Wednesday, January 03, 2007

बच्चे से सेक्स के बारे में चर्चा


बच्चों द्वारा उठाए गए सेक्स संबंधी सवाल या चर्चा अभिभावकों के लिये काफी कठिन विषय बन जाता है. इस स्थिति में उचित माहौल में बच्चों की जिज्ञासाओं का जवाब देना उनके स्वस्थ व्यवहार और विकास में सहायक होता है. ऐसे में अभिभावकों को बच्चों के सामने अच्छे उदाहरण रखने चाहिये.
ऐसे अभिभावक जो अपने बच्चों की जिज्ञासाओं पर चर्चा करने से बचते हैं वे अपने बच्चे को एक तरह से क्षति पहुंचाते हैं या यह कह सकते हैं कि वे उसे गलत राह की ओर उन्मुख करते हैं. ऐसे में बच्चे के मन में गलत धारणा बनती हैजो आगे जाकर उसकी जिन्दगी में गलत प्रभाव डाल सकती है.कई बार बच्चे अभिभावकों से जानकारी न मिलने पर अन्यत्र से जानकारी लेने का प्रयास करते हैं और इन परिस्थितियों में उसे जो जानकारी मिलती है या तो अधूरी होती है या फिर गलत होती है.
छोटे बच्चे से सेक्स चर्चा
इन बच्चों से सेक्स चर्चा उनके स्वीकार्य स्तर तक ही करें. अभिभावक इस बात का खास ख्याल रखे कि बच्चे की परिपक्वता का स्तर क्या है. भाषा साधारण और वाक्य छोटे ऱखें. यहां महत्वपूर्ण यह है कि जो भी चर्चा करनी है वह सेक्स पर करनी है न कि संभोग या सहवास पर. परन्तु बच्चा यदि बड़ा है तो शरीर रचना और विकसित हो रहे अंगों आदि पर चर्चा की जा सकती है. बच्चा सेक्स की शुरूआत को लेकर कम उम्र में काफी जिज्ञासु रहता है. देखने में आया है जो बच्चे अपने माता पिता से इन विषयों में चर्चा करते हैं वे काफी सहज रहते हैंसाथ ही वे अपनी अन्य समस्याओं के समाधान के लिए भी माता पिता के काफी निकट आ जाते हैं. जो बाद में उनके मार्गदर्शन में सहायक होता है. जब बच्चे के साथ सेक्स पर चर्चा कर रहें हों तो अभिभावक यह जताना न भूले कि यह एक महत्वपूर्ण विषय है जो शांत और सच्चाई का विषय है. बच्चों की नई बातों में ग्राह्यता और जिज्ञासा काफी अधिक होती है ऐसे में यदि अभिभावक उनके प्रश्नों को लेकर असहज होते हैं तो उनकी जिज्ञासा और बढ़ती हैतब या तो वह मन में यह धारणा बना लेगा कि सेक्स गलत या बुरी चीज है या रोक या अवरोध का विषय है.
ज्यादातर अभिभावक यह सोचते हैं कि इस विषय की शुरुआत करना काफी कठिन है तो ऐसे में वे रोजमर्रा की घटना, अवसर आदि को लेकर सेक्स पर चर्चा कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर यदि बच्चा बड़ा है तो उसे कपड़े बदलते वक्त उसे उसके गुप्तांगों सहित शरीर के सभी अंगो(सही नामों के साथ) की जानकारी दी जा सकती है. यदि बच्चा किसी गर्भवती महिला को देखता है और उसके बढ़े हुए पेट के बारे में जानकारी चाहता है तो अभिभावक इस अवसर को प्रसव की चर्चा शुरू करने का उचित अवसर के रुप में प्रयोग कर सकते हैं. बच्चा जब तरुणाई में प्रवेश कर रहा हो तो ऐसे में अभिभावको को ध्यान देना चाहिए कि उनके बच्चे में कुछ परिवर्तन (आवाज बदलना, स्तनों में विकासआदि ) हो रहे हैं इस अवसर पर उसे बताना चाहिए कि तु्म्हारी शरीर संरचना यौवनावस्था की ओर बढ़ रही हैऔर इस दौरान यौवनावस्था के बारे में बताना चाहिए. इस तरह हर दिन रोजमर्रा में सैकड़ो ऐसे अवसर आते हैं जिन्हे सेक्स चर्चा का विषय बनाया जा सकता है. मसलन यदि बच्चा छोटा है तो उसे पशु पक्षियों के संबंधो के आधार पर सेक्स की जानकारी दी जा सकती है.
अंगो के सही नाम बतायें
शुरुआत में ही अभिभावकों को बच्चों को अंगों के सही नाम बताना चाहिए. चाहे वह शरीर की सामान्य संरचना हो या गुप्तांग. जिस तरह अभिभावक यह बताते हैं कि यह नाक आंख कान आदि है ठीक उसी तरह उसे यह बताना चाहिये कि यह लिंग, योनि, स्तन है. इस तरह शुरुआती दौर में ही बच्चे को जानकारी मिल जाने पर उसे संदेह नहीं होगा और ना ही गलत जानकारी मिलेगी.
प्रश्नों की सीधे और ईमानदारी से जवाब दे
सेक्स को लेकर बच्चा जब कोई जानकारी चाहता है तो सीधे और ईमानदारी से जवाब देना चाहिये क्योंकि इस दौरान यदि उसे संदेह हो गया तो वह सेक्स के बारे में गलत भ्राति बना सकता है या सेक्स के विकृत रूप की कल्पनाकर सकता है. साथ ही उसके द्वारा पूछे गए सवाल को नजरअंदाज न करें न ही उसकी जिज्ञासाओं पर उसकी जिज्ञासाओं पर उसे डांटें इससे बालमन में सेक्स को लेकर गलत धारणा बन जाएगी जिसका आगे जाकर वह गलत प्रयोग कर सकता है.
स्कूल पूर्व उम्र के बच्चों से सेक्स चर्चा
इस उम्र में बच्चे थोड़ा ज्यादा जागरुक होते हैंऔर उनका सामना कई लोगों से होता है. इस वजह से उनकी जिज्ञासाएं कुछ ज्यादा होती है. इस समय वे अपनी शरीर संरचनाको लेकर भी सजग होने लगते है. तब उनके मन में विपरीत लिंग और उसके शरीर विन्यास सहित कई अन्य बातों को लेकर जिज्ञासाएं बलवती होती है.
अंगो और उनकी निजता के बारे में बताएं
बड़े बच्चों में अपने अंगो को लेकर उत्सुकता कुछ ज्यादा ही रहती है. कई बार सामान्य तौर पर वे अपने गुप्तांगों को हाथ लगाने लगते हैं. उनके इस सामान्य व्यवहार पर नाराज होने की बजाय उन्हे पर्याप्त जानकारी दें साथ ही उस अंग की निजता या प्राइवेसी की जानकारी दें ताकि वह दोबारा ऐसी हरकत न करें.
इस उम्र में विपरीत लिंग को लेकर भी काफी जिज्ञासा होती है. ऐसे में उसे बताना चाहिए कि लड़के में क्या लक्षण होते हैं तो लड़कियों की शारीरिक संरचना थोड़ी अलग होती है.
प्राथमिक स्कूलवय उम्र के बच्चों से सेक्स चर्चा
जैसे बच्चा बड़ा होता है उसका दिमाग और खुलता जाता है उसकी सेक्स को लेकर जिज्ञासा कुछ ज्यादा ही होती है . उसकी सोच और समझ का नजरिया भी बदल चुका होता है.
इस उम्र में अभिभावक उसे आसानी से बता सकते हैं कि बच्चा पेट में कैसे बड़ा होता है. मां के पेट में कैसे पहुंचता है निषेचन क्या होता है. क्या होता है जब अण्डाणु और शुक्राणु आपस में मिलते हैं. इन बातों को समझाने में अभिभावक को यदि दिक्कत हो रही हो तो प्रकृति (पशु पक्षी पेड़ पौधे) का सहारा ले सकते हैं. धीरे धीरे उसे मानव में समेंटें.
बालिकाओं को जरूरत होती है कि उनकी माता द्वारा उसे उसके मासिक धर्म के पहले ऋतुस्त्रावके बारे में जानकारी दे दें. जो कि अक्सर दस या ग्यारह साल की उम्र से शुरू होता है. यह किसी नवकिशोरी के लिये पहला अनुभव भयभीत करने वाला होता हैकि यह रक्त स्त्राव क्या है और क्यों हो रहा है. कई बार बालक भी ऋतुस्त्राव के बारे में जानने को उत्सुक होते है. ठीक इसी तरह बालकों को भी वीर्यपात की जानकारी दी जानी चाहिये तथा उन्हे बताना चाहिये यह एक प्रकृति प्रदत्त घटना है.
पूर्ण तरुण (Adolescents) से सेक्स चर्चा
इस उम्र में चर्चा करना वास्तव में थोड़ा असहज होता है. लेकिन यदि पूर्व में इन जैसे विषयों पर बातचीत हो चुकी हो तो मामला सहज होता है.
यह न सोचे कि खुद समझ जाएगाः इस उम्र में अभिभावक यह सोचते हैं कि बच्चा खुद ही समझ जाएगा लेकिन इस उम्र में वह सेक्स के बारे में कुछ ज्यादा ही जानना चाहता है. पर उसे अपने तरीके से जो पता चलता है वह या तो अधूरा होता है या फिर गलत होता है. मेरे अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि काफी समय तक मैं यह सोचता रहा कि महिला पहले सहवास के दौरान गर्भवती नहीं हो सकती.
किशोरावस्था( teens) की प्रतीक्षा न करें
बताएं सेक्स प्राकृतिक है
बच्चों को यह विश्वास दिलाएं की सेक्स प्राकृतिक और सामान्य घटना है. यह ठीक उसी तरह है जिस तरह विश्वास प्रेम न कि बुरा और घृणा करने योग्य है. इस तरह अभिभावक बच्चों को इसकी अहमियत और समय बताएं.
बताएं कि सेक्स का आशय सहवास नहीं है.
सेक्सुअल मित्रता के खतरों से आगाह कराएं
अभिभावकों को चाहिये वे बच्चोंको सेक्सुअल मित्रता के खतरों की जानकारी दें. मसलन उन्हे यह बताया जाना चाहिये कि इस दौरान गर्भ ठहरने का खतरा होता है. साथ ही कई तरह की सेक्सुअल बीमारियां भी हो सकती हैजिसमें एड्स जैसी भयानक बीमारी भी शामिल है. इसके अलावा भावनात्मक रूप से दिल टूटने का भी खतरा रहता है.
गर्भ निरोध की जानकारी दें
पूर्ण किशोर बच्चों को गर्भ निरोधकों की भी जानकारी देनी चाहिए और उनके बारें में बताना चाहिए साथ ही उन्हें सेक्सुअल रूप से स्थानान्तरित होने वाली बीमारियों की भी जानकारी देनी चाहिये तथा उससे बचाव के बारे में भी बताना चाहिए.

2 comments:

Anonymous said...

कृपया निम्न प्रश्नो पर भी विचार रखें।
(१) क्या स्कूलो में सेक्स की शिक्षा दी जानी चाहिये। यदि हां तो किस क्लास से यह शुरु की जानी चाहिये।
(२) लड़के और लड़कियों का एक स्कूल में पढ़ना ठीक होता है या फिर अलग, अलग के स्कूलों में।

Dr. Johnson C. Philip said...

आपने इस लेख को "फुल जस्टिफाई" किया है. यह इंटरनेट एस्क्प्लोरर में तो सही दिखता है, लेकिन फायरफाक्स में इसका एक शब्द भी नहीं पढा जाता है. सारे के सारे अक्षर खंडित हैं.

चूंकि आज जाल पर 50% अधिक फायरफाक्स या उसके इंजन पर अधारिक ब्राउसरों का प्रयोग करते हैं, अत: हिन्दीजगत के आधे से अधिक लोग आप का चिट्ठा नहीं पढ पाते.

जब कोई चिट्ठा पढने की स्थिति में नहीं है तो लोग उसे छोड कर आगे बढ जाते हैं. उनको कोई नुक्सान नहीं लेकिन चिट्ठाकार को नुक्सान है क्योंकि जिन लोगों के लिये उसने मेहनत से यह चिट्ठा तय्यार किया है उसमें से आधे लोग इसे पढ नहीं पाते हैं.

कृपया भविष्य में सिर्फ "लेफ्ट जस्टिफाई" का प्रयोग करें जिस से आपके चिट्ठे पर आने वाले 100% लोग इसे पढ सकें.