सेक्स का पहला अनुभव या ज्ञान गाहे बगाहे ज्यादातर लोगों को किशोरावस्था या उसके पहले ही हो जाता है. यह अलग बात है तब उसे इसकी जानकारी नहीं होती. जैसे कि कहा जाता है कि बच्चे की पहली पाठशाला उसका अपना घर परिवार होता है. इसी से स्पष्ट हो जाता है कि सेक्स का पहला ज्ञान भी उसे घर परिवार से ही मिलता है. सेन्टर फॉर इफेक्टिव पैरेन्टिंग के द्वारा किये गए सर्वे से निकले निष्कर्ष के आधार पर बच्चा सर्वप्रथम सेक्सुअलिटी के बारे में अपने अभिभावक से ही सीखता है. भले उसके अभिभावक उससे चर्चा करें या न करें. वे सेक्स की सीख अपने अभिभावक/माता-पिता के बीच व्यवहार देख कर , उनकी आपसी चर्चा सुनकर और सेक्सुअल व्यवहार और संदेश पर अपने माता-पिता के बीच की प्रतिक्रिया के अनुभव से मिलती है. मसलन किसी टीवी या सिनेमा में किसी अंतरंग या रोमांटिक दृश्य या संदेश पर माता-पिता की प्रतिक्रिया को जब बच्चा देखता है फिर उस पर अपनी सोच बनाता है. यह भी बच्चे में सेक्स का पहला अनुभव का कारण बनता है. कई बार बच्चे घर में बड़ों के सेक्स कार्यकलापों को देख लेते हैं और उसे अपने बालमन के अनुरूप गढ़ लेते हैं. कई बार सेक्सी बाते सुनकर भी अनुभूति प्राप्त करते हैं. कई बार यह भी देखा जाता है कि स्कूल में अपने से बड़े उम्र के बच्चे की संगत में आकर भी उसे सेक्स की जानकारी मिलती है. ऐसी ही एक घटना मेरे परिचित ने अपने बारे में बताई कि जब वे लगभा १२ साल के रहे होंगेउस दौरान कोई अवकाश का दिन था वे और उनका दोस्त जो उम्र में उनसे थोड़ा बड़ा था ने बताया कि आज टॉकीज में लव वाली फिल्म लगी है. तब उन्होंने लव का आशय लौ समझा और फिल्म देखने का इरादा किया. जब वे वहां पहुंचे तब उन्हें कुछ और पता चला. इस तरह की अनेकों घटनाएं मसलन एक छोटे बच्चे का पड़ोस में देखकर आने के बाद माता-पिता से यह कहना कि आप दोनों से लेटते नहीं बनता उसके दोस्त के मम्मी पापा ऐसे लेटते हैं. आदि उसके बालमन में सेक्स का सबक प्रारंभ कर देते हैं. ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी बनती है कि अपने बच्चे पर सतत निगरानी रखे कि बच्चा क्या देख सुन और कर रहा है. या उसकी प्रतिक्रिया क्या है. और उसे उचित तरीके से समझाएं साथ ही स्वस्थ वातावरण उसके सामने प्रस्तुत करें.
वहीं इन सबसे से हटकर कुछ लोगों का मानना है कि बालक अपने बचपन में जो देखता और अनुभव करता है वह सेक्स की अनुभूति नहीं होती है. हां वह एक जिज्ञासा जरूर होती है लेकिन उसमें सेक्स की अनुभूति नहीं होती है. लेकिन यही बच्चा जब किशोर अवस्था में आता है और उस वक्त वह जो देखता है और समझता है वह उसकी सेक्स की पहली अनुभूति होती है.क्योंकि तब उसे स्त्री पुरूष जैसे शब्दों का मतलब समझ में आने लगता है साथ ही इस दौरान अपने शारीरिक परिवर्तन के दौर से भी गुजर रहा होता है. इस अवस्था में विपरीत लिंग को देखकर एक अलग भावना का संचार भी होने लगता है जो सेक्स अनुभूति की पहली सीढ़ी है.
वहीं इन सबसे से हटकर कुछ लोगों का मानना है कि बालक अपने बचपन में जो देखता और अनुभव करता है वह सेक्स की अनुभूति नहीं होती है. हां वह एक जिज्ञासा जरूर होती है लेकिन उसमें सेक्स की अनुभूति नहीं होती है. लेकिन यही बच्चा जब किशोर अवस्था में आता है और उस वक्त वह जो देखता है और समझता है वह उसकी सेक्स की पहली अनुभूति होती है.क्योंकि तब उसे स्त्री पुरूष जैसे शब्दों का मतलब समझ में आने लगता है साथ ही इस दौरान अपने शारीरिक परिवर्तन के दौर से भी गुजर रहा होता है. इस अवस्था में विपरीत लिंग को देखकर एक अलग भावना का संचार भी होने लगता है जो सेक्स अनुभूति की पहली सीढ़ी है.
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