इस विषय पर काफी जटिलताएं भरी हुई हैं. गर्भधारण के साथ ही तरह-तरह के मिथक सेक्स को लेकर बताएं जाने लगते हैं वहीं ज्यादातर पुराने लोग गर्भावस्था के दौरान सेक्स न करने की सलाह देते नजर आने लगते हैं . गर्भावस्था के दौरान सेक्स के बारे में कम बाते की जाती हैं क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक मानसिकता में घुला हुआ है कि गर्भावस्था के दौरान सेक्स नहीं करना चाहिए. लेकिन वास्तविकता में ऐसा कुछ है नहीं. यह अलग है कि इस दौरान कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए. इसलिये जरूरी है इस मिथक की वास्तविकता को जानकर गर्भावस्था के दौरान भी अपनी सेक्स लाइफ आनंददायी बना सकते हैं.
यहां यह बात सबसे पहले समझ लेनी चाहिये कि सेक्स और सेक्सुअलिटी दोनों में काफी अन्तर है. और जब तक संतुष्टिदायक सेक्स नहीं किया जाता है तब तक सेक्सुअलिटी में होने वाली बढ़ोत्तरी परेशान करती रहती है. यह स्थितियां गर्भावस्था के दौरान भी होती है. इसलिये जरूरी है कि गर्भावस्था के दौरान भी सेक्स किया जाए लेकिन गर्भ में पल रहे शिशु की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी महत्वपूर्ण होती है. इस अवस्था में सेक्स के लिये कुछ बाते हैं जिनका ध्यान रखना जरूरी है-
1\. सेक्स के दौरान ज्यादा से ज्यादा कोशिश होनी चाहिये कि पेट पर दबाव कम से कम हो.
2\. इस दौरान गहराई तक प्रवेश वाली सेक्स पोजीशनों से बचना चाहिये साथ ही वह पोजीशन अपनाना चाहिये जो गर्भवती के लिये आरामदायक हो.
3\. सेक्स या सेक्स पूर्व क्रीड़ा के दौरान योनि में पानी , हवा या किसी भी बाह्य वस्तु के प्रवेश से बचना चाहिये. इस अवस्था में योनि को नल धावन से बचाना चाहिये.
4\. इस अवस्था में महिला को सेक्स के दौरान हमेशा ‘ना’ कहने का अधिकार है.
5\. यदि समय पूर्व प्रसव की संभावना हो तो कामोन्माद व सेक्स से बचना चाहिये. इस दौरान निप्पल की उत्तेजना से बचना चाहिये.
6\. यदि उल्बीय (amniotic) द्रव रिस रहा हो तो सेक्स नहीं करना चाहिये.
7\. यदि किसी भी तरीके से महिला की इच्छा सेक्स के लिये नहीं है तो सेक्स नहीं करना चाहिये.
8\. यदि इस दौरान मुख मैथुन कर रहे हों तो अपने पार्टनर को यह पहले बता दें कि वह योनि में फूंक न मारे. क्योंकि योनि में हवा जाने से आगे की रक्त वाहिनियों के रक्त में हवा का बुलबुला बना कर उन्हें बाधित कर सकती है. जो मां और होने बाले बच्चे दोनों के लिये हानिकारक हो सकता है.
9\. किसी भी तरह की संक्रामित बीमारी होने पर सेक्स बिल्कुल नहीं करना चाहिये.
10\. यदि प्लेसेंटा नीचे है तो भी सेक्स नहीं करना चाहिये क्योंकि यह गर्भाशय के मुंह द्वारा ढंका होता है और नीचे होने पर हल्का सा भी धक्का प्लेसेंटा को क्षतिग्रस्त कर सकता है, इससे प्लेसेंटा से रक्तस्राव हो सकता है.
किस महीने तक सुरक्षित है सेक्स करना
गर्भावस्था के दौरान प्रसव के कुछ दिनों पूर्व तक सेक्स किया जा सकता है. गर्भावस्था के दौरान तभी सेक्स नहीं कर सकते जब जब चिकित्सक ने किसी विशेष बीमारी, शारीरिक कमी या अन्य कारणों से सेक्स के लिये मना किया हो. यह अलग बात है कि गर्भावस्था के जैसे-जैसे दिन गुजरते जाते हैं सेक्स पोजीशन में बदलाव करते जाना चाहिये. वैसे गर्भावस्था के द्वितीय चरण अर्थात 14 से 28 वें सप्ताह तक सेक्स करना सबसे बेहतर होता है क्योंकि इस दौरान स्तनों में भराव आने से वे उत्तेजन दिखने लगते हैं तथा उत्तेजना का संचार ज्यादा होता है, इस दौरान योनि में स्निग्धता पूर्व की अपेक्षा ज्यादा आ जाती है तथा श्रोणि क्षेत्र (pelvic region) में रक्त संचार ज्यादा होने से कसाव बेहतर रहता है. इसके विपरीत गर्भावस्था के प्रथम चरण अर्थात पहले 14 हफ्ते में महिलाएं सेक्स को लेकर कुछ भयभीत रहती है. क्योंकि इस दौरान उन्हें होने वाली थकान, उल्टी, मितलीआदि सेक्स इच्छा से दूर करती हैं इसी तरह तृतीय चरण मेंशरीर के भारीपन से होने वाली थकान, शारीरिक पीड़ा व पेट के खिंचाव व योनि क्षेत्र पर पडने वाले दबाव के दर्द से वे सेक्स से बचना चाहती है. लेकिन यदि महिलाओं को गर्भावस्था व सेक्स की जागरुकता हो तो इन अवस्थाओं को सामान्य तरीके से लेंगी और सेक्स से उनकी विरक्ति कम होती जाएगी. यह ध्यान देने योग्य है अंतिम चरण में सेक्स क्रिया काफी धीमे गति व संतुलित तरीके से करनी चाहिये.
1. स्पून पोजीशन : यह पोजीशन काफी आरामदायक और घनिष्टता या निकटता प्रदान करने वाली होती है. इसमें दोनों पार्टनर करवट के बल c की आकृति बनाते हुए एक ही दिशा में मुंह करके लेट जाएं. फिर पुरुष पीछे से प्रवेश क्रिया प्रारंभ करे. इस पोजीशन में महिला काफी आराम महसूस करती है तथा धक्कों को अपने तरीके से नियंत्रित कर सकती है. इस क्रिया में गर्भ को आधार मिला होता है जिससे महिला को अतिरिक्त वजन नहीं झेलना पड़ता. (देखेः चमचा पोजीशन)
6. बिस्तर का किनारा : यह पोजीशन काफी सुरक्षात्मक पोजीशन है लेकिन गर्भावस्था के तीसरे चरण में इसे नहीं करना चाहिए इससे तनाव होने से गर्भ को दिक्कत हो सकती है. इस पोजीशन के लिए महिला बिस्तर की कोर पर लेट जाती है इस दौरान उसके पैर जमीन पर होते है फिर पुरुष खड़े होकर या बिस्तर से हाथों को सहारा देते हुए झुककर प्रवेश कराता है. यह पोजीशन तीव्र धक्के की अनुमति देती है इस लिये सेक्स से पहले बता दें कि कितना धक्का आप सह सकती है.
7. महिला नीचे हो : यह पोजीशन हालांकि गर्भावस्था के लिये बेहतर नहीं मानी जाती है लेकिन कुछ महिलाएं इसे पसंद करती है. इस पोजीशन को प्रथम चरण तक ही इस्तेमाल करना चाहिये. चौथे माह के बाद इस पोजीशन को नहीं करना चाहिए. चौथे माह के बाद इस पोजीशन में असावधानी होने पर गर्भाशय का वजन गर्भाशय व पैर में पहुंचने वाली रक्त वाहिनियों को बाधित कर सकता है. इस पोजीशन के लिये महिला मिशनरी पोजीशन की तरह लेट जाती है तथा घुटनों पैर उठा लेती है ताकि पुरुष प्रवेश के दौरान जब नीचे आए तो गर्भ पर वजन न पड़े साथ ही धक्के नियंत्रित रह सकें. पुरुष भी महिला के उपर आकर घुटनों के उपर के भाग को सीधा रखते हुए प्रवेश करता है.
पहला महीना: शारीरिक मासिक स्त्राव आना रुक जाता है. थकावट महसूस होना और हर समय नींद आना। जल्दी-जल्दी यूरिन का प्रेशर होना. जी मिचलाना, उल्टी आना या उल्टी की फीलिंग होना. स्लाइवा ज्यादा बनने लगता है. छाती में जलन, बदहजमी, गैस बनना. भोजन के प्रति अरुचि या किसी चीज को खाने की तीव्र इच्छा होना. स्तनों में परिवर्तन, (जिन महिलाओं में माहवारी से पहले स्तनों में परिवर्तन होता है, उनके साथ ऐसा ज्यादा होता है) भारीपन, फूलना, जलन महसूस होना. अरीअॅला में कालापन बढ़ना (निप्पल के आसपास का हिस्सा). स्तनों में रक्त प्रवाह बढ़ने से त्वचा के अंदर हल्की नीली रेखाओं का जाल-सा बन जाता है. भावनात्मक मासिक धर्म से पहले के लक्षणों की तरह अस्थिरता, चिड़चिड़ापन, रोने का मन होना, अक्सर मूड का बदलते रहना. आशंकाओं से घिरना, भयभीत रहना, प्रसन्नता, उमंग से भरना-इनमें से कोई भी स्थिति हो सकती है.
3 comments:
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