Friday, February 02, 2007

महिला का शरीर कैसे सेक्सुअली कार्य करता है


सालों बीत जाने के बाद महिला जब प्रजनन योग्य हो जाती है तब उसके दाएं और बाएं अण्डाशय मे हर माह परिपक्व अण्ड का उत्पादन शुरू हो जाता है. यहां से अण्ड जब मुक्त किया जाता है तब यह फेलोपियन ट्यूब से होते हुए गर्भाशय तक पहुंच जाता है. इस दौरान कोई महिला तभी गर्भवती हो सकती है जब शुक्राणु गर्भद्वार से होकर अंदर परिपक्व अण्ड से निषेचित हो जाता है.
गर्भद्वार ही वह गेट-वे है जो शुक्राणु को शरीर के अन्दर प्रवेश कराता है और उसी शरीर से बच्चे को जन्म के समय बाहर निकालता है. यहां जानने योग्य बात यह है कि परिपक्व अण्ड सिर्फ दो दिन तक ही निषेचित हो सकता है. इन दो दिनों में महिला यदि गर्भवती नहीं हो पाती है तो यह अण्ड मासिक चक्र के साथ बाहर निकल आता है और यदि गर्भधारण हो जाता है तो निषेचित अण्ड प्लेसेंटा में बच्चे का आकार लेने लगता है.
वहीं इससे आगे जाने पर कई महिलाएं यह सोचकर रजोनिवृत्ति (menopause) से डरती हैं. जब उनका अण्डाशय हार्मोन का उत्पादन बंद कर देता है, उनकी सेक्सुअल आकांक्षा खत्म होने लगती है. जबकि वास्तविकता यह है इन हार्मोन्स की न्युनता उनकी आकांक्षाओं की कमी का कारण नहीं है.
वे हार्मोन जो महिलाओं को उनकी अभिलाषा का अनुभव कराते हैं वे इस्ट्रोजेन और एन्ड्रोजेन हैं. एन्ड्रोजेन पुरुषों के वृषण में उत्पादित होने वाले हार्मोन का कमजोर रूप है. महिलाओं में एन्ड्रोजेन हार्मोन का आधा हिस्सा एड्रीनल ग्रंथि में बनता है जो किडनी के उपरी हिस्से में पाई जाती है.
अण्डाशय महिलाओं में एन्ड्रोजेन लेबल को स्थिर रखता है. जब महिला रजोनिवृत्ति अवस्था से गुजर रहीं होती है तब एड्रीनल ग्रंथि यह हार्मोन बनाने लगती है और महिलाओं को सामान्य सेक्सुअल आकांक्षा के लिये बहुत कम एन्ड्रोजेन हार्मोन की आवश्यकता होती है. ज्यादातर महिलाओं में मेनोपाज के दौरान काफी एन्ड्रोजेन हार्मोन हो जाता है.
ज्यादातर महिलाओं की सामान्य सेक्सुअल आकांक्षा स्थिर रहती है जब वह हार्मोन लेबल के परिवर्तन के दौर से गुजर रही होती है. मासिक चक्र, गर्भावस्था, रजोनिवृत्ति या गर्भनिरोधक गोलियों और महिलाओं की सेक्सुअल आकांक्षा के बीच नाम मात्र का संबंध पाया गया है.

एस्ट्रोजेन का कार्य

एस्ट्रोजेन हार्मोन महिलाओं की सेक्सुअल लाइफ में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह योनि को नम और खिंचाव योग्य बनाये रखता है. जब महिला उत्तेजित अवस्था में नहीं होती है तो इस समय योनि एक सिकुड़ा हुआ स्थान होती है. इस समय वह एक खुली सुरंग की तरह नहीं होती है, जैसा की सोचा जाता है. जैसे ही वह उत्तेजना का अनुभव करने लगती है वैसे ही योनि लंबी और चौड़ी होने लगती है. योनि की दीवारों में छिपे सेल द्रव छोड़ने लगते हैं जिससे योनि स्निग्ध (चिकनाहट भरी ) हो जाती है. योनि में होने वाले ये सभी परिवर्तन एस्ट्रोजेन हार्मोन पर निर्भर करते हैं. यदि महिला का एस्ट्रोजेन का स्तर कम है - उदाहरण के तौर पर - रजोनिवृत्ति के बाद योनि का फैलाव और चिकनापन काफी धीमी गति से होता है. एस्ट्रोजेन के बिना योनि दीवारों की खिंचाव क्षमता घट जाती है. कई बार तो ऐसा होता है कि जब महिला काफी उत्तेजित हो जाती है उस अवस्था में भी उसकी योनि काफी टाइट और सूखी रही आती है. यह अवस्था योनि आहार में कमी (vaginal atrophy) कहलाती है.

महिलाओं में उत्तेजना की स्थिति
जब भी कोई महिला सेक्सुअल उत्तेजित होती है उसका नाड़ी तंत्र उसके दिमाग को आनंदानुभूति का संदेश देता है . जैसे जैसे सिग्नल तेज और मजबूत होते जाते हैं आवेग का फैलाव बंधता जाता है. इस आवेग या उत्तेजना के दौरान वे मांसपेशियां जो बाह्य जननेन्द्रियों( genitals) के चारों ओर होती हैं एक रिदम के साथ कान्टेक्ट में रहती हैं. ऐसे में अचानक मांसपेशियों में तनाव से निकली आनंद की तरंगे बाह्य जननेन्द्रियों से होकर गुजरती हैं और कई बार तो यह शरीर के अन्दर तक उपस्थिति दर्ज कराती हैं. इस सबके बाद महिला आराम (relaxed) और संतुष्टि (satisfied) का अनुभव करती है.
महिलाओं में उत्तेजना समय-समय पर बदलती रहती है. कई बार उसे किसी आवेग का अनुभव नहीं होता या वह एक सेक्सुअल मुठभेड़ भी तरीके से पूर्ण नहीं कर पाती है. वहीं दूसरी ओर कई बार तो उन्हें गुणात्मक उत्तेजना का अनुभव होता है जो एक के बाद एक होता जाता है. यह उम्र के हर पड़ाव के साथ बदलती जाती है. लंबी उत्तेजना पाने के लिए काफी उकसावे की जरूरत होती है, और महिला जैसे-जैसे उम्र दराज होती जाती है उसे उतना ही ज्यादा उकसावे( foreplay) की जरूरत होती है.

कैसे मिलती है तीव्र उत्तेजना
आवेग या उत्तेजना प्राकृतिक फैलाव है लेकिन ज्यादातर महिलाओं को तीव्र उत्तेजना के संचार के लिये अनुभव की आवश्यकता होती है. कई बार तो संभोग के दौरान तीव्र उत्तेजना मिल पाना कठिन हो जाता है, तब बाह्य सेक्सुअल इन्द्रियों पर प्रहार (stroking) करना पड़ता है. एक सर्वे मे यह पाया गया है कि एक तिहाई महिलाएं संभोग के दौरान बगैर अतिरिक्त क्रिया (extra touching) के तीव्र उत्तेजना को नहीं पाती है.
संभोग के दौरान मिलने वाली तीव्र उत्तेजना मात्र ही अन्य तरीके से प्राप्त तीव्र उत्तेजना से बेहतर होगी, इसके अलावा आप और आपके पार्टनर के चरम पर पहुंचने पर मिलने वाली उत्तेजना ही सबका उद्देश्य हो यह भी जरूरी नहीं है.
यहां उत्तेजना के कई तरीके हैं जो चरमोत्कर्ष तक पहुंचा सकते हैंऔर ये अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग हो सकते हैं. कुछ महिलाएं तो भड़कीली कल्पना मात्र से या फिर उनके स्तनों के दबाने भर से चरम उत्तेजना को पा जाती हैं तो कुछ महिलाएं स्वप्न देख कर ही उत्तेजित हो जाती हैं. ज्यादातर महिलाएं तीव्र उत्तेजना पाने के लिये बाह्य सेक्सुअल इन्द्रियों से खिलवाड़ चाहती है.
महिलाओं की बाह्य सेक्स इन्द्रियां (देखें चित्र ) जिनमें भगशिश्न( clitoris) और आंतरिक भगोष्ठ( inner lips) उत्तेजना के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं. बाह्य सेक्स इन्द्रियों का क्षेत्र जो भग कहलाता है में बाह्य भगोष्ठ (outer lips), आन्तरिक भगोष्ठ (inner lips) , भगशिश्न (clitoris), योनिद्वार( entrance to the vagina) , मूत्रद्वार( opening of the urethra) , और गुदा शामिल होते हैं. बाह्य भगोष्ठ की संरचना स्पंजी होती है., जो सुकुमार और कोमल आंतरिक भगोष्ठ व भगशिश्न की सुऱक्षा का आवरण प्रदान करता है. जब कोई महिला सेक्सुअल उत्तेजित होती है आंतरिक सेक्स इन्द्रियां फूल कर फैल जाती है और इसकी त्वचा के नीचे रक्त का तीव्र संचार होने से इनका रंग गहरा गुलाबी हो जाता है.
कई महिलाएं भगशिश्न को सहलाने या थपथपाने भर से उत्तेजित हो जाती है. शिश्न की तरह ही भग शिश्न की भी संरचना होती है. इसका काम दिमाग तक आनंद प्राप्ति का संदेश पहुंचाना है जब इसे सहलाया या थपथपाया जाता है. भगशिश्न का अग्रभाग इतना संवेदनशील होता है कि तेजी और कठोरता से इसे सीधे रगड़ना कष्टप्रद होता है. इस कष्टकारी प्रक्रिया से बचने के लिये इसमें पहले कोई तैलीय या चिकनाहट वाले द्रव का प्रयोग कल लेना चाहिये फिर इसे रगड़ना या थपथपाना चाहिये.
उत्तेजना प्रदान करने वाले अंगों में बाह्य भगोष्ठ और गुदा द्वारा भी हैं. इनको सहलाने व थपथपाने से भी कई महिलाओं को आनंदानुभूति और उत्तेजना की प्राप्ति होती है. लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि हर महिला के सेक्स संवेदनशील क्षेत्र में थोड़ा अन्तर होता है.
योनिद्वार में कई नसों के अंतिम सिरे पाए जाते हैं. जो हल्की सी छुअन के प्रति भी संवेदनशील होते हैं और यह स्थिति योनि की गहराई तक पाई जाती है. कई महिलाओं में योनि की बाह्य दीवार (आमाशय की ओर ) आंतरिक दीवार से काफी संवेदनशील होती है. कई सेक्स विशेषज्ञों का मानना है कि योनि द्वार से लगभग ३-४ इंच अंदर योनि की बाह्य दीवार को सहलाने से महिलाओं को सहवास के दौरान काफी उत्तेजना प्राप्त होती है, लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. महिलाओं के सेक्सी अंगों में आंख, स्तन, गर्दन, पेट, ओंठ, पांव, नितंब, जांघ और जीभ आते है जो उन्हें उत्तेजित करने में सहायक होते हैं.

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