Friday, September 14, 2007

सेक्स संबंधी मिथक (भाग 2)

मिथक 11- महिला भी स्खलित होती है.

सच्चाईः यह मिथक काफी चर्चित मिथक है जबकि इसका सत्यता से कोई नाता नहीं है. ज्यादातर अश्लील फिल्मों और अश्लील किताबों में महिला स्खलन के गलत चित्रों व कथाओं को प्रचारित किया जाता है जबकि वास्तविकता में महिला स्खलित होती ही नहीं है. जब महिला उत्तेजित होती है तो वह योनि मार्ग में स्निग्धता (चिकनाहट) को ठीक उसीतरह पाती है जिस तरह पुरुष उत्तेजना के दौरान लिंग में उठाव पाता है. और जब वह चरमोत्कर्ष पर पहुंचती है तो उसे पूर्ण तृप्तता की अनुभूति मात्र होती है. चरमोत्कर्ष पर महिलाओं में पुरुषों की तरह न गुप्तांग में संकुचन अनिवार्य होता और न ही महिलाएं पुरुषों की तरह स्खलित होकर वीर्य छोड़ती हैं.

यह अलग है कुछ लोग महिलाओं में तीव्र उत्तेजना के दौरान मूत्रद्वार से छोड़े जाने वाले रंगहीन व स्वादहीन द्रव को महिला का स्खलन मानते हैं (देखें: जी-स्पॉट द्वारा तीव्र स्खलन) लेकिन यह स्खलन नहीं है.


मिथक 12- बड़े स्तनों से ज्यादा सेक्सुअल परफार्मेन्स मिलता है.

सच्चाईः यह ज्यादातर पुरुष और महिलाओं दोनों के बीच समान रूप से पाई जाने वाली भ्रांति है कि बड़े स्तन ज्यादा सेक्स उत्तेजना में सहायक होते हैं. लेकिन यह गलत है. बड़े स्तन देखने में भले ज्यादा सेक्सी लग सकते हैं लेकिन हकीकत में बड़ें स्तनों की अपेक्षा छोटे स्तनों से ज्यादा सेक्सुअल परफार्मेन्स मिलता है. यदि कोई बड़े स्तन को महत्व देता है या बड़े स्तन चाहता है तो वह सेक्स उत्तेजना को प्रभावित करता है. स्तनों में पाई जाने वाली चैतन्य नसें जो उत्तेजना के स्पंदन को महसूस कराती है उनका बड़े स्तनों में फैलाव दूर-दूर हो जाता है जबकि छोटे स्तनों में इनका फैलाव ज्यादा न होने से काफी छोटी जगह में ही सघनता से होती है. इसलिए छोटे स्तनों में उत्तेजना के दौरान इन्द्रियबोध या सनसनी बड़े स्तनों की अपेक्षा ज्यादा होती है. शोध के उपरान्त सेक्सोलॉजिस्ट बताते हैं कि औसतन स्तनों में इन्द्रियबोध कराने वाली नसों की संख्या समान होती है. चाहे वह बड़े स्तन हो या छोटे स्तन. फिर भौतिक विज्ञान के नियमों के आधार पर यह सिध्द कर दिया कि छोटे स्तन ज्यादा संवेदी होते है. सेक्सोलॉजिस्ट के अनुसार भौतिक विज्ञान के दबाव समीकरण P= F/A जहां P दबाव, F बल और A सतही क्षेत्र है. इस आधार पर जहां A अर्थात स्तन जितना छोटा होगा उतना ही ज्यादा P अर्थात उकसाने वाला दबाव मिलेगा. इस आधार पर छोटे स्तन ज्यादा आसानी व प्रभावी तरीके से उत्तेजित हो सकते है. ये ज्यादातर शोध 20वीं सदी में किये गए जब महिलाएं अपने फिगर के मद्देनजर बड़े स्तनों की ओर झुकाव रखती थी तथा इसके लिये सिलिकान ब्रेस्ट सहित प्लास्टिक सर्जरी तथा अन्य की ओर रुझान तेज होने लगा था तभी मोटे पैड वाले ब्रा भी चलन में आए. इन सबसे महिलाओं में नई बीमारियां व साइड इफेक्ट होने लगे. तब व्यापक स्तर पर स्तनों को लेकर जागरुकता अभियान भी चलाया गया.

मिथक 13- लिंग का टेढ़ापन बीमारी है.

सच्चाईः यह किशोरों से लेकर हर आयु वर्ग के बीच पाई जाने वाली भ्रांति है. जबकि इसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है. भारत में तो नीमहकीम और सेक्स चिकित्सा की दुकान चलाने वाले अपने विज्ञापनों में लिंग के टेढ़ेपन को बीमारी बताकर लोगों को ठगने का प्रयास करते हैं. जबकि लिंग का किसी एक दिशा में झुकाव सामान्य घटना है. एक चिकित्सकीय सर्वेक्षण के मुताबिक एक चौथाई लिंग किसी न किसी ओर (दाएं या बाएं) झुके होते है और कुछ लिंग उठाव के दौरान अधोमुखी झुके होते है. इसलिये लिंग का यह झुकाव जबतक कष्टकारक या दर्द का कारण न बन रहा हो तब तक लिंग के साथ कुछ भी असामान्य या गलत नहीं है. लिंग का यह झुकाव संभोग में कोई व्यवधान या परेशानी नहीं डालता है. कई लोगों का तो कहना है कि लिंग का अधोमुखी झुकाव प्रवेश के लिये ज्यादा बेहतर होता है. वहीं ज्यादातर लिंगों में बायीं ओर झुकाव होने का कारण है कि बायां वृषण दायें की अपेक्षा छोटा होता है. इसलिये आदमी जब अण्डरगारमेंट पहनता है तो अपने लिंग को बायीं ओर एडजस्ट करता है, क्योंकि इस ओर दाहिनी ओर की अपेक्षा पर्याप्त स्थान मिल जाता है. इसका जो चिकित्सकीय कारण है वह यह है कि लिंग के अंदर जो सॉफ्ट होती है वह संरचनागत स्थितियों की वजह से एक ओर खिंचती है जिससे लिंग एक ओर झुका रहता है. यह किसी लज्जा या बीमारी की बात नहीं होती है.
मिथक 14- एक बेहतर फीगर वाली महिला से बेहतर सेक्स संतुष्टि मिल सकती है.

सच्चाईः यह आम जनमानस में बैठे काफी प्रसिद्ध भ्रांति है. विशेषकर पुरुष वर्ग में तो यह धारणा काफी अंदर तक भरी है कि छरहरे और सुडौल बदन वाली महिलाएं ज्यादा बेहतरीन सेक्स पार्टनर साबित होती है. लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है. किसी भी पत्रिका या पोस्टर में सुन्दर सुडौल शरीर वाली महिला को देखकर आमतौर पर लोग यही सोचते हैं कि इस महिला के साथ संसर्ग पर बेहतर अनुभव मिलेगा. लेकिन अभी हाल ही में 35 से 55 साल की उम्र के बीच की महिलाओं पर किये गए अध्ययन से पता चला है कि स्त्री पुरुष के बीच के शारीरिक सुडौलता को लेकर बने संबंध काफी जटिल और उलझे हुए होते हैं. सामान्य तौर पर उदाहरण बताते हैं कि कमजोर शारीरिक अक्श का संबंध सेक्सुअल अभिलाषा और सेक्सुअल क्रिया में कमी या कटौती से होता है. लेकिन अध्ययन बताते हैं कि जब कमजोर शरीर की महिला संभोगरत होती है तो उसकी संतुष्टि और तृप्ति (satisfaction) का स्तर वास्तविकता में काफी उपर होता है. सेक्स क्रिया का यह अनुभव काफी पुराना है कि ऐसे कुछ लोग जो बाह्य दुनिया में अपने शरीर को लेकर काफी चौकन्ने तथा जागरुक होते है वे भी संभोग के दौरान अपने विश्वसनीय पार्टनर के साथ बिना किसी मान मर्यादा का ख्याल किये स्वाभाविक रुप से तथा काफी सहज अवस्था में आ जाते हैं. ठीक इसी तरह वह महिला जो अपने उम्र के दौरान बाह्य दुनिया के लिये शारीरिक सौंदर्य से मालामाल होती है वह भी बेडरूम में सेक्स के दौरान संतुष्टि को लेकर परेशान हो जाती है. इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि गदराए बदन वाली महिला बेहतर सेक्स संतुष्टि दे सकती है. चिकित्सा विज्ञान और सेक्सोलॉजिस्ट का भी यही मानना है कि सेक्स संतुष्टि व काम क्रिया का महिला के शारीरिक बनावट से कोई लेना देना नहीं होता है. यह सिर्फ मानव मस्तिष्क का एक फितूर मात्र है. सेक्स के लिये शारीरिक संरचना सामान्य लेकिन संतुष्टि महत्वपूर्ण मामला होता है. इसलिये महिला शारीरिक सौदर्य व त्वचा का ख्याल तो रखे लेकिन उनके लिये जरूरी है उनकी सेक्स लाइफ तंदुरुस्त हो. इसलिये बेडरूम में पूर्ण संतुष्टि के लिये लिये महिला की शारीरिक बनावट कोई जादुई पैमाना नहीं है. हां यह अलग है सुन्दर बनावट मानव को आकर्षित करके सेक्स के लिये उद्वेलित कर सकती है लेकिन संतुष्ट नहीं.

मिथक 15- कठोरता और तेजी पसंद होती है महिलाएं.

सच्चाईः इस आम धारणा के विपरीत महिलाएं बिरले (कभी-कभी) ही यह शिकायत करती हैं (असंतुष्टता प्रकट करती हैं) कि उनका पार्टनर पर्याप्त कठोर और तेज नहीं है. ऐसा होने पर भी उनका कहना होता है कि “उन्हें पसंद है कि वे अपने पार्टनर से ज्यादा करीबी जुड़ाव का अनुभव करें, इसके अलावा उन्हें पसंद हैं कि उनका पार्टनर उनके साथ ज्यादा कोमलता व धीमेपन के साथ सभ्य शारीरिक स्पर्शकरे” यह कोमलता भरी धीमेपन की शैली पुरुषों के लिये भी चरम आनंददायक होती है और दोनों को ‘बेहतर परफार्मेंस’ के दबाव से मुक्त रखती है. कामुकता के हर शारीरिक व मानसिक हिस्से में प्रत्येक महिला व्यक्तिगत व विशिष्ट तौर पर आनंद के मामले में विशेष रूप से काफी अंतर रखती है और यह अवसर के अनुरूप बदलता रहता है. और यही वह महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसके बारे में युगल को परस्पर बातचीत करनी चाहिये, न कि सुनी सुनाई बातों के अनुरूप जबरन बेहतर परफार्मेन्स के लिये प्रयासरत रहना चाहिये. सन् 1999, 2001, 2004 व 2005 में एक कंडोम बनाने वाली कंपनी ने एशिया और यूरोप में इस मामले पर एक मनोवैज्ञानिक व सेक्सुअल सर्वे कराया जिसका परिणाम काफी चौकाने वाला रहा. इसके अनुसार एशिया की 70 फीसदी महिलाएं धीमी और शांत शुरुआत वाला सेक्स पसंद करती हैं तथा चरमोत्कर्ष के कुछ पहले ही तेजी व कठोरता पसंद की जाती है वही 20 फीसदी महिलाएं शुरुआती चरण से ही कठोरता व तेजी (जंगली अंदाज) पसंद करती है. 10 फीसदी महिलाओं इस मामले में कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं रहीं वही यूरोप में अविश्वसनीय तरीके से 80 फीसदी महिलाएं शालीन , सभ्य व धीमी शुरुआत पसंद होती है वही 12 फीसदी महिलाएं वाइल्ड सेक्स को पसंद करती हैं तथा 8 फीसदी का इस मामले से कोई लेना देना नहीं रहा . इस आधार पर यह कहना कि महिलाएं कठोरता व तेजी पसंद होती है सिर्फ एक मिथक है जिसका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है.

मिथक 16- महिलाओं में उत्तेजना पुरुषों की अपेक्षा कम होती है.

सच्चाईः यह कथन सत्यता से कोसों दूर है. दरअसल सामाजिक व शारीरिक संरचना की वजह से पुरातन काल से लोग इस मिथक को सत्य मानते चले आ रहे हैं. दरअसल भारत व इस जैसे ज्यादातर देशों में महिलाओं को लेकर सामाजिक परिवेश इतना कठोर होता है कि बचपन से ही महिला वर्ग को शर्म और झिझक का वह पर्दा लाद दिया जाता है कि वह खुल कर सेक्स या इन जैसे विषयों पर सामने नहीं आ सकती है. इसलिये महिला उत्तेजना जैसे नितांत निजी और अंतरंग मामलों को वह सामने नहीं ला पाती जिस वजह से उन्हें पुरुषों की अपेक्षा कमतर आंका जाता है जबकि हकीकत ठीक इसके विपरीत है. महिलाओं की उत्तेजना का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महिलाएं ही गुणात्मक रति-निष्पत्ति (multiple orgasms) में सक्षम होती है. दूसरा महिला-पुरुष की शारीरिक संरचना भी कुछ इस तरह होती है कि महिलाएं उत्तेजित होने में थोड़ा समय लेती है लेकिन उनकी उत्तेजना का आवेग और समय ज्यादा होता है. इसके अलावा महिलाओं में उत्तेजना को प्राप्त करने वाले अंग पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा होते है. शरीर विज्ञान के अनुसार महिलाओं के भगशिश्न में जितनी ज्यादा संख्या में संवेदनशील ग्रंथियां होती है उतनी पुरुष के शिश्न के अग्र भाग में नहीं होती है. यदि होती भी हैं तो भगशिश्न पुरुष शिश्न के अग्रभाग की अपेक्षा काफी छोटा होने की वजह से छोटे से स्थान में ही संवेदनशीलता ज्यादा होने से महिलाओं को उत्तेजना तुरंत मिल जाती है. इसके अलावा सेक्स क्रिया के दौरान महिलाओं की सेक्स सिसकारियां उनके शरीर की एंठन आदि शारीरिक हरकतें यह बताती हैं कि महिलाएं उत्तेजना के मामले में पुरुषों कम तो नहीं लेकिन कई मामलों में पुरुषों से ज्यादा ही होती हैं.

मिथक 17- उम्र ढलने के बाद सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है.
सच्चाईः औसत रूप से हर युवा द्वारा किसी प्रौढ़ या वृद्ध को देखकर यही कहा जाता है कि उम्र के साथ सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है लेकिन यह सच्चाई के विपरीत है. यह अलग बात है उम्र के अनुरूप सेक्स की अभिलाषा , सोच और क्रियाकलाप प्रभावित जरूर होते हैं लेकिन इसका यह कतई अर्थ नहीं है कि उसकी सेक्स की दौड़ खत्म हो गई है. चिकित्साजगत भी मानता है कि उम्र के ढलान पर भी यह पूरी तरह संभव है कि व्यक्ति सेक्स क्रिया को नख से शिख तक पूरा करते हुए पूरी तरह संतुष्ट कर सकता है और हो सकता है. व्यक्ति जिस तरह से जवानी में जितना आनंद सेक्स का उठा सकता है उतना ही उम्र की ढलान में उठा सकता है. यह अलग है कुछ जगहों पर कुछ चिकित्सकीय समस्या हो सकती है जिसे परामर्श द्वारा ठीक किया जा सकता है. यह एक मानसिक कारक है कि उम्र की ढलान के साथ सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है. हालांकि इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि जवानी के अनुरूप सेक्स की गति व क्षमता उम्र के ढलाव में भी होगी लेकिन यह नहीं कह सकते कि सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है. इसके अलावा कई सेक्स पोजीशन इस अवस्था में नहीं की जा सकती है वह शारीरिक अवस्था के चलते न कि इसे सेक्स अंगों की कमजोरी कहेंगे. महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद कई मनोवैज्ञानिक व सामाजिक परिवर्तन आते हैं इसके अलावा कई हार्मोनल परिवर्तन भी होते हैं. जिस वजह से योनि मार्ग की चिकनाहट कम हो जाती है व बाह्य दीवार पतली हो जाती है. इससे सेक्स क्रिया हल्के सूखे पन की वजह से पीड़ादायी हो जाती है. जिसे चिकनाहट वाले द्रव्य द्वारा ठीक किया जा सकता है. इसी के साथ इस अवस्था में पुरुषों में लिंग तनाव काफी समय में होता है. चरमोत्कर्ष देर से प्राप्त होता है . स्खलन भी काफी कम होता है. लेकिन यह नहीं कह सकते कि सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है. कई बार तो बुड्‍ढे भी बेहतरीन सेक्स ज्ञान की वजह से जवानों को मात दे देते हैं. चिकित्सा विज्ञान ने भी घोषित कर दिया है कि सेक्स 80 व उससे उपर की उम्र तक किया जा सकता है.




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3 comments:

Anonymous said...

धन्यवाद, काफी ज्ञानवर्धक जानकारी दी आपने। अब तक हम भी यही समझते थे कि महिला भी स्खलित होती है।

Anonymous said...

आपकी लिंग के टेढे़पन वाली बात सही प्रतीत होती है, मेरा लिंग भी बचपन में टेढ़ा था लेकिन समय के साथ साथ अपने आप सीधा हो गया।

Unknown said...

kripaya mujhe bataye, sex k dauran mujhe pesab ki echa kyu ho jati hai. mai bahut paresan hu apni es aadat ko le k.