प्यार और सेक्स इतनी आसानी से एक दूसरे में बदल सकते हैं. जिस तरह से पर्यायवाची शब्द. क्या प्यार का मतलब सेक्स है? क्या सेक्स का मतलब प्यार है? क्या प्यार के दौरान सेक्स कुछ होता है?
मुझे तुमसे प्यार हो गया है. आओ प्यार करें.... कुछ इस तरह के जुमले प्यार जताने के लिये कहे जाते हैं. कुछ ज्यादा गहराई वाले - क्या तुम मुझे दिल से चाहते हो?यह मनमौजीपन या कहें कि पागलपन का दर्शन है जो आजकल चारों ओर बज रहा है. ये दोनों शब्द प्रायोगिकरूप से बदलते रहते हैं. तब ऐसे में सेक्स क्या है? यह किस तरीके से प्यार में फिट होता है.
हम सभी अभिलाषा और उत्तेजना के एक जाल से बने हुए हैं. उदाहरण के तौर पर खाने को ले. शरीर को स्वस्थ और स्फूर्ति भरा रखने के लिए खाने की जरूरत होती है. लेकिन दूसरी ओर खाने के ही इतने ही स्वाद और प्रकार हैं जो हमें खाने का आनंद दिलाते हैं. ठीक इसी तरह ज्ञान की अभिलाषा है. यह ज्ञान की अभिलाषा ही हमें ज्ञान और चीजों को बेहतर तरीके से समझने के लिये प्रेरित करती है और स्थिर रहने से रोकती है.
भगवान ने हमारे लिये इसीतरह प्यार और मित्रता की अभिलाषा बनाई है. इसी उद्देश्य से उसने हमारे लिये सेक्स संबंधी अभिलाषाएं बनाई हैं. जिसमें भावनात्मक और शारीरिक दोनों हैं. कुल मिला कर भोजन की आकांक्षा के साथ उसने उचित आचार व्यवहार के साथ सेक्स यात्रा भी निर्मित की है.भगवान ने इसी भावनात्मक और शारीरिक परिचय को पूरा करने के लिये शादी का एक खाका तैयार किया और शादी के बाद पति पत्नी के बीच प्यार के बहुत ही महत्वपूर्ण और गहरे प्रदर्शन के लिये सेक्स की रचना की. भगवान ने सेक्स की उसने ही सेक्स को जन्म दिया. यह उसी का प्लान था. जब उसने आदमी की रचना की तो उसने कहा बहुत अच्छा. तब आदमी की अभिलाषा और उसके लक्षण सभी ठीक थे. लेकिन आज के दौर में काफी समस्याएं खड़ी हो गई हैं. इसका कारण यह है कि जो भावनात्मक और शारीरिक प्रदर्शन शादीशुदा जिंदगी में होना चाहिये वह अब शादी से इतर हो रहा है. और अब परिणाम स्वयं सामने आ रहे है. वह भी टूटते हुए दिल के रूप में. आदमी की सोच दूषित होती जा रही है. इसके परिणाम विभिन्न बीमारियों और शारीरिक कमजोरियों के रूप में सामने आ रहे हैं. सेक्स में कुछ तो बहुमूल्यता है जो शादी के लिये अनमोल कोष है. इसलिये रचयिता के प्लान का पालन करना चाहिये . यदि शादी तक के लिये सेक्स छोड़ देते हैं तो आप पाएंगें कि वास्तविक प्यार क्या है, जो संदेह और अविश्वास से मुक्त होगा. भगवान ने सेक्स बनाया है जिसका उद्देश्य शादी के लिये है. इसलिये आग को आग वाले स्थान तक के लिये छोड़ दें. तभी प्यार और सेक्स एकाकार होंगें अन्यथा प्यार और सेक्स बेमानी और झूठे हैं.
दूसरी ओर इन सबसे हटकर यह कह सकते है कि प्यार और सेक्स दो अलग अलग चीजें हैं. प्यार एक आवेग भावना या अनुभव है. प्यार की कोई परिभाषा नहीं हो सकती क्योंकि प्यार का अर्थ कई अलग-अलग चीजों और अलग-अलग व्यक्तियों पर केन्द्रित है. जबकि सेक्स एक अलग मामला है जो कि जीवविज्ञान की एक घटना है. यद्यपि सेक्स के कई प्रकार हैं और अधिकतर सेक्सुअल कार्यों में निश्चित तौर पर चीजें कामन होती है. सेक्स कोई अर्थ बोध नहीं रखता है. अब सेक्स और प्यार के अन्तर को निम्न रूप में समझ सकते हैं-
प्यारः
- प्यार एक अनुभूति (भावनात्मक) है.
- प्यार की सभी लोगों के लिये यथार्थ परिभाषा नहीं है.
- प्यार औपन्यासिक कथाओं और/ या आकर्षण की अनुभूति है.
सेक्सः
- सेक्स एक घटना या कार्य (शारीरिक) है.
- सेक्स के कई प्रकार हैं पर सभी प्रकारों में कुछ चीजें समान होती है.
- सेक्स महिला-पुरुष, दो महिलाओं, दो पुरुषों या किसी अकेले के द्वारा स्वयं (हस्तमैथुन) किया जाता है.
मुझे तुमसे प्यार हो गया है. आओ प्यार करें.... कुछ इस तरह के जुमले प्यार जताने के लिये कहे जाते हैं. कुछ ज्यादा गहराई वाले - क्या तुम मुझे दिल से चाहते हो?यह मनमौजीपन या कहें कि पागलपन का दर्शन है जो आजकल चारों ओर बज रहा है. ये दोनों शब्द प्रायोगिकरूप से बदलते रहते हैं. तब ऐसे में सेक्स क्या है? यह किस तरीके से प्यार में फिट होता है.
हम सभी अभिलाषा और उत्तेजना के एक जाल से बने हुए हैं. उदाहरण के तौर पर खाने को ले. शरीर को स्वस्थ और स्फूर्ति भरा रखने के लिए खाने की जरूरत होती है. लेकिन दूसरी ओर खाने के ही इतने ही स्वाद और प्रकार हैं जो हमें खाने का आनंद दिलाते हैं. ठीक इसी तरह ज्ञान की अभिलाषा है. यह ज्ञान की अभिलाषा ही हमें ज्ञान और चीजों को बेहतर तरीके से समझने के लिये प्रेरित करती है और स्थिर रहने से रोकती है.
भगवान ने हमारे लिये इसीतरह प्यार और मित्रता की अभिलाषा बनाई है. इसी उद्देश्य से उसने हमारे लिये सेक्स संबंधी अभिलाषाएं बनाई हैं. जिसमें भावनात्मक और शारीरिक दोनों हैं. कुल मिला कर भोजन की आकांक्षा के साथ उसने उचित आचार व्यवहार के साथ सेक्स यात्रा भी निर्मित की है.भगवान ने इसी भावनात्मक और शारीरिक परिचय को पूरा करने के लिये शादी का एक खाका तैयार किया और शादी के बाद पति पत्नी के बीच प्यार के बहुत ही महत्वपूर्ण और गहरे प्रदर्शन के लिये सेक्स की रचना की. भगवान ने सेक्स की उसने ही सेक्स को जन्म दिया. यह उसी का प्लान था. जब उसने आदमी की रचना की तो उसने कहा बहुत अच्छा. तब आदमी की अभिलाषा और उसके लक्षण सभी ठीक थे. लेकिन आज के दौर में काफी समस्याएं खड़ी हो गई हैं. इसका कारण यह है कि जो भावनात्मक और शारीरिक प्रदर्शन शादीशुदा जिंदगी में होना चाहिये वह अब शादी से इतर हो रहा है. और अब परिणाम स्वयं सामने आ रहे है. वह भी टूटते हुए दिल के रूप में. आदमी की सोच दूषित होती जा रही है. इसके परिणाम विभिन्न बीमारियों और शारीरिक कमजोरियों के रूप में सामने आ रहे हैं. सेक्स में कुछ तो बहुमूल्यता है जो शादी के लिये अनमोल कोष है. इसलिये रचयिता के प्लान का पालन करना चाहिये . यदि शादी तक के लिये सेक्स छोड़ देते हैं तो आप पाएंगें कि वास्तविक प्यार क्या है, जो संदेह और अविश्वास से मुक्त होगा. भगवान ने सेक्स बनाया है जिसका उद्देश्य शादी के लिये है. इसलिये आग को आग वाले स्थान तक के लिये छोड़ दें. तभी प्यार और सेक्स एकाकार होंगें अन्यथा प्यार और सेक्स बेमानी और झूठे हैं.
दूसरी ओर इन सबसे हटकर यह कह सकते है कि प्यार और सेक्स दो अलग अलग चीजें हैं. प्यार एक आवेग भावना या अनुभव है. प्यार की कोई परिभाषा नहीं हो सकती क्योंकि प्यार का अर्थ कई अलग-अलग चीजों और अलग-अलग व्यक्तियों पर केन्द्रित है. जबकि सेक्स एक अलग मामला है जो कि जीवविज्ञान की एक घटना है. यद्यपि सेक्स के कई प्रकार हैं और अधिकतर सेक्सुअल कार्यों में निश्चित तौर पर चीजें कामन होती है. सेक्स कोई अर्थ बोध नहीं रखता है. अब सेक्स और प्यार के अन्तर को निम्न रूप में समझ सकते हैं-
प्यारः
- प्यार एक अनुभूति (भावनात्मक) है.
- प्यार की सभी लोगों के लिये यथार्थ परिभाषा नहीं है.
- प्यार औपन्यासिक कथाओं और/ या आकर्षण की अनुभूति है.
सेक्सः
- सेक्स एक घटना या कार्य (शारीरिक) है.
- सेक्स के कई प्रकार हैं पर सभी प्रकारों में कुछ चीजें समान होती है.
- सेक्स महिला-पुरुष, दो महिलाओं, दो पुरुषों या किसी अकेले के द्वारा स्वयं (हस्तमैथुन) किया जाता है.
2 comments:
इस बाबत मैं आपसे असहमत हूँ। मेरे ख़्याल से काम-भावना का दमन मनोवैज्ञानिक तौर पर घातक है।
मैं भी इससे सहमत नहीं हूँ कि सेक्स को शादी के साथ जोड़ा जाए। मेरे ख्याल से शादी का खाका भगवान ने नहीं, मनुष्य ने बनाया है। बल्कि विश्वास की परीक्षा ही तब होती है जब आप बिना बंधन के किसी के साथ वफादारी निभा सकें। आप इतने अच्छे ब्लॉग को यह सब लिख कर खराब कर रहे हैं। कृपया केवल वैज्ञानिक जानकारी तक सीमित रहें।
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