Monday, August 18, 2008

फीमेल कंडोम का प्रयोग कैसे करें

1.ध्यान से पैकेज खोलें, पैकेट में दाहिनी ओर बने खांचे की जगह से पैकेट को फाड़े, पैकेट को खोल ने के लिये कैंची या चाकू का प्रयोग न करें.







2.बाहरी रिंग योनि का बाहरी क्षेत्र कवर करती है तथा अंदरूनी रिंग संभोग के दौरान म्यान रूपी हिस्से को थामने का काम करती है.





3.इसमें फीमेल कंडोम को अंदर डालने की तैयारी है. इसके लिय े कंडोम के भीतरी रिंग को जो कि काफी लचीला होता है उसे अंगूठे की बगल वाली तथा मध्यमा उंगली के बीच फंसा कर दबाएं. इससे रिंग संकरा और लंबा हो जाएगा.
4.रिंग को अंदर डालने के लिये अपनी सुविधानुसार आरामदायक पोजीशन चुन लें. इसके लिये खड़े होकर एक पांव उपर करके, बैठ कर या फिर लेटकर दोनो पांव फैला कर अंदर प्रवेश की क्रिया को अंजाम दे सकते हैं.

5.अब भीतर ी रिंग को धीरे से योनि के अंदर डालें. तथा इसे अंदर तब तक डालते जाएं जब तक रिंग अंदर प्रवेश करा सके.
6.रिंग के बाद कंडोम के अंदर तर्जनी अंगुली डाल कर भीतरी रिंग को अंदर ढकेलना शुरू करें. इसे तब तक अंदर करें जब तक कि कंडोम अपनी गहराई तक न पहुंच जाए साथ ही उसमें मरोड़ न आने लगे. इस दौरान बाहरी रिंग योनि के बाहरी हिस्से में ही रहे





7.अब फीमेल कंडोम स्थापित हो चुका है तथा आपके पार्टनर के साथ प्रयोग के लिये तैयार है..


8.जब आप सेक्स के लिये तैयार हों तब पार्टनर के शिश्न को दिशा दें. इसके लिये एक हाथ की उंगलियों से कंडोम को आधार देते हुए दूसरे हाथ से लिंग को कंडोम के द्वार तक लाकर प्रवेश सुनिश्चित करें. तथा यह ध्यान दें कि शिश्न एक बार सही तरीके से अंदर तक चला जाए तथा कंडोम लिंग व योनि के बीच दीवार की तरह फिट हो जाए.

9.सेक्स पूर्ण होने के उपरांत कंडोम निकालें. इसके लिये बाहरी रिंग को घुमाते हुए धीरे से कंडोम को बाहर खींचे.


10.बाहर निकालने के पश्चात उसे मोड़ कर या बांध कर डस्टबिन या उचित जगह पर निस्तारित करें.















Saturday, August 16, 2008

संवेदनशील कामुक स्पाट

क्या आपको तलाश है अपने - या अपने पार्टनर की उत्तेजना को और तेज करने के रास्ते की? यदि हां तो यहां हम दें रहे हैं आपकी तलाश को एक रास्ता. महिला के जननांगों में शामिल योनि मार्ग और उसे घेरे हुए भगोष्ठ क्षेत्र में कामुक संवेदना के चार छोटे-छोटे केन्द्र होते हैं. जो कि महिला के उत्तेजना की स्थिति में लाने में कामुकता की दृष्टि से काफी संवेदनशील होते हैं. और ये चार केन्द्र हैं भगशिश्न (clitoris), यू-स्पॉट, जी-स्पॉट और ए-स्पॉट. इनमें से पहले दो योनि से बाहर हैं और बाद के दो योनि के अंदर.


भगशिश्न(Clitoris)
यह महिला जननांग के सर्वश्रेष्ठ ज्ञात हॉट स्पॉट के रुप में जाना जाता है, जो कि भग के शीर्ष पर स्थित होता है. इसी स्थान पर आन्तरिक भगोष्ठ बाह्य भगोष्ठ से जुड़ता है. इसका दृश्य भाग काफी छोटा तथा निप्पल के आकार का होता है. महिलाओं में यह पुरुष के लिंग के अगले सिरे के समकक्ष होता है. यह आंशिक रूप से सुरक्षा कवच(protective hood) से ढंका होता है. मूल रूप से यह 8000 तंत्रिका तंतुओं (nerve fibres) का बंडल होता है, जो कि इसे महिला के शरीर का सबसे संवेदनशील अंग बनाती है. यह विशुद्ध रूप से यौन कार्य के लिये ही है. यह मैथुन क्रिया के दौरान दीर्घ (बड़ी, फूली हुई ,तनी हुई) तथा ज्यादा संवेदनशील हो जाती है. फोरप्ले के दौरान अक्सर यह सीधे छूने मात्र से ही उत्तेजित हो जाती है. दूसरी ओर वे महिलाएं जो योनि संभोग से पूर्ण कामोत्तेजना को नहीं पाती है वे इसे भगशिश्न उत्तेजना (विभिन्न तरीकों व माध्यमों) से जल्दी पा लेती हैं. हाल ही में एक आस्ट्रेलियन सर्जन ने बताया बताया कि इसका जितना आकार दिखाई देता है हकीकत में यह उससे काफी बड़ा है. इसका काफी कुछ हिस्सा सतह के नीचे छिपा हुआ है. इसका जो हिस्सा दिखाई देता है वह नोंक मात्र है. अंदर इसकी लंबाई इसके नीचे से - छड़ नुमा - योनि द्वार तक के बराबर होती है. इस तरह जैसे ही योनि में शिश्न की हरकत होती है तो यह सख्ती से संदेश भेजती है. इसलिये योनि संभोग के दौरान भले ही भगशिश्न (clitoris) को नहीं छूते फिर भी वह उत्तेजना के अनुरूप उठाव में आ जाती है. कई महिलाओं का कहना है कि जब इसमें एक लयबद्ध घर्षण होता है तो वह फंतासी के काफी करीब तक पहुंच जाती है. इस लिये महिला को कामोन्माद की चरम अवस्था तक पहुंचाने के लिये इस अंग की प्रभावी भूमिका होती है जिसकी कई बार पुरुष अवहेलना कर देते हैं या फिर इस ओर ध्यान नहीं देते हैं.


यू-स्पॉट(U-Spot)
यह संवेदनशील, उत्तेजित होने योग्य उत्तकों का छोटा सा पैच होता है जो कि मूत्र द्वार के ऊपर और दोनो ओर पाया जाता है लेकिन यह मूत्र मार्ग के नीचे(जो कि मूत्रद्वार व योनिद्वार के बीच का छोटा हिस्सा होता है) नहीं पाया जाता है. हालांकि इसके बारे में अभी भगशिश्न से कम ही जानकारी हो पाई है. अभी इसकी कामुक क्षमता के बारे में अमेरिका के चिकित्सीय अनुसंधानकर्ता जांच कर रहे हैं. अब तक की जांच में उन्होंने पाया है कि यदि इस क्षेत्र को धीरे-धीरे उंगली, जीभ या शिश्न के सिरे की सहायता से सहलाया(caresse) जाय तो वहां अप्रत्याशित रूप से शक्तिशाली कामुक प्रतिक्रिया होती है.

वहीं दूसरी महिला के मूत्रमार्ग के विषय में एक बात और है जो काफी उल्लेखनीय है वह है महिला स्खलन(female ejaculation). पुरुष के मामले में मूत्रनलिका से ही मूत्र और शुक्राणु मिश्रित वीर्य बाहर आता है. लेकिन महिलाओं के मामले में माना जाता है कि वे सिर्फ मूत्र उत्सर्जन ही करती हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. जब कोई असामान्य रूप से शक्तिशाली संभोग करता है तो कुछ महिलाएं अपने मूत्रमार्ग से एक द्रव छोड़ती है लेकिन यह द्रव मूत्र नहीं होता है.
दरअसल मूत्रनलिका के चारों ओर कुछ विशेष ग्रंथियां होती हैं. जिन्हें स्कीनी(skene) ग्रंथियां या अर्ध मूत्रमार्ग (para-urethral) ग्रंथियां कहते हैं(देखें चित्र) जो कि पुरुष की प्रोस्टेट ग्रंथियों के ही समान होती है. ये ग्रंथियां चरम उत्तेजना के दौरान तरल रासायनिक क्षारीय(alkaline) द्रव का उत्पादन करती हैं जो पुरुष वीर्य संबंधी द्रव के समान ही होता है. वे महिलाएं जो ऐसे स्खलन(जो कुछ बूंद या कुछ चम्मच के बराबर हो सकता है) का अनुभव रखती हैं उन्हे चरम उत्तेजना के क्षणों में अत्यधिक पेशीय थकान की अनुभूति होती है. इस सामान्य शरीरक्रिया विज्ञान को न समझने की वजह से वे इसे अनैच्छिक पेशाब की भी संज्ञा दे देती है या कई बार वे इसे पेशाब की अनुभूति भी कह सकती है. कई बार तो कुछ अज्ञान चिकित्सकों ने भी इस घटना की जानकारी न होने पर अप्रत्याशित तरीके से इलाज की भी सलाह दे डाली तो कुछ पुरुष इस स्खलन से यह कहकर घृणा करते हैं कि उस की पार्टनर सेक्स के दौरान पेशाब करती है. हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि इस स्खलन का तात्पर्य क्या है या इसके मूल्य क्या हैं. हालांकि कुछ लोग इसे योनि स्नेहन(lubrication) जोड़ते जबकि हकीकत में यह क्रिया योनि दीवारों द्वारा स्वयं की जाती है. हम तो इसे यौन क्रिया के चरम में इसे महिला की एक तरल फंतासी मानते हैं जो यौन क्रिया को उत्सकर्ष के अत्यधिक समीप ले जाती है.

जी-स्पॉट(G-Spot)
यह योनि के अन्दर की ओर ऊपरी दीवार पर 5-8से.मी.(2-3इंच) की गहराई में पाया जाने वाला छोटा लेकिन काफी संवेदनशील क्षेत्र होता है. इसकी खोज प्रसिद्ध जर्मन स्त्री रोग विशेषज्ञ अर्नस्ट ग्रेफेनबर्ग ने की थी. सन् 1940 में जब महिला संभोग की प्रकृति पर अनुसंधान चल रहा था तब पाया गया कि योनि के उपर की ओर मूत्र नलिका उत्तेजित होने योग्य उत्तकों से घिरी हुई है यह ठीक उसी तरह का व्यवहार करती है जिस तरह पुरुष का शिश्न. जब महिला सेक्सुअली उत्तेजित हो जाती है तब ये ऊत्तक फूलने लगते हैं. ऊत्तकों का यही विस्तार योनि के अंदर उपरी दीवार पर छोटे पैच के रूप में समझ में आता है जिसे जी-स्पॉट के नाम से जाना जाता है. ग्रेफेनबर्ग ने इसी उठे हुए पैच को प्राथमिक कामुक क्षेत्र की संज्ञा दी तथा बताया कि उत्तेजना के मामले में यह भगशिश्न(clitoris) से ज्यादा संवेदनशील है. साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जब लोग यौन व्यवहार के लिये 'मिशनरी पोजीशन' अपनाते हैं तो यह स्पॉट अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाता है लेकिन अन्य कई सेक्स पोजीशन इस कामुकतायुक्त क्षेत्र को उत्तेजित करने और चरमोत्कर्ष पाने में काफी प्रभावी होती है. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इसके खोजकर्ता ग्रेफेनबर्ग स्वयं इस क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर पाये उन्होंने बस इस क्षेत्र को 'कामुक क्षेत्र' मात्र घोषित किया था.हालांकि यह काफी बेहतर वर्णन योग्य क्षेत्र है लेकिन दुर्भाग्य से आज के इस मार्डन युग में इसके काफी लोकप्रिय हो जाने से कई गलतफहमियां भी इसके साथ जुड़ गईं हैं. कुछ महिलाएं इसके अस्तित्व पर आशावादी तरीके से विश्वास करती है तो कुछ का मानना है कि जबर्दस्त कामाग्नि पैदा करने के लिये यह एक 'सेक्स बटन' है जिसे किसी भी समय स्टार्टर बटन की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है. वहीं कई का यह भी मानना है कि जी-स्पॉट की पूरी अवधारणा ही गलत है. जबकि सच्चाई पूर्व में ही स्पष्ट की जा चुकी है कि जी- स्पॉट कामुकता से भरा वह क्षेत्र है जो धीरे से तभी निकलता है जब मूत्र नलिका के चारों ओर के ऊत्तकों में फूलने से विस्तार होता है. जी-स्पॉट के अस्तित्व को उसकी पहली ही कान्फ्रेंस में कई शीर्ष स्त्री रोग विशेषज्ञों द्वारा नकार दिया गया था लेकिन बाद में जब इसका विस्तार से प्रदर्शन के साथ वर्णन किया गया तो आगे जाकर इस विशेषज्ञों ने भी जी-स्पॉट के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया. यह माना जाता है कि जी स्पॉट योनि की फ्रंट दीवार पर पाया जाता है जो प्यूबिक बोन और गर्भद्वार के मध्य में होता है. इस पर प्रहार करने के लिये, इसको खोजने का सरलतम तरीका होगा कि इसे गर्भद्वार की ओर से शुरू करें. इसका संरचनात्मक अनुभव नाक के अगले सिरे (tip of nose ) की तरह होता है. फिर धीरे-धीरे योनि की अग्र दीवार से होते हुए नीचे की ओर आएं. उत्तेजना के दौरान यह फूला रहता है, यह पहचान इसकी खोज में सहायक होती है. कुछ लोग इसे कुछ ज्यादा स्पंजी क्षेत्र के रूप में अनुभव करते हैं और जब इस पर प्रहार किया जाता है तो वह अत्यंत आनंददायी होता है. लेकिन ऐसा अनुभव सभी महिलाओं के प्रति नहीं रहा. कुछ ने तो इस पर प्रहार के दोरान पेशाब जाने की इच्छा भरी सनसनाहट का अनुभव किया वहीं कुछ महिलाएं इस क्षेत्र को लेकर भावशून्य रहीं. वहीं कुछ महिलाएं जी स्पाट उत्तेजना के दौरान एक रंगहीन गंधहीन द्रव स्खलन करते भी पाईं गईं. कुछ रिसर्च के दौरान पाया गया कि इस द्रव में प्रोस्टैटिक एन्जाइम पाए गये हैं इस आधार पर यह माना गया कि यह प्रोस्टेट के समतुल्य है.


शेष ए-स्पॉट पर जानकारी अगले दिनों में...

Wednesday, August 13, 2008

सेक्स क्या में चैट सुविधा शुरू

सेक्स क्या http://www.sexkya.com/ में पाठकों की सुविधा के मद्देनजर चैट बाक्स की सुविधा प्रारंभ कर दी है. इसमें वे ब्लाग से संबंधी सुझाव तो दे ही सकते हैं इसके अलावा वे अपने सवाल भी यहां उठा सकते हैं. आशा है यह सुविधा सेक्स क्या के पाठकों को काफी पसंद आएगी.

Tuesday, August 12, 2008

शीघ्रपतन की हकीकत

सेक्स क्रिया में मानवों के बीच शीघ्रपतन नामक शब्द काफी अहमियत रखता है. यदि इस शब्द की शाब्दिक व्याख्या करें तो शीघ्र गिर जाने को शीघ्रपतन कहते हैं। लेकिन सेक्स के मामले में यह शब्द वीर्य के स्खलन के लिए, प्रयोग किया जाता है। पुरुष की इच्छा के विरुद्ध उसका वीर्य अचानक स्खलित हो जाए, स्त्री सहवास करते हुए संभोग शुरू करते ही वीर्यपात हो जाए और पुरुष रोकना चाहकर भी वीर्यपात होना रोक न सके, अधबीच में अचानक ही स्त्री को संतुष्टि व तृप्ति प्राप्त होने से पहले ही पुरुष का वीर्य स्खलित हो जाना या निकल जाना, इसे शीघ्रपतन होना कहते हैं। इस व्याधि का संबंध स्त्री से नहीं होता (क्योंकि स्त्रियों में स्खलन की क्रिया नहीं पायी जाती), यह पुरुष से ही होता है और यह व्याधि सिर्फ पुरुष को ही होती है। शीघ्र पतन की सबसे खराब स्थिति यह होती है कि सम्भोग क्रिया शुरू होते ही या होने से पहले ही वीर्यपात हो जाता है। सम्भोग की समयावधि कितनी होनी चाहिए यानी कितनी देर तक वीर्यपात नहीं होना चाहिए, इसका कोई निश्चित मापदण्ड नहीं है। यह प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति पर निर्भर होता है। वीर्यपात की अवधि स्तम्भनशक्ति पर निर्भर होती है और स्तम्भन शक्ति वीर्य के गाढ़ेपन और यौनांग की शक्ति पर निर्भर होती है। स्तम्भन शक्ति का अभाव होना शीघ्रपतन है। बार-बार कामाग्नि की आंच (उष्णता) के प्रभाव से वीर्य पतला पड़ जाता है सो जल्दी निकल पड़ता है। ऐसी स्थिति में कामोत्तेजना का दबाव यौनांग सहन नहीं कर पाता और उत्तेजित होते ही वीर्यपात कर देता है। यह तो हुआ शारीरिक कारण, अब दूसरा कारण मानसिक होता है जो शीघ्रपतन की सबसे बड़ी वजह पाई गई है। एक और लेकिन कमजोर वजह और है वह है हस्तमैथुन. हस्तमैथुन करने वाला जल्दी से जल्दी वीर्यपात करके कामोत्तेजना को शान्त कर हलका होना चाहता है और यह शान्ति पा कर ही वह हलकेपन तथा क्षणिक आनन्द का अनुभव करता है। इसके अलावा अनियमित सम्भोग, अप्राकृतिक तरीके से वीर्यनाश व अनियमित खान-पान आदि। शीघ्रपतन की बीमारी को नपुंसकता श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह बीमारी पुरुषों की मानसिक हालत पर भी निर्भर रहती है। मूलरूप से देखा जाय तो 95 फीसदी शीघ्रपतन के मामले मानसिक हालत की वजह से होते हैं और इसके पीछे उनमें पाई जाने वाली सेक्स अज्ञानता व शीघ्रपतन को बीमारी व शीघ्रपतन से संबंधी बिज्ञापन होते हैं. कई बार तो इन विज्ञापनों से वीर्य स्खलन का समय इतना अधिक बता दिया जाता है जो मानव शक्ति से काफी परे होता है मसलन 20 मिनट से आधे घंटे तो कई बार इससे भी ज्यादा जबकि वर्तमान शोधों से पता चला है स्खलन का सामान्य समय तीन से चार मिनट का होता है.
कई युवकों और पुरुषों को मूत्र के पहले या बाद में तथा शौच के लिए जोर लगाने पर धातु स्राव होता है या चिकने पानी जैसा पदार्थ किलता है, जिसमें चाशनी के तार की तरह लंबे तार बनते हैं। यह मूत्र प्रसेक पाश्वकीय ग्रंथि से निकलने वाला लसीला द्रव होता है, जो कामुक चिंतन करने पर बूंद-बूंद करके मूत्र मार्ग और स्त्री के योनि मार्ग से निकलता है, ताकि इन अंगों को चिकना कर सके। इसका एक ही इलाज है कि कामुकता और कामुक चिंतन कतई न करें। एक बात और पेशाब करते समय, पेशाब के साथ, पहले या बीच में चूने जैसा सफेद पदार्थ निकलता दिखाई देता है, वह वीर्य नहीं होता, बल्कि फास्फेट नामक एक तत्व होता है, जो अपच के कारण मूत्र मार्ग से निकलता है, पाचन क्रिया ठीक हो जाने व कब्ज खत्म हो जाने पर यह दिखाई नहीं देता है। धातु क्षीणता आज के अधिकांश युवकों की ज्वलंत समस्या है। कामुक विचार, कामुक चिंतन, कामुक हाव-भाव और कामुक क्रीड़ा करने के अलावा खट्टे, चटपटे, तेज मिर्च-मसाले वाले पदार्थों का अति सेवन करने से शरीर में कामाग्नि बनी रहती है, जिससे शुक्र धातु पतली होकर क्षीण होने लगती है।
दरअसल सेक्स के दौरान शीघ्रपतन होना एक सामान्य समस्या है। यह समस्या अधिकांशत: युवाओं के बीच कहते-सुनते देखा जा सकता है। एक अमेरिकी सर्वे के अनुसार दुनिया की 43 फीसदी महिलाएं और 31 प्रतिशत पुरूष शीघ्रपतन की समस्या के शिकार हैं। हालांकि यह समस्या गर्भधारण या जनन के लिए बाधा उत्‍पन्‍न नहीं करती है, फिर भी यह एक स्वस्थ शरीर और अच्छे व्यक्‍ितत्व के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।इस समस्‍या से ग्रसित व्‍यक्‍ित के स्वभाव में सबसे पहले परिवर्तन आता है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि इस परेशानी की वजह से पीडि़त व्‍यक्‍ित का स्‍वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। वह अक्‍सर सिरदर्द जैसे शा‍रीरिक समस्‍याओं से भी ग्रसित हो सकता है या कुछ समय के बाद सेक्स में अरूचि भी आ जाने की संभावना रहती है। इसके अलावा शारीरिक दुर्बलता भी हो सकती है।आज भी बहुत से लोग इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते हैं। जो लेते भी हैं वह इस समस्‍या को किसी के सामने रखने से डरते हैं। एक आकलन के अनुसार पुरूष का संभोग समय औसतन तीन मिनट का होता है। कुछ लोग दस मिनट तक संभोगरत रहने के बाद खुद को इस समस्या से बाहर मानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। इसके बरक्‍स अगर आप एक दूसरे को संतुष्ट करने से पहले ही स्‍खलित हो जाते हैं तो यह शीघ्रपतन माना जाता है। यह समस्‍या असाध्‍य नहीं है। लेकिन दुर्भाग्‍य से इसके उपचार को लेकर लोगों में अनेक तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। जबकि सेक्‍स के कुछ तरीकों में परिवर्तन करके इस समस्‍या से निजात पाया जा सकता है। सबसे पहले तो इस समस्‍या को भी एक आम शारीरिक परेशानी की तरह लें।
सेक्‍स के दौरान चरम पर आने से पहले सेक्‍स के विधियों में बदलाव करें। मसलन आप मुखमैथुन, गुदामैथुन आदि की ओर रूख कर सकते हैं। इसके बाद भी अपनी अवस्थाओं को बदलते रहने का प्रयास करते रहें। सेक्‍स के दौरान कुछ देर तक लंबी सांस जरूर लें। यह प्रक्रिया शरीर को अतिरिक्‍त ऊर्जा प्रदान करती है। आपको मालूम होना चाहिए कि एक बार के सेक्स में करीब 400 से 500 कैलोरी तक ऊर्जा की खपत होती है। इसलिए अगर संभव हो सके तो बीच-बीच में त्‍वरित ऊर्जा देने वाले तरल पदार्थ जैसे ग्लूकोज, जूस, दूध आदि का सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा आपसी बातचीत भी आपको स्थायित्व दे सकता है। ध्‍यान रखें, संभोग के दौरान इशारे में बात न करके सहज रूप से बात करें।डर, असुरक्षा, छुपकर सेक्स, शारीरिक व मानसिक परेशानी भी इस समस्या का एक कारण हो सकती है। इसलिए इससे बचने का प्रयत्‍न करें। इसके अलावे कंडोम का इस्तेमाल भी इस समस्या के निजात के लिए सहायक हो सकता है। समस्‍या के गंभीर होने पर आप किसी अच्‍छे सेक्‍सोलॉजिस्‍ट से सलाह ले सकते हैं।
शीघ्रपतन से बचाव का सबसे बेहतर तरीका है कि आप अपने दिमाग से यह निकाल दें कि आप शीघ्रपतन के शिकार हैं और शीघ्रपतन कोई बीमारी है. शुरुआती दौर में अस्सी फीसदी लोग संभोग के दौरान शीघ्रपतन का शिकार होते है. इसलिये इसे बीमारी के रूप में न लें न ही विज्ञापनों से भ्रमित हों.