यहां हम अक्सर उठने वाले सवालों के जवाब देने का प्रयास कर रहें हैं . यदि आपके भी कुछ सवाल हों तो भेज सकते हैं sharmarama2000@yahoo.com पर . हम नाम प्रकाशित नहीं करेंगे.
♀Q1- गर्भ निरोधक गोली और गर्भ निरोधक शॉट में क्या अंतर हैं?
† Ä- गर्भधारण से बचने के लिये गर्भ निरोधक गोलियों को नियमित तौर पर प्रतिदिन लेना पड़ता है. गोलियां मुख्यतः आपके शारीरिक सिस्टम से २४ घंटे में बाहर आ जाती हैं और इसमें यह महत्वपूर्ण रहता है कि इसे नियमित तौर पर प्रतिदिन नियत समय पर खाना होता है. जबकि गर्भ निरोधक शॉट हर तीन महीने में दिया जाता है. यह हार्मोनल इन्जेक्शन होता है जो बांह या कूल्हों में लगाया जाता है. ज्यादातर महिलाएं जो गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं उनके पीरियड्स का चक्र 28 दिनों का हो जाता है. वहीं वे महिलाएं जो शॉट लेती है उनके पीरियड़्स तब तक के लिये रुक जाते हैं जब तक के लिये शॉट लिया गया होता है. गर्भनिरोधक गोलियां और गर्भनिरोधक शॉट दोनों के प्रयोग से हल्का वजन (1.5 से 2.5 किलो )बढ़ता है. यहां यह महत्वपूर्ण है कि आपके चिकित्सक जांच उपरांत किस गर्भ निरोधक की सलाह देते हैं. इन दोनों के प्रयोग के पहले आप चिकित्सक से तब तक प्रश्न पूछे जब तक कि आप संतुष्ट नहीं हो जाते . इनके प्रयोग के बाद भी यह ध्यान रखें कि यदि कोई संक्रमण है तो कंडोम का प्रयोग अवश्य करें .
♂Q2 - स्खलन के बाद शरीर के बाहर शुक्राणु की आयु कितनी होती है?
† Ä- शुक्राणु जैसे ही हवा के संपर्क में, कपड़ों के संपर्क में , बिस्तर या फिर टॉयलेट सीट या किसी अन्य बाह्य शारीरिक अंगों के संपर्क में आते हैं तो अपनी गमन क्षमता (तैरने की शक्ति) खो देते हैं. यदि एक बार वीर्य सूख गया तो शुक्राणु मृत हो जाते हैं.
यदि शुक्राणु महिला के पास ही हैं लेकिन उसे कोई निषेचन द्रव्य (fertile fluid) नहीं मिलता तो वे कुछ ही घंटे में मृत हो जाएंगे फिर वे चाहे शरीर के अंदर हों या फिर बाहर .यदि शुक्राणु को महिला में निषेचन द्रव्य मिल जाता है तो वे वहां एक सप्ताह तक जीवित रहकर निषेचन के लिये अण्डाणु का इंतजार करते हैं. इस आधार पर यह कह सकते हैं कि शरीर से बाहर निकलने पर शुक्राणु कुछ घंटे ही जीवित रह सकते हैं.
♀♂Q3 - पुरोनितंब रोएं (pubic hair) शेव करने चाहिए या नहीं?
† Ä- गुप्तांगों की साफ-सफाई के मामले में इनके पास के रोएं साफ करना या शेव करना महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. पुरुषों के मामले में इन रोमों की शेविंग उतनी महत्वपूर्ण नहीं मानी जाती जितनी की महिलाओं की . क्योंकि महिलाओं की शेविंग सेक्स क्रिया में काफी सहभागिता निभाती है. लेकिन ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्नों में महिलाओं के प्रश्न होते हैं कि शेविंग के बाद रोम क्या ज्यादा घने होते हैं या सेविंग के बाद क्या होता है तो इसका जवाब यह है कि जब तक इन रोमों की शेविंग नहीं होती तब तक यह काफी कोमल होते हैं लेकिन जैसे ही शेविंग की जाती है तो इनमें कड़ा और भारीपन आने लगता है साथ ही घनत्व भी बढ़ता है. तथा शेविंग के बाद जब यह दोबारा निकलते हैं तो शुरुआती दौर में काफी खुजलाहट भरे और अनकम्पर्टेबल होते है. इसलिये बेहतर है रेजर की अपेक्षा कोई बेहतर हेयर रिमूविंग क्रीम का उपयोग करें जल्दी जल्दी हेयर रिमूविंग से बचे . रेजर से शेविंग के बाद निकलने वाले रोम काफी कठोर होते है.
♀Q4 - स्तनों का अलग-अलग आकार कोई समस्या तो नहीं ?
† Ä- यह कोई समस्या या बीमारी नहीं हैं एक ही महिला को दोनों स्तनों का आकार छोटा बड़ा होना सामान्य और अक्सर पायी जाने वाली बात होती है. स्तनों का ही आकार ही नहीं बल्कि शरीर के दाएं और बायें कई अंगों में अन्तर होता है . इसलिये इसे लेकर तनाव ग्रस्त न हों.
♀Q5 - स्तन कितने बढ़ सकते हैं और इनका सामान्य आकार क्या है?
† Ä- इस सवाल का कोई ‘वास्तविक’ जवाब नहीं दे सकता है. जिस तरह व्यक्ति अलग-अलग आकार में आता है कोई लंबा होता है तो कोई छोटा ठीक इसी तरह से कुछ लड़कियों के भारी कुछ के मध्यम तो कुछ के छोटे स्तन होते हैं. इसी मसले को लेकर कुछ लड़कियां इस लिये परेशान रहती हैं क्योंकि वे सोचती हैं कि उनके स्तन काफी छोटे हैं.
दरअसल स्तनों के आकार का निर्धारण फैशन के नजरिये से किया जाता है. लेकिन चिकित्सा विज्ञान के नजरिये से स्तनों की कोई आदर्श साइज निर्धारित नहीं हैं. वहीं दूसरी ओर स्तनों के आकार का शिशु के पालन पोषण व स्तन कैंसर से भी कोई लेना देना नहीं है.स्तनों का आकार मनचाहे तौर पर बढ़ाने का इकलौता तरीका सिर्फ सर्जिकल है. लेकिन इसके कई साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं . वहीं गर्भावस्था व तरुणाई की दहलीज पर भी स्तनों के आकार में वृद्धि होती है.इसके अलावा बेहतर आहार भी स्तनों के विकास में कुछ सहायक हो सकता है.
♀Q6 - यदि मां-बहन के स्तन छोटे हैं तो मेरे भी स्तन छोटे होंगे?
† Ä- स्तनों के आकार को लेकर कुछ अनुवांशिक घटक भी होते हैं. लेकिन कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञ अपना तर्क देते हैं कि एक ही परिवार में बहन, मां और बेटी के स्तनों का अलग-अलग आकार होना कोई असमान्य बात नहीं है. लेकिन ज्यादातर पाया गया है कि परिवार में ज्यादा तर स्तनों का आकार समतुल्य ही होता है लेकिन इससे भी इनकार नहीं है कि स्तनों का आकार अलग-अलग भी हो सकता है.
♂Q7 - कुछ महीनों से वीर्य पतला हो गया है तथा पहले जब वीर्य को उंगलियों के बीच रखकर वापस उंगली अलग करता था तो ज्यादा चिपचिपा पन था लेकिन अब नहीं है. क्या यह बीमारी है?
† Ä- नहीं और संभवतः नहीं क्योंकि वीर्य की बनावट व दिखावट प्राकृतिक तौर पर महीने, दिन व कई बार तो एक वीर्यपात से दूसरे वीर्यपात के बीच बदलती रहती हैं. इसकी कई वजहें व डाइट भी शामिल है. इसलिये यह बहुत चिन्ता का विषय नहीं है. हां जब पतलापन काफी ज्यादा व लगातार कई महीने तक यही स्थिति बनी रहे तो डिग्री होल्डर योग्य चिकित्सक से जांच करा सकते हैं.
♂Q8 - जैसा बताया जाता है कि वीर्य में प्रोटीन होता है तो वीर्यपात के बाद क्या शरीर की मसल्स कमजोर हो जाती हैं?
† Ä- नहीं वीर्यपात से कोई कमजोरी नहीं आती. यह सही है कि वीर्य में प्रोटीन होता है लेकिन उसमें प्रोटीन की मात्रा नगण्य होती है. यदि तुलनात्मक रूप से भी देखे तो जितना प्रोटीन शरीर सामान्य डाइट से ग्रहण करता है उस तुलना में भी वीर्यपात के साथ निकले प्रोटीन को नगण्य माना जा सकता है . फिर भी यदि शंका न दूर हो तो आप चाहे तो एक या दो दाना मूमफल्ली खा सकते हैं इससे आपके शरीर में वीर्यपात के बाहर निकले प्रोटीन का दोगुना प्रोटीन शरीर को मिल जाएगा. इसलिये यह स्वीकार कर लें कि वीर्यपात से शरीर को सुगठित बनाने की क्षमता कम जाती है.
♂Q 9- योनि में कसाव की कमी आ गई है कैसे दूर करें?
† Ä- श्रोणितल की पेशियों में कमजोरी आने से योनि में कसाव कम हो जाता है और ढीलापनमहसूस होने लगता है. योनि की पेशियां चुस्त दुरुस्त बनाने से योनि का ढीलापन दूर किया जा सकता है और चरम योनसुख की आनंदानुभूति जागृत की जा सकती है. इसके लिये एक साधारण सा व्यायाम है जिससे प्यूबोकाक्सीजियस पेशी मजबूत होती जाती है. जिससे योनि का ढ़ीलापन दूर होता जाता है.इस व्यायाम को कहीं भी , कभी भी और किसी भी मुद्रा में किया जा सकता है. इसके लिये करना यह होता है कि मूत्र प्रवाह रोकने वाली पेशी को अंदर की ओर ठीक वैसे भींचे जैसे कि मूत्र के वेग को रोक रही हों. अगले तीन सेकेण्ड तक प्यूबोकाक्सीजियस पेशी को इसी प्रकार अंदर ही अंदर भींचे रखें. फिर अगले 3 सेकेण्ड के लिये शरीर को ढीला छोड़ दें. अब एक बार फिर प्यूबोकाक्सीजियस पेशी को 3 सेकेण्ड तक अंदर भींचे. फिर 3 सेकेण्ड के लिये पेशी को ढीला छोड़ दें. यह व्यायाम 10-10 बार सुबह शाम करें और फिर बढ़ाते हुए 25-25बार सुबह और शाम करें. अभ्यास हो जाने पर तेज गति से करने लगें.इस व्यायाम से 2-3 माह में ही आप अपने भीतर बड़ा परिवर्तन महसूस करने लगेंगी. इसे करते रहने से आपके श्रोणिगुहा के अंगों को समुचित आवलंबन मिलता रहेगा.
Monday, October 22, 2007
आपके सवाल हमारे जवाब
Thursday, October 04, 2007
सेक्स करें स्वस्थ रहें
सेक्स सिर्फ रति निष्पत्ति से मिलने वाले वाले आनंद का माध्यम मात्र नहीं हैं वरन सेक्स बेहतर स्वास्थ्य का कारण भी बन सकता है. चिकित्सकीय अनुसंधान से भी यह साबित हो चुका है कि बेहतर स्वास्थ्य के लिये सेक्स महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. सेक्स से जहां शारीरिक स्फूर्ति बनी रहती है बल्कि कई बीमारियों को भी ठीक करने में सहायक है. इसके अलावा मानसिक तनाव दूर करने का भी बेहतर साधन है सेक्स . कुल मिलाकर सेक्स स्वास्थ्य के लिये काफी लाभदायक है.
3.आयु बढ़ती हैः नियमित सेक्स करने वाले लंबी आयु के मालिक होते है ऐसा कई परीक्षणों और सर्वे से सिद्ध हो चुका है. जो लोग नियमित तौर से संभोग करते हैं और जिनके मन में सेक्स को लेकर किसी तरह की शंका नहीं होती और सेक्स का अंदाज बेफ्रिक होता है वे उन लोगों की अपेक्षा ज्यादा लंबी आयु पाते हैं जो महीने में एक बार सेक्स करते हैं.
7.शक्तिवर्धक है सेक्स: सेक्स उत्तेजना के दौरान ताजा खून सारे शरीर में तेजी से दौड़ने लगता है. यहां तक कि यह प्रवाह दिमाग में भी होता है. इससे उस क्षेत्र में रक्त संचार बढ़ जाता है. इस वजह से धमनियां मजबूत होती हैं साथ ही मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ने से वह ज्यादा कठिन काम कर सकता है. रक्त संचार में वृद्धि विभिन्न शारीरिक दुर्बलताओं को दूर करती है.
Tuesday, October 02, 2007
गर्भावस्था के दौरान सेक्स
इस विषय पर काफी जटिलताएं भरी हुई हैं. गर्भधारण के साथ ही तरह-तरह के मिथक सेक्स को लेकर बताएं जाने लगते हैं वहीं ज्यादातर पुराने लोग गर्भावस्था के दौरान सेक्स न करने की सलाह देते नजर आने लगते हैं . गर्भावस्था के दौरान सेक्स के बारे में कम बाते की जाती हैं क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक मानसिकता में घुला हुआ है कि गर्भावस्था के दौरान सेक्स नहीं करना चाहिए. लेकिन वास्तविकता में ऐसा कुछ है नहीं. यह अलग है कि इस दौरान कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए. इसलिये जरूरी है इस मिथक की वास्तविकता को जानकर गर्भावस्था के दौरान भी अपनी सेक्स लाइफ आनंददायी बना सकते हैं.
यहां यह बात सबसे पहले समझ लेनी चाहिये कि सेक्स और सेक्सुअलिटी दोनों में काफी अन्तर है. और जब तक संतुष्टिदायक सेक्स नहीं किया जाता है तब तक सेक्सुअलिटी में होने वाली बढ़ोत्तरी परेशान करती रहती है. यह स्थितियां गर्भावस्था के दौरान भी होती है. इसलिये जरूरी है कि गर्भावस्था के दौरान भी सेक्स किया जाए लेकिन गर्भ में पल रहे शिशु की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी महत्वपूर्ण होती है. इस अवस्था में सेक्स के लिये कुछ बाते हैं जिनका ध्यान रखना जरूरी है-
1\. सेक्स के दौरान ज्यादा से ज्यादा कोशिश होनी चाहिये कि पेट पर दबाव कम से कम हो.
2\. इस दौरान गहराई तक प्रवेश वाली सेक्स पोजीशनों से बचना चाहिये साथ ही वह पोजीशन अपनाना चाहिये जो गर्भवती के लिये आरामदायक हो.
3\. सेक्स या सेक्स पूर्व क्रीड़ा के दौरान योनि में पानी , हवा या किसी भी बाह्य वस्तु के प्रवेश से बचना चाहिये. इस अवस्था में योनि को नल धावन से बचाना चाहिये.
4\. इस अवस्था में महिला को सेक्स के दौरान हमेशा ‘ना’ कहने का अधिकार है.
5\. यदि समय पूर्व प्रसव की संभावना हो तो कामोन्माद व सेक्स से बचना चाहिये. इस दौरान निप्पल की उत्तेजना से बचना चाहिये.
6\. यदि उल्बीय (amniotic) द्रव रिस रहा हो तो सेक्स नहीं करना चाहिये.
7\. यदि किसी भी तरीके से महिला की इच्छा सेक्स के लिये नहीं है तो सेक्स नहीं करना चाहिये.
8\. यदि इस दौरान मुख मैथुन कर रहे हों तो अपने पार्टनर को यह पहले बता दें कि वह योनि में फूंक न मारे. क्योंकि योनि में हवा जाने से आगे की रक्त वाहिनियों के रक्त में हवा का बुलबुला बना कर उन्हें बाधित कर सकती है. जो मां और होने बाले बच्चे दोनों के लिये हानिकारक हो सकता है.
9\. किसी भी तरह की संक्रामित बीमारी होने पर सेक्स बिल्कुल नहीं करना चाहिये.
10\. यदि प्लेसेंटा नीचे है तो भी सेक्स नहीं करना चाहिये क्योंकि यह गर्भाशय के मुंह द्वारा ढंका होता है और नीचे होने पर हल्का सा भी धक्का प्लेसेंटा को क्षतिग्रस्त कर सकता है, इससे प्लेसेंटा से रक्तस्राव हो सकता है.
किस महीने तक सुरक्षित है सेक्स करना
गर्भावस्था के दौरान प्रसव के कुछ दिनों पूर्व तक सेक्स किया जा सकता है. गर्भावस्था के दौरान तभी सेक्स नहीं कर सकते जब जब चिकित्सक ने किसी विशेष बीमारी, शारीरिक कमी या अन्य कारणों से सेक्स के लिये मना किया हो. यह अलग बात है कि गर्भावस्था के जैसे-जैसे दिन गुजरते जाते हैं सेक्स पोजीशन में बदलाव करते जाना चाहिये. वैसे गर्भावस्था के द्वितीय चरण अर्थात 14 से 28 वें सप्ताह तक सेक्स करना सबसे बेहतर होता है क्योंकि इस दौरान स्तनों में भराव आने से वे उत्तेजन दिखने लगते हैं तथा उत्तेजना का संचार ज्यादा होता है, इस दौरान योनि में स्निग्धता पूर्व की अपेक्षा ज्यादा आ जाती है तथा श्रोणि क्षेत्र (pelvic region) में रक्त संचार ज्यादा होने से कसाव बेहतर रहता है. इसके विपरीत गर्भावस्था के प्रथम चरण अर्थात पहले 14 हफ्ते में महिलाएं सेक्स को लेकर कुछ भयभीत रहती है. क्योंकि इस दौरान उन्हें होने वाली थकान, उल्टी, मितलीआदि सेक्स इच्छा से दूर करती हैं इसी तरह तृतीय चरण मेंशरीर के भारीपन से होने वाली थकान, शारीरिक पीड़ा व पेट के खिंचाव व योनि क्षेत्र पर पडने वाले दबाव के दर्द से वे सेक्स से बचना चाहती है. लेकिन यदि महिलाओं को गर्भावस्था व सेक्स की जागरुकता हो तो इन अवस्थाओं को सामान्य तरीके से लेंगी और सेक्स से उनकी विरक्ति कम होती जाएगी. यह ध्यान देने योग्य है अंतिम चरण में सेक्स क्रिया काफी धीमे गति व संतुलित तरीके से करनी चाहिये.
1. स्पून पोजीशन : यह पोजीशन काफी आरामदायक और घनिष्टता या निकटता प्रदान करने वाली होती है. इसमें दोनों पार्टनर करवट के बल c की आकृति बनाते हुए एक ही दिशा में मुंह करके लेट जाएं. फिर पुरुष पीछे से प्रवेश क्रिया प्रारंभ करे. इस पोजीशन में महिला काफी आराम महसूस करती है तथा धक्कों को अपने तरीके से नियंत्रित कर सकती है. इस क्रिया में गर्भ को आधार मिला होता है जिससे महिला को अतिरिक्त वजन नहीं झेलना पड़ता. (देखेः चमचा पोजीशन)
6. बिस्तर का किनारा : यह पोजीशन काफी सुरक्षात्मक पोजीशन है लेकिन गर्भावस्था के तीसरे चरण में इसे नहीं करना चाहिए इससे तनाव होने से गर्भ को दिक्कत हो सकती है. इस पोजीशन के लिए महिला बिस्तर की कोर पर लेट जाती है इस दौरान उसके पैर जमीन पर होते है फिर पुरुष खड़े होकर या बिस्तर से हाथों को सहारा देते हुए झुककर प्रवेश कराता है. यह पोजीशन तीव्र धक्के की अनुमति देती है इस लिये सेक्स से पहले बता दें कि कितना धक्का आप सह सकती है.
7. महिला नीचे हो : यह पोजीशन हालांकि गर्भावस्था के लिये बेहतर नहीं मानी जाती है लेकिन कुछ महिलाएं इसे पसंद करती है. इस पोजीशन को प्रथम चरण तक ही इस्तेमाल करना चाहिये. चौथे माह के बाद इस पोजीशन को नहीं करना चाहिए. चौथे माह के बाद इस पोजीशन में असावधानी होने पर गर्भाशय का वजन गर्भाशय व पैर में पहुंचने वाली रक्त वाहिनियों को बाधित कर सकता है. इस पोजीशन के लिये महिला मिशनरी पोजीशन की तरह लेट जाती है तथा घुटनों पैर उठा लेती है ताकि पुरुष प्रवेश के दौरान जब नीचे आए तो गर्भ पर वजन न पड़े साथ ही धक्के नियंत्रित रह सकें. पुरुष भी महिला के उपर आकर घुटनों के उपर के भाग को सीधा रखते हुए प्रवेश करता है.
पहला महीना: शारीरिक मासिक स्त्राव आना रुक जाता है. थकावट महसूस होना और हर समय नींद आना। जल्दी-जल्दी यूरिन का प्रेशर होना. जी मिचलाना, उल्टी आना या उल्टी की फीलिंग होना. स्लाइवा ज्यादा बनने लगता है. छाती में जलन, बदहजमी, गैस बनना. भोजन के प्रति अरुचि या किसी चीज को खाने की तीव्र इच्छा होना. स्तनों में परिवर्तन, (जिन महिलाओं में माहवारी से पहले स्तनों में परिवर्तन होता है, उनके साथ ऐसा ज्यादा होता है) भारीपन, फूलना, जलन महसूस होना. अरीअॅला में कालापन बढ़ना (निप्पल के आसपास का हिस्सा). स्तनों में रक्त प्रवाह बढ़ने से त्वचा के अंदर हल्की नीली रेखाओं का जाल-सा बन जाता है. भावनात्मक मासिक धर्म से पहले के लक्षणों की तरह अस्थिरता, चिड़चिड़ापन, रोने का मन होना, अक्सर मूड का बदलते रहना. आशंकाओं से घिरना, भयभीत रहना, प्रसन्नता, उमंग से भरना-इनमें से कोई भी स्थिति हो सकती है.