क्या सेक्स के लिए लिंग का आकार महत्वपूर्ण है ? यह सेक्स मामलों के लिये सबसे ज्यादा पूछा जाने वाला प्रश्न है. जबकि वास्तव में यह गैर महत्वपूर्ण प्रश्न है क्योंकि सेक्स क्रिया के लिये लिंग की लंबाई से कोई लेना देना नहीं होता. लिंग की लंबाई महत्वपूर्ण तब होती है जब सिर्फ आप इस बारे में सोचते हैं. यदि आप किसी से सेक्स कर रहे हैं और आप की आकांक्षा लंबे लिंग की है तब लिंग का आकार महत्वपूर्ण होगा वह भी सिर्फ आपके लिये . सेक्स क्रिया के लिये यदि आपको लगता है लिंग का लंबा होना जरूरी हैतब और तब सिर्फ आपके लिये मात्र ही लिंग की लंबाई महत्वपूर्ण होगी. जबकि कई महिलाओं का कहना है कि ज्यादातर आदमी लिंग की लंबाई को लेकर झूलते , परेशान होते रहते हैं जबकि उन्हे इससे कोई लेना देना नहीं है . विशेषज्ञों के अनुसार योनि की लंबाई मात्र 8 से.मी. से 13 से.मी. (3 से 5 इंच ) होती है और छोटा से छोटा लिंग भी इसके व्यास के आकार को छू सकता है. इसलिये कुल मिलाकर सेक्स के लिए लिंग की लंबाई कोई मायने नहीं रखती यह सिर्फ पुरुषों के दिमाग का भ्रम है.
मैन्डेस क्रॉप की किताब के अनुसार औसतन लिंग की लंबाई 15 से.मी. मानी जाती है. इसके साथ ही 90 फीसदी लोगों के लिंग की लंबाई 13 से 18 से.मी. के बीच पाई जाती है. पूर्णतः काम कर रहे लिंग में सबसे छोटे लिंग की लंबाई 1.5 से.मी. तथा अधिकतम लंबाई 30 से.मी. रिकार्ड की गई है.
■ क्या लिंग का आकार बढ़ाया जा सकता है?
हां लिंग का आकार बढ़ाया जा सकता है लेकिन वह सिर्फ सर्जिकल तरीके से . एक तरीका बायहेरी और दूसरा फैट इंजेक्शन है. बायहेरी तरीके में शरीर के एक हिस्से से लिगमेंट( ligament) काट कर लिंग में जोड़ा जाता है. इस तरीके से सिर्फ 2 इंच तक ही लिंग की लंबाई बढ़ाई जा सकती है. दूसरा तरीका फैट इंजेक्शन का है. इसमें शरीर के हिस्से से फैट निकाल लिया जाता है और उसे लिंग में इंजेक्ट किया जाता है. इसके अलाबा लिंग बढाने के जो भी तरीके दवा या अन्य बताए जाते है वह सिर्फ ठगी का कारण बनते है.
■ लिंग की लंबाई कैसे मापी जाती है?
हेराल्ड रीड जो रीड सेंटर फॉर एम्बुलैटरी यूरोलॉजिकल सर्जरी के डॉक्टर हैं के अनुसार लिंग की लंबाई नापने का सही तरीका निम्न है-सर्वप्रथम आप सीधे खड़े हो जाएं फिर लिंग को पूर्ण उत्तेजित अवस्था में ले आएं. इसके बाद लिंग को पकड़ कर तब तक नीचे झुकाएं जब तक कि वह जमीन के समानान्तर अवस्था में न आ जाए. इसके पश्चात लिंग जहां शरीर से शुरू होता है वहां से शिश्न मुण्ड की सीध तक स्केल से नाप लें. जो लंबाई आएगी वही लिंग की वास्तविक लंबाई है.
■ लिंग का एक ओर झुकाव (दाएं या बायें ) कुछ गलत है ?
लगभग सभी लिंग उत्तेजना के दौरान किसी न किसी दिशा में झुके रहते हैं. इनमें से कुछ नीचे की ओर झुके होते हैं. यदि उत्तेजना के दौरान यह झुकाव न हो तो यह लिंग में दर्द का कारण बन सकता है. इसलिये लिंग में झुकाव कुछ गलत नहीं है और न ही यह लक्षण आपके लिंग के साथ कुछ असामान्य है. इस झुकाव से सेक्स क्रिया पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ता है.अपवाद स्वरूप कुछ केस जिसे पेरोंस सिन्ड्रोम कहते है में लिंग का झुकाव बीमारी माना जाता है. यह बचपन से होता है. इस अवस्था में झुकाव की सीमा काफी अधिक कभी-कभी तो 90डिग्री तक पहुंच जाती है. यदि ऐसी परिस्थितियां होती हैं तो फिर चिकित्सक(यूरोलॉजिस्ट ) को दिखाना जरूरी होता है.
ज्यादा जानकारी के लिये क्लिक करें लिंग और उसका आकार
Tuesday, December 16, 2008
क्या हो लिंग का आकार ?
Thursday, November 13, 2008
सेक्स संबंधी आम सवाल
प्रश्नः कुछ लड़कियों में उनकी योनि से इतनी तेज गंध क्यों आती है?
उत्तरः हर लड़की की गंध भिन्न होती है, और उसकी तेज़ी भी कम या अधिक हो सकती है. योनि की सतह के नीचे तेल की ग्रँथियाँ होती हैं जो उत्तेजित होने के समय काम करना शुरु करती हैं और सम्भोग के समय यौनी को चिकना बनाती हैं. किसी किसी पुरुष को यह गंध अच्छी नहीं लगती या बहुत तेज लगती है तो यौन सम्पर्क से पहले यौनी की नाजुक सी क्रीम से साफ करना लाभ दे सकता है.
प्रश्नः क्या संभोग के समय बेहोश हो जाना सामान्य बात है? मैं एक स्त्री हूँ.
उत्तरः नहीं, यह सामान्य बात नहीं, शायद आप ठीक से साँस नहीं लेती. संभोग के समय भी ठीक से साँस लेना आवश्यक है, यानि खुल कर पूरी छाती में साँस लेना चाहिये, अगर आक्सीजन कम होगी तो बेहोशी आ जायेगी.प्रश्नः मेरी एक परेशानी है, मेरे लिंग का ऊपरी भाग जो चिकना होता है, वह बहुत सूखा रहता है, इसलिए लिंग को खड़ा करने भी मुश्किल होती जब तक उसे कुछ गीला न करूँ, जैसे कि थूक लगा कर. क्या यह नोरमल है?
उत्तरः कभी कुछ चिकनापन की जरूरत पड़े यह नोरमल बात है, अगर अधिक सूखा लगे तो उस पर कोई भी बेबी क्रीम लगा सकते हो जिससे कुछ नमी बनी रहे.
प्रश्नः मुझे बता सकते हैं कि क्यों सम्भोग से समय मुझे अच्छा लगता है कि मेरी गुदा में मेरी साथी अपनी उँगली घुसाये? क्या मैं नोर्मल हूँ?
उत्तरः गुदा में बहुत तंत्रिकाँए यानि नर्वस्(nerves) होती हैं, और उन्हे छूने से अच्छा लगना स्वाभाविक है. इसलिए यह बिल्कुल नोरमल है कि तुम्हे यह अच्छा लगता है.प्रश्नः मैं पंद्रह साल का लड़का हूँ और वेटलिफ्टिंग यानि वजन उठाने की कसरत करता हूँ, मैंने सुना है कि वजन उठाने से लिंग छोटा रह जाता है, क्या यह सच है?
उत्तरः खाली वजन उठाने से लिंग को कुछ नहीं होगा, कठिनाई तब होती है जब माँसपेशियों को बढ़ाने के लिए लोग होरमोन वगैरा लेना शुरु करते हैं. वजन उठाने से माँसपेशियाँ बढ़ जाती हैं तो बाकी शरीर के सामने लिंग पहले से छोटा लग सकता है पर असल में लिंग तो जैसा था वैसा ही रहता है, बस छोटा लगता है.प्रश्नः मैं चालिस साल का पुरुष हूँ. मैंने सुना है कि काम की चिंता होने से, स्ट्रैस होने से, वजन बढ़ने से, सेक्स की शक्ति बिगड़ जाती है और लिंग ठीक से नहीं तनता. तुम्हारा क्या विचार है.
उत्तरः तुमने ठीक ही सुना है. चिंता और बढ़ता वजन दोनो से ही सेक्स तो खराब होता ही है, और भी कई तकलीफें हो सकती हैं. सारे जीवन पर बुरा असर पड़ता है, इसलिए अपना ठीक से ख्याल रखना चाहिये, काम के बाद आराम करने का पर्याप्त समय भी होना चाहिये.प्रश्नः मैं 21 साल का युवक हूँ, मेरी कठिनाई है कि जब मेरा लिंग खड़ा होता है तो भी उसका शिश्न मुण्ड (सुपारा) नहीं खुलता, चमड़ी बहुत तंग है और वह मेरे लिंग से चिपकी रहती है. इससे मुझे हस्तमैथुन में तो कोई मुश्किल नहीं पर मुझे डर है कि मैं ठीक से सम्भोग नहीं कर पाऊँगा. मैंने कण्डोम लगाने की भी कोशिश की पर उसमें भी मुझे बहुत कठिनाई हुई. मुझे कुछ सलाह दो, धन्यवाद.
उत्तरः धीरे धीरे चमड़ी को सुपारे से पीछे हटाने की रोज़ कोशिश कर सकते हो, थोड़ा ध्यान से करना क्योंकि तुम्हारा सुपारा बहुत जल्दी संवेदित हो जायेगा. जिस समय लिंग तना न हो, उस समय वह चमड़ी से ढका रहे, यह तो नोरमल है पर जब सम्भोग के समय तुम उसे योनि में घुसाओगे, तो चमड़ी पीछे होने चाहिये. कण्डोम पहनने में अगर कठिनाई हो तो उसे लिंग के पूरी तरह खड़े होने से पहले ही लगा लो. तुम कहते हो कि हस्तमैथुन में तकलीफ नहीं इसका अर्थ है कि चमड़ी बिल्कुल चिपकी हुई नहीं है और शल्यचिकित्सा की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये.लेकिन जिन लोगों की चमड़ी काफी कसी होती है तथा नीचे पूरी तरह नहीं खुलती है उन्हें सेक्स के दौरान परेशानी हो सकती है. इससे बचने के लिये किसी सर्जन को समस्या बता कर इलाज करा लेना चाहिये. इसके लिये काफी छोटा ऑपरेशन होता है तथा कुछ दिनों में ही सब कुछ नार्मल हो जाता है. तथा किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती.
प्रश्नः मुझे अपने लिंग और नीचे गोलियों की थैली पर सफेद सफेद सी छोटी छोटी गोलियाँ सी दिखतीं हैं, इनका क्या इलाज हो सकता है? क्या यह तकलीफ और पुरुषों को भी होती है?
उत्तरः हाँ यह बात कई लोगों को होती है और अपने आप घटती बढ़ती रहती है. क्या तुमने इस बारे में किसी डाक्टर से बात की? मेरे विचार में डाक्टर से बात करनी चाहिये.
प्रश्नः जब मेरा लिंग खड़ा होता है तो नीचे की ओर झुक जाता है, क्या इससे मुझे सेक्स में कठिनाई होगी, क्या मुझे आपरेशन करवाना पड़ेगा?
उत्तरः लिंग में कुछ टेढ़ापन, या एक तरफ झुकना या नीचे झुकना सामान्य बाते हैं और बहुत से पुरुषों को होती हैं, अधिकतर लोगों को इससे कोई तकलीफ नहीं होती और वह नारमल तरह से सम्भोग कर सकते हैं. हाँ अगर झुकाव बहुत अधिक हो तो कुछ ऑपरेशन करवाना पड़ता है.
प्रश्नः मेरी माहवारी हमेशा समय से महिने के महीने आती थी, पर पिछले एक साल में कुछ परिवर्तन आया है. मुझे भूख कम लगती है, अक्सर थकान रहती है और माहवारी भी ठीक नहीं आती, क्या वजह हो सकती है?
उत्तरः हो सकता है कि हारमोन की कुछ तकलीफ हो, मेरे विचार में आप को स्त्रीरोग विषेशज्ञ यानि गायनेकोलोजिस्ट को दिखाना चाहिये.
प्रश्नः मैं अपने साथी के साथ तीन सालों से हूँ पर जब भी यौन सम्पर्क करते है, मेरी योनि में बहुत दर्द होता है. और सब तरह से हमारा रिश्ता अच्छा है पर इस बात का हम दोनों पर बहुत बुरा असर हो रहा है और मुझे बहुत चिंता है. मुझे सलाह दो कि मैं इस बाधा से छुटकारा पाऊँ. धन्यवाद.
उत्तरः मेरे विचार में तुम्हें स्त्रीरोग विषेशज्ञ से मिलना चाहिये. जैसे तुम बता रही हो वेजिनिस्म यानि यौनी का स्पासम की तकलीफ लगती है. मेरे विचार में यह तकलीफ ठीक इलाज से अवश्य दूर हो जायेगी और तुम अपने साथी के साथ सेक्स का सही आनंद ले सकोगी.
प्रश्नः मेरी शादी को चार साल हो गये और हमारी दो साल की बेटी है. तकलीफ यह है कि बच्चे के बाद से मेरी पत्नी सेक्स नहीं चाहती. क्या करूँ?
उत्तरः पहले तो पत्नी की जाँच कराईये कि हारमोन की तकलीफ न हो. दूसरी बात है कि पत्नी के साथ समय बिताईये, उसकी बात समझने की कोशिश करिये. सेक्स में रुचि न होना, अन्य भावनात्मक कठिनाईयों की वजह से भी हो सकती है.लेकिन ज्यादातर मामलों में यह होता है कि बच्चे के बाद मां का ध्यान बच्चे पर ज्यादा होने से उसका मन सेक्स आदि पर कम जाता है. इसपर पुरुष को चाहिए कि वह अपनी पार्टनर को धीरे धीरे सेक्स रुचिकर बातों में ध्यान बंटाए. तथा छेड़छाड़ जैसे प्रयत्न करे. साथ ही फोरप्ले भी करें इससे उसकी रुचि सेक्स में जागेगी. ज्यादातर सेक्स से अरुचि का कारण मानसिक होता है. इसमें दोनों को खुलकर बातें करना चाहिए तथा सेक्स से अरुचि का कारण खोज उसके अनुरुप प्रयास करना बेहतर होता है.प्रश्नः क्या लड़की को गुदा मैथुन से भी आनंद मिल सकता है? किस कारण से बहुत सी लड़कियाँ गुदा मैथुन नहीं चाहतीं?
उत्तरः लड़कों और लड़कियों दोनो को गुदा से आनंद मिल सकता है, सेक्स की बहुत सी बातें हमारे सोचने के तरीके से जुड़ी हैं, अगर आप के मन में गुदा के साथ शर्म, ग्लानी या गंदगी के विचार है या दर्द होने का डर है तो आप को वह अच्छा नहीं लगेगा. गुदा मैथुन के लिए शरीर को तैयार करना आवश्यक है, गुदा में कुछ मोटी चीज घुसाने से पहले उसे किसी छोटी चीज से जैसे कि उँगली और क्रीम से तैयार करना चाहिये. पर जबरदस्ती नहीं होनी चाहिये, अगर किसी को यह अच्छा नहीं लगता तो उसे मना करने का पूरा हक है.
प्रश्नः कुछ डाक्टर कहते हैं कि गुदा मैथुन एक तरह की बीमारी है, क्योंकि गुदा मल को बाहर निकालने के लिए बनी है न कि इस लिए कि उसमें कुछ घुसाया जाये. जो गुदा मैथुन करवाते हैं उनको मल को अंदर रोकने में कठिनाई होने लगती है और बीमारी हो जाती है. आधुनिक सेक्सोलोजी इस विषय में क्या कहती है?
उत्तरः सेक्सोलोजी की तरफ से इसमें कोई गलत बात नहीं. पर यह तो सच है कि शरीर के साथ कुछ भी करने से पहले यह ख्याल रखा जाये कि शरीर को नुक्सान न पहुँचे और चोट न लगे.
प्रश्नः जैसे पुरुष में जल्दी वीर्यपात हो सकता है क्या स्त्रियों में इस तरह वीर्यपात हो सकता है?
उत्तरः नहीं स्त्रियों को यह तकलीफ नहीं होती, स्त्रियाँ अपने आनंद के चर्म के होने के बाद भी सेक्स में कोई कठिनाई नहीं पाती जबकि पुरुष एक बार चर्म पर पहुँच जाये तो उसके लिए सेक्स वहीं समाप्त हो जाता है. दरअसल महिला स्खलित नहीं होती है. स्खलन सिर्फ पुरुषों में होता है.प्रश्नः कुछ दिन पहले की बात है, मैं हस्तमैथुन कर रहा था जब अंत में वीर्य निकला तो देखा कि उसमें कुछ रक्त के कण भी थे. क्या यह बहुत गम्भीर बात है? मुझे चिंता हो रही है?
उत्तरः कभी कभी लिंग की छोटी छोटी रक्त की धमनियाँ टूट जाती हैं और वीर्य में कुछ रक्त दिख सकता है. अगर एक बार आ कर फ़िर न दिखे तो कोई बात नहीं, सब ठीक है. पर अगर हर बार इस तरह होता है तो डाक्टर को दिखाना चाहिये.
प्रश्नः मुझे अच्छा लगता है कि सम्भोग के बाद मेरी पत्नी मेरी टेस्टिकल यानि गोलियों को सहलाये, मुझे लगता है जैसे दूसरी बार सेक्स का आनंद मिल रहा हो, क्या यह नारमल बात है?
उत्तरः हाँ, इसमें कोई खराबी नहीं. जो बात मन को अच्छी लगे और किसी अन्य का कुछ न बिगड़े तो उसमें क्या खराबी हो सकती है!
साभारः कल्पना
Saturday, November 01, 2008
सेक्स शब्दकोष (sex Dictionary)
http://www.sexkya.com/ ने एक नए प्रयोग के तहत सेक्स शब्दकोष (sex Dictionary) को भी इसमें शामिल कर दिया गया है. साथ ही यह भी प्रयास किया जा रहा है ज्यादातर शब्दों को उससे संबंधित वेबपेज का लिंक भी दे दिया जाय. ताकि लोग उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा समझ सके. यह सुविधा वेबपेज के दाहिनी ओर सबसे नीचे दी गई है. इसके लिये सेक्स संबंधी हिन्दी में अनुवादित नीले रंग के अक्षरों पर माउस ले जाकर क्लिक करें. इससे आप उससे संबंधित पेज पर आसानी से पहुंच जाएंगे. इससे संबंधित कोई सुझाव हो तो दे सकते हैं. यदि आपके संज्ञान कोई अन्य सेक्स शब्दावली आए तो हमें मेल कर सकते हैं.
Friday, October 31, 2008
हस्तमैथुन (masturbation)
एक सामान्य शारीरिक मनोविज्ञान से जुड़ी प्रक्रिया है. इसे यौन तुष्टि हेतु पुरूष स्त्री सभी करते है. चरम उत्सर्ग को पाने के लिये सामान्य तौर पर यह हाथों द्वारा या फिर कई बार शारीरिक संपर्क(संभोग को छोड़कर) या वस्तुओं तथा उपकरणों का प्रयोग किया जाता है. हस्तमैथुन (masturbation) शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन शब्द manu stuprare (हाथ के साथ अशुद्धि) से मानी जाती है.
हस्तमैथुन तकनीक
दोनों लिंगों के लिये हस्तमैथुन की तकनीक समान है. इसमें जननांग या जननांग क्षेत्र में दबाव या रगड़ने की क्रिया अपनाई जाती है. इसके लिये उंगलियों, हथेली या किसी वस्तु जैसे तकिया आदि का इस्तेमाल सामान्य तौर पर किया जाता है. कई बार लिंग या योनि को उत्तेजित करने के लिये वाईब्रेटर(vibrators) का इस्तेमाल भी किया जाता है. कुछ लोग हस्त मैथुन को और उत्तेजक बनाने के लिये स्तनों या अन्य कामोद्दीपक अंगों को छूते, रगड़ते, चिकोटी आदि काटते हैं. कई बार दोनो लिंगो के लोग ज्यादा सनसनी पाने के लिये स्निग्ध पदार्थों ( lubricating) का भी प्रयोग अपने गुप्तांगो या उपकरणों पर करते हैं.
पुरूष कैसे करते है
पुरुषों द्वारा हस्तमैथुन की तकनीक कई कारकों तथा व्यक्तिगत पसंद से प्रभावित होती है तथा यह सामान्य तथा खतना वाले लिंगों में भी अलग-अलग हो सकती है. हस्तमैथुन के कुछ तरीके किसी के लिये सामान्य तो किसी के लिए पीड़ा दायी भी हो सकते हैं. इसलिये यह अलग-अलग लोगों द्वारा अलग अलग तरीके से किया जा सकता है. हस्तमैथुन के सामान्य व प्रचलित तरीके में पुरुष अपने शिश्न को अपनी हथेली मे दबा कर अपनी अंगुलियाँ से इसे पकड़ लेते हैं, और इसे रगड़ना और हिलाना शुरु करते है. इस दौरान वे लिंग की अग्रत्वचा को हथेली में दबा कर उपर नीचे करते हैं. यह प्रक्रिया कभी कभी चिकनाई लगा कर भी करते है । ये कार्य वे तब तक करते है जब तक उनका वीर्यपात नहीं हो जाता है. अग्र त्वचा को हथेलियों में दबाकर उपर नीचे करने की गति अलग-अलग लोगों में अलग-अलग हो सकती है तथा स्खलन के ठीक पहले यह गति तेज हो जाती है. इसके अलावा कई लोग हस्तमैथुन के लिये शिश्न मुण्ड को भी सहलाकर या रगड़ कर हस्तमैथुन की क्रिया कारित करते हैं. इस क्रिया को खड़े होकर, बैठ कर, लेट कर किया जा सकता है.
स्त्री कैसे करती है
महिलाएं हस्तमैथुन के लिये सामान्य तौर पर अपनी योनि या भग क्षेत्र को सहलाकर, रगड़कर या फिर थपथपा कर चरमोत्कर्ष को प्राप्त करती हैं. इसके लिये ज्यादतर वे अपनी भगशिश्निका या फिर योनि का उपयोग करती है तथा अपनी मध्यमा या बीच की उंगलियों का सहारा लेती है. कुछ महिलाएं इसके लिये वाइब्रेटर का भी प्रयोग करती है. भगशिश्निका को तो सहलाकर उद्दीप्त किया जाता है लेकिन योनि के अंदर उंगलियां डालकर अंदर बाहर किया जाता है. इस क्रिया के लिये वे अपना भगशिश्न को रगडना शुरु कर देती है इसके बाद वे अपनी योनि मे अन्गुली या कोई वस्तु डाल कर लिन्ग प्रवेश का सुख अनुभव करती है ये कार्य वे तब तक जारी रखती है जब तक वे मदनोत्कर्ष तक नहीं पहुचं जाती है. यह क्रिया बैठे-बैठे टांगे फैलाकर, लेटे हुए टांगे खोल कर या उठा कर, खड़े होकर, या फिर खुली टांगों के साथ घुटने के बल बैठकर संपादित की जा सकती है.
परस्पर हस्तमैथुन
जब दो या दो से ज्यादा समान या विपरीत लिंग के लोग एक दूसरे को हाथों द्वारा यौन सुख प्रदान करते है उसे परस्पर हस्तमैथुन कहा जाता है. जब स्त्री-पुरूष दोनो एक दूसरे को यौन सुख देने हेतु एक दूसरे का हस्तमैथुन करते है. यह क्रिया उपर दिये गए तरीके या फिर किसी अन्य तरीकों द्वारा अलग- अलग पसंदीदा पोजीशनों में की जा सकती है.
हस्तमैथुन आवृत्ति, उम्र और सेक्स
हस्तमैथुन की आवृत्ति कई कारकों पर निर्भर करती है मसलन यौन तनाव की प्रतिरोध क्षमता, यौन उत्तेजना को प्रभावी करने वाले हार्मोन का स्तर, यौन आदतें, उत्तेजना का प्रभाव, संगत तथा संस्कृति का असर. चिकित्सा कारणों को भी हस्तमैथुन से संबद्ध किया गया है. विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि मानवों में हस्तमैथुन सामान्य तथा अंतराल में की जाने वाली क्रिया है. अल्फ्रेड किन्सी ने अपने शोध में पाया है कि 92% पुरुष तथा 62% महिलाएं अपने जीवनकाल
में हस्तमैथुन करते हैं. इसी प्रकार के परिणाम एक ब्रिटिश राष्ट्रीय संभाव्यता सर्वेक्षण में पाये गए है. जिसमें 95% पुरुष तथा 71% महिलाएं अपने जीवनकाल में हस्तमैथुन करते हैं. वर्ष 2004 में टोरंटो पत्रिका के सर्वेक्षण में हस्तमैथुन के चौंकाने वाले परिणाम सामने आए. परि णामों में पुरुषों का एक भारी बहुमत 81% ने 10 से 15 वर्ष के बीच ही हस्तमैथुन प्रारंभ कर चुके थे. ठीक कुछ इसी तरह के आंकड़े महिलाओं के भी सामने आए जिनमें 55% ने 10 से 15 वर्ष के बीच हस्तमैथुन का आनंद ले चुकी थीं. यहां एक और चौंकाने वाले तथ्य महिलाओं में सामने आए हैं. इन 55% महिलाओं में 18% ने 10 वर्ष की आयु से ही हस्तमैथुन प्रारंभ कर दिया था वहीं 6% ने 6 वर्ष की आयु में ही हस्तमैथुन किया इसकी वजह उनके घर के बड़े सदस्यों की नकल या उनके द्वारा उकसाया जाना सामने आयी. चाइल्ड सेक्सुअल्टी पर अध्ययन करने वाले दल ने अपने सर्वे में बताया कि कई बच्चे काफी कम उम्र में ही हस्तमैथुन करना शुरू कर देते हैं भले ही इस उम्र में उनमें स्खलन नहीं होता है.
NOW नामक पत्रिका ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि 17 वर्ष की आयु के बाद हस्तमैथुन की आवृत्ति में गिरावट होने लगती है. इस सर्वे में पाया गया कि इस उम्र में ज्यादातर पुरुष रोज या रोज कई बार हस्तमैथुन करते हैं. वहीं 20 वर्ष की आयु में इस आवृत्ति में कुछ गिरावट आ जाती है. यह गिरावट इस उम्र की महिलाओं में ज्यादा तेजी से होती है वहीं पुरुषों में धीरे-धीरे होती है. महिलाएं 13 से 17 वर्ष की आयु के बीच में प्रतिदिन हस्तमैथुन करती हैं. वहीं 18 से 22 वर्ष की महिलाएं माह में 8 से 9 बार हस्तमैथुन करती हैं जबकि इस उम्र में पुरुषों द्वारा हस्तमैथुन लगभग 12 से 18 बार किया जाता है. सर्वेक्षण से पता चला है कि किशोरवय युवा एक दिन में 6 बार तक हस्तमैथुन द्वारा स्खलन को पा चुके हैं. वहीं प्रोढ़ दिन में एक बार हस्तमैथुन द्वारा स्खलन प्राप्त करते पाए गए हैं. इसके अलावा 21 से 28 वर्ष के स्वस्थ युवा एक दिन में 8 से 10 बार तक हस्तमैथुन द्वारा स्खलन को प्राप्त करते पाए गए हैं. यह सर्वे विकसित देशों के हैं इसलिये अलग-अलग क्षेत्रों व संस्कृति के अनुसार इन आंकड़ों में परिवर्तन अवश्यंभावी है.
इन सर्वेक्षणों से एक परिणाम यह भी सामने आया है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में हस्तमैथुन को कम तरजीह देती वजाय विपरीत सेक्स करने के. इसके अलावा वे लोग जो यौन रिश्तों में सक्रिय नहीं है वे हस्तमैथुन ज्यादा करते है. जो लोग सेक्स कर रहे होते हैं उनके द्वारा हस्तमैथुन की आवृत्ति कम हो जाती है. वहीं जो लोग समलैंगिक होते हैं उनके द्वारा हस्तमैथुन क्रिया ज्यादा की जाती है.
सर्वे में यह साबित हुआ है सेक्स क्रिया की आवृत्ति का हस्तमैथुन की आवृत्ति से काफी संबंध हैं. अर्थात सेक्स ज्यादा करने पर हस्तमैथुन कम होगा तथा सेक्स रिलेशन कम होने पर हस्तमैथुन ज्यादा होगा. इसी प्रकार संस्कृति से भी हस्तमैथुन का जुड़ाव है. मसलन एरीजोन के होपी, ओसिआनिया के वोगेनो और अफ्रीका के डहोमीन्स और नामू संस्कृतियों में पुरुषों को नियमित हस्तमैथुन के लिये प्रोत्साहित किया जाता है. ठीक इसी तरह मिलानेसियन समुदायों के बीच युवा लड़कों द्वारा हस्तमैथुन के प्रति आशान्वित रहा जाता है. ऐसा ही एक रोचक मोड़ न्यू गिनी की सांबिया जनजाति का है. यहां मुखमैथुन द्वारा वीर्यपात को पुरुषत्व के नजरिये से सामाजिक संस्कारों के रुप में लिया जाता है. यहां वीर्य को मूल्यवान तथा हस्तमैथुन को वीर्य नष्ट करने वाला माना जाता है फिर भी हस्तमैथुन प्रोत्साहन को प्राप्त है. वहीं कुछ संस्कृतियों में बतौर संस्कार पहले वीर्यपात की क्षमता को उसके पुरुषत्व का पैमाना माना जाता जो हस्तमैथुन द्वारा होता है. इसी प्रकार अगाटा व फिलीपींस की कुछ जनजातियों में कम उम्र से यौवनारंभ तक जननांगो की उत्तेजना को प्रोत्साहित किया जाता है. वहीं भारत व कई एशियाई देशों में हस्तमैथुन को सामाजिक तौर पर उतने बेहतर नजरिये से नहीं देखा जाता है. यहां विवाह के पूर्व किसी कृत्रिम तरीके से वीर्यपात को गलत माना जाता है लेकिन इन क्षेत्रों में भी अब परिवर्तन नजर आने लगा है और युवा पीढ़ी मान्यताओं के विपरीत जाने लगी है. आजकल तो हस्तमैथुन स्वस्थ व्यवहार व सुरक्षित पद्धति के रूप में स्वीकार किया जाता है बजाय एक असुरक्षित संभोग के.
विकासवादी उपयोगिता
संभोग के दौरान हस्तमैथुन से प्रजनन क्षमता में वृद्धि हो सकती है. महिला हस्तमैथुन से योनि,ग्रीवा और गर्भाशय की स्थिति बदलती है, इस तरह हस्तमैथुन के समय के आधार पर संभोग को दौरान गर्भाधान ने चांस भी बदल जाते हैं. महिलाओं में संभोग सुख के एक मिनट पहले और 45 मिनट बाद तक वीर्यरोपण के लिये शुक्राणु के अण्डे तक जाने की संभावना ज्यादा होती है. इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि यदि एक महिला एक की अपेक्षा ज्यादा पुरुषों से संसर्ग करती है तो उसके गर्भधारण करने के चांस ज्यादा होंगे ठीक उसी तरह संभोग के दौरान हस्तमैथुन है. महिला हस्तमैथुन उसे गर्भाशय की ग्रीवा के संक्रमण से बचाता है जो उस क्षेत्र से स्त्रावित होने वाले द्रव की अम्लता की वजह से हो सकता है. इसी तरह पुरुषों द्वारा किए गए हस्तमैथुन से पुराने शुक्राणु बाहर निकाल दिये जाते हैं. इस प्रकार अगले वीर्यपात में जो शुक्राणु बाहर आते हैं वे ज्यादा फ्रेश होते हैं जिसकी वजह से गर्भाधान की संभावना भी ज्यादा होती है. स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक प्रभाव लाभ हस्तमैथुन का शारीरिक लाभ ठीक संभोग की ही तरह होता है इसमें बढ़े रक्त संचार की वजह से चेहरा प्लावित रहता है तो कई तरह के तनावों से भी छुटकारा मिलता है. कई बार यह अवसाद की स्थितियों को भी दूर करता है. हस्तमैथुन भागीदारों के रिश्ते को भी बराबर करता है जैसे यदि कोई एक भागीदार ज्यादा सेक्स चाहता है इस अवस्था में हस्तमैथुन भागीदारिता को संतुलित कर सकता है. वहीं हस्तमैथुन द्वारा चरमोत्कर्ष के आनंद को भी बढ़ाया जा सकता है. वर्ष 2003 में आस्ट्रेलियाई रिसर्च टीम ने एक अनुसंधान द्वारा पता लगाया है कि हस्तमैथुन प्रोस्टेट कैंसर की रोक में भी सहायक होता है. इसके अलावा हस्तमैथुन परपुरुष व परस्त्री गामी लोगों को होने वाली बीमारियों से बचाव करता है, अर्थात हस्तमैथुन यौन संक्रमित रोगों के संपर्क के जोखिम से भी रक्षा करता है.
रक्तचाप(Blood pressure)
हस्तमैथुन दोनों लिंगों के लिए रक्तचाप कम रखने में सहायक होता है. शोध द्वारा यह पता चला है जो लोग संभोग या हस्तमैथुन करते है उनका रक्तचाप ज्यादा बेहतर रहा बजाय उनके जो कि किसी यौनिक क्रिया में शामिल नहीं रहे हैं.
प्रवेशन
हस्तमैथुन के लिये यह ध्यान रखना चाहिये कि महिलाएं अपने गुप्तांगों में जिस किसी भी ची ज को प्रवेश कराती हैं वह पूर्ण रूप से साफ सुथरी तथा संक्रमण मुक्त हो. इसी तरह पुरुष को भी ध्यान रखना चाहिए कि उसकी हथेलियां भी साफ हो या यदि वह कोई उपकरण प्रयोग कर रहा हो तो वह भी साफ व संक्रमण मुक्त हो. इसके अलावा यदि कोई उपकरण प्रयुक्त किये जा रहे हों तो यह ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि उनमें किसी प्रकार की खरोंच न हो. अन्यथा वह गुप्तांगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
चिकित्सकीय नजरिया
20वीं शताब्दी के पहले तक चिकित्सकीय नजरिये से हस्तमैथुन को गलत माना जाता था. तब बताया जाता था कि यह आत्म प्रदूषण की क्रिया है. तथा इसमें जिस वीर्य का पतन होता है वह काफी आवश्यक द्रव्य है. इसके पतन से अनेक व्याधियां मसलन स्मरण शक्ति में कमी, सिर दर्द, खून में कमी आदि आती है. तब एक मिथक भी प्रचलित रहा कि 40 बूंद खून से वीर्य की एक बूंद बनती है इस लिये हस्तमैथुन से वीर्य का नाश करना शरीर को नुकसान पहुंचाना है. लेकिन आधुनिक चिकित्सकीय खोजों तथा वीर्य पर किये विस्तृत अध्ययन ने यह सभी पुरानी चिकित्सकीय धारणाएं बदल दीं तथा बताया गया कि वीर्य का खून से कोई लेना देना नहीं होता है. यह शरीर में सतत निर्माण होने वाली क्रिया के तहत लगातार शरीर में उत्पादित होता रहता है. यदि इसे कृत्रिम तरीके से न निकाला जाय तो उत्पादन ओव्हर फ्लो होने पर अपने आप बाहर निकल सकता है. साथ ही हस्तमैथुन से लिंग का झुकाव भी किसी दिशा विशेष में नहीं होता जैसा कि मिथक में लोग कहते हैं कि हस्तमैथुन से उनका लिंग एक दिशा में झुक गया है. न ही हस्तमैथुन से लिंग की लंबाई बढ़ती या घटती है. कुल मिलाकर हस्तमैथुन एक सामान्य यौनिक प्रक्रिया है जिससे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है.
Thursday, October 30, 2008
लिंग पर दाने (pimples on penis)
कई लोग लिंग में होने वाले दाने या पिंपल को लेकर काफी परेशान होते हैं तथा कई लोग इसे सेक्स क्रिया का भी दुष्परिणाम मानते हैं तो कई इसे सेक्स क्रिया में बाधक मानते हैं जबकि ऐसा कुछ नहीं है. यह एक सामान्य शारीरिक क्रिया की निष्पत्ति हैं. पिंपल या फुंसी वास्तव में त्वचा के छेद में एक रुकावट का परिणाम है और यह शरीर पर कहीं भी हो सकता है: चेहरा, पीठ, पैर, गुप्तांग (genitals) सहित शरीर के किसी भी अंग में. पिंपल सामान्य और लगातार चलने वाली स्थिति है जो तेल ग्रंथियों में रूकावट की वजह से पैदा होती है या फिर कह सकते हैं कि पिंपल त्वचा में तेल ग्रंथियों की असमान्यता का प्रभाव है. हर रोम कूप में तेल ग्रंथियां पाई जाती हैं. जब इन रोम कूपों में कोई रुकावट या अवरोध पैदा होता है तो वहां पर त्वचा पर दाने होने लगते हैं. जिन्हे फुंसी, मुंहासे, दाने या पिंपल कहते हैं. क्या लिंग पर दाने सामान्य हैं हां और नहीं दोनों. तथाकथित pimples के कुछ प्रकार (bumps ,...) सामान्य होते हैं और बहुत ही सामान्य स्थिति का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन कुछ मामलों में कुछ bumps खतरनाक हो सकता है और इसके लिये चिकित्सा समाधान की जरूरत होती है. लिंग या अंडकोष पर Pimples आमतौर पर किशोरावस्था में होते हैं, लेकिन यह भी संभव है कि पुरुष अपने जीवन में कुछ समय बाद में भी pimples का अनुभव कर सकते है. आंकड़े बताते हैं कि आठ से दस आदमी अपने जीवन में कुछ समय पर लिंग और / या अंडकोष पर pimples अनुभव करने का दावा करते हैं. ये सभी दाने कुछ समय बाद या फिर एक या दो सप्ताह मे अपने आप खत्म या कम होने लगते हैं. लेकिन यदि यह पिंपल यदि पीड़ादायक होने लगे तथा इनका आकार असामान्य तौर पर बढ़ने लगे तो चिकित्सक की सलाह लेना चाहिए.
Papules:ये लिंग की उपरी सतह पर उभरने वाले काफी छोटे-छोटे (एक सेमी. से भी कम) चमकीले दाने होते हैं. इनमें से ज्यादातर चिंताजनक नहीं होते हैं लेकिन कुछ को चिकित्सकीय सलाह की आवश्यकता होती है. इनमें से Molluscum contagiosum बहुतायत व सामान्यतः पाया जाने वाले दाने है लेकिन इन्हे तुरंत चिकित्सकीय परीक्षण की आवश्यकता होती है. ये गुलाबी-सफेद गोल घेरे के १-५ मिमी ब्यास के चमक भरे दाने होते हैं. यह वायरस की वजह से होते हैं.
Plaques: ये सामान्यतौर पर एक सेंटीमीटर से बड़े आकार के होते हैं. इनके होने की कोई वायरस से संबंधित वजह नहीं होती है. यह काफी कम लोगों में पाया जाता है लेकिन इसके कुछ प्रकार गंभीर बीमारी को भी जन्म दे सकते हैं इसलिये चिकित्सकीय निगरानी करा लेनी चाहिए.
Wednesday, September 17, 2008
सुहागरात कैसे यादगार बनाएं
Monday, August 18, 2008
फीमेल कंडोम का प्रयोग कैसे करें
1.ध्यान से पैकेज खोलें, पैकेट में दाहिनी ओर बने खांचे की जगह से पैकेट को फाड़े, पैकेट को खोल ने के लिये कैंची या चाकू का प्रयोग न करें.
3.इसमें फीमेल कंडोम को अंदर डालने की तैयारी है. इसके लिय े कंडोम के भीतरी रिंग को जो कि काफी लचीला होता है उसे अंगूठे की बगल वाली तथा मध्यमा उंगली के बीच फंसा कर दबाएं. इससे रिंग संकरा और लंबा हो जाएगा.
5.अब भीतर ी रिंग को धीरे से योनि के अंदर डालें. तथा इसे अंदर तब तक डालते जाएं जब तक रिंग अंदर प्रवेश करा सके.
9.सेक्स पूर्ण होने के उपरांत कंडोम निकालें. इसके लिये बाहरी रिंग को घुमाते हुए धीरे से कंडोम को बाहर खींचे.
Saturday, August 16, 2008
संवेदनशील कामुक स्पाट
क्या आपको तलाश है अपने - या अपने पार्टनर की उत्तेजना को और तेज करने के रास्ते की? यदि हां तो यहां हम दें रहे हैं आपकी तलाश को एक रास्ता. महिला के जननांगों में शामिल योनि मार्ग और उसे घेरे हुए भगोष्ठ क्षेत्र में कामुक संवेदना के चार छोटे-छोटे केन्द्र होते हैं. जो कि महिला के उत्तेजना की स्थिति में लाने में कामुकता की दृष्टि से काफी संवेदनशील होते हैं. और ये चार केन्द्र हैं भगशिश्न (clitoris), यू-स्पॉट, जी-स्पॉट और ए-स्पॉट. इनमें से पहले दो योनि से बाहर हैं और बाद के दो योनि के अंदर.
भगशिश्न(Clitoris)
यह महिला जननांग के सर्वश्रेष्ठ ज्ञात हॉट स्पॉट के रुप में जाना जाता है, जो कि भग के शीर्ष पर स्थित होता है. इसी स्थान पर आन्तरिक भगोष्ठ बाह्य भगोष्ठ से जुड़ता है. इसका दृश्य भाग काफी छोटा तथा निप्पल के आकार का होता है. महिलाओं में यह पुरुष के लिंग के अगले सिरे के समकक्ष होता है. यह आंशिक रूप से सुरक्षा कवच(protective hood) से ढंका होता है. मूल रूप से यह 8000 तंत्रिका तंतुओं (nerve fibres) का बंडल होता है, जो कि इसे महिला के शरीर का सबसे संवेदनशील अंग बनाती है. यह विशुद्ध रूप से यौन कार्य के लिये ही है. यह मैथुन क्रिया के दौरान दीर्घ (बड़ी, फूली हुई ,तनी हुई) तथा ज्यादा संवेदनशील हो जाती है. फोरप्ले के दौरान अक्सर यह सीधे छूने मात्र से ही उत्तेजित हो जाती है. दूसरी ओर वे महिलाएं जो योनि संभोग से पूर्ण कामोत्तेजना को नहीं पाती है वे इसे भगशिश्न उत्तेजना (विभिन्न तरीकों व माध्यमों) से जल्दी पा लेती हैं. हाल ही में एक आस्ट्रेलियन सर्जन ने बताया बताया कि इसका जितना आकार दिखाई देता है हकीकत में यह उससे काफी बड़ा है. इसका काफी कुछ हिस्सा सतह के नीचे छिपा हुआ है. इसका जो हिस्सा दिखाई देता है वह नोंक मात्र है. अंदर इसकी लंबाई इसके नीचे से - छड़ नुमा - योनि द्वार तक के बराबर होती है. इस तरह जैसे ही योनि में शिश्न की हरकत होती है तो यह सख्ती से संदेश भेजती है. इसलिये योनि संभोग के दौरान भले ही भगशिश्न (clitoris) को नहीं छूते फिर भी वह उत्तेजना के अनुरूप उठाव में आ जाती है. कई महिलाओं का कहना है कि जब इसमें एक लयबद्ध घर्षण होता है तो वह फंतासी के काफी करीब तक पहुंच जाती है. इस लिये महिला को कामोन्माद की चरम अवस्था तक पहुंचाने के लिये इस अंग की प्रभावी भूमिका होती है जिसकी कई बार पुरुष अवहेलना कर देते हैं या फिर इस ओर ध्यान नहीं देते हैं.
यू-स्पॉट(U-Spot)
यह संवेदनशील, उत्तेजित होने योग्य उत्तकों का छोटा सा पैच होता है जो कि मूत्र द्वार के ऊपर और दोनो ओर पाया जाता है लेकिन यह मूत्र मार्ग के नीचे(जो कि मूत्रद्वार व योनिद्वार के बीच का छोटा हिस्सा होता है) नहीं पाया जाता है. हालांकि इसके बारे में अभी भगशिश्न से कम ही जानकारी हो पाई है. अभी इसकी कामुक क्षमता के बारे में अमेरिका के चिकित्सीय अनुसंधानकर्ता जांच कर रहे हैं. अब तक की जांच में उन्होंने पाया है कि यदि इस क्षेत्र को धीरे-धीरे उंगली, जीभ या शिश्न के सिरे की सहायता से सहलाया(caresse) जाय तो वहां अप्रत्याशित रूप से शक्तिशाली कामुक प्रतिक्रिया होती है.
वहीं दूसरी महिला के मूत्रमार्ग के विषय में एक बात और है जो काफी उल्लेखनीय है वह है महिला स्खलन(female ejaculation). पुरुष के मामले में मूत्रनलिका से ही मूत्र और शुक्राणु मिश्रित वीर्य बाहर आता है. लेकिन महिलाओं के मामले में माना जाता है कि वे सिर्फ मूत्र उत्सर्जन ही करती हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. जब कोई असामान्य रूप से शक्तिशाली संभोग करता है तो कुछ महिलाएं अपने मूत्रमार्ग से एक द्रव छोड़ती है लेकिन यह द्रव मूत्र नहीं होता है.दरअसल मूत्रनलिका के चारों ओर कुछ विशेष ग्रंथियां होती हैं. जिन्हें स्कीनी(skene) ग्रंथियां या अर्ध मूत्रमार्ग (para-urethral) ग्रंथियां कहते हैं(देखें चित्र) जो कि पुरुष की प्रोस्टेट ग्रंथियों के ही समान होती है. ये ग्रंथियां चरम उत्तेजना के दौरान तरल रासायनिक क्षारीय(alkaline) द्रव का उत्पादन करती हैं जो पुरुष वीर्य संबंधी द्रव के समान ही होता है. वे महिलाएं जो ऐसे स्खलन(जो कुछ बूंद या कुछ चम्मच के बराबर हो सकता है) का अनुभव रखती हैं उन्हे चरम उत्तेजना के क्षणों में अत्यधिक पेशीय थकान की अनुभूति होती है. इस सामान्य शरीरक्रिया विज्ञान को न समझने की वजह से वे इसे अनैच्छिक पेशाब की भी संज्ञा दे देती है या कई बार वे इसे पेशाब की अनुभूति भी कह सकती है. कई बार तो कुछ अज्ञान चिकित्सकों ने भी इस घटना की जानकारी न होने पर अप्रत्याशित तरीके से इलाज की भी सलाह दे डाली तो कुछ पुरुष इस स्खलन से यह कहकर घृणा करते हैं कि उस की पार्टनर सेक्स के दौरान पेशाब करती है. हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि इस स्खलन का तात्पर्य क्या है या इसके मूल्य क्या हैं. हालांकि कुछ लोग इसे योनि स्नेहन(lubrication) जोड़ते जबकि हकीकत में यह क्रिया योनि दीवारों द्वारा स्वयं की जाती है. हम तो इसे यौन क्रिया के चरम में इसे महिला की एक तरल फंतासी मानते हैं जो यौन क्रिया को उत्सकर्ष के अत्यधिक समीप ले जाती है.
जी-स्पॉट(G-Spot)
यह योनि के अन्दर की ओर ऊपरी दीवार पर 5-8से.मी.(2-3इंच) की गहराई में पाया जाने वाला छोटा लेकिन काफी संवेदनशील क्षेत्र होता है. इसकी खोज प्रसिद्ध जर्मन स्त्री रोग विशेषज्ञ अर्नस्ट ग्रेफेनबर्ग ने की थी. सन् 1940 में जब महिला संभोग की प्रकृति पर अनुसंधान चल रहा था तब पाया गया कि योनि के उपर की ओर मूत्र नलिका उत्तेजित होने योग्य उत्तकों से घिरी हुई है यह ठीक उसी तरह का व्यवहार करती है जिस तरह पुरुष का शिश्न. जब महिला सेक्सुअली उत्तेजित हो जाती है तब ये ऊत्तक फूलने लगते हैं. ऊत्तकों का यही विस्तार योनि के अंदर उपरी दीवार पर छोटे पैच के रूप में समझ में आता है जिसे जी-स्पॉट के नाम से जाना जाता है. ग्रेफेनबर्ग ने इसी उठे हुए पैच को प्राथमिक कामुक क्षेत्र की संज्ञा दी तथा बताया कि उत्तेजना के मामले में यह भगशिश्न(clitoris) से ज्यादा संवेदनशील है. साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जब लोग यौन व्यवहार के लिये 'मिशनरी पोजीशन' अपनाते हैं तो यह स्पॉट अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाता है लेकिन अन्य कई सेक्स पोजीशन इस कामुकतायुक्त क्षेत्र को उत्तेजित करने और चरमोत्कर्ष पाने में काफी प्रभावी होती है. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इसके खोजकर्ता ग्रेफेनबर्ग स्वयं इस क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर पाये उन्होंने बस इस क्षेत्र को 'कामुक क्षेत्र' मात्र घोषित किया था.हालांकि यह काफी बेहतर वर्णन योग्य क्षेत्र है लेकिन दुर्भाग्य से आज के इस मार्डन युग में इसके काफी लोकप्रिय हो जाने से कई गलतफहमियां भी इसके साथ जुड़ गईं हैं. कुछ महिलाएं इसके अस्तित्व पर आशावादी तरीके से विश्वास करती है तो कुछ का मानना है कि जबर्दस्त कामाग्नि पैदा करने के लिये यह एक 'सेक्स बटन' है जिसे किसी भी समय स्टार्टर बटन की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है. वहीं कई का यह भी मानना है कि जी-स्पॉट की पूरी अवधारणा ही गलत है. जबकि सच्चाई पूर्व में ही स्पष्ट की जा चुकी है कि जी- स्पॉट कामुकता से भरा वह क्षेत्र है जो धीरे से तभी निकलता है जब मूत्र नलिका के चारों ओर के ऊत्तकों में फूलने से विस्तार होता है. जी-स्पॉट के अस्तित्व को उसकी पहली ही कान्फ्रेंस में कई शीर्ष स्त्री रोग विशेषज्ञों द्वारा नकार दिया गया था लेकिन बाद में जब इसका विस्तार से प्रदर्शन के साथ वर्णन किया गया तो आगे जाकर इस विशेषज्ञों ने भी जी-स्पॉट के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया. यह माना जाता है कि जी स्पॉट योनि की फ्रंट दीवार पर पाया जाता है जो प्यूबिक बोन और गर्भद्वार के मध्य में होता है. इस पर प्रहार करने के लिये, इसको खोजने का सरलतम तरीका होगा कि इसे गर्भद्वार की ओर से शुरू करें. इसका संरचनात्मक अनुभव नाक के अगले सिरे (tip of nose ) की तरह होता है. फिर धीरे-धीरे योनि की अग्र दीवार से होते हुए नीचे की ओर आएं. उत्तेजना के दौरान यह फूला रहता है, यह पहचान इसकी खोज में सहायक होती है. कुछ लोग इसे कुछ ज्यादा स्पंजी क्षेत्र के रूप में अनुभव करते हैं और जब इस पर प्रहार किया जाता है तो वह अत्यंत आनंददायी होता है. लेकिन ऐसा अनुभव सभी महिलाओं के प्रति नहीं रहा. कुछ ने तो इस पर प्रहार के दोरान पेशाब जाने की इच्छा भरी सनसनाहट का अनुभव किया वहीं कुछ महिलाएं इस क्षेत्र को लेकर भावशून्य रहीं. वहीं कुछ महिलाएं जी स्पाट उत्तेजना के दौरान एक रंगहीन गंधहीन द्रव स्खलन करते भी पाईं गईं. कुछ रिसर्च के दौरान पाया गया कि इस द्रव में प्रोस्टैटिक एन्जाइम पाए गये हैं इस आधार पर यह माना गया कि यह प्रोस्टेट के समतुल्य है.
शेष ए-स्पॉट पर जानकारी अगले दिनों में...
Wednesday, August 13, 2008
सेक्स क्या में चैट सुविधा शुरू
सेक्स क्या http://www.sexkya.com/ में पाठकों की सुविधा के मद्देनजर चैट बाक्स की सुविधा प्रारंभ कर दी है. इसमें वे ब्लाग से संबंधी सुझाव तो दे ही सकते हैं इसके अलावा वे अपने सवाल भी यहां उठा सकते हैं. आशा है यह सुविधा सेक्स क्या के पाठकों को काफी पसंद आएगी.
Tuesday, August 12, 2008
शीघ्रपतन की हकीकत
सेक्स क्रिया में मानवों के बीच शीघ्रपतन नामक शब्द काफी अहमियत रखता है. यदि इस शब्द की शाब्दिक व्याख्या करें तो शीघ्र गिर जाने को शीघ्रपतन कहते हैं। लेकिन सेक्स के मामले में यह शब्द वीर्य के स्खलन के लिए, प्रयोग किया जाता है। पुरुष की इच्छा के विरुद्ध उसका वीर्य अचानक स्खलित हो जाए, स्त्री सहवास करते हुए संभोग शुरू करते ही वीर्यपात हो जाए और पुरुष रोकना चाहकर भी वीर्यपात होना रोक न सके, अधबीच में अचानक ही स्त्री को संतुष्टि व तृप्ति प्राप्त होने से पहले ही पुरुष का वीर्य स्खलित हो जाना या निकल जाना, इसे शीघ्रपतन होना कहते हैं। इस व्याधि का संबंध स्त्री से नहीं होता (क्योंकि स्त्रियों में स्खलन की क्रिया नहीं पायी जाती), यह पुरुष से ही होता है और यह व्याधि सिर्फ पुरुष को ही होती है। शीघ्र पतन की सबसे खराब स्थिति यह होती है कि सम्भोग क्रिया शुरू होते ही या होने से पहले ही वीर्यपात हो जाता है। सम्भोग की समयावधि कितनी होनी चाहिए यानी कितनी देर तक वीर्यपात नहीं होना चाहिए, इसका कोई निश्चित मापदण्ड नहीं है। यह प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति पर निर्भर होता है। वीर्यपात की अवधि स्तम्भनशक्ति पर निर्भर होती है और स्तम्भन शक्ति वीर्य के गाढ़ेपन और यौनांग की शक्ति पर निर्भर होती है। स्तम्भन शक्ति का अभाव होना शीघ्रपतन है। बार-बार कामाग्नि की आंच (उष्णता) के प्रभाव से वीर्य पतला पड़ जाता है सो जल्दी निकल पड़ता है। ऐसी स्थिति में कामोत्तेजना का दबाव यौनांग सहन नहीं कर पाता और उत्तेजित होते ही वीर्यपात कर देता है। यह तो हुआ शारीरिक कारण, अब दूसरा कारण मानसिक होता है जो शीघ्रपतन की सबसे बड़ी वजह पाई गई है। एक और लेकिन कमजोर वजह और है वह है हस्तमैथुन. हस्तमैथुन करने वाला जल्दी से जल्दी वीर्यपात करके कामोत्तेजना को शान्त कर हलका होना चाहता है और यह शान्ति पा कर ही वह हलकेपन तथा क्षणिक आनन्द का अनुभव करता है। इसके अलावा अनियमित सम्भोग, अप्राकृतिक तरीके से वीर्यनाश व अनियमित खान-पान आदि। शीघ्रपतन की बीमारी को नपुंसकता श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह बीमारी पुरुषों की मानसिक हालत पर भी निर्भर रहती है। मूलरूप से देखा जाय तो 95 फीसदी शीघ्रपतन के मामले मानसिक हालत की वजह से होते हैं और इसके पीछे उनमें पाई जाने वाली सेक्स अज्ञानता व शीघ्रपतन को बीमारी व शीघ्रपतन से संबंधी बिज्ञापन होते हैं. कई बार तो इन विज्ञापनों से वीर्य स्खलन का समय इतना अधिक बता दिया जाता है जो मानव शक्ति से काफी परे होता है मसलन 20 मिनट से आधे घंटे तो कई बार इससे भी ज्यादा जबकि वर्तमान शोधों से पता चला है स्खलन का सामान्य समय तीन से चार मिनट का होता है.
कई युवकों और पुरुषों को मूत्र के पहले या बाद में तथा शौच के लिए जोर लगाने पर धातु स्राव होता है या चिकने पानी जैसा पदार्थ किलता है, जिसमें चाशनी के तार की तरह लंबे तार बनते हैं। यह मूत्र प्रसेक पाश्वकीय ग्रंथि से निकलने वाला लसीला द्रव होता है, जो कामुक चिंतन करने पर बूंद-बूंद करके मूत्र मार्ग और स्त्री के योनि मार्ग से निकलता है, ताकि इन अंगों को चिकना कर सके। इसका एक ही इलाज है कि कामुकता और कामुक चिंतन कतई न करें। एक बात और पेशाब करते समय, पेशाब के साथ, पहले या बीच में चूने जैसा सफेद पदार्थ निकलता दिखाई देता है, वह वीर्य नहीं होता, बल्कि फास्फेट नामक एक तत्व होता है, जो अपच के कारण मूत्र मार्ग से निकलता है, पाचन क्रिया ठीक हो जाने व कब्ज खत्म हो जाने पर यह दिखाई नहीं देता है। धातु क्षीणता आज के अधिकांश युवकों की ज्वलंत समस्या है। कामुक विचार, कामुक चिंतन, कामुक हाव-भाव और कामुक क्रीड़ा करने के अलावा खट्टे, चटपटे, तेज मिर्च-मसाले वाले पदार्थों का अति सेवन करने से शरीर में कामाग्नि बनी रहती है, जिससे शुक्र धातु पतली होकर क्षीण होने लगती है।
दरअसल सेक्स के दौरान शीघ्रपतन होना एक सामान्य समस्या है। यह समस्या अधिकांशत: युवाओं के बीच कहते-सुनते देखा जा सकता है। एक अमेरिकी सर्वे के अनुसार दुनिया की 43 फीसदी महिलाएं और 31 प्रतिशत पुरूष शीघ्रपतन की समस्या के शिकार हैं। हालांकि यह समस्या गर्भधारण या जनन के लिए बाधा उत्पन्न नहीं करती है, फिर भी यह एक स्वस्थ शरीर और अच्छे व्यक्ितत्व के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।इस समस्या से ग्रसित व्यक्ित के स्वभाव में सबसे पहले परिवर्तन आता है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि इस परेशानी की वजह से पीडि़त व्यक्ित का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। वह अक्सर सिरदर्द जैसे शारीरिक समस्याओं से भी ग्रसित हो सकता है या कुछ समय के बाद सेक्स में अरूचि भी आ जाने की संभावना रहती है। इसके अलावा शारीरिक दुर्बलता भी हो सकती है।आज भी बहुत से लोग इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते हैं। जो लेते भी हैं वह इस समस्या को किसी के सामने रखने से डरते हैं। एक आकलन के अनुसार पुरूष का संभोग समय औसतन तीन मिनट का होता है। कुछ लोग दस मिनट तक संभोगरत रहने के बाद खुद को इस समस्या से बाहर मानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। इसके बरक्स अगर आप एक दूसरे को संतुष्ट करने से पहले ही स्खलित हो जाते हैं तो यह शीघ्रपतन माना जाता है। यह समस्या असाध्य नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य से इसके उपचार को लेकर लोगों में अनेक तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। जबकि सेक्स के कुछ तरीकों में परिवर्तन करके इस समस्या से निजात पाया जा सकता है। सबसे पहले तो इस समस्या को भी एक आम शारीरिक परेशानी की तरह लें।
सेक्स के दौरान चरम पर आने से पहले सेक्स के विधियों में बदलाव करें। मसलन आप मुखमैथुन, गुदामैथुन आदि की ओर रूख कर सकते हैं। इसके बाद भी अपनी अवस्थाओं को बदलते रहने का प्रयास करते रहें। सेक्स के दौरान कुछ देर तक लंबी सांस जरूर लें। यह प्रक्रिया शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करती है। आपको मालूम होना चाहिए कि एक बार के सेक्स में करीब 400 से 500 कैलोरी तक ऊर्जा की खपत होती है। इसलिए अगर संभव हो सके तो बीच-बीच में त्वरित ऊर्जा देने वाले तरल पदार्थ जैसे ग्लूकोज, जूस, दूध आदि का सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा आपसी बातचीत भी आपको स्थायित्व दे सकता है। ध्यान रखें, संभोग के दौरान इशारे में बात न करके सहज रूप से बात करें।डर, असुरक्षा, छुपकर सेक्स, शारीरिक व मानसिक परेशानी भी इस समस्या का एक कारण हो सकती है। इसलिए इससे बचने का प्रयत्न करें। इसके अलावे कंडोम का इस्तेमाल भी इस समस्या के निजात के लिए सहायक हो सकता है। समस्या के गंभीर होने पर आप किसी अच्छे सेक्सोलॉजिस्ट से सलाह ले सकते हैं।
शीघ्रपतन से बचाव का सबसे बेहतर तरीका है कि आप अपने दिमाग से यह निकाल दें कि आप शीघ्रपतन के शिकार हैं और शीघ्रपतन कोई बीमारी है. शुरुआती दौर में अस्सी फीसदी लोग संभोग के दौरान शीघ्रपतन का शिकार होते है. इसलिये इसे बीमारी के रूप में न लें न ही विज्ञापनों से भ्रमित हों.
Monday, July 21, 2008
सेक्स के जादुई आनंद का बटन
कई लोगों ने यह जानना चाहा है कि संभोग के पूर्व क्या किया जाना बेहतर हो सकता है. प्रस्तुत है सेक्स के जादुई आनंद का बटन भगशिश्न(clit):
यह महिला के लिये सेक्स के जादुई आनंद का बटन है. भगशिश्न मूलतः पुरुष के शिश्न की ही तरह है लेकिन आकार में काफी छोटा है. यदि इसे सही तरीके से सहलाया जाता है तो यह महिला काफी ज्यादा आनंद व उत्तेजना प्रदान करता है. महिला के शरीर में भगशिश्न ही ऐसी इकलौती इन्द्रिय है जिसका एकमात्र कार्य सेक्स आनंद है। यह लगभग 1 सेमी. लंबी होती है तथा योनि द्वार के ऊपर पायी जाती है.
शिश्न की ही तरह, भगशिश्न की भी अग्र त्वचा(foreskin) और एक दंड(shaft) होता है. लेकिन भगशिश्न को सहलाने के कई तरीके होते हैं. जो कि हर महिलाओं में अलग-अलग होते हैं. इसके लिये आपको स्वयं तलाशना होगा कि कौन सा तरीका आपकी महिला पार्टनर के लिये सबसे बेहतर हो सकता है. सबसे सही और शीघ्रता वाला तरीका तो यही है कि उसे कहें कि वह स्वयं अपने भगशिश्न को सहला कर बताए, फिर आप उसके तरीके की नकल कर लें. कई महिलाएं तो भगशिश्न को सहला कर ही हस्तमैथुन की क्रिया को अंजाम देती हैं। इसी दौरान आपको देखना होगा कैसे वह परम आनंद की ओर जाती है। लेकिन कई महिलाएं इस तरीके से हस्तमैथुन नहीं करती तो कई महिलाएं आपके सामने इस क्रिया को अंजाम नहीं देना चाहती. इन परिस्थितियों में उसकी उत्तेजना के बारे में जानने के लिये आपको कई प्रयोग करने होंगे. इसके लिये आपको उसके भग शिश्न को विभिन्न तरीकों से सहलाना होगा.
यहां यह ध्यान रखे कि सीधे आप उसके भगशिश्न तक न पहुंचे. हमेशा लैंगिक उत्तेजना की शुरुआत उसके शरीर से खिलवाड़(foreplay) द्वारा करके उसे जमकर सताएं. इसके बाद जब उसके भगशिश्न के पास पहुंचे तो उसके चारों ओर के क्षेत्र की मालिश करें या मसले. यह क्रिया उसके भगशिश्न में पर्याप्त मात्रा में रक्त भर देगी(शिश्न की तरह). इसके पश्चात भगशिश्न सीधे तरीके से खिलवाड़ के लिये तैयार होगी.
अभ्यास 1: भगशिश्न के चारों ओर खिलवाड़
उसके भगशिश्न के चारों ओर अंगमर्दन(Massage) करें: मसलन जांघे, उदर(पेट), कूल्हे. अंगमर्दन की यह क्रिया आहिस्ता-आहिस्ता भगशिश्न के निकट करते जाएं. अंगमर्दन द्वारा भगशिश्न के चारों ओर एक घेरा बनाएं लेकिन भगशिश्न को छुएं नहीं. इस क्रिया को कुछ मिनटों तक दोहराते रहें. अब जब आप उसके भगशिश्न तक पहुंचे तो अपनी एक उंगली के सिरे का उपयोग करें. उंगली द्वारा भगशिश्न को काफी हल्के से वृत्ताकार घेरे में रगड़े, फिर ऊपर नीचे की दिशा अपनाएं फिर बाएं व दाएं की दिशा के अनुसार उंगली से सहलाएं. यह सब इसपर निर्भर करता है कि उंगली की किस हरकत को महिला ज्यादा तरजीह देती है. क्योंकि हर महिला व हर भगशिश्न अलग प्रवृत्ति की होती है. लेकिन सामान्य तौर पर पहली हरकत काफी हल्के स्पर्श या छुअन के रुप में होनी चाहिए.
अभ्यास 2: भगशिश्न से खिलवाड़
जब आप निश्चित हो जाएं कि वह तैयार हो गई है तो आप अपनी उंगली के अग्रभाग को उसके भगशिश्न पर ले जाएं. यह तब ज्यादा आसान होगा जब उसके पांव फैले हों. अब उसके भगशिश्न को काफी हल्के तरीके से सहलाना शुरू करें. सबसे पहले गोलाई में सहलाएं फिर अन्य दिशाओं में भी प्रयत्न करें. साथ ही उससे पूछे कि वह किस स्थिति को ज्यादा पसंद कर रही है.
इसके अलावा सबसे अच्छा तरीका है कि उसके भगशिश्न को उस तरह सहलाया जाए जिस तरीके से वह हस्तमैथुन करती है. इसके लिये उससे पूछे या उसे करके दिखाने को कहें. यदि वह कोई प्रस्ताव या सलाह देती है तो उसे स्वीकार करें. यहां यह जरूर ध्यान रखें जब भी आप उसके भगशिश्न के समीप जाएं अपने नाखून काट कर रखें या काफी छोटे रखें. भगशिश्न की कोमलता की वजह से लंबे और तीखे नाखून छिलने या कटने का कारण बन सकते हैं. इतना कुछ करने के बाद भी आप प्रतिपुष्टि (feedback) नहीं पा रहे हैं तो समझे कि आप निश्चित तौर पर उसके भगशिश्न को गलत तरीके से सहला रहे हैं(यह न भूले कि कभी कभी जो चीज किसी व्यक्ति के लिये सही होती है वही दूसरे के लिये गलत भी हो सकती है).
यहां यह भी जानने योग्य है कि आप यदि गलत कर रहें हैं तो भी वह आपसे नहीं कहेगी. इसलिये आपको ही अपने अंदाज से उससे पूछना पड़ेगा कि किस तरीके से सहलाने पर उसे आनंद की प्राप्ति ज्यादा होती है. यदि एक बार आपने सही तरीका पा लिये तो उसे आप बेहतरीन सेक्स आनंद का लाभ दे सकते हैं और उसकी उत्तेजना को शिखर तक पहुंचा सकते हैं.
Tuesday, June 03, 2008
सेक्स उन्मुख बॉडी लैंग्वेज
बातें वही होती है जो मुंह से बोली या सुनी जाती हैं लेकिन कुछ ऐसी भी बातें है जो देख कर समझी जाती हैं और वह है शरीर की भाषा(बॉडी लैंग्वेज). दरअसल शरीर की भाषा वह भाषा है जो कभी गलत नहीं होती क्योंकि शरीर की भाषा रूपी संदेश अंजाने ही स्वतः भेजे जाते हैं. लेकिन इसे समझना इतना आसान भी नहीं है. यहां यह भी जान ले कि एक ही समय में महिलाएं पुरुषों की तुलना में पांच गुना अधिक शरीर की भाषा व भाव संदेश भेजती हैं. सेक्स क्या में हम यह बताने जा रहे हैं कि किस तरीके से किसी महिला या पुरुष के हाव भाव के अनुरूप आप यह जान सकते हैं कि उसकी रुचि सेक्स में हैं
या फिर किसी और में. हालांकि यहां पर हम सेक्स अभिरुचि मात्र से संबंधित शारीरिक भाषा संदेशों के बारे में नहीं बताएंगे बल्कि उससे संबंधित सभी संदेशों को बताने का प्रयास करेंगे. हमने शारीरिक संकेतों के संकलन की कोशिश की है यदि आप के पास भी कुछ ऐसे ही शरीर की भाषा से संबंधित संकेतों की जानकारी है तो मुझे मेल करें (sharmarama2000@yahoo.com)
शरीर विज्ञान के जानकारों का कहना है कि यौन हितों से संबंधित मामलों में शरीर की भाषा के बहुत ही प्रभावी परिणाम हो सकते हैं. ज्यादातर शरीर भाषा विज्ञानियों का कहना है कि एक महिला आसानी से अपनी शारीरिक भाषा की सहायता से पुऱुषों को अपनी ओर उकसा या बहका सकती है. इसकी वजह है कि एक ही समय अवधि में महिला पुरुषों की तुलना में पांच गुना अधिक शारीरिक भाषा व भाव संदेशों को भेज सकती हैं. यहां काफी संख्या में महिलाओं द्वारा दिये जाने वाले शारीरिक भाषा के संकेत हैं जो पुरुषों की सेक्सुअल सहज वृत्ति को बढ़ा सकते हैं. शोध द्वारा पता चला है कि कई बार शरीर से निकले संकेत अनजाने में ही बाहर आ गये हैं जिन्हे जानकार ही समझ सकते हैं तो कई बार कुछ जानकार लोग जानबूझ कर कुछ उद्देश्य पूर्ण संकेत देते हैं. यहां अनजाने ही स्वतः रुप से बाहर निकले शारीरिक संदेशों पर चर्चा करेंगे क्योंकि वही हकीकत के काफी निकट होते हैं.
सामान्य तौर पर किसी महिला का बल पूर्वक अपने पैरों को लपेटना(पुरुष सामान्य तौर पर ऐसा नहीं करते क्योंकि उनके कूल्हे महिलाओं की अपेक्षा काफी संकीर्ण होते हैं) किसी पुरुष का ध्यान अपनी ओर आसानी से खींच सकता है. जिसका आशय यह निकल सकता है कि वह काफी रक्षात्मक मुद्रा में है तथा पुरुष से यौन संबंध के लिये रास्ते बंद का संकेत है. हालांकि उसकी कसी या तनी हुई पांवों की मांसपेशियां किसी पुरुष के लिये काफी अपीलिंग होती है लेकिन यह उस पुरुष के लिये काफी उलझन भरा चैलेंज होता है और बेहतर है उससे दूर रहा जाए.
अगले दिनों में अन्य बॉडी लैंग्वेज की जानकारी देते रहेंगे
Tuesday, May 20, 2008
मोटे लोगों के लिये सेक्स पोजीशन
आमतौर पर कहा और सुना जाता है कि मोटे लोग सेक्स का सही लुत्फ नहीं उठा पाते हैं लेकिन यह गलत है. यह जरूर है कि सामान्य युगल की तरह वे सेक्स के तौर तरीके नहीं अपना सकते हैं लेकिन सामान्य पोजीशनों में थोड़ा बहुत परिवर्तन करके वे सेक्स का पूरा आनंद उठा सकते हैं.
दरअसल सामाजिक तौर पर लोगों के द्वारा बनाए गए मिथक और ताने मोटे लोगों को सेक्स विरक्त या सेक्स के अयोग्य साबित करते हैं जबकि मोटे लोग भी सेक्स का आनंद एक आम आदमी की ही तरह ले सकते हैं. यहां प्रयास किया जा रहा है कि मोटे लोगों को सेक्स के चरम तक पहुंचाया जा सके... सेक्स पोजीशन पर जानकारी से पहले यह जान लेना जरूरी है कि किन वजहों से मोटे लोग सेक्स में असफल होते हैं-कहा जाता है कि मोटे लोग सेक्स में असफल होते हैं लेकिन मैं यहां बता देना चाहूंगा कि उनकी सेक्स में असफलता का कारण शारीरिक कम बल्कि मानसिक ज्यादा होता है. दरअसल मोटापे की शुरुआत से साथ ही सामाजिक तानों के द्वारा उनके दिमाग में यह भर दिया जाता है कि वे सेक्स करने में पूर्ण सफल नहीं होगे. यही बात उनके दिमाग में घर कर जाती है और वे दिमागी तौर पर सेक्स के लिये असफल होने लगते हैं. वहीं दूसरी ओर यह धारणा भी बन चुकी है कि मोटे लोग सेक्स उत्तेजना नहीं पाते यह भी उन्हे मानसिक तौर पर सेक्स के प्रति कमजोर करती है. जबकि हकीकत इसके उल्टी है. देखा यह गया है कि मोटे लोग ज्यादा सेक्स उत्तेजना को पाते हैं. तथा सेक्स का ज्यादा आनंद ले सकते हैं बजाय सामान्य युगल के.
अब आते हैं मोटे लोगों की सेक्स पोजीशन पर तो यहां यह समझना भी जरूरी है कि मोटापा कैसा है. दरअसल मोटापा कई प्रकार का होता है. कुछ लोगों की जांघे मोटी होती हैं तो कुछ के कूल्हे और कुछ पेट से ज्यादा मोटे होते हैं. इस आधार पर सुविधा अनुरूप अलग-अलग मोटाई के अनुसार सेक्स पोजीशन का चयन किया जाता है. साथ ही यह भी देखा जाता है पार्टनर में कौन मोटा है. महिला मोटी है या पुरुष या फिर दोनो मोटे हैं.
यहां हम शुरू करते हैं मिशनरी पोजीशन(देखें जब पुरुष उपर हो कि चौथी पोजीशन) से. यह सामान्य तौर पर हर वर्ग के लिये शुरूआती पोजीशन मानी गई है. और मोटे लोगों के लिये भी यह काफी बेहतरीन पोजीशन बन सकती है बशर्ते इसे सही तरीके से किया जाये. अपनी शारीरिक संरचना के अनुरूप थोड़े परिवर्तन कर इसे काफी आनंददायी बनाया जा सकता है. जैसे कुछ मोटी महिलाओं का पेट काफी बड़ा या झूलता हुआ होता है इस स्थिति में वे मिशनरी पोजीशन में काफी परेशानी महसूस करती हैं. इस परिस्थिति में आप अपने कूल्हों के नीचे तकिये रखें (आवश्यकता अनुरूप) यह आपको इतना उपर उठा देगा कि आपका पार्टनर आपके पैरों(जांघों) के बीच घुटनों के बल बैठ सकता है. अब यदि आप "सही" उंचाई (यह इस पर निर्भर करते हुए भिन्न हो सकती है कि किस कोण पर आप दोनों सहज महसूस करते हैं) पर हैं तो वह अपने लिंग को आसानी व सुविधाजनक तरीके से आपकी योनि में प्रवेश करा सकता है, इस दौरान वह आपके कूल्हों को अपने हाथों से सहारा दे सकता है या फिर उसके हाथ जहां से आप के घुटने मुड़ रहे हैं, वहां रखकर टांगों के फैलान को नियंत्रित कर सकता है. यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि इस पोजीशन में महिला का शरीर नीचे झूलने की वजह से उसका पेट खिंच कर पीछे चला जाता है और योनि से दूर हो जाता है जो प्रवेश की कई परेशानियों को कम कर देता है. इस पोजीशन को युगल चाहे तो अपनी सुविधा के अनुरूप परिवर्तित करके अपने लिये ज्यादा आनंददायी और आरामदायक बना सकते हैं.
लेकिन यह पोजीशन उन महिलाओं के लिये उपयुक्त नहीं साबित होती है जिनका पेट बड़ा होने के साथ-साथ जांघें भी अपेक्षाकृत ज्यादा भारी और मोटी होती है. इस अवस्था में जांघों के बीच गैप कम मिलने से पुरुष को प्रवेश के दौरान या फिर घर्षण के समय परेशानी हो सकती है जिससे काम क्रीड़ा उतनी आनंददायी नहीं रह जाएगी. वहीं दूसरी ओर इस पोजीशन में जिस पुरुष को प्रवेश के लिये पर्याप्त समीपता नहीं मिल पाती वह इस पोजीशन का उपयोग भगशिश्न (clit) उत्तेजना के लिये कर सकता है. इसके लिये वह अपने लिंग की सहायता से महिला के भगशिश्न को रगड़ कर महिला को उत्तेजना के चरम तक पहुंचा सकता है.
इस पोजीशन में थोड़ा परिवर्तन करके ज्यादा मोटी और भारी जांघों वाली महिलाओं के उपयुक्त बनाया जा सकता है. इसमें मिशनरी पोजीशन में परिवर्तन की शुरुआत पुरुष की महिला के जांघो के बीच, और प्रवेश से होती है. इसके पश्चात महिला अपने पांवों को सीधी या समतल स्थिति में ले आती है. इसके पश्चात पुरुष अपने एक पांव को उठाकर महिला के एक पांव के उपर कर लेता है. इस स्थिति में वह उसकी कमर पर झूल सा जाता है. अब महिला अपने दोनों पांवों को एक दूसरे की ओर ले आती है. तब पुरुष अपने दूसरे पांव को भी उपर उठा कर पूरी तरह से महिला के उपर आ जाता है. इस स्थिति में महिला का टांगे पुरुष के लिंग के चारों ओर आ जाती है और पुरुष काम क्रीड़ा का आनंद ले व दे सकता है. हालांकि यह पोजीशन शुरुआती दौर में थोड़ी कठिन जरूर है लेकिन अभ्यास के बाद यह काफी आनंददायी साबित होती है. लेकिन इस पोजीशन में लिंग को बाहर चरम अवस्था तक बाहर नहीं निकालना है.
ठीक इसी तरह शुरुआती पोजीशन को थोड़ा उल्टा कर देने से यह मोटी और भारी टांगों वाली महिलाओं तथा मोटे पेट वाले पुरुषों को गहरे प्रवेश का पूर्ण आनंद दे सकता है. इसके लिये पुरुष को महिला की तरह अपने कूल्हों के नीचें पर्याप्त उंचाई तक तकिये रख कर लेटना होगा. फिर महिला पुरुष के लिंग के उपर अपनी टांगे पुरुष के दोनो ओर करके खड़ी हो जाए. इस दौरान महिला अपनी टांगों को पर्याप्त दूरी तक फैला ले. फिर महिला घुटनों से अपनी टांगे मोड़ते हुए योनि को लिंग के उपर लाकर प्रवेश क्रिया को पूरा करे. इस अवस्था में महिला की टांगे पूरी तरह से 180 अंश के कोण पर होंगी और बीच में योनि पूरी तरह खुली होने से लिंग पर्याप्त गहराई तक जा सकेगा. इस पोजीशन में मोटे पेट वाले पुरुषों का पेट भी पीछे की ओर खिसक जाने से उसे भी पर्याप्त गहराई में प्रवेश की जगह मिल सकेगी.
अब हम बताते है दूसरी पोजीशन के बारे में इसमे महिला अपनी किसी भी करवट के बल लेट जाए. इस अवस्था में वह अपना नीचे वाला पांव सीधा फैला ले तथा अपना उपर वाला पांव उठाते हुए अपने स्तनों की ओर ले जाए. अब पुरुष महिला के नीचे वाले पांवों के समानान्तर अपने पांव फैलाते पीछे की ओर से लेट जाए. फिर उसके भग क्षेत्र से खुद को सटाते हुए प्रवेश क्रिया पूर्ण करे. इस पोजीशन में महिला का भग क्षेत्र पूरी तरीके से खुल कर सामने आ जाने से गहरा प्रवेश आसान हो जाता है.
इसी तरह ज्यादा मोटे और झूले पेट वाली महिलाओं के लिये श्वान(doggy) पोजीशन काफी उपयुक्त रहती है. इस पोजीशन में प्रवेश के दौरान महिला का पेट आड़े नहीं आता है. साथ ही इस पोजीशन में महिला को जी-स्पॉट सेक्स का भी आनंद मिलता है.
यदि दोनों पार्टनरों के पेट काफी बड़े है इसके लिये सबसे बेहतर पोजीशन है कि पुरुष अपने कूल्हों के नीचे तकिया लगाकर लेट जाए और अपनी टांगे सीधे फैलाते हुए खोल ले. इसके पश्चात महिला पुरुष के पांवों की ओर मुंह करके अपनी टांगों को कुछ दूरी पर रखते हुए घुटनों से जाघों को मोड़ते हुए योनि को लिंग में प्रवेश कराएं. इससे दोनों के पेट आपस में नहीं टकराने से प्रवेश गहरा व आरामदायक होता है.
जिस महिला के कूल्हे काफी बड़े होते है वह श्वान पोजीशन में थोड़ा परिवर्तन करके सेक्स का पूरा आनंद उठा सकती है. इसमें महिला घुटनों के बल लेट जाती है इस दौरान वह अपने स्तनों को सतह से सटा देती है. इस अवस्था में पीछे की ओर से योनि का ज्यादातर हिस्सा खुल जाता है. फिर भी कूल्हों की साइज बड़ी होने पर वह अपने हाथों की सहायता से कूल्हों को पकड़ कर खींचते हुए योनि को खोल लेती है. अब पुरुष इसमें प्रवेश के लिये तैयार है. यदि पुरुष का भी पेट बढ़ा तथा झूल रहा है तो वह अपने पेट को कूल्हों के उपर टिकाते हुए योनि में प्रवेश की क्रिया पूरी करता है.
शेष अगले दिनों में...
Sunday, March 23, 2008
गर्भधारण के लिये बेहतर सेक्स पोजीशन
सामान्य तौर पर गर्भ धारण के लिये शुक्राणु का बेहतर होना माना जाता है. लेकिन अब सेक्स पोजीशन भी चिकित्सकीय नजरिये से गर्भधारण में महती रोल अदा करने लगी है. हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है लेकिन कई बार देखने में आया है कि कुछ सेक्स पोजीशन गर्भधारण में काफी सहयोगी भूमिका निभाती हैं.
क्या कुछ सेक्स पोजीशन गर्भधारण के लिये अन्य से बेहतर होती हैं?
हालांकि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कोई विशेष सेक्स पोजीशन गर्भधारण के लिये किसी अन्य पोजीशन से ज्यादा बेहतर है. लेकिन चिकित्साजगत के कुछ लोगों का मानना है कि जिस सेक्स पोजीशन से शुक्राणु को गर्भाशय में आसानी से प्रवेश व कम दूरी तय करनी पड़े उसमें गर्भधारण की संभावना ज्यादा होती है. इस आधार पर मिसनरी पोजीशन (जब पुरुष उपर हो) सबसे बेहतर पोजीशन मानी जाती है. लेकिन इसके साथ सही समय का चुनाव भी निर्णायक भूमिका निभाता है. अण्डोत्सर्ग के दौरान किया गया सेक्स गर्भधारण के लिये सबसे लाभदायक है. चूंकि पुरुष के शुक्राणु 2 से 5 दिन तक जीवित रह सकते हैं लेकिन महिला का अण्डाणु 12 से 24 घंटे ही जीवित रह सकता है. इसलिये अण्डोत्सर्ग के दौरान किया सेक्स गर्भधारण की ज्यादा गारंटी देता है.
क्या रति-निष्पत्ति (orgasm) गर्भधारण के अवसर बढ़ाने में मददगार होती है?
कुछ लोगों का मानना है कि जो महिला अपने पुरुष साथी के स्खलन के बाद चरमोत्कर्ष को पाती है उसके गर्भधारण की संभावना ज्यादा होती है लेकिन इस विचार की सत्यता के भी कोई प्रमाण या वैज्ञानिक तथ्य नहीं है. यहां हम यह बता देना चाहेंगे कि संभोग के दौरान किसी महिला का चरमोत्कर्ष किसी भी गर्भधारण के लिये महत्वपूर्ण नहीं है. लेकिन यह गर्भाशय के संकुचन में मददगार बनकर शुक्राणु को फेलोपियन ट्यूब में भेजने में उत्प्रेरक का कार्य करता हैं.
संभोग के बाद लेटना जरूरी होता है?
गर्भधारण की बेहतर परिस्थितियों के चिकित्सकों के मत के अनुसार संभोग के पश्चात महिला को कम से कम 15 मिनट लेटे रहना चाहिये. हालांकि इस बात के कोई बैज्ञानिक सबूत नहीं हैं. चिकित्सकों के अनुसार संभोग के पश्चात 15 मिनट या उससे ज्यादा समय तक लेटे रहने से योनि के अंदर ज्यादा मात्रा में वीर्य रुकता है और इस बजह से ज्यादा संख्या मे शुक्राणु निषेचन के लिये तैयार हो पाते हैं. अन्यथा यदि संभाग के बाद महिला सीधे उठ या खड़ी हो जाती है तो वीर्य उसकी योनि से बाहर आ जाता है साथ ही कम संख्या में शुक्राणु योनि में बच पाते है. इसके अलावा खड़े होने पर शुक्राणु को गुरुत्व के विपरीत तैर कर ऊपर गर्भाशय में प्रवेश करने के लिये संघर्ष करना पड़ता है.
Saturday, March 22, 2008
योनि स्राव और उसके संकेत
योनि मार्ग से सफेद, चिपचिपा गाढ़ा स्राव होना आज मध्य उम्र की महिलाओं की एक सामान्य समस्या हो गई है। सामान्य भाषा में इसे सफेद पानी जाना कहते हैं. भारतीय महिलाओं में यह आम समस्या प्रायः बिना चिकित्सा के ही रह जाती है। सबसे बुरी बात यह है कि इसे महिलाएँ अत्यंत सामान्य रूप से लेकर ध्यान नहीं देती, छुपा लेती हैं श्वेत प्रदर में योनि की दीवारों से या गर्भाशय ग्रीवा से श्लेष्मा का स्राव होता है, जिसकी मात्रा, स्थिति और समयावधि अलग-अलग स्त्रियों में अलग-अलग होती है। यदि स्राव ज्यादा मात्रा में, पीला, हरा, नीला हो, खुजली पैदा करने वाला हो तो स्थिति असामान्य मानी जाएगी। इससे शरीर कमजोर होता है और कमजोरी से श्वेत प्रदर बढ़ता है। इसके प्रभाव से हाथ-पैरों में दर्द, कमर में दर्द, पिंडलियों में खिंचाव, शरीर भारी रहना, चिड़चिड़ापन रहता है। इस रोग में स्त्री के योनि मार्ग से सफेद, चिपचिपा, गाढ़ा, बदबूदार स्राव होता है, इसे वेजाइनल डिस्चार्ज कहते हैं। इस रोग के कारणों की जांच स्त्री रोग विशेषज्ञ, लेडी डॉक्टर से करा लेना चाहिए, ताकि उस कारण को दूर किया जा सके।
योनिक स्राव क्या होता है और कब उसे असामान्य कहा जाता है?
ग्रीवा से उत्पन्न श्लेष्मा (म्युकस) का बहाव योनिक स्राव कहलाता है। अगर स्राव का रंग, गन्ध या गाढ़ापन असामान्य हो अथवा मात्रा बहुत अधिक जान पड़े तो हो सकता है कि रोग हो। योनिक स्राव (Vaginal discharge) सामान्य प्रक्रिया है जो कि मासिक चक्र के अनुरूप परिवर्तित होती रहती है. दरअसल यह स्राव योनि को स्वच्छ तथा स्निग्ध रखने की प्राकृतिक प्रक्रिया है वहीं अण्डोत्सर्ग के दौरान यह स्राव इसलिये बढ़ जाता है ताकि अण्डाणु आसानी से तैर सके. अण्डोत्सर्ग के पहले काफी मात्रा में श्लेष्मा (mucous) बनता है. यह सफेद रंग का चिपचिपा पदार्थ होता है. लेकिन कई परिस्थितियों में जब इसका रंग बदल जाता है तथा इससे बुरी गंध आने लगती है तो यह रोग के लक्षण का रूप ले लेता है. यहां प्रस्तुत है योनिक स्राव की विस्तृत जानकारी-
सफेद योनिक स्रावः मासिक चक्र के पहले और बाद में पतला और सफेद योनिक स्राव सामान्य है. सामान्यतः सफेद योनिक स्राव के साथ खुजलाहट या चुनमुनाहट नहीं होती है. यदि इसके साथ खुजली हो रही है तो यह खमीर संक्रमण (yeast infection) को प्रदर्शित करता है.
साफ और फैला (Clear and stretchy) हुआः यह उर्वर (fertile) श्लेष्मा है. इसका आशय है कि आप अण्डोत्सर्ग के चक्र में हैं.
साफ और पानी जैसाः यह स्राव महिलाओं में सामान्य तौर पर पूरे चक्र के दौरान अलग-अलग समय पर होता रहता है. यह भारी तब हो जाता है जब व्यायाम या मेहनत का काम किया जाता है.
पीला या हराः यह स्राव सामान्य नहीं माना जाता है तथा बीमारी का लक्षण है. यह यह दर्शता है कि योनि में या कहीं तीव्र संक्रमण है. विशेषकर जब यह पनीर की तरह और गंदी बदबू से युक्त हो तो तुरंत चिकित्सक के पास जाना चाहिये.
भूराः यह स्राव अक्सर माहवारी के बाद देख ने को मिलता है. दरअसल यह "सफाई" की स्वाभाविक प्रक्रिया है. पुराने रक्त का रंग भूरा सा हो जाता है सामान्य प्रक्रिया के तहत श्लेष्मा के साथ बाहर आता है.
रक्तिम धब्बे/भूरा स्राव: यह स्राव अण्डोत्सर्ग/मध्य मासिक के दौरान हो सकता है. कई बार बार शुरूआती गर्भावस्था के दौरान भी यह स्राव देखने को मिलता है. इस आधार पर कई बार इसे गर्भधारण का संकेत भी माना जाता है.
किन परिस्थितियों के कारण सामान्य योनिक स्राव में वृद्धि होती है?
सामान्य योनिक स्राव की मात्रा में निम्नलिखित स्थितियों में वृद्ध हो सकती है- योनपरक उत्तेजना, भावात्मक दबाव और अण्डोत्सर्ग (माहवारी के मध्य में जब अण्डकोष से अण्डे का सर्जन और विसर्जन होता है)
असामान्य योनिक स्राव के क्या कारण होते हैं?
असामान्य योनिक स्राव के ये कारण हो सकते हैं- (1) योन सम्बन्धों से होने वाला संक्रमण (2) जिनके शरीर की रोधक्षमता कमजोर होती है या जिन्हें मधुमेह का रोग होता है उनकी योनि में सामान्यतः फंगल यीस्ट नामक संक्रामक रोग हो सकता है।
असामान्य योनिक स्राव से कैसे बचा जा सकता है?
योनिक स्राव से बचने के लिए - (1) जननेन्द्रिय क्षेत्र को साफ और शुष्क रखना जरूरी है। (2) योनि को बहुत भिगोना नहीं चाहिए (जननेन्द्रिय पर पानी मारना) बहुत सी महिलाएं सोचती हैं कि माहवारी या सम्भोग के बाद योनि को भरपूर भिगोने से वे साफ महसूस करेंगी वस्तुतः इससे योनिक स्राव और भी बिगड़ जाता है क्योंकि उससे योनि पर छाये स्वस्थ बैक्टीरिया मर जाते हैं जो कि वस्तुतः उसे संक्रामक रोगों से बचाते हैं (3) दबाव से बचें। (4) योन सम्बन्धों से लगने वाले रोगों से बचने और उन्हें फैलने से रोकने के लिए कंडोम का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। (5) मधुमेह का रोग हो तो रक्त की शर्करा को नियंत्रण में रखाना चाहिए।
असामान्य योनिक स्राव के लिए क्या डाक्टर से सम्पर्क करना चाहिए?
हां, शीघ्र ही डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए। वे आपके लक्षणों की जानकारी लेंगे, जननेन्द्रिय का परीक्षण करेंगे और तदनुसार उपचार बतायेंगे।
Friday, March 21, 2008
सेक्स का दर्शन और अध्यात्म
... जब तुम किसी को आलिंगन में लेते हो, तब दूसरे का हड्डी-मांस-मज्जा ही तुम्हारे हाथ में आती है। वह कुछ तकिए से ज्यादा मूल्यवान नहीं है। आखिर हड्डी या मांस या चमड़ी तकिए से कैसे ज्यादा मूल्यवान हो सकती है ? बस तुम्हारा खयाल है कि दूसरा मौजूद है। इसलिए तुम अपने प्रेम को विस्तीर्ण कर पाते हो।जब तुम किसी आदमी के सिर पर चोट करते हो, तो उस चोट में और एक तकिए पर लकड़ी से चोट करने में क्या फर्क है ? फर्क तुम्हें दिखाई पड़ता है, क्योंकि तुम मानते हो, दूसरा वहां है और तकिया तो कोई भी नहीं। फर्क दिखाई पड़ता है, क्योंकि दूसरे से प्रत्युत्तर मिलेगा और तकिए से प्रत्युत्तर नहीं मिलेगा, इतना ही फर्क है।दूसरा जवाब देगा। जब तुम प्रेम से किसी व्यक्ति को आलिंगन में लोगे, तो वह भी तुम्हें आलिंगन में लेगा। उससे तुम्हें प्रेम करने में सुविधा पड़ेगी, क्योंकि प्रत्युत्तर जगाएगा, प्रत्युत्तर उत्तेजित करेगा और श्रृंखला निर्मित हो जाएगी।तकिए के साथ कठिनाई यह है कि तुम अकेले हो। तकिया कोई उत्तर न देगा। सब कुछ तुम्हें ही निर्मित करना पड़ेगा।लेकिन यह प्राथमिक कठिनाई सभी वेगों में होगी-काम हो, क्रोध हो या कोई भी वेग हों। थोड़े ही क्षणों में, थोड़े ही दिनों में, तुम समर्थ हो जाओगे। और तब तुम्हें बड़ी हंसी आएगी कि तुमने अब तक जितने लोगों को आलिंगन किया था, वे भी तकिए से ज्यादा नहीं थे, वे भी निमित्त थे।प्रेम भी तुम्हारा एकांत ध्यान बने, इसमें कई अड़चनें हैं। अड़चनें संस्कार की हैं। अड़चनें ऐसी हैं कि बचपन से कुछ बातें सिखाई गई हैं, और वे बाधा डालेंगी।जैसे पुरुष है, अगर कामवासना तकिए पर प्रकट करे, तो यह भी हो सकता है कि उसका वीर्य स्खलित हो जाए। तो भय है। वह भय बचपन से सिखाया गया है कि वीर्य की एक बूंद भी स्खलित हो जाए, तो महागर्त में गिर रहे हो, बड़ी जीवन-ऊर्जा नष्ट हो रही है। हिंदू मानते हैं कि चालीस दिन में भोजन करने से एक बूंद वीर्य बनता है। सरासर असत्य है, झूठ बात है, इसमें रत्तीभर भी सच्चाई नहीं। लेकिन बच्चों को डराने के लिए ईजाद की गई है। और बच्चे डरते हैं वह तो ठीक है बूढ़े भी डरते हैं।एक साधारण पुरुष सत्तर वर्ष के जीवन में आसानी से कोई चार हजार बार संभोग कर सकता है। प्रत्येक संभोग में कोई एक करोड़ से लेकर दस करोड़ तक वीर्याणु स्खलित होते हैं। एक शरीर के भीतर इतने वीर्याणु हैं कि अगर प्रत्येक वीर्याणु गर्भस्थ हो जाए, तो इस पृथ्वी पर जितनी जनसंख्या है, वह एक जो़ड़े से पैदा हो सकती है। चार अरब व्यक्ति एक स्त्री और एक पुरुष से पैदा हो सकते हैं।और यह जो वीर्य है, यह कोई आपके भीतर संचित संपदा नहीं है कि रखा हुआ है, इसमें से कुछ निकल गया, तो कुछ कम हो जाएगा। यह वीर्य प्रतिफल पैदा हो रहा है। शरीर श्वास ले रहा है भोजन कर रहा है, व्यायाम कर रहा है-यह वीर्य पैदा हो रहा है।और आप हैरान होंगे कि जो आधुनिक खोजें हैं चिकित्साशास्त्र की, वे बड़ी भिन्न हैं, विपरीत हैं। वे कहती हैं, जो व्यक्ति जितना वीर्य का उपयोग करेगा, उतने ज्यादा दिन तक पुंसत्व उसमें शेष रहेगा। जो जितनी जल्दी भय से बंद कर देगा वीर्य का उपयोग या संभोग उतने जल्दी उसका वीर्य खो जाएगा। क्योंकि जब तुम वीर्य का उपयोग करते हो, तो तुम्हारे पूरे शरीर को फिर वीर्य पैदा करने की क्रिया में संलग्न होना पड़ता है। जब तुम वीर्य का उपयोग नहीं करते, तो शरीर को संलग्न नहीं होना पड़ता। धीरे-धीरे शरीर की क्षमता वीर्य को पैदा करने की कम हो जाती है।यह बहुत उलटा दिखाई पड़ेगा। जो लोग जितना ज्यादा संभोग करेंगे, उतनी लंबी उम्र तक संभोग करने में समर्थ रहेंगे। जो लोग जितना कम संभोग करेंगे, उतनी जल्दी रिक्त हो जाएंगे और चुक जाएंगे।तो पश्चिम में चिकित्सक समझाते हैं कि बुढ़ापे तक, सत्तर और अस्सी वर्ष और नब्बे वर्ष तक भी अगर संभोग जारी रखा जा सके, तो तुम्हारे ज्यादा जीने की संभावना है। क्योंकि शरीर तुम्हारा ताजा रहेगा। वीर्य बाहर जाता है, तो नया वीर्य शरीर पैदा करता है। और नए वीर्य में शक्ति होती है, ताजगी होती है। पुराना वीर्य धीरे-धीरे बासा हो जाता है, जड़ हो जाता है। और वीर्य की जड़ता के साथ तुम्हारे पूरे शरीर में जड़ता व्याप्त हो जाती है।हमें यहां हैरानी होती है-पश्चिम में हम सुनते हैं, कोई नब्बे वर्ष का व्यक्ति शादी कर रहा है। हमें बहुत हैरानी होती है कि शादी का क्या प्रयोजन है अब ? लेकिन पश्चिम में नब्बे वर्ष का बूढ़ा भी संभोग कर सकता है। और करने का कारण सिर्फ यह है कि वीर्य के संबंध में सारी धारणा बदल गई है। और वैज्ञानिक धारणा सच्चाई के ज्यादा करीब है।जीवन के सभी अंगों में यह बात सच है कि उनका तुम उपयोग करो, तो वे सक्षम रहते हैं। एक आदमी चलता रहे, बुढ़ापे तक चलता रहे, तो पैर मजबूत रहते हैं चलना बंद कर दे, पैर कमजोर हो जाते हैं। एक आदमी मस्तिष्क का उपयोग करता रहे आखिरी क्षण तक, जो मस्तिष्क ताजा रहता है। उपयोग बंद कर दे, मस्तिष्क जड़ हो जाता है।सारी इंद्रियों का जीवन उपयोग पर निर्भर है, क्रियात्मकता पर निर्भर है।तुम जिन इंद्रियों का उपयोग करते हो, वे उतने ही ज्यादा दिन तक ताजी रहेंगी। और वीर्य भी एक इंद्रिय है। उसके लिए कोई अपवाद नहीं है। वह भी शरीर का ही अंग है। शरीर का नियम है कि तुम जितना ज्यादा उपयोग लोगे, उतना ज्यादा जीवंत रहेगा। तुम भयभीत हुए डरे, उपयोग बंद किया, उतनी ही जल्दी शरीर क्षीण हो जाएगा।और यह एक दुष्टचक्र है। क्योंकि जो व्यक्ति डरता है, कम उपयोग करता है, शरीर क्षीण होता है। क्षीण होने से और डरता है। और डरने से अपने को और रोकता है। और रोकने से और क्षीण होता है। फिर कोई उपाय नहीं। फिर उसने एक रास्ता पकड़ लिया, जिस पर वह जल्दी ही मिट जाएगा।भय रोकता है, रोकने से हम मरते हैं। निर्भय होकर जीवन को ऐसा उपयोग करो-रोजा लक्जेंबर्ग ने, एक जर्मन महिला ने कहा है-जैसे कोई मशाल दोनों तरफ से जले, ऐसे जलो।घबड़ाओ मत, तुम ज्यादा जलोगे, जीवन बड़ा विराट है। तुम्हारे दीए में बहुत तेल है। लेकिन तुम जलाओ ही नहीं बाती को, भयभीत हो जाओ, तो तुम डूब जाओगे।सारी दुनिया में पुरानी संस्कृति और सभ्यताओं ने वीर्य के संबंध में बड़ा भयभीत किया है लोगों को। इसके कारण हैं। क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति वीर्य के संबंध में भयभीत हो जाता है, उसे गुलाम बनाना आसान है। आपने उसकी जड़ पकड़ ली। वीर्य जड़ है। अगर किसी व्यक्ति को कामवासना के संबंध में बहुत अपराध से भर दिया, तो वह व्यक्ति न तो विद्रोही रह जाएगा, न शक्तिशाली रह जाएगा। और सदा अपराध की भावना इसको दबाएगी। अपराधी को दबाना बहुत आसान है।तो राज्य भी चाहता है कि आप अपराध अनुभव करें, समाज भी चाहता है। सभी-जिनके हाथ में सत्ता है-चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति, जो पैदा हो, वह भयभीत रहे। भयभीत रहे, तो उसकी मालकियत की जा सकती है, उसका मालिक हुआ जा सकता है। निर्भय हो जाए, तो वह सब बंधन तोड़ देगा, सब रास्ते, वह स्वतंत्रता से जीएगा। विद्रोही हो जाएगा।तो बचपन से हम बच्चों को सिखाते हैं कि वीर्य का स्खलन न हो जाए, सम्हालना। वीर्य के संबंध में हम कंजूसी सिखाते हैं। और इसको हम ब्रह्मचर्य कहते हैं।यह ब्रह्मचर्य नहीं है। कृपणता ब्रह्मचर्य नहीं है। और न वीर्य को जबर्दस्ती रोक लेने से ब्रह्मचर्य का कोई संबंध है। ब्रह्मचर्य तो एक ऐसे आनंद की घटना है, जब आपका अस्तित्व के साथ संभोग शुरू हो गया; और इसलिए व्यक्ति के साथ संभोग की कोई जरूरत नहीं रह जाती। यह जरा कठिन है समझना। और अगर मैं कहूं तो बहुत बेचैनी होगी। संत वैसा व्यक्ति है, जिसका अस्तित्व के साथ संभोग शुरू हो गया। वहां कोयल कूकती है, तो उसका पूरा शरीर संभोग के आनंद को अनुभव करता है। वहां वृक्ष में फूल खिलते हैं, तो उसके पूरे शरीर पर, जैसी संभोग में आपको थिरक अनुभव होती है, उसका रोआं-रोआं वैसा थिरकता है और नाचता है। सुबह सूरज उगता है, रात चांद आकाश में होता है तो हर घड़ी संभोग की समाधि उसे उपलब्ध होती रहती है। उसका रोआं-रोआं संभोग में समर्थ हो गया है; आपका केवल जननेंद्रिय संभोग में समर्थ है।इस संबंध में एक बात समझ लेनी जरूरी है। कभी खयाल भी नहीं आया होगा ! हमने शिव की प्रतिमा, शिवलिंग निर्मित की है। शिव जैसे पूरे के पूरे लिंग हैं, इसका मतलब यह होता है। इसका मतलब होता है, शिव के पास न आंखें हैं, न हाथ हैं, न पैर हैं, मात्र लिंग है, सिर्फ जननेंद्रिय है।यह संतत्व की आखिरी दशा है, जब व्यक्ति का पूरा शरीर जननेंद्रिय हो गया। इसका प्रतीक अर्थ यह हुआ कि अब वह पूरे शरीर के साथ जगत के साथ संभोग में रत है। अब यह संभोग लोकल नहीं है। यह जननेंद्रिय और जननेंद्रिय का मिलना नहीं है, अब यह अस्तित्व और अस्तित्व का मिलना है।शिव का शिवलिंग हमने निर्मित करके जगत को एक ऐसी धारणा दी है, जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है।लेकिन हिंदू भी यह अर्थ नहीं करेगा। अर्थ बिलकुल साफ है। अंधे हम हैं। हम इतने भयभीत हैं कि हम यह अर्थ ही नहीं करेंगे। हम तो छिपाने की कोशिश करते हैं।पश्चिम में बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक हुआ कार्ल गुस्ताव जुंग। वह भारत आया यात्रा पर। तो वह पुरी, कोणार्क, खजुराहो के मंदिर देखने गया। जब वह कोणार्क के मंदिर को देखने गया, तो जो पंडित उसे मंदिर दिखा रहा था, वह बड़ा बेचैन परेशान था-क्योंकि जगह-जगह नग्न-मैथुन की प्रतिमाएं थीं-और बहुत गिल्टी, अपराधी अनुभव कर रहा था। और जुंग बहुत प्रभावित था। क्योंकि जुंग इस सदी के उन थोड़े से लोगों में है, जिन्होंने मनुष्य की चेतना में बड़ा गहरा प्रवेश किया है।और जितनी गहराई में प्रवेश होगा, उतना ही मैथुन अर्थपूर्ण होगा। क्योंकि मैथुन से ज्यादा गहरा आपके भीतर कुछ भी नहीं जाता। शायद मैथुन के क्षण में आप जिस अवस्था में होते हैं, उससे ज्यादा गहरी अवस्था में साधारणत: आप कभी नहीं लेते। जिस दिन समाधि उपलब्ध होगी, उस दिन ही मैथुन के पार आप जाएंगे, उससे गहरी अवस्था उपलब्ध होगी।जो जुंग तो बहुत आनंद से देख रहा था। वह पंडित बहुत परेशान था। उसको लग रहा था कि क्या गलत चीजें हम दिखा रहे हैं। और यह आदमी पश्चिम में खबर ले जाएगा, तो हमारी संस्कृति के बाबत क्या सोचेंगे ?और ऐसा वह पंडित ही सोचता था, ऐसा नहीं है। गांधीजी तक सोचते थे कि कोणार्क और खजुराहों को मिट्टी के ढेर में दबा देना चाहिए, ताकि हमारी बदनामी न हो।एक लोग थे इस मुल्क में, जिन्होंने खजुराहो बनाया, कोणार्क बनाया। और बनाया था संतों के निर्देशन में क्योंकि ये मंदिर हैं। फिर महात्मा हमारे मुल्क में होने लगे जो उन्हें मिटा देना चाहते हैं या दबा देना चाहते हैं।गांधी को मैं कभी भी हिंदू नहीं मान पाता। वह ईसाई है। उनकी शिक्षा-दीक्षा उनकी पकड़ ईसाई की है। ईसाई बहुत डरा हुआ है इस तरह की चीजों से। ईसाई सोच ही नहीं सकता कि चर्च में और मैथुन की प्रतिमा हो सकती है, या शिवलिंग हो सकता है।जैसे ही मंदिर से विदा होने लगे जुंग, तो उस आदमी ने, पंडित ने, कान में कहा कि क्षमा करें, यह विकृति अतीत में कुछ लोगों के मन की प्रतिछवि है; यह कोई हमारा राष्ट्रीय प्रतीक नहीं है। और ऐसा मत सोचना आप कि यह हमारा धर्म या हमारा दर्शन है। यह तो कुछ विकृत मस्तिष्कों का उपद्रव है।जुंग ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैं हैरान हुआ कि इतनी महत्वपूर्ण प्रतिमाएं हैं, और इतने गहरे गई प्रतिमाएं हैं। लेकिन आज को हिंदू की यह दृष्टि है ! हिंदू भी कमजोर हो गया है।शिवलिंग का अर्थ है : एक ऐसी दशा, जब तुम्हारा पूरा शरीर रोएं-रोएं से संभोग अनुभव कर सकता है। तभी तुम्हें जननेंद्रिय के संभोग से छुटकारा मिलेगा और ब्रह्मचर्य उपलब्ध होगा।तो ब्रह्मचर्य भोग से मुक्ति नहीं है, परमभोग का आस्वाद है। लेकिन भोग इतना परम हो जाता है कि तु्म्हें उसे करने की अलग से जरूरत नहीं होती। हवा का झोंका आता है, तो तुम्हारा रोआं-रोआं उस पुलक को अनुभव करता है, जो प्रेमी अपनी प्रेयसी के स्पर्श से अनुभव करेगा।लेकिन हमने बच्चों को डराया हुआ है। उनको इतना डरा दिया है कि कभी काम में ठीक संभोग उपलब्ध ही नहीं हो पाता। वह भय बना ही रहता है। कंजूसी कृपणता बनी ही रहती है। डर बना ही रहता है कि कहीं शक्ति खो न जाए। एक-एक दर्जन बच्चों के मां-बाप हो जाने के बाद भी लोगों को यह डर बना रहता है कि शक्ति कहीं खो न जाए।शक्ति खोने का डर नास्तिक को हो सकता है। आस्तिक को नहीं होना चाहिए। आस्तिक कृपण हो जाए, बिलकुल समझ में नहीं आता।उस भय के कारण तुम्हें एकांत में प्रेम बड़ा मुश्किल मालूम पड़ेगा।लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ, भय छोड़ो। और जैसा तुमने क्रोध तकिए पर प्रकट किया है, वैसा ही तुम प्रेम तकिए पर प्रकट करो। जो भी परिणाम हों, परिणामों की फिक्र जल्दी मत करो। यह भी हो सकता है कि प्राथमिक चरणों में तुम इतने उत्तेजित हो जाओ कि वीर्य-स्खलन हो जाए। उस स्खलन को तुम परमात्मा के चरणों में समर्पण ही समझना। जिससे ऊर्जा आती है, उसी में वापस चली गई। तुम उससे भयभीत मत होना।जल्दी ही वह क्षण आ जाएगा, जब इस प्रेम के ध्यान में वीर्य का स्खलन नहीं होगा। और जब यह ध्यान गहन होगा और वीर्य का स्खलन न होगा, तब तुम एक नए स्वाद को उपलब्ध होओगे। वह स्वाद है बिना शक्ति को खोए आनंद के अनुभव का। शक्ति जब तुम्हारे भीतर दौड़ती है प्रगाढ़ता से, तुम एक तूफान बन जाते हो शक्ति के, तुममें एक ज्वार आता है, लेकिन यह ज्वार तुम उलीचकर फेंक नहीं देते, यह ज्वार एक नृत्य बनकर तुममें ही लीन हो जाता है।इस फर्क को ठीक से समझ लें। एक तो साधारण जीवन का ढंग है, जिसको हम भोग कहते हैं, वह ढंग यह है कि तुममें एक ज्वार आता है, वह ज्वार भी जैसे चाय की प्याली में आया तूफान, क्योंकि लोकल है, जननेंद्रिय से संबंधित है। तो सारे शरीर में जो भी तरंगें उठती हैं, वे जननेंद्रिय पर जाकर केंद्रित हो जाती है। एक दो क्षण में चुक जाता है ज्वार। एक हवा आई, तुम आंदोलित हुए, जननेंद्रिय ने सारी ऊर्जा को लेकर निष्कासित कर दिया। जैसे फुग्गे से हवा निकल गई, तुम मुर्दा पड़ गए, सो गए। यह जो क्षणभर के लिए ज्वार आना और खो जाना है, इसको तुमने भोग समझा है। यह तो भोग का अ, ब, स भी नहीं है।भोग की तंत्र की जो व्याख्या है, वह है, तुम्हारा पूरा शरीर ज्वार से भर जाए। रोआं-रोआं तरंगित हो, तुम अपने को इस तरंगायित स्थिति में बिलकुल विस्मृत ही कर जाओ, तुम्हें याद भी न रहे कि मैं हूं। नृत्य रह जाए, नर्तक न बचे। गीत रह जाए, गायक न बचे। तुम्हारा पूरा अस्तित्व एक्सटेटिक हो, समाधिस्थ हो, तो तुम एक ऊंचाई पर पहुंचोगे-ऊंचाई पर-रोज ऊंचाई बढ़ती जाएगी।और ध्यान रहे : यह जो ऊंचाई के बढ़ने की प्रतीति है, यह तुम्हारे पूरे शरीर को होगी, जैसे तुम्हारा पूरा शरीर स्पंदित हो रहा है, सजग हो रहा है। अभी जननेंद्रिय में तुम स्पंदन अनुभव करते हो, सजगता अनुभव करते हो। तब पूरा शरीर शिवलिंग हो जाएगा और तुम अनुभव करोगे कि तुम्हारे शरीर की जो रूपरेखा है, वह खो गई है।शिवलिंग कविता नहीं है, एक अनुभव है। और जब पूरे ज्वार से जीवन भर जाता है और तुम्हारा सारा शरीर रोमांचित होता है, तब तुम अपने आसपास ठीक शिवलिंग की आकृति में प्रकाश का एक वर्तुल देखोगे। तुम पाओगे कि तुम्हारे पूरे शरीर की रूपरेखा खो गई और शिवलिंग बन गया। एक प्रकाश का अंडाकार रूप, जिसमें तुम्हारी आंखें नहीं होंगी, नाक नहीं होगी, कान नहीं होंगे, हाथ नहीं होंगे, सिर्फ एक अंडाकार रूप रह जाएगा।यह ज्योतिर्मय जो रूप हैं, यह जो अंडाकार रूप है, यही तुम्हारी आत्मा का रूप है। जिस दिन तुम मां के गर्भ में प्रवेश हुए, ठीक शिवलिंग की आकृति का एक प्रकाश-बिंदु मां के गर्भ में प्रविष्ट हुआ। शरीर तो तुम्हें गर्भ के भीतर मिला। जब तुम शरीर को छोड़ेगो, मृत्यु घटित होगी-पहले भी घटित हुई है-तब तुम्हारा शरीर आकार पड़ा रह जाएगा; शिवलिंग ज्योतिर्मय पिंड तुमसे उठेगा और दूसरी यात्रा पर निकल जाएगा।जिस दिन तुम संभोग की परम अवस्था में आओगे और पूरा शरीर रोमांचित होगा, उस दिन तुम जैसे जन्म के समय में घटना घटी थी, मृत्यु के समय में घटी थी, लेकिन जन्म के समय तुम मूर्च्छित थे, मृत्यु के समय फिर तुम मूर्च्छित हो जाओगे, इस संभोग के क्षण में-इस संभोग का कोई संबंध दूसरे से नहीं है, इस संभोग का संबंध तुम्हारे भीतर शरीर के सब बांध को तोड़कर तुम्हारी चेतना का शिवलिंग बन जाने से है-तुम्हें पहली दफा अपने स्वरूप को अनुभव होगा। और यह स्वरूप अस्तित्व के साथ जो आनंद का अनुभव करता है, उसको तंत्र ने संभोग कहा है।यह एकांत में भी घट सकता है, किसी के साथ भी घट सकता है।लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, एकांत की ही तुम चिंता करना, क्योंकि दूसरे के साथ भी घटेगा, तो भी तुम जानोगे कि इसका दूसरे से कुछ लेना-देना नहीं है। यह घटना स्वतंत्र है। रोएं-रोएं से प्रकाश निकलता है, तुम्हारे भीतर एक ज्वार उठता है।और जो फर्क है...जब तुम्हारे भीतर पूर्ण ज्वार होता है, तो उस पूर्ण ज्वार का कोई भी स्खलन नहीं है। वह स्खलित होगा भी कैसे ? और जो अंडाकार आकृति है, वह स्खलन को रोकती है। उसमें कहीं छिद्र भी नहीं है, जहां से स्खलन हो सके। ऊर्जा वर्तुल में घूमने लगती है। और धीरे-धीरे, धीरे-धीरे तुममें फिर लीन हो जाती है, तुमसे बाहर नहीं जाती। तुममें उठती है, तुममें लीन हो जाती है। जैसे सागर में ज्वार आता है, फिर लीन हो जाता है। कहीं कुछ खोता नहीं।...
गर्भावस्था सावधानी व सुझाव
सामान्य परीक्षण
सामान्य गर्भावस्था में भी किन-किन रोगों का परीक्षण नियमित रूप से किया जाता है?
लगभग सभी सामान्य गर्भों के दौरान एड्स, हैपेटिटिस - बी, साईफिलिस, आर एच अनुपयुक्तता और रूबेला का नियमित परीक्षण किया जाता है। गर्भकाल में अलग-अलग समय पर रक्त के सैम्पल लेकर डॉक्टर इन स्थितियों का परीक्षण करते हैं।
जन्मजात रोगों के सम्बन्ध में व्यक्ति को कब चिन्ता करनी चाहिए?
आपके बच्चे को जन्मजात रोगों का खतरा अधिक हो सकता है यदि वह निम्नलिखित तीन कारणों में से किसी में आता है। (1) पहले बच्चे में जन्मजात रोग (2) परिवार में जन्मजात विकारों का इतिहास जिनके दोहराये जाने की सम्भावना रहती है। (3) यदि मां की उम्र 35 वर्ष से अधिक हो तो बच्चे में अभावपरक संलक्षणों का खतरा बढ़ जाता है।
क्या सामान्य रक्त परीक्षणों से जन्मजात विकारों को परखा जा सकता है?
अध्ययन से पता चलता है कि प्रसव पूर्व होने वाली रक्त की जांचों से 90 प्रतिशत जन्मजात विकारों का पता नहीं चल पता है। जाने जा सकने योग्य 10 प्रतिशत जन्मजात रोगों के लिए अलग से चार प्रकार के टैस्ट हैं - एमनियोसेन्टीसिस, करौलिक विलि सैम्पलिंग, अल्फा फैटो प्रोटीन (ए एफ पी) जैसे टैस्ट और अल्ड्रासाउण्ड स्कैनस।
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सामान्य देखभाल
स्वास्थ्य परक आहार पर इतना अधिक जोर क्यों दिया जाता है?
अपने अजन्में बच्चें के पोषण की आप एकमात्र स्रोत हैं, आपके खाने की प्रवृत्ति का बच्चे के स्वास्थ्य और कुशल क्षेम पर प्रभाव पड़ता है। बड़ी हुई जरूरत को पूरा करने के लिए आप के शरीर को पर्याप्त पोषण की जरूरत होती है।
गर्भवती माँ को कितनी कैलोरी की जरूरत होती है?
गर्भवस्था के प्रारम्भिक महीनों में आप को अपने आहार में बदलाव लाने की जरूरत नहीं है। गर्भ के बढ़ने के साथ साथ आप को कैलोरी की मात्रा में लगभग 300 अतिरिक्त कैलोरिस जोड़ लेने की जरूरत पड़ सकती है। ऐसा सामान्यतः दूसरे और तीसरे ट्रिमस्टर में होता है। यहि आप अधिक खाते हैं तो आप का ही वज़न बढ़ेगा न कि आपके बच्चे का। इसलिए ध्यान रखें कि आप बरगर, तले पदार्थ, बिस्कुट जैसे केवल कैलोरी बढ़ाने वाले पदार्थ न लें। वस्तुतः आप को जरूरत होती है - प्रोटीन कार्बोहाइड्रेटस एवं मिनरल तथा विटामिन युक्त भोजन की जैसे कि चपाती, दालें, सोया, दूध अण्डे और सामिष भोजन, मेवे, हरे पत्तों वाली सब्जियां और ताजे फल।
लोग कहते हैं कि गर्भवती महिला दो जनों के लिए खाती है?
गर्भ के कारण आप को दो के बराबर खाने की जरूरत नहीं है। सच यह है कि अगर आप दो के बराबर खायेंगे तो आप का वज़न इतना बढ़ जायेगा कि आप अपने लिए अनावश्यक रूप से परेशानियां बढ़ा लेंगी और बाद में उसे घटाने में बहुत परेशानी होगी।
गर्भवती महिला के लिए सन्तुलित भोजन कौन सा होता है?
गर्भकाल के दौरान आप के आहार में निम्नलिखित होने चाहिए -3 बार श्रेष्ठतम प्रोटीन - अण्डा, सोयाबीन, सामिष।2 बार विटामिल सी युक्त पदार्थ - रसीले फल, टमाटर4 बार कैलशियम प्रधान पदार्थ (गर्भकाल में 4 बार स्तनपान में 5 बार) जैसे दूध, दही।3 बार हरी पत्तों वाली और पीली सब्जियां या फल पालक, बथुआ, छोले, सीताफल, पपीता, गाजर।1/2 बार अन्य फल एवं सब्जियां - बैंगन, बन्द गोभी4-5 बार साबुत अनाज और मिश्रित कार्बोहाइड्रेटस - चपाती चावल8-10 गिलास पानीडॉक्टर के परामर्श के अनुसार आहार परक दवाएं।
एक गर्भवती महिला को किन आहार पूरक दवाओं की जरूरत होती है?
एक गर्भवती महिला को अपने आहार में विटामिन, आयरन और कैलशियम की जरूरत रहती है। आयरन फोलिक और कैलशियम की गोलियां सभी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में मुफ्त उपलब्ध रहती हैं। ये दवाएं आमतौर पर सुविधा से उपलब्ध होती हैं कौन सी दवा लेनी है इसका सुझाव डॉक्टर से लेना चाहिए।
स्वस्थ गर्भ में कितने वज़न का बढ़ना आदर्श माना जाता है?महिला का वज़न औसतन 11 से 14 किलो के बीच बढ़ना चाहिए।
ट्रिमस्टर के अनुसार वज़न के बढ़ने का श्रेष्ठतम स्वरूप क्या है?
ट्रिमस्टर के अनुसार वज़न बढ़ने का आदर्श स्वरूप इस प्रकार है।
1. पहला ट्रिमस्टर - 1 से 2 किलो
2. दूसरा ट्रिमस्टर 5 से 7 किलो
3. चार से पांच किलो।
गर्भ के दौरान चाय, कॉफी अथवा फिजिपेय का पीना क्या सुरक्षित है?
गर्भ के दौरान चाय, कॉफी अथवा फिजिपेय पदार्थों का पान बहुत सीमित होना चाहिए।
कम पोषक तत्व वाले खाद्य पदार्थों की तीव्र इच्छा को कैसे वश में करें।या किसी अस्वास्थ्यकारी वस्तु के लिए तीव्र इच्छा जागृत हो तो पहले अपने मन को उधर से हटायें या उसका विकल्प ढूंढ लें। अगर फिर भी मन न माने तो जो भी लें थोड़ सा लें, अपने मन को समझा लें कि अपने बच्चे की पोषक परक जरूरतों से आपने कोई समझौता नहीं करना है।
यदि किसी विशिष्ट अखाद्य पदार्थ को खाने की अनोखी इच्छा जगे तो कोई क्या करें?
डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि उस में कोई पोषण परक विकार पैदा हो रहा है।
गर्भ के दौरान कब्ज से कैसे छुटकारा मिल सकता है?
कुछ गर्भवती महिलाओं का अर्धाश इस कब्ज से पीड़ित रहता है। कुछ सामान्य उपचार के साधन हैं। (1) 1-2 गिलास जूस सहित कम से कम 8 गिलास पानी पियें। (2) अपने भोज में अनाज, कच्चे फल और सब्जियों की मात्रा अधिक करें उन में फाइवर अधिक हो (3) हर रोज़ व्यायाम करें - सैर करना व्यायाम की अच्छी शैली है। व्यायाम एवं अच्छी शारीरिक स्थिति व्यक्ति को उसका पेट साफ रखने में मदद देती है। (4) अगर कब्ज बार बार होने लगे तो डॉक्टर की सलाह से कोई कब्ज निवारक दवा दें।
गर्भ के दौरान मसूड़ों का सूजना या उनसे रक्त आना स्वाभाविक क्रिया है?
गर्भ के दौरान शरीर में जो अतिरिक्त हॉरमोन आ जाते हैं उन से मसूड़े सूज सकते हैं या उन से रक्त आ सकता है। नरम टुथब्रश लेकर नियमित रूप से ब्रश करते रहें। गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति में दांतों का चैक अप करवा लेना चाहिए ताकि मुख को स्वास्थ्य सही रहे।
छाती में जलन से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
छाती की जलन से बचने के लिए (1) बार-बार परन्तु थोड़ा थोड़ा खायें, दिन में 2-3 बार खाने की अपेक्षा 5-6 बार खायें। भोजन के साथ अधिक मात्रा में तरल पदार्थ न लें। (2) वायु-विकार पैदा करने वाले, मसालेदार या चिकने भोजन से बचें। (3) सोने से पहले कुछ खायें या पियें नहीं (4) खाने के दो घन्टे बाद ही व्यायाम करें। (5) शराब या सिगरेट न दियें। (6) बहुत गर्म या बहुत ठन्डे तरल पदार्थ न लें।
गर्भकाल के दौरान यौन-सम्भोग करते रहना क्या सुरक्षित होता है?
कुछ दम्पतियों को गर्भकाल में सम्भोग करने से चिन्ता होती है। उन्हें गर्भपात का भय लगा रहता है। स्वस्थ महिला के सामान्य गर्भ की स्थिति में गर्भ के अन्तिम सप्ताहों तक कुछ दम्पतियों को गर्भकाल में सम्भोग करने से चिन्ता होती है। उन्हें गर्भपात का भय लगा रहता है। स्वस्थ महिला के सामान्य गर्भ की स्थिति में गर्भ के अन्तिम सप्ताहों तक सम्भोग सुरक्षित होता है। आप और आप का साथी आरामदायक स्थिति में सम्भोग कर सकते हैं।
गर्भकाल में टांगों में पड़ने वाले क्रैम्पस क्या सामान्य हैं?
हां, गर्भ के दूसरे और तीसरे ट्रिमस्टर में हो सकता है कि आप की टांगों में कैम्पस बढ़ जाये। अधिक मात्रा में कैलशियम लें। (तीन गिलास दुध या दवा) और पोटैशियम (केला संतरा) लें। सोने से पहले टांगों का खिंचाव देकर सीधा करने से शायद आपको कुछ राहत मिले।
क्या गर्भ के दौरान यात्रा करनी चाहिए?
अधिकतर औरतें सुरक्षित रूप से यात्रा कर लेती है। जब तक कि प्रसव काल नज़दीक नहीं आ जाता। अधिकतर, गर्भावस्था के मध्यकाल को सब से सुरक्षित माना जाता है। इस दौरान कम से कम समस्याएं होती है।
गर्भकाल के दौरान व्ययाम क्यों करना चाहिए?
निम्नलिखित कारणों से व्यायाम करना चाहिए (1) आकृति और अभिव्यक्ति में सुधार लाने के लिए (2) पीठ दर्द से छुटकारे के लिए (3) प्रसव काल के लिए मांसपेशियों को सशक्त बनाने और ढीले पड़े जोड़ो को सहारा देने के लिए (4) मांसपेशियों के कैम्पस से राहत के लिए (5) रक्त संचार को बढ़ाने के लिए (6) लचीलेपन को बढ़ाने के लिए (7) थकावट दूर करने के लिए ऊर्जा वृद्धि के लिए (8) भले चंगे होने की भावना भरने और आत्मछवि के सकारात्मक विकास के लिए। आपका डॉक्टर आप को सही ढंग से व्ययाम के सम्बन्ध में बतायेगा।
क्या व्यायाम से मेरे बच्चे को लाभ पहुंचेगा?
हां भ्रूण के लिए व्यायाम अति उत्तम है क्योंकि इस से रक्त प्रवाह बढ़ता है और बच्चे की वृद्धि और विकास को सुधारता है। व्यायाम से बच्चे का मस्तिष्क और अन्य टिशु श्रेष्ठ स्थिति में काम करने लगते हैं।
गर्भकाल के दौरान कौन सा व्यायाम सुरक्षित माना जाता है?
किसी प्रकार के खेल-कूद या व्ययाम को जारी रखने में कोई समस्या नहीं है, जब तक कि वह सीमा में हो। फिर बी पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
किस प्रकार का व्यायाम बिल्कुल नहीं करना चाहिए?
जॉगिंग जैसा व्यायाम रीढ, श्रोणि, नितम्बों, घुटनों स्तनों और पीठ पर बड़ा भारी पड़ता है। इसलिए उसे नहीं करना चाहिए। जिस व्यायाम से पेट की मांसपेशियां खिंचे जैसे टांगे उठाना, उठक बैठक भी गर्भ के दौरान नहीं करने चाहिए। और गर्भवती नवीन चेष्टाओं से तालमेल बैठाने में शरीर को कुछ समय लगता है। चौथे महीने के बाद, पीठ के बल लेटकर व्यायाम न करें, क्योंकि आपके गर्भाशय का वज़न रक्त वाहिकाओं को दबा सकता है और रक्त भ्रमण में बाधा दे सकता है।
गर्भधारण करने के कितने समय बाद तक मैं काम करती रह सकती हूँ?
जिस गर्भवती महिला को कोई समस्या न हो वह नौवें महीने तक काम करती रह सकती है। हाँ, उन्हें कुछ सावधानियां बरतनी पडेंगी जैसे कि भारी थकान वाली गतिविधि से बचें, सीढ़ियां चढ़ने, तापमान की अति और धुये भरे क्षेत्र से दूर रहें। बार-बार आराम करें और यदि थकान लगे तो जल्दी ही काम से लौट जायें यदि बहुत देर तक खड़ी रही हैं तो बैठ जायें और पैर ऊपर कर लें। अन्तिम तीन महीनों में लम्बे समय तक खड़े रहना, भारी चीज़ों को उठाना, मुड़ना या झुकना नहीं चाहिए। गर्भवती महिला को नियमित भोजन करना चाहिए एक जगह बैठकर किया जाने वाला काम जिस से ज्यादा परेशानी न हो वह घर बैठने की अपेक्षा कम दबाव वाला होता है।
गर्भकाल में निम्नलिखित तकनीकें सहायक होती हैं-
1. पीठ के बल लेटो सिर तकिये पर हो और टांगों का निचना भाग कुर्सी पर हो। आंखें बन्द कर के 10-15 मिनट तक आराम करें। पैरों और टखनों की सूजन से भी इस में राहत मिलती है।
2. बगल से लेटो और सिर के नीचे तकिया रख लो, भुजा के ऊपरी भाग को ओर टांगों को ऊपर की ओर खीचों, घुटने के नीचे तकिया रख लो। टांग के निचले भाग को सीधा रखो। आंखे बन्द करो और मस्तिष्क को साफ करो। श्वास अन्दर भरो और दस तक गिनो। धीरे धीरे श्वास बाहर निकालो। पूरी तरह विश्राम करो।
गर्भवती महिला को बाई ओर सोना चाहिए, ऐसा सुझाव डॉक्टर क्यों देते हैं?
हालांकि पीठ के बल सोना शुरू में अधिक आरामदायक हो सकता है। इस से पीठ में दर्द और हॉरमोरोहोऑटाडस हो सकता है और पाचन, श्वसन और रक्त भ्रमण में रूकावट आती है ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भाशय का सारा वज़न पीठ पर आ जाता है। जबकि बाई ओर के अंगों को सीधा करने से रक्त स्राव भरपूर होता है और बीजाण्ड है। जबकि बाई ओर के अंगों को सीधा करने से रक्त स्राव भरपूर होता है और बीजाण्ड का पोषण होता है, किडनी का कार्य सुचारू रूप से होता है जिस से मल का त्याग बेहतर रूप से होता है (जिसके न होने से सूजन आता है) अतः इसे अत्यन्त आरामदायक स्थिति माना जाना चाहिए।
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एच आई वी और गर्भ
यदि मां में एच आई वी पॉजिटिव हो तो बच्चे के एच आई वी पॉजिटिव होने की कितनी सम्भावना होती है?
उसके एच आई वी पॉजिटिव होने की सम्भावना 25 प्रतिशत है।
ऐसी मां के पास कौन से विकल्प है जिनसे कि वह अपने बच्चे को इस रोग के संक्रमण से बचा सके?एच आई वी पॉजिटिव महिला को गर्भकाल के दौरान अधुनातन व्यस्क निर्देशों के अनुसार संस्तुत जो भी इन्टीवाइरल कीमोथैरेपी हो उसे लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रसव के तीन घन्टे पूर्व तथा काट कर किए जाने वाले प्रसव के तौरान इन्टरावीनस थैरेपी के साथ इन्टीवाइरल लेना चाहिए। जन्म के पहले छ सप्ताह तक बच्चे का इन्टीवाइरल सिरप लेना होगा इस समय नये जन्मे बच्चे में इस के संक्रमण की सम्भावनाओं को न्यूनतम बनाने के लिए श्रेष्ठतम थैरेपी है। सुझाव है कि ऐसे में शल्यक्रिया द्वारा ही प्रसव करायें।
यदि महिला एन्टी वाइरल थैरेपी ले और सीजेरियन प्रसव कराये तो शिशु में संक्रमण की कितनी सम्भावना रह जाती है?
जब गर्म के दौरान महिला को एन्टी वाइरल थैरेपी दी जाती है तो संक्रमण की सम्भावना लगभग 8 प्रतिशत तक कम हो जाती है। जब शल्यक्रिया की जाती है और एन्टी वाइरल थैरेपी प्रसव के दौरान दी जाती है तो संक्रमण की दर भी घटकर 2 प्रतिशत रह जाती है।