मार्डन युग में इसके काफी लोकप्रिय हो जाने से कई गलतफहमियां भी इसके साथ जुड़ गईं हैं. कुछ महिलाएं इसके अस्तित्व पर आशावादी तरीके से विश्वास करती है तो कुछ का मानना है कि जबर्दस्त कामाग्नि पैदा करने के लिये यह एक 'सेक्स बटन' है जिसे किसी भी समय स्टार्टर बटन की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है. वहीं कई का यह भी मानना है कि जी-स्पॉट की पूरी अवधारणा ही गलत है. जबकि सच्चाई पूर्व में ही स्पष्ट की जा चुकी है कि जी- स्पॉट कामुकता से भरा वह क्षेत्र है जो धीरे से तभी निकलता है जब मूत्र नलिका के चारों ओर के ऊत्तकों में फूलने से विस्तार होता है. जी-स्पॉट के अस्तित्व को उसकी पहली ही कान्फ्रेंस में कई शीर्ष स्त्री रोग विशेषज्ञों द्वारा नकार दिया गया था लेकिन बाद में जब इसका विस्तार से प्रदर्शन के साथ वर्णन किया गया तो आगे जाकर इस विशेषज्ञों ने भी जी-स्पॉट के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया. यह माना जाता है कि जी स्पॉट योनि की फ्रंट दीवार पर पाया जाता है जो प्यूबिक बोन और गर्भद्वार के मध्य में होता है. इस पर प्रहार करने के लिये, इसको खोजने का सरलतम तरीका होगा कि इसे गर्भद्वार की ओर से शुरू करें. इसका संरचनात्मक अनुभव नाक के अगले सिरे (tip of nose ) की तरह होता है. फिर धीरे-धीरे योनि की अग्र दीवार से होते हुए नीचे की ओर आएं. उत्तेजना के दौरान यह फूला रहता है, यह पहचान इसकी खोज में सहायक होती है. कुछ लोग इसे कुछ ज्यादा स्पंजी क्षेत्र के रूप में अनुभव करते हैं और जब इस पर प्रहार किया जाता है तो वह अत्यंत आनंददायी होता है. लेकिन ऐसा अनुभव सभी महिलाओं के प्रति नहीं रहा. कुछ ने तो इस पर प्रहार के दोरान पेशाब जाने की इच्छा भरी सनसनाहट का अनुभव किया वहीं कुछ महिलाएं इस क्षेत्र को लेकर भावशून्य रहीं. वहीं कुछ महिलाएं जी स्पाट उत्तेजना के दौरान एक रंगहीन गंधहीन द्रव स्खलन करते भी पाईं गईं. कुछ रिसर्च के दौरान पाया गया कि इस द्रव में प्रोस्टैटिक एन्जाइम पाए गये हैं इस आधार पर यह माना गया कि यह प्रोस्टेट के समतुल्य है.
शेष ए-स्पॉट पर जानकारी अगले दिनों में...
1 comment:
achhi jaankarii pata nahin kyon log aapkii itne vagyanik vishleshan bhare lekho ko padh kar koii kamment kyon nahii karate yadyapi ise log padhatein hai. hindi mein itna vistrit sex education par blog ya website mujhe nahin mili . aapka karya bada hi sarahaniya hai aur niswarth bhi hai
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