Monday, October 22, 2007

आपके सवाल हमारे जवाब

यहां हम अक्सर उठने वाले सवालों के जवाब देने का प्रयास कर रहें हैं . यदि आपके भी कुछ सवाल हों तो भेज सकते हैं sharmarama2000@yahoo.com पर . हम नाम प्रकाशित नहीं करेंगे.

Q1- गर्भ निरोधक गोली और गर्भ निरोधक शॉट में क्या अंतर हैं?
Ä- गर्भधारण से बचने के लिये गर्भ निरोधक गोलियों को नियमित तौर पर प्रतिदिन लेना पड़ता है. गोलियां मुख्यतः आपके शारीरिक सिस्टम से २४ घंटे में बाहर आ जाती हैं और इसमें यह महत्वपूर्ण रहता है कि इसे नियमित तौर पर प्रतिदिन नियत समय पर खाना होता है. जबकि गर्भ निरोधक शॉट हर तीन महीने में दिया जाता है. यह हार्मोनल इन्जेक्शन होता है जो बांह या कूल्हों में लगाया जाता है. ज्यादातर महिलाएं जो गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं उनके पीरियड्स का चक्र 28 दिनों का हो जाता है. वहीं वे महिलाएं जो शॉट लेती है उनके पीरियड़्स तब तक के लिये रुक जाते हैं जब तक के लिये शॉट लिया गया होता है. गर्भनिरोधक गोलियां और गर्भनिरोधक शॉट दोनों के प्रयोग से हल्का वजन (1.5 से 2.5 किलो )बढ़ता है. यहां यह महत्वपूर्ण है कि आपके चिकित्सक जांच उपरांत किस गर्भ निरोधक की सलाह देते हैं. इन दोनों के प्रयोग के पहले आप चिकित्सक से तब तक प्रश्न पूछे जब तक कि आप संतुष्ट नहीं हो जाते . इनके प्रयोग के बाद भी यह ध्यान रखें कि यदि कोई संक्रमण है तो कंडोम का प्रयोग अवश्य करें .


Q2 - स्खलन के बाद शरीर के बाहर शुक्राणु की आयु कितनी होती है?
† Ä- शुक्राणु जैसे ही हवा के संपर्क में, कपड़ों के संपर्क में , बिस्तर या फिर टॉयलेट सीट या किसी अन्य बाह्य शारीरिक अंगों के संपर्क में आते हैं तो अपनी गमन क्षमता (तैरने की शक्ति) खो देते हैं. यदि एक बार वीर्य सूख गया तो शुक्राणु मृत हो जाते हैं.
यदि शुक्राणु महिला के पास ही हैं लेकिन उसे कोई निषेचन द्रव्य (fertile fluid) नहीं मिलता तो वे कुछ ही घंटे में मृत हो जाएंगे फिर वे चाहे शरीर के अंदर हों या फिर बाहर .यदि शुक्राणु को महिला में निषेचन द्रव्य मिल जाता है तो वे वहां एक सप्ताह तक जीवित रहकर निषेचन के लिये अण्डाणु का इंतजार करते हैं. इस आधार पर यह कह सकते हैं कि शरीर से बाहर निकलने पर शुक्राणु कुछ घंटे ही जीवित रह सकते हैं.


♀♂Q3 - पुरोनितंब रोएं (pubic hair) शेव करने चाहिए या नहीं?
† Ä- गुप्तांगों की साफ-सफाई के मामले में इनके पास के रोएं साफ करना या शेव करना महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. पुरुषों के मामले में इन रोमों की शेविंग उतनी महत्वपूर्ण नहीं मानी जाती जितनी की महिलाओं की . क्योंकि महिलाओं की शेविंग सेक्स क्रिया में काफी सहभागिता निभाती है. लेकिन ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्नों में महिलाओं के प्रश्न होते हैं कि शेविंग के बाद रोम क्या ज्यादा घने होते हैं या सेविंग के बाद क्या होता है तो इसका जवाब यह है कि जब तक इन रोमों की शेविंग नहीं होती तब तक यह काफी कोमल होते हैं लेकिन जैसे ही शेविंग की जाती है तो इनमें कड़ा और भारीपन आने लगता है साथ ही घनत्व भी बढ़ता है. तथा शेविंग के बाद जब यह दोबारा निकलते हैं तो शुरुआती दौर में काफी खुजलाहट भरे और अनकम्पर्टेबल होते है. इसलिये बेहतर है रेजर की अपेक्षा कोई बेहतर हेयर रिमूविंग क्रीम का उपयोग करें जल्दी जल्दी हेयर रिमूविंग से बचे . रेजर से शेविंग के बाद निकलने वाले रोम काफी कठोर होते है.


Q4 - स्तनों का अलग-अलग आकार कोई समस्या तो नहीं ?
† Ä- यह कोई समस्या या बीमारी नहीं हैं एक ही महिला को दोनों स्तनों का आकार छोटा बड़ा होना सामान्य और अक्सर पायी जाने वाली बात होती है. स्तनों का ही आकार ही नहीं बल्कि शरीर के दाएं और बायें कई अंगों में अन्तर होता है . इसलिये इसे लेकर तनाव ग्रस्त न हों.

Q5 - स्तन कितने बढ़ सकते हैं और इनका सामान्य आकार क्या है?
† Ä- इस सवाल का कोई ‘वास्तविक’ जवाब नहीं दे सकता है. जिस तरह व्यक्ति अलग-अलग आकार में आता है कोई लंबा होता है तो कोई छोटा ठीक इसी तरह से कुछ लड़कियों के भारी कुछ के मध्यम तो कुछ के छोटे स्तन होते हैं. इसी मसले को लेकर कुछ लड़कियां इस लिये परेशान रहती हैं क्योंकि वे सोचती हैं कि उनके स्तन काफी छोटे हैं.
दरअसल स्तनों के आकार का निर्धारण फैशन के नजरिये से किया जाता है. लेकिन चिकित्सा विज्ञान के नजरिये से स्तनों की कोई आदर्श साइज निर्धारित नहीं हैं. वहीं दूसरी ओर स्तनों के आकार का शिशु के पालन पोषण व स्तन कैंसर से भी कोई लेना देना नहीं है.स्तनों का आकार मनचाहे तौर पर बढ़ाने का इकलौता तरीका सिर्फ सर्जिकल है. लेकिन इसके कई साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं . वहीं गर्भावस्था व तरुणाई की दहलीज पर भी स्तनों के आकार में वृद्धि होती है.इसके अलावा बेहतर आहार भी स्तनों के विकास में कुछ सहायक हो सकता है.

Q6 - यदि मां-बहन के स्तन छोटे हैं तो मेरे भी स्तन छोटे होंगे?
† Ä- स्तनों के आकार को लेकर कुछ अनुवांशिक घटक भी होते हैं. लेकिन कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञ अपना तर्क देते हैं कि एक ही परिवार में बहन, मां और बेटी के स्तनों का अलग-अलग आकार होना कोई असमान्य बात नहीं है. लेकिन ज्यादातर पाया गया है कि परिवार में ज्यादा तर स्तनों का आकार समतुल्य ही होता है लेकिन इससे भी इनकार नहीं है कि स्तनों का आकार अलग-अलग भी हो सकता है.

Q7 - कुछ महीनों से वीर्य पतला हो गया है तथा पहले जब वीर्य को उंगलियों के बीच रखकर वापस उंगली अलग करता था तो ज्यादा चिपचिपा पन था लेकिन अब नहीं है. क्या यह बीमारी है?
† Ä-
नहीं और संभवतः नहीं क्योंकि वीर्य की बनावट व दिखावट प्राकृतिक तौर पर महीने, दिन व कई बार तो एक वीर्यपात से दूसरे वीर्यपात के बीच बदलती रहती हैं. इसकी कई वजहें व डाइट भी शामिल है. इसलिये यह बहुत चिन्ता का विषय नहीं है. हां जब पतलापन काफी ज्यादा व लगातार कई महीने तक यही स्थिति बनी रहे तो डिग्री होल्डर योग्य चिकित्सक से जांच करा सकते हैं.

Q8 - जैसा बताया जाता है कि वीर्य में प्रोटीन होता है तो वीर्यपात के बाद क्या शरीर की मसल्स कमजोर हो जाती हैं?
† Ä-
नहीं वीर्यपात से कोई कमजोरी नहीं आती. यह सही है कि वीर्य में प्रोटीन होता है लेकिन उसमें प्रोटीन की मात्रा नगण्य होती है. यदि तुलनात्मक रूप से भी देखे तो जितना प्रोटीन शरीर सामान्य डाइट से ग्रहण करता है उस तुलना में भी वीर्यपात के साथ निकले प्रोटीन को नगण्य माना जा सकता है . फिर भी यदि शंका न दूर हो तो आप चाहे तो एक या दो दाना मूमफल्ली खा सकते हैं इससे आपके शरीर में वीर्यपात के बाहर निकले प्रोटीन का दोगुना प्रोटीन शरीर को मिल जाएगा. इसलिये यह स्वीकार कर लें कि वीर्यपात से शरीर को सुगठित बनाने की क्षमता कम जाती है.

Q 9- योनि में कसाव की कमी आ गई है कैसे दूर करें?
† Ä- श्रोणितल की पेशियों में कमजोरी आने से योनि में कसाव कम हो जाता है और ढीलापनमहसूस होने लगता है. योनि की पेशियां चुस्त दुरुस्त बनाने से योनि का ढीलापन दूर किया जा सकता है और चरम योनसुख की आनंदानुभूति जागृत की जा सकती है. इसके लिये एक साधारण सा व्यायाम है जिससे प्यूबोकाक्सीजियस पेशी मजबूत होती जाती है. जिससे योनि का ढ़ीलापन दूर होता जाता है.इस व्यायाम को कहीं भी , कभी भी और किसी भी मुद्रा में किया जा सकता है. इसके लिये करना यह होता है कि मूत्र प्रवाह रोकने वाली पेशी को अंदर की ओर ठीक वैसे भींचे जैसे कि मूत्र के वेग को रोक रही हों. अगले तीन सेकेण्ड तक प्यूबोकाक्सीजियस पेशी को इसी प्रकार अंदर ही अंदर भींचे रखें. फिर अगले 3 सेकेण्ड के लिये शरीर को ढीला छोड़ दें. अब एक बार फिर प्यूबोकाक्सीजियस पेशी को 3 सेकेण्ड तक अंदर भींचे. फिर 3 सेकेण्ड के लिये पेशी को ढीला छोड़ दें. यह व्यायाम 10-10 बार सुबह शाम करें और फिर बढ़ाते हुए 25-25बार सुबह और शाम करें. अभ्यास हो जाने पर तेज गति से करने लगें.इस व्यायाम से 2-3 माह में ही आप अपने भीतर बड़ा परिवर्तन महसूस करने लगेंगी. इसे करते रहने से आपके श्रोणिगुहा के अंगों को समुचित आवलंबन मिलता रहेगा.

Thursday, October 04, 2007

सेक्स करें स्वस्थ रहें

सेक्स सिर्फ रति निष्पत्ति से मिलने वाले वाले आनंद का माध्यम मात्र नहीं हैं वरन सेक्स बेहतर स्वास्थ्य का कारण भी बन सकता है. चिकित्सकीय अनुसंधान से भी यह साबित हो चुका है कि बेहतर स्वास्थ्य के लिये सेक्स महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. सेक्स से जहां शारीरिक स्फूर्ति बनी रहती है बल्कि कई बीमारियों को भी ठीक करने में सहायक है. इसके अलावा मानसिक तनाव दूर करने का भी बेहतर साधन है सेक्स . कुल मिलाकर सेक्स स्वास्थ्य के लिये काफी लाभदायक है.

1.तनाव से मुक्तिः आज की भागमभाग जिंदगी में स्वास्थ्य संबंधी मामलों में सबसे बड़ी समस्या तनाव की है. अक्सर मानसिक तनाव के अतिरेक में कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं या फिर गलत कदम उठा लेते हैं. चिकित्सा शास्त्रियों का मानना है कि सेक्स क्रिया के दौरान एंड्रोफस नामक हार्मोन का स्त्राव होता है जो तनावमुक्ति में सहायक होता है. ठीक इसी तरह सेक्स क्रिया के दौरान फिनीलेथलमाइन नामक रसायन भी निकलता है. यह रसायन दिमाग को स्वस्थ होने का भाव भेजता है जिससे मानव में स्वस्थ होने की भावना उत्पन्न होती है, जिससे शरीर स्वस्थ व तनाव मुक्त महसूस करता है. सेक्स के दौरान एक निश्चिंतता का माहौल बनता है जिससे तनाव दूर होता है. इसके अलावा सेक्स के दौरान हृदय गति काफी तेज हो जाती है जिससे रक्त संचार बढ़ जाता है इस कारण शारीरिक और मानसिक रूप से स्फूर्ति का अनुभव होता है. कुल मिलाकर सेक्स करने से मानसिक तनाव में कमी आती है.
2.हड्डियां होती हैं मजबूत: नियमित रूप से सहवास करने पर शरीर की हड्डियां भी मजबूत होती है. सेक्सॉलाजिस्ट व चिकित्सकों की माने तो नियमित सेक्स से हार्मोन एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ जाता है. इस बजह से महिलाओं की हड्डियों में आने वाली कमजोरी ऑस्टियोपॉरिसिस रोग में लगाम लगने लगती है, साथ ही इस रोग के होने की संभावना कम होने लगती है. इस बात को डॉ. सहाह ब्रीवर भी सिद्ध कर चुके हैं.

3.आयु बढ़ती हैः नियमित सेक्स करने वाले लंबी आयु के मालिक होते है ऐसा कई परीक्षणों और सर्वे से सिद्ध हो चुका है. जो लोग नियमित तौर से संभोग करते हैं और जिनके मन में सेक्स को लेकर किसी तरह की शंका नहीं होती और सेक्स का अंदाज बेफ्रिक होता है वे उन लोगों की अपेक्षा ज्यादा लंबी आयु पाते हैं जो महीने में एक बार सेक्स करते हैं.
4.दर्द निवारक है सेक्स: सेक्स क्रिया एक बेहतरीन प्राकृतिक दर्द निवारक का भी काम करती है. चूंकि सेक्स क्रिया के दौरान एंड्रोफिंस हार्मोन निकलता है जो दर्द कम करने का कार्य करता है. इसी तरह सेक्स के दौरान बढ़ने वाली एस्ट्रोजन की मात्रा भी प्री मेन्सुट्रुअल सिन्ड्रोम और मासिक स्त्राव के समय होने वाली परेशानियों से बचाती है. कई बार अनियमित मासिक चक्र भी नियमित हो जाता है. सेक्सोलॉजिस्ट एवं चिकित्सक डॉ. आर. के जैन बताते हैं कि सेक्स करने से आर्थराइटिस से पीड़ित महिलाओं को काफी आराम मिलता है. डॉ. जैन के मुताबिक सेक्स से सिरदर्द और माइग्रेन तक दूर हो जाता है. वहीं कुछ चिकित्सक तो यहां तक कहते हैं कि सेक्स करने से सर्दी जुखाम तक नहीं होता हां यह अलग है सर्दी जुखाम में सेक्स न करने की भी सलाह दी जाती है.
5.निद्रारोग से बचाता है सेक्स: आज की तेज और भागमभाग जीवनशैली में निद्रारोग एक आम बीमारी बनता जा रहा है. नींद न आने की समस्या से आज 56 फीसदी बेरोजगार युवा जूझ रहा है तो कुल जनसंख्या के मान से 48 फीसदी लोग नींद की बीमारी से परेशान हैं. ऐसे में सेक्स एक कारगर दवा साबित हो सकता है. सेक्स के दौरान ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिसका शरीर को काफी बेहतर अहसास होता है और चैन की नींद आती है. दूसरा सेक्स के बाद चिंता व तनाव न होने से भी नींद बेहतर ही आती है. दूसरी ओर सेक्स का प्रभाव इस मामले में पुरुषों में ज्यादा पड़ता है इसलिये ज्यादातर पुरुष सेक्स के बाद सोना पसंद करते हैं.
6.यौवन बरकरार रखता है सेक्स: एक चिकित्सकीय सर्वेक्षण से सिद्ध हुआ है कि वे दंपति जो सप्ताह में तीन बार सहवास करते हैं वे उन लोगों की अपेक्षा ज्यादा युवा दिखते हैं जो कभी-कभी सेक्स करते हैं या नहीं करते हैं. इसके कारणों के बारे में बताया गया है कि सेक्स क्रिया में जो ऊर्जा लगती है उससे ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है तथा रक्त प्रवाह तीव्र होने के साथ रक्त का संचार त्वचा में भी तेजी से होने लगता है जिससे त्वचा में नई कोशिकाएं बनती हैं. इस वजह से त्वचा में एक नहीं कांति या चमक पैदा होती है. वहीं दूसरी और वे महिलाएं जिनको रजोनिवृत्ति (menopause) हो चुकी है अगर सहवास क्रिया करती रहती हैं तो उन्हें गर्मी या पसीना आने की शिकायत नहीं रहती है. ऐसी महिलाओं पर आयु का ज्यादा प्रभाव भी नहीं पड़ता है.

7.शक्तिवर्धक है सेक्स: सेक्स उत्तेजना के दौरान ताजा खून सारे शरीर में तेजी से दौड़ने लगता है. यहां तक कि यह प्रवाह दिमाग में भी होता है. इससे उस क्षेत्र में रक्त संचार बढ़ जाता है. इस वजह से धमनियां मजबूत होती हैं साथ ही मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ने से वह ज्यादा कठिन काम कर सकता है. रक्त संचार में वृद्धि विभिन्न शारीरिक दुर्बलताओं को दूर करती है.
8.हार्ट अटैक से बचाता है सेक्स: चिकित्सकीय अनुसंधानों से स्पष्ट हो चुका है और हृदय रोग विशेषज्ञों का कहना है कि सप्ताह में तीन बार कम से कम 20 मिनट तक सेक्स क्रिया करने से हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है, साथ ही हृदय गति में भी सुधार होता है. चिकित्सको की माने तो उनका कहना है कि सेक्स के दौरान हृदय के स्पंदन की गति सेक्स के दौरान तेज हो जाती है और पूरे शरीर में खून की गति बढ़ जाने से जहां तहां थोड़ा बहुत अवरोध होता है वह साफ हो जाता है.
9.व्यायाम भी है सेक्स: एक तरफ जहां व्यायाम करने से आपके सेक्स जीवन में सुधार आता है वहीं यह खुद एक प्रभावशाली व्यायाम है. सेक्स मांसपेशियों की टोनिंग करने में मदद करता है. तीस मिनट की सेक्स प्रक्रिया के दौरान एक आम व्यक्ति की करीब दो सौ कैलोरी खर्च होती हैं, यानी अगर आप प्रतिदिन इसे करते हैं तो हर दो हफ्ते बाद आपका आधा किलो वजन घट सकता है. अगर आप एक साल तक हफ्ते में तीन बार इसे करते हैं तो यह दो सौ किलोमीटर दौड़ने के बराबर होता है।


आगे अभी और भी है...

Tuesday, October 02, 2007

गर्भावस्था के दौरान सेक्स

इस विषय पर काफी जटिलताएं भरी हुई हैं. गर्भधारण के साथ ही तरह-तरह के मिथक सेक्स को लेकर बताएं जाने लगते हैं वहीं ज्यादातर पुराने लोग गर्भावस्था के दौरान सेक्स न करने की सलाह देते नजर आने लगते हैं . गर्भावस्था के दौरान सेक्स के बारे में कम बाते की जाती हैं क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक मानसिकता में घुला हुआ है कि गर्भावस्था के दौरान सेक्स नहीं करना चाहिए. लेकिन वास्तविकता में ऐसा कुछ है नहीं. यह अलग है कि इस दौरान कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए. इसलिये जरूरी है इस मिथक की वास्तविकता को जानकर गर्भावस्था के दौरान भी अपनी सेक्स लाइफ आनंददायी बना सकते हैं.
यहां यह बात सबसे पहले समझ लेनी चाहिये कि सेक्स और सेक्सुअलिटी दोनों में काफी अन्तर है. और जब तक संतुष्टिदायक सेक्स नहीं किया जाता है तब तक सेक्सुअलिटी में होने वाली बढ़ोत्तरी परेशान करती रहती है. यह स्थितियां गर्भावस्था के दौरान भी होती है. इसलिये जरूरी है कि गर्भावस्था के दौरान भी सेक्स किया जाए लेकिन गर्भ में पल रहे शिशु की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी महत्वपूर्ण होती है. इस अवस्था में सेक्स के लिये कुछ बाते हैं जिनका ध्यान रखना जरूरी है-
1\. सेक्स के दौरान ज्यादा से ज्यादा कोशिश होनी चाहिये कि पेट पर दबाव कम से कम हो.
2\. इस दौरान गहराई तक प्रवेश वाली सेक्स पोजीशनों से बचना चाहिये साथ ही वह पोजीशन अपनाना चाहिये जो गर्भवती के लिये आरामदायक हो.
3\. सेक्स या सेक्स पूर्व क्रीड़ा के दौरान योनि में पानी , हवा या किसी भी बाह्य वस्तु के प्रवेश से बचना चाहिये. इस अवस्था में योनि को नल धावन से बचाना चाहिये.
4\. इस अवस्था में महिला को सेक्स के दौरान हमेशा ‘ना’ कहने का अधिकार है.
5\. यदि समय पूर्व प्रसव की संभावना हो तो कामोन्माद व सेक्स से बचना चाहिये. इस दौरान निप्पल की उत्तेजना से बचना चाहिये.
6\. यदि उल्बीय (amniotic) द्रव रिस रहा हो तो सेक्स नहीं करना चाहिये.
7\. यदि किसी भी तरीके से महिला की इच्छा सेक्स के लिये नहीं है तो सेक्स नहीं करना चाहिये.
8\. यदि इस दौरान मुख मैथुन कर रहे हों तो अपने पार्टनर को यह पहले बता दें कि वह योनि में फूंक न मारे. क्योंकि योनि में हवा जाने से आगे की रक्त वाहिनियों के रक्त में हवा का बुलबुला बना कर उन्हें बाधित कर सकती है. जो मां और होने बाले बच्चे दोनों के लिये हानिकारक हो सकता है.
9\. किसी भी तरह की संक्रामित बीमारी होने पर सेक्स बिल्कुल नहीं करना चाहिये.
10\. यदि प्लेसेंटा नीचे है तो भी सेक्स नहीं करना चाहिये क्योंकि यह गर्भाशय के मुंह द्वारा ढंका होता है और नीचे होने पर हल्का सा भी धक्का प्लेसेंटा को क्षतिग्रस्त कर सकता है, इससे प्लेसेंटा से रक्तस्राव हो सकता है.


किस महीने तक सुरक्षित है सेक्स करना

गर्भावस्था के दौरान प्रसव के कुछ दिनों पूर्व तक सेक्स किया जा सकता है. गर्भावस्था के दौरान तभी सेक्स नहीं कर सकते जब जब चिकित्सक ने किसी विशेष बीमारी, शारीरिक कमी या अन्य कारणों से सेक्स के लिये मना किया हो. यह अलग बात है कि गर्भावस्था के जैसे-जैसे दिन गुजरते जाते हैं सेक्स पोजीशन में बदलाव करते जाना चाहिये. वैसे गर्भावस्था के द्वितीय चरण अर्थात 14 से 28 वें सप्ताह तक सेक्स करना सबसे बेहतर होता है क्योंकि इस दौरान स्तनों में भराव आने से वे उत्तेजन दिखने लगते हैं तथा उत्तेजना का संचार ज्यादा होता है, इस दौरान योनि में स्निग्धता पूर्व की अपेक्षा ज्यादा आ जाती है तथा श्रोणि क्षेत्र (pelvic region) में रक्त संचार ज्यादा होने से कसाव बेहतर रहता है. इसके विपरीत गर्भावस्था के प्रथम चरण अर्थात पहले 14 हफ्ते में महिलाएं सेक्स को लेकर कुछ भयभीत रहती है. क्योंकि इस दौरान उन्हें होने वाली थकान, उल्टी, मितलीआदि सेक्स इच्छा से दूर करती हैं इसी तरह तृतीय चरण मेंशरीर के भारीपन से होने वाली थकान, शारीरिक पीड़ा व पेट के खिंचाव व योनि क्षेत्र पर पडने वाले दबाव के दर्द से वे सेक्स से बचना चाहती है. लेकिन यदि महिलाओं को गर्भावस्था व सेक्स की जागरुकता हो तो इन अवस्थाओं को सामान्य तरीके से लेंगी और सेक्स से उनकी विरक्ति कम होती जाएगी. यह ध्यान देने योग्य है अंतिम चरण में सेक्स क्रिया काफी धीमे गति व संतुलित तरीके से करनी चाहिये.




गर्भावस्था की सेक्स पोजीशन :

गर्भधारण के बाद महिला-पुरुष दोनों ही सेक्स पोजीशन को लेकर परेशान होते हैं कि उनके लिये कौन सी सेक्स पोजीशन बेहतर होगी. यहां इसी समस्या का समाधान करने की कोशिश की गई है. लेकिन सेक्स पोजीशन जानने से पहले यह जरूर दिमाग में बैठा लें कि इस अवस्था में वहीं सेक्स पोजीशन प्रयोग में लाएं जिसमें आप गहराई और प्रवेश को नियंत्रित कर सकें.
1. स्पून पोजीशन : यह पोजीशन काफी आरामदायक और घनिष्टता या निकटता प्रदान करने वाली होती है. इसमें दोनों पार्टनर करवट के बल c की आकृति बनाते हुए एक ही दिशा में मुंह करके लेट जाएं. फिर पुरुष पीछे से प्रवेश क्रिया प्रारंभ करे. इस पोजीशन में महिला काफी आराम महसूस करती है तथा धक्कों को अपने तरीके से नियंत्रित कर सकती है. इस क्रिया में गर्भ को आधार मिला होता है जिससे महिला को अतिरिक्त वजन नहीं झेलना पड़ता. (देखेः चमचा पोजीशन)

2. महिला उपर होः यह पोजीशन ज्यादातर तब प्रयोग की जाती है जब गर्भावस्था का तीसरा चरण चल रहा होता है. इसमें नियंत्रण महिला के हाथ में होता है तथा महिला को धीरे चलने की अनुमति प्रदान करता है. यहां यह ध्यान रखे की प्रवेश ज्यादा गहरा न होने पाए. महिला चाहे तो इस दौरान उपर बैठने की अवस्था भी स्वीकार कर सकती है लेकिन इसमें प्रवेश गहरा हो जाता है. (देखेः जब महिला उपर हो)

3. आमने सामने : यह बड़े गर्भ वाली महिलाओं और गर्भावस्था के तीसरे चरण के लिये बेहतर पोजीशन है. इस पोजीशन में धक्के की गहराई और तीव्रता को नियंत्रित किया जा सकता है और गर्भ के वजन को हल्का किया जा सकता है.इसके लिये दोनों पार्टनर एक दूसरे की ओर चेहरा करके करवट के बल लेट जाएं फिर पुरुष अपने पैर को महिला के कूल्हों या जांघों के उपर रख कर एक एंगल से प्रवेश क्रिया करेगा इस दौरान महिला चाहे तो अपने पैर सीधे रख सकती है या घुटनों से पीछे मोड़ सकती है. इसमें सुविधा अनुसार परिवर्तन भी कर सकते हैं मसलन बगैर पैर चढ़ाए प्रवेश किया जा सकता है.(देखें: अगल बगल पोजीशन)

4.पीछे से प्रवेश : यह पोजीशन पुरुष को तेज धक्के की अनुमति देती है. यह शुरुआती चरण के लिये बेहतर पोजीशन है. इसमें महिला अपने हाथो के सहारे अपना एक पैर समकोण और दूसरा उसके कुछ दूर 45 अंश के कोण पर फैलाते हुए बिस्तर से उंचाई पर अपने को आधार देती है फिर पुरुष अपने घुटने के बल आकर प्रवेश क्रिया प्रारंभ करता है. (देखें: श्वान पोजीशन)

5. बैठी पोजीशन : यह पोजीशन एक बेहतरीन पोजीशन मानी जाती है. इसमें महिला किसी बिस्तर के किनारे या आराम कुर्सी पर बैठ जाती है फिर पुरुष या तो घुटनों के बल बैठ कर या खड़े होकर (सुविधानुसार) प्रवेश क्रिया को अंजाम देता है. इस दौरान पुरुष चाहे तो महिला के पांवों को अपने उपर रख सकता है. इस सेक्स पोजीशन में भी सुविधानुसार आप अपने परिवर्तन कर सकते हैं. (देखें:हर्षित पोजीशन)

6. बिस्तर का किनारा : यह पोजीशन काफी सुरक्षात्मक पोजीशन है लेकिन गर्भावस्था के तीसरे चरण में इसे नहीं करना चाहिए इससे तनाव होने से गर्भ को दिक्कत हो सकती है. इस पोजीशन के लिए महिला बिस्तर की कोर पर लेट जाती है इस दौरान उसके पैर जमीन पर होते है फिर पुरुष खड़े होकर या बिस्तर से हाथों को सहारा देते हुए झुककर प्रवेश कराता है. यह पोजीशन तीव्र धक्के की अनुमति देती है इस लिये सेक्स से पहले बता दें कि कितना धक्का आप सह सकती है.

7. महिला नीचे हो : यह पोजीशन हालांकि गर्भावस्था के लिये बेहतर नहीं मानी जाती है लेकिन कुछ महिलाएं इसे पसंद करती है. इस पोजीशन को प्रथम चरण तक ही इस्तेमाल करना चाहिये. चौथे माह के बाद इस पोजीशन को नहीं करना चाहिए. चौथे माह के बाद इस पोजीशन में असावधानी होने पर गर्भाशय का वजन गर्भाशय व पैर में पहुंचने वाली रक्त वाहिनियों को बाधित कर सकता है. इस पोजीशन के लिये महिला मिशनरी पोजीशन की तरह लेट जाती है तथा घुटनों पैर उठा लेती है ताकि पुरुष प्रवेश के दौरान जब नीचे आए तो गर्भ पर वजन न पड़े साथ ही धक्के नियंत्रित रह सकें. पुरुष भी महिला के उपर आकर घुटनों के उपर के भाग को सीधा रखते हुए प्रवेश करता है.
नोट- उपर दिया गया मैटर सेक्स शिक्षा के उद्देश्य से है. इसे चिकित्सकीय परामर्श या चिकित्सकीय सलाह के रूप में न ले. कोई समस्या होने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें.
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गर्भावस्था के दौरान परिवर्तन

पहला महीना: शारीरिक मासिक स्त्राव आना रुक जाता है. थकावट महसूस होना और हर समय नींद आना। जल्दी-जल्दी यूरिन का प्रेशर होना. जी मिचलाना, उल्टी आना या उल्टी की फीलिंग होना. स्लाइवा ज्यादा बनने लगता है. छाती में जलन, बदहजमी, गैस बनना. भोजन के प्रति अरुचि या किसी चीज को खाने की तीव्र इच्छा होना. स्तनों में परिवर्तन, (जिन महिलाओं में माहवारी से पहले स्तनों में परिवर्तन होता है, उनके साथ ऐसा ज्यादा होता है) भारीपन, फूलना, जलन महसूस होना. अरीअॅला में कालापन बढ़ना (निप्पल के आसपास का हिस्सा). स्तनों में रक्त प्रवाह बढ़ने से त्वचा के अंदर हल्की नीली रेखाओं का जाल-सा बन जाता है. भावनात्मक मासिक धर्म से पहले के लक्षणों की तरह अस्थिरता, चिड़चिड़ापन, रोने का मन होना, अक्सर मूड का बदलते रहना. आशंकाओं से घिरना, भयभीत रहना, प्रसन्नता, उमंग से भरना-इनमें से कोई भी स्थिति हो सकती है.
दूसरा महीना:शारीरिक थकावट महसूस होना और हर समय नींद आना. जल्दी-जल्दी यूरिन का प्रेशर होना। जी मिचलाना, उल्टी आना या उल्टी की फीलिंग होना. स्लाइवा ज्यादा बनने लगता है. कब्ज, छाती में जलन, बदहजमी, गैस बनना. भोजन के प्रति अरुचि या किसी चीज को खाने की तीव्र इच्छा होना. स्तनों में परिवर्तन, भारीपन, फूलना, जलन महसूस होना. अरीअॅला में कालापन बढ़ना. स्तनों में रक्त प्रवाह बढ़ने से त्वचा के अंदर हल्की नीली रेखाओं का जाल-सा बन जाता है. कभी-कभी सिरदर्द होना, कभी-कभी बेहोशी या चक्कर आना, कमर और स्तनों के आसपास उभार बढ़ना, पेट का आकार बढ़ना, गर्भाशय में वृद्धि होने से नहीं वरन कब्ज के कारण ऐसा होता है. भावनात्मक मासिक धर्म से पहले के लक्षणों की तरह अस्थिरता, चिड़चिड़ापन, रोने का मन होना, अक्सर मूड का बदलते रहना. आशंकाओं से घिरना, भयभीत रहना, प्रसन्नता, उमंग से भरना-इनमें से कोई भी स्थिति हो सकती है.
तीसरा महीना: शारीरिक थकावट महसूस होना और हर समय नींद आना. जल्दी-जल्दी यूरिन का प्रेशर होना। जी मिचलाना, उल्टी आना या उल्टी की फीलिंग होना. स्लाइवा ज्यादा बनने लगता है. कब्ज, छाती में जलन, बदहजमी, गैस बनना. भोजन के प्रति अरुचि या किसी चीज को खाने की तीव्र इच्छा होना. स्तनों में परिवर्तन, भारीपन, फूलना, जलन महसूस होना. अरीअॅला में कालापन बढ़ना. स्तनों में रक्त प्रवाह बढ़ने से त्वचा के अंदर हल्की नीली रेखाओं का जाल-सा बन जाता है. कभी-कभी सिरदर्द होना, कभी-कभी बेहोशी या चक्कर आना, कमर और स्तनों के आसपास उभार बढ़ना, पेट का आकार बढ़ना, गर्भाशय में वृद्धि होने से नहीं वरन कब्ज के कारण ऐसा होता है. भावनात्मक मासिक धर्म से पहले के लक्षणों की तरह अस्थिरता, चिड़चिड़ापन, रोने का मन होना, अक्सर मूड का बदलते रहना. आशंकाओं से घिरना, भयभीत रहना, प्रसन्नता, उमंग से भरना-इनमें से कोई भी स्थिति हो सकती है. अपने भीतर एक सुकून का अहसास होना.
चौथा महीना: शारीरिक थकावट, यूरिन के जल्दी-जल्दी आने में कमी, जी मिचलाना और उल्टी आना कम या बंद हो जाना. (कई महिलाओं में मार्निग सिकनेस बनी रहती है, कई महिलाओं में इसकी शुरुआत होती है) कब्ज,छाती में जलन, बदहजमी, गैस बनना. स्तनों के आकार में निरंतर वृद्धि, लेकिन सूजन में कमी। कभी-कभी सिरदर्द होना. मसूढ़े नरम हो जाने की वजह से ब्रश करते समय खून आ सकता है, भूख का बढ़ना. पैरों, चेहरे व हाथों में सूजन आना. कब्ज और ज्यादा रक्त प्रवाह के कारण इस समय बवासीर हो सकती है. योनि मार्ग से थोड़ा-सा सफेद स्त्राव बह सकता है. इससे खुजली होना भी सामान्य है. महीना खत्म होने के दौरान भ्रूण का हिलना महसूस होना. भावनात्मक मासिक धर्म से पहले के लक्षणों की तरह अस्थिरता, चिड़चिड़ापन, रोने का मन होना, अक्सर मूड का बदलते रहना. स्वयं को गर्भवती मानने के कारण खुशी महसूस होना. स्वयं के बढ़ते आकार को लेकर चिंतित होना. स्वयं को बिखरा-बिखरा महसूस करना, चीजों को रखकर भूलना, हाथ से सामान का गिर जाना, किसी काम में मन न लगना.
पांचवा महीना: शारीरिक बच्चे का हिलना, योनि मार्ग से सफेद स्त्राव के आने की मात्रा बढ़ना. शरीर में खुजली होना, खासकर पेट के निचले हिस्से में. कब्ज, छाती में जलन, बदहजमी, गैस बनना. कभी-कभी सिरदर्द होना, बेहोशी या चक्कर आना. मसूढ़े नरम हो जाने की वजह से ब्रश करते समय खून आ सकता है. बहुत ज्यादा भूख लगना. टांगों में ऐंठन होना. एडि़यों और पैरों में हल्की सूजन, कभी-कभी चेहरे व हाथों में भी सूजन आना. कब्ज और ज्यादा रक्त प्रवाह के कारण इस समय बवासीर हो सकती है. नब्ज की गति में वृद्धि होना. सेक्स में कम या ज्यादा रुचि होना. कमर में दर्द, चेहरे या पेट के रंग में बदलाव आना. भावनात्मक गर्भावस्था की स्थिति को स्वीकारना, मूड के बदलाव में कमी आना, लेकिन चिड़चिड़ापन कायम रहना. किसी काम में मन न लगना.
छठा महीना: शारीरिक बच्चे के हिलने में वृद्धि होना. सफेद स्त्राव का बहना. शरीर में खुजली होना, खासकर पेट के निचले हिस्से में. कब्ज, छाती में जलन, बदहजमी, गैस बनना. कभी-कभी सिरदर्द होना, बेहोशी या चक्कर आना. मसूढ़े नरम हो जाने की वजह से ब्रश करते समय खून आ सकता है. बहुत ज्यादा भूख लगना. टांगों में ऐंठन होना, एडि़यों और पैरों में हल्की सूजन. कभी-कभी चेहरे व हाथों में भी सूजन आना. कब्ज और ज्यादा रक्त प्रवाह के कारण इस समय बवासीर हो सकती है. पेट में खुजली होना. कमर में दर्द, चेहरे या पेट के रंग में बदलाव आना. स्तनों के आकार में वृद्धि होना. भावनात्मक मूड के बदलाव में कमी आना, काम में मन न लगना. गर्भावस्था के कारण बोरियत का शुरू होना. (यह सोचकर कि इसके सिवाय किसी और चीज पर ध्यान ही नहीं लगा सकते) भविष्य को लेकर चिंतित रहना.
सातवां-आठवां महीना: शारीरिक बच्चे का ज्यादा तीव्रता से पेट में घूमना. योनि मार्ग से सफेद स्त्राव के बहाव में वृद्धि होना. पेट के निचले हिस्से में खुजली होना. कब्ज, छाती में जलन, बदहजमी, गैस होना। कभी-कभी सिरदर्द होना, बेहोशी या चक्कर आना. मसूढ़े नरम हो जाने की वजह से ब्रश करते समय खून आ सकता है. टांगों में ऐंठन, कमर में दर्द। एडि़यों और पैरों में हल्की सूजन. कभी-कभी चेहरे व हाथों में भी सूजन आना. कब्ज और ज्यादा रक्त प्रवाह के कारण इस समय बवासीर हो सकती है. पेट के निचले हिस्से में खुजली. सांस लेने में दिक्कत आना, सोने में मुश्किल महसूस होना. दर्दरहित ब्रेक्सटन हिक्स कांट्रेक्शंस (यूट्रस कुछ सेकेंड के लिए सख्त होता है, फिर सामान्य अवस्था में आ जाता है). बढ़े हुए स्तनों से कोलोस्ट्रम (एक प्रकार का तरल) का निकलना. भावनात्मक अपने और बच्चे के स्वास्थ्य और प्रसव के बारे में सोचकर आशंकित रहना. किसी भी काम में मन न लगना. बोरियत और थकावट का बढ़ना. इस स्थिति के खत्म होने का इंतजार. इस बात की खुशी होना कि बच्चे के जन्म में देर नहीं है।
नौवां महीना: शारीरिक बच्चे की गतिविधि में बदलाव. योनि मार्ग से निकलने वाला सफेद स्त्राव में म्यूकस की मात्रा का बढ़ जाना. कब्ज, छाती में जलन बढ़ना, बदहजमी, वायु का होना. कभी-कभी सिरदर्द होना, बेहोशी और चक्कर आना. मसूढ़ों से खून आना. सोते समय टांगों में ऐंठन होना, कमर दर्द का बढ़ना और भारीपन महसूस होना. हिप्स और पेल्विक में परेशानी व खुजली. पैरों, चेहरे व हाथों में सूजन आना. पेट के निचले हिस्से में खुजली, नाभि का बढ़ना, योनि द्वार में सूजन हो सकती है. कब्ज और ज्यादा रक्त प्रवाह के कारण इस समय बवासीर हो सकती है. सोने में परेशानी बढ़ना. ब्रेक्सटन हिक्स कांट्रेक्शंस का ज्यादा बढ़ना. शरीर के आकार के बढ़ने से चलने-फिरने में दिक्कत आना. बढ़े हुए स्तनों से कोलोस्ट्रम का निकलना. भूख का बढ़ना या भूख कम लगना। भावनात्मक ज्यादा उत्साह, चिंता, आशंकाएं, अस्थिरता का बढ़ना. इस बात की खुशी कि अब जल्द ही यह अवस्था खत्म होने वाली है. बेचैनी और अधीरता. बच्चे के बारे में कल्पना करना( यह मैटर हैदराबाद से दीपिका शाही ने भेजा है. इसमें किसी गलती के लिए ब्लाग ऑनर जिम्मेदार नहीं है. उसे यथा स्थिति प्रकाशित कर दिया गया है)



Friday, September 14, 2007

सेक्स संबंधी मिथक (भाग 2)

मिथक 11- महिला भी स्खलित होती है.

सच्चाईः यह मिथक काफी चर्चित मिथक है जबकि इसका सत्यता से कोई नाता नहीं है. ज्यादातर अश्लील फिल्मों और अश्लील किताबों में महिला स्खलन के गलत चित्रों व कथाओं को प्रचारित किया जाता है जबकि वास्तविकता में महिला स्खलित होती ही नहीं है. जब महिला उत्तेजित होती है तो वह योनि मार्ग में स्निग्धता (चिकनाहट) को ठीक उसीतरह पाती है जिस तरह पुरुष उत्तेजना के दौरान लिंग में उठाव पाता है. और जब वह चरमोत्कर्ष पर पहुंचती है तो उसे पूर्ण तृप्तता की अनुभूति मात्र होती है. चरमोत्कर्ष पर महिलाओं में पुरुषों की तरह न गुप्तांग में संकुचन अनिवार्य होता और न ही महिलाएं पुरुषों की तरह स्खलित होकर वीर्य छोड़ती हैं.

यह अलग है कुछ लोग महिलाओं में तीव्र उत्तेजना के दौरान मूत्रद्वार से छोड़े जाने वाले रंगहीन व स्वादहीन द्रव को महिला का स्खलन मानते हैं (देखें: जी-स्पॉट द्वारा तीव्र स्खलन) लेकिन यह स्खलन नहीं है.


मिथक 12- बड़े स्तनों से ज्यादा सेक्सुअल परफार्मेन्स मिलता है.

सच्चाईः यह ज्यादातर पुरुष और महिलाओं दोनों के बीच समान रूप से पाई जाने वाली भ्रांति है कि बड़े स्तन ज्यादा सेक्स उत्तेजना में सहायक होते हैं. लेकिन यह गलत है. बड़े स्तन देखने में भले ज्यादा सेक्सी लग सकते हैं लेकिन हकीकत में बड़ें स्तनों की अपेक्षा छोटे स्तनों से ज्यादा सेक्सुअल परफार्मेन्स मिलता है. यदि कोई बड़े स्तन को महत्व देता है या बड़े स्तन चाहता है तो वह सेक्स उत्तेजना को प्रभावित करता है. स्तनों में पाई जाने वाली चैतन्य नसें जो उत्तेजना के स्पंदन को महसूस कराती है उनका बड़े स्तनों में फैलाव दूर-दूर हो जाता है जबकि छोटे स्तनों में इनका फैलाव ज्यादा न होने से काफी छोटी जगह में ही सघनता से होती है. इसलिए छोटे स्तनों में उत्तेजना के दौरान इन्द्रियबोध या सनसनी बड़े स्तनों की अपेक्षा ज्यादा होती है. शोध के उपरान्त सेक्सोलॉजिस्ट बताते हैं कि औसतन स्तनों में इन्द्रियबोध कराने वाली नसों की संख्या समान होती है. चाहे वह बड़े स्तन हो या छोटे स्तन. फिर भौतिक विज्ञान के नियमों के आधार पर यह सिध्द कर दिया कि छोटे स्तन ज्यादा संवेदी होते है. सेक्सोलॉजिस्ट के अनुसार भौतिक विज्ञान के दबाव समीकरण P= F/A जहां P दबाव, F बल और A सतही क्षेत्र है. इस आधार पर जहां A अर्थात स्तन जितना छोटा होगा उतना ही ज्यादा P अर्थात उकसाने वाला दबाव मिलेगा. इस आधार पर छोटे स्तन ज्यादा आसानी व प्रभावी तरीके से उत्तेजित हो सकते है. ये ज्यादातर शोध 20वीं सदी में किये गए जब महिलाएं अपने फिगर के मद्देनजर बड़े स्तनों की ओर झुकाव रखती थी तथा इसके लिये सिलिकान ब्रेस्ट सहित प्लास्टिक सर्जरी तथा अन्य की ओर रुझान तेज होने लगा था तभी मोटे पैड वाले ब्रा भी चलन में आए. इन सबसे महिलाओं में नई बीमारियां व साइड इफेक्ट होने लगे. तब व्यापक स्तर पर स्तनों को लेकर जागरुकता अभियान भी चलाया गया.

मिथक 13- लिंग का टेढ़ापन बीमारी है.

सच्चाईः यह किशोरों से लेकर हर आयु वर्ग के बीच पाई जाने वाली भ्रांति है. जबकि इसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है. भारत में तो नीमहकीम और सेक्स चिकित्सा की दुकान चलाने वाले अपने विज्ञापनों में लिंग के टेढ़ेपन को बीमारी बताकर लोगों को ठगने का प्रयास करते हैं. जबकि लिंग का किसी एक दिशा में झुकाव सामान्य घटना है. एक चिकित्सकीय सर्वेक्षण के मुताबिक एक चौथाई लिंग किसी न किसी ओर (दाएं या बाएं) झुके होते है और कुछ लिंग उठाव के दौरान अधोमुखी झुके होते है. इसलिये लिंग का यह झुकाव जबतक कष्टकारक या दर्द का कारण न बन रहा हो तब तक लिंग के साथ कुछ भी असामान्य या गलत नहीं है. लिंग का यह झुकाव संभोग में कोई व्यवधान या परेशानी नहीं डालता है. कई लोगों का तो कहना है कि लिंग का अधोमुखी झुकाव प्रवेश के लिये ज्यादा बेहतर होता है. वहीं ज्यादातर लिंगों में बायीं ओर झुकाव होने का कारण है कि बायां वृषण दायें की अपेक्षा छोटा होता है. इसलिये आदमी जब अण्डरगारमेंट पहनता है तो अपने लिंग को बायीं ओर एडजस्ट करता है, क्योंकि इस ओर दाहिनी ओर की अपेक्षा पर्याप्त स्थान मिल जाता है. इसका जो चिकित्सकीय कारण है वह यह है कि लिंग के अंदर जो सॉफ्ट होती है वह संरचनागत स्थितियों की वजह से एक ओर खिंचती है जिससे लिंग एक ओर झुका रहता है. यह किसी लज्जा या बीमारी की बात नहीं होती है.
मिथक 14- एक बेहतर फीगर वाली महिला से बेहतर सेक्स संतुष्टि मिल सकती है.

सच्चाईः यह आम जनमानस में बैठे काफी प्रसिद्ध भ्रांति है. विशेषकर पुरुष वर्ग में तो यह धारणा काफी अंदर तक भरी है कि छरहरे और सुडौल बदन वाली महिलाएं ज्यादा बेहतरीन सेक्स पार्टनर साबित होती है. लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है. किसी भी पत्रिका या पोस्टर में सुन्दर सुडौल शरीर वाली महिला को देखकर आमतौर पर लोग यही सोचते हैं कि इस महिला के साथ संसर्ग पर बेहतर अनुभव मिलेगा. लेकिन अभी हाल ही में 35 से 55 साल की उम्र के बीच की महिलाओं पर किये गए अध्ययन से पता चला है कि स्त्री पुरुष के बीच के शारीरिक सुडौलता को लेकर बने संबंध काफी जटिल और उलझे हुए होते हैं. सामान्य तौर पर उदाहरण बताते हैं कि कमजोर शारीरिक अक्श का संबंध सेक्सुअल अभिलाषा और सेक्सुअल क्रिया में कमी या कटौती से होता है. लेकिन अध्ययन बताते हैं कि जब कमजोर शरीर की महिला संभोगरत होती है तो उसकी संतुष्टि और तृप्ति (satisfaction) का स्तर वास्तविकता में काफी उपर होता है. सेक्स क्रिया का यह अनुभव काफी पुराना है कि ऐसे कुछ लोग जो बाह्य दुनिया में अपने शरीर को लेकर काफी चौकन्ने तथा जागरुक होते है वे भी संभोग के दौरान अपने विश्वसनीय पार्टनर के साथ बिना किसी मान मर्यादा का ख्याल किये स्वाभाविक रुप से तथा काफी सहज अवस्था में आ जाते हैं. ठीक इसी तरह वह महिला जो अपने उम्र के दौरान बाह्य दुनिया के लिये शारीरिक सौंदर्य से मालामाल होती है वह भी बेडरूम में सेक्स के दौरान संतुष्टि को लेकर परेशान हो जाती है. इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि गदराए बदन वाली महिला बेहतर सेक्स संतुष्टि दे सकती है. चिकित्सा विज्ञान और सेक्सोलॉजिस्ट का भी यही मानना है कि सेक्स संतुष्टि व काम क्रिया का महिला के शारीरिक बनावट से कोई लेना देना नहीं होता है. यह सिर्फ मानव मस्तिष्क का एक फितूर मात्र है. सेक्स के लिये शारीरिक संरचना सामान्य लेकिन संतुष्टि महत्वपूर्ण मामला होता है. इसलिये महिला शारीरिक सौदर्य व त्वचा का ख्याल तो रखे लेकिन उनके लिये जरूरी है उनकी सेक्स लाइफ तंदुरुस्त हो. इसलिये बेडरूम में पूर्ण संतुष्टि के लिये लिये महिला की शारीरिक बनावट कोई जादुई पैमाना नहीं है. हां यह अलग है सुन्दर बनावट मानव को आकर्षित करके सेक्स के लिये उद्वेलित कर सकती है लेकिन संतुष्ट नहीं.

मिथक 15- कठोरता और तेजी पसंद होती है महिलाएं.

सच्चाईः इस आम धारणा के विपरीत महिलाएं बिरले (कभी-कभी) ही यह शिकायत करती हैं (असंतुष्टता प्रकट करती हैं) कि उनका पार्टनर पर्याप्त कठोर और तेज नहीं है. ऐसा होने पर भी उनका कहना होता है कि “उन्हें पसंद है कि वे अपने पार्टनर से ज्यादा करीबी जुड़ाव का अनुभव करें, इसके अलावा उन्हें पसंद हैं कि उनका पार्टनर उनके साथ ज्यादा कोमलता व धीमेपन के साथ सभ्य शारीरिक स्पर्शकरे” यह कोमलता भरी धीमेपन की शैली पुरुषों के लिये भी चरम आनंददायक होती है और दोनों को ‘बेहतर परफार्मेंस’ के दबाव से मुक्त रखती है. कामुकता के हर शारीरिक व मानसिक हिस्से में प्रत्येक महिला व्यक्तिगत व विशिष्ट तौर पर आनंद के मामले में विशेष रूप से काफी अंतर रखती है और यह अवसर के अनुरूप बदलता रहता है. और यही वह महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसके बारे में युगल को परस्पर बातचीत करनी चाहिये, न कि सुनी सुनाई बातों के अनुरूप जबरन बेहतर परफार्मेन्स के लिये प्रयासरत रहना चाहिये. सन् 1999, 2001, 2004 व 2005 में एक कंडोम बनाने वाली कंपनी ने एशिया और यूरोप में इस मामले पर एक मनोवैज्ञानिक व सेक्सुअल सर्वे कराया जिसका परिणाम काफी चौकाने वाला रहा. इसके अनुसार एशिया की 70 फीसदी महिलाएं धीमी और शांत शुरुआत वाला सेक्स पसंद करती हैं तथा चरमोत्कर्ष के कुछ पहले ही तेजी व कठोरता पसंद की जाती है वही 20 फीसदी महिलाएं शुरुआती चरण से ही कठोरता व तेजी (जंगली अंदाज) पसंद करती है. 10 फीसदी महिलाओं इस मामले में कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं रहीं वही यूरोप में अविश्वसनीय तरीके से 80 फीसदी महिलाएं शालीन , सभ्य व धीमी शुरुआत पसंद होती है वही 12 फीसदी महिलाएं वाइल्ड सेक्स को पसंद करती हैं तथा 8 फीसदी का इस मामले से कोई लेना देना नहीं रहा . इस आधार पर यह कहना कि महिलाएं कठोरता व तेजी पसंद होती है सिर्फ एक मिथक है जिसका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है.

मिथक 16- महिलाओं में उत्तेजना पुरुषों की अपेक्षा कम होती है.

सच्चाईः यह कथन सत्यता से कोसों दूर है. दरअसल सामाजिक व शारीरिक संरचना की वजह से पुरातन काल से लोग इस मिथक को सत्य मानते चले आ रहे हैं. दरअसल भारत व इस जैसे ज्यादातर देशों में महिलाओं को लेकर सामाजिक परिवेश इतना कठोर होता है कि बचपन से ही महिला वर्ग को शर्म और झिझक का वह पर्दा लाद दिया जाता है कि वह खुल कर सेक्स या इन जैसे विषयों पर सामने नहीं आ सकती है. इसलिये महिला उत्तेजना जैसे नितांत निजी और अंतरंग मामलों को वह सामने नहीं ला पाती जिस वजह से उन्हें पुरुषों की अपेक्षा कमतर आंका जाता है जबकि हकीकत ठीक इसके विपरीत है. महिलाओं की उत्तेजना का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महिलाएं ही गुणात्मक रति-निष्पत्ति (multiple orgasms) में सक्षम होती है. दूसरा महिला-पुरुष की शारीरिक संरचना भी कुछ इस तरह होती है कि महिलाएं उत्तेजित होने में थोड़ा समय लेती है लेकिन उनकी उत्तेजना का आवेग और समय ज्यादा होता है. इसके अलावा महिलाओं में उत्तेजना को प्राप्त करने वाले अंग पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा होते है. शरीर विज्ञान के अनुसार महिलाओं के भगशिश्न में जितनी ज्यादा संख्या में संवेदनशील ग्रंथियां होती है उतनी पुरुष के शिश्न के अग्र भाग में नहीं होती है. यदि होती भी हैं तो भगशिश्न पुरुष शिश्न के अग्रभाग की अपेक्षा काफी छोटा होने की वजह से छोटे से स्थान में ही संवेदनशीलता ज्यादा होने से महिलाओं को उत्तेजना तुरंत मिल जाती है. इसके अलावा सेक्स क्रिया के दौरान महिलाओं की सेक्स सिसकारियां उनके शरीर की एंठन आदि शारीरिक हरकतें यह बताती हैं कि महिलाएं उत्तेजना के मामले में पुरुषों कम तो नहीं लेकिन कई मामलों में पुरुषों से ज्यादा ही होती हैं.

मिथक 17- उम्र ढलने के बाद सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है.
सच्चाईः औसत रूप से हर युवा द्वारा किसी प्रौढ़ या वृद्ध को देखकर यही कहा जाता है कि उम्र के साथ सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है लेकिन यह सच्चाई के विपरीत है. यह अलग बात है उम्र के अनुरूप सेक्स की अभिलाषा , सोच और क्रियाकलाप प्रभावित जरूर होते हैं लेकिन इसका यह कतई अर्थ नहीं है कि उसकी सेक्स की दौड़ खत्म हो गई है. चिकित्साजगत भी मानता है कि उम्र के ढलान पर भी यह पूरी तरह संभव है कि व्यक्ति सेक्स क्रिया को नख से शिख तक पूरा करते हुए पूरी तरह संतुष्ट कर सकता है और हो सकता है. व्यक्ति जिस तरह से जवानी में जितना आनंद सेक्स का उठा सकता है उतना ही उम्र की ढलान में उठा सकता है. यह अलग है कुछ जगहों पर कुछ चिकित्सकीय समस्या हो सकती है जिसे परामर्श द्वारा ठीक किया जा सकता है. यह एक मानसिक कारक है कि उम्र की ढलान के साथ सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है. हालांकि इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि जवानी के अनुरूप सेक्स की गति व क्षमता उम्र के ढलाव में भी होगी लेकिन यह नहीं कह सकते कि सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है. इसके अलावा कई सेक्स पोजीशन इस अवस्था में नहीं की जा सकती है वह शारीरिक अवस्था के चलते न कि इसे सेक्स अंगों की कमजोरी कहेंगे. महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद कई मनोवैज्ञानिक व सामाजिक परिवर्तन आते हैं इसके अलावा कई हार्मोनल परिवर्तन भी होते हैं. जिस वजह से योनि मार्ग की चिकनाहट कम हो जाती है व बाह्य दीवार पतली हो जाती है. इससे सेक्स क्रिया हल्के सूखे पन की वजह से पीड़ादायी हो जाती है. जिसे चिकनाहट वाले द्रव्य द्वारा ठीक किया जा सकता है. इसी के साथ इस अवस्था में पुरुषों में लिंग तनाव काफी समय में होता है. चरमोत्कर्ष देर से प्राप्त होता है . स्खलन भी काफी कम होता है. लेकिन यह नहीं कह सकते कि सेक्स क्षमता खत्म हो जाती है. कई बार तो बुड्‍ढे भी बेहतरीन सेक्स ज्ञान की वजह से जवानों को मात दे देते हैं. चिकित्सा विज्ञान ने भी घोषित कर दिया है कि सेक्स 80 व उससे उपर की उम्र तक किया जा सकता है.




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Tuesday, August 14, 2007

सेक्स संबंधी मिथक (भाग 1)

सेक्स को लेकर तमाम तरह की गलत भ्रांतियां हैं. अज्ञानतावश पुरातन काल से चली आ रही सेक्स व इससे संबंधी गलत जानकारियां आज भी लोगों को भयभीत करती हैं या उन्हें गलत रास्ते में भेजती हैं. यहां उन मिथकों की सच्चाई उजागर करने का प्रयास किया गया है.

मिथक 1- यदि लड़की का योनिच्छद (hymen) टूटा है तो वह कुंवारी नहीं है या यदि सेक्स के दौरान योनि से रक्तस्त्राव नहीं होता तो वह कुंवारी नहीं है.

सच्चाईः किसी महिला के कौमार्य का पैमाना यह मिथक काफी पुरातन काल से चला आ रहा है. यदि सेक्स के दौरान उपर दिये दोनों मिथकों में एक भी पाया जाता है तो यह माना जाता है कि वह महिला अपना कौमार्य खो चुकी है. जबकि यह गलत है . वास्तव में योनिच्छद चमड़ी की काफी पतली परत (झिल्ली) होती है जो आंशिक रूप से योनि को ढंके रहती है. जिसका मुख्य उद्देश्य योनि को वैक्टीरिया और हानिकारक रोगाणुओं से बचाना होता है. यह झिल्ली काफी संवेदनशील होती है और आसानी से हल्के से धक्के में भी फट जाती है. कुछ लड़कियों के तो जन्म से ही योनिच्छद नहीं होता है तो कई बार खेलने के दौरान , घुड़सवारी व साइकिल की सवारी के दौरान भी लड़कियों की योनिच्छद क्षतिग्रस्त हो जाती है. ज्यादातर एथलीट खेल के दौरान अपनी योनिच्छद तोड़ चुकी होती है. वहीं कई बार टैम्पून लेने पर भी योनिच्छद टूट सकता है तो हस्तमैथुन के दौरान भी योनिच्छद टूट जाता है. इसलिये यह कहना गलत है कि योनिच्छद टूटा है या क्षतिग्रस्त है तो लड़की अपना कौमार्य खो चुकी है.वहीं दूसरी ओर यदि सेक्स के दौरान योनिच्छद टूटता है तो कुछ रक्तस्त्राव होता है , क्योंकि झिल्ली के उत्तकों में रक्तवाहिनियां होती है. लेकिन यह वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है कि कई बार कुछ महिलाओं का योनिच्छद टूटने के बाद भी रक्त स्त्राव नहीं होता वहीं पहले बताई जा चुके कारणों से यदि सेक्स के पूर्व झिल्ली फट या टूट चुकी है तो भी रक्त स्त्राव नहीं होगा. वहीं कुछ महिलाओं को शुरुआती दौर के सेक्स में कई बार रक्तस्त्राव होता है. इस आधार यह नहीं माना जा सकता कि यदि सेक्स के दौरान रक्त स्त्राव नहीं होता तो वह कौमार्य खो चुकी महिला है.
मिथक 2- सेक्सुअल आनंद के लिये लिंग का बड़ा होना जरूरी.


सच्चाईः यह मिथक भी काफी प्रचलित है कि महिला को सेक्सुअली संतुष्ट करने के लिये लिंग का बड़ा होना जरूरी है. जबकि यह गलत है. सेक्स संतुष्टि व आनंद के लिये लिंग की ज्यादा लंबाई महत्वपूर्ण नहीं होती है. वहीं यह भी बता देना महत्वपूर्ण है कि किसी भी महिला की योनि का संवेदनशील हिस्सा पहले तीन सेंटीमीटर तक में ही होता है. इसलिये इस लंबाई के लिंग भी महिला को संतुष्ट करने में सक्षम होते हैं. वहीं सेक्स विशेषज्ञों ने प्रमाणित कर दिया है कि यदि उत्तेजित लिंग की लंबाई 2 इंच है तो वह महिला को पूर्ण सेक्स सुख दे सकता है. पुरुषों द्वारा पूछा जाने वाला यह सबसे प्रचलित मिथक है. कई पुरुष तो इसी मिथक के चलते अपने पार्टनर को पूरा सेक्स सुख नहीं दे पाते कि उनका लिंग छोटा है जबकि पार्टनर को उसके लिंग की शुरुआती तीन सेंटीमीटर की लंबाई से मतलब होता है.

मिथक 3- स्खलन के पूर्व योनि से शिश्न निकाल लेने पर गर्भधारण नहीं होता.

सच्चाईः वास्तविकता मिथक के विपरीत है. दरअसल यह विधि वे लोग ज्यादा अपनाते है जो गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल नहीं करते और सोचते हैं कि स्खलन से पूर्व योनि से लिंग निकाल लेने पर गर्भ नहीं ठहरेगा. वास्तव में होता यह है कि जब पुरुष का लिंग उत्तेजित होता है तो उसके मूत्रमार्ग से एक स्निग्ध द्रव निकलता है. जिसमें कुछ संख्या में शुक्राणु होते हैं और यही शुक्राणु गर्भ धारण करा सकते हैं. दरअसल यह स्निग्ध द्रव मूत्रमार्ग को लावणिक प्रभाव से निष्प्रभावी करने के लिये निकलता है. जिससे स्खलन के समय निकलने वाले शुक्राणु जीवित रह सके लेकिन स्खलन से पूर्व निकलने वाले इस द्रव में भी शुक्राणु रहते है. शोध के अनुसार स्खलन के समय 3000लाख शुक्राणु बाहर आते हैं लेकिन स्खलन के पूर्व निकलने वाले द्रव में स्खलन के दसवें हिस्से अर्थात 300 लाख शुक्राणु बाहर आ सकते हैं, और यह सर्वविदित है कि गर्भधारण के लिये एक शुक्राणु ही काफी होता है. वहीं एक मजेदार तथ्य यह भी है कि यदि कोई लड़की कोई गर्भनिरोधक प्रयोग नहीं करती है तो पहले साल उसे गर्भधारण की संभावना 90% होती है.


मिथक 4- खड़े होकर सेक्स करने, संभोग के पश्चात पेशाब करने या उपर नीचे कूदने से गर्भधारण नहीं होता.

सच्चाईः यह मिथक पूरी तरह से गलत है. योनि मार्ग में किसी भी तरीके से सेक्स करने पर गर्भधारण हो सकता है. क्योंकि शुक्राणु योनि में काफी समय तक जीवित रह सकते हैं और जैसे ही उन्हें अवसर मिलता है वह डिम्ब से जा मिलते हैं. वहीं यह भी सत्य है कि शुक्राणु और डिम्ब गति कर सकते हैं इस लिये आपका शरीर किसी भी पोजीशन में हो यह खिसक कर निषेचित हो सकते हैं.
वहीं संभोग के बाद पेशाब करने के बाद भी गर्भधारण की पूरी संभावना होती है. क्योंकि महिला के गुप्तांग की संरचना इस तरह होती है कि मूत्रमार्ग और योनिमार्ग अलग-अलग होते हैं . इसलिये यदि शुक्राणु योनि में पहुंच गया है तो फिर पेशाब करने से निषेचन को नहीं रोका जा सकता है.

इसी तरह संभोग के बाद उपर-नीचे कूदने पर भी गर्भधारण नहीं रोका जा सकता क्योंकि शुक्राणु योनि की दीवार पर चिपक जाते हैं जिन्हे कूदने पर भी कोई असर नहीं होता.

मिथक 5- हस्तमैथुन से दुर्बलता, कमजोरी, पुरुषत्वहीनता व नपुंसकता आती है.

सच्चाईः यह काफी पुराना व विश्वव्यापी मिथक है जबकि यह सच्चाई से कोसों दूर है. चिकित्सकीय परीक्षणों से सिद्ध किया जा चुका है कि हस्तमैथुन एक महिला-पुरुष के बीच किये गए संभोग की ही तरह है. इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिससे दुर्बलता, कमजोरी या नपुंसकता आए. हस्तमैथुन के बाद कुछ लोगों को कमजोरी का आभाष विशुद्ध तौर पर मानसिक कारण होता है न की शारीरिक. हस्तमैथुन सामान्य मैथुन की ही तरह है.


मिथक 6- एक बूंद वीर्य 40 बूंद खून से बनता है.

सच्चाईः यह भारत और मुस्लिम देशों का सबसे ज्यादा बताया जाने वाला मिथक है. जबकि सच्चाई का इससे दूर-दूर का नाता नहीं है. वीर्य और खून पूरी तरह से शरीर के दो अलग-अलग पदार्थ हैं जिनका आपस में कोई लेना देना नहीं है. वीर्य का निर्माण शुक्र ग्रंथि, शुक्र वाहिनी और प्रोस्टेट ग्रंथि द्वारा होता है. और इसमें खून का कोई योगदान नहीं होता. इसलिये यह कहना कि वीर्य की एक बूंद खून की 40 बूंदों से बनती है पूरी तरह गलत है.

मिथक 7- पीरियड के दौरान सेक्स करने से लड़कियों को गर्भ नहीं ठहरता.

सच्चाईः सिद्धांततः यह माना जाता है कि महिला पीरियड के पहले अण्डोत्सर्ग करती है और पीरियड के दौरान वह अण्डाणु गर्भाशय से बाहर निकल जाते हैं, इसलिये जब अण्डाणु ही नहीं रहेंगे तो गर्भ धारण नहीं हो सकता है. लेकिन वास्तव में यह सिद्धांत काफी अविश्वसनीय है वह भी खासतौर पर किशोरावस्था के लिये. ज्यादातर किशोरवय लड़कियों के पीरियड काफी अनियमित होते हैं क्योंकि इस दौरान उनका शरीर खुद को नियमित व विधिवत करने का प्रयास कर रहा होता है. ऐसे में किसी किशोरा का पीरियड अपने नियत चक्र से थोड़ा उपर चढ जाता है लेकिन उसके अण्डाणु इस समय की मार के बाद भी स्थिर रह जाते हैं. ऐसे में यह बताने का कोई रास्ता नहीं बचता है कि कब अण्डाणु मौजूद होगा और कब नहीं. वहीं शुक्राणु योनि में पांच से सात दिन तक जीवित रह सकता हैं. ऐसे में इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पीरियड के दौरान गर्भधारण नहीं हो सकता. विशेषकर किशोरावस्था में और अनियमित मासिक धर्म वाली महिलाओं के लिये तो पीरियड के दौरान सेक्स करने पर हमेशा गर्भ धारण का खतरा बना रहता है. हां नियमित और नियत तिथि पर होने वाले पीरियड के दौरान गर्भधारण की संभावना काफी न्यून होती है.

मिथक 8- ‘किस’ करने से HIV नहीं फैलता.

सच्चाईः यह तथ्य गलत है. यदि साधारण तरीके से चूमते है अर्थात सूखा चुंबन लेते हैं
तो HIV नहीं फैल सकता है. लेकिन यदि गहरा और गीला चुंबन लेने पर जिसमें शारीरिक
द्रव्य या लार हो इससे HIV फैलने की संभावना बनी रहती है. साथ ही यदि मुंह में छाले
या घाव होने पर भी चूमने के दौरान HIV की संभावना होती है.

मिथक 9- सामान्य तौर पर स्खलन का समय आधे घंटे होता है.

सच्चाईः हिन्दुस्तान में तो यह मिथक काफी सुनने को मिलता है. जबकि यह सच्चाई से कोसों दूर होता है. हिन्दुस्तान का ज्यादातर युवा यदि कहीं सेक्स क्रिया की चर्चा करता है तो वह बड़ी शान से यह कहता हैं कि वह लगातार आधे घंटे (कई बार इससे ज्यादा) तक सेक्स करता रहा . जबकि हकीकत में वह झूठ बोल रहा होता है या फिर उसने फोर प्ले का भी समय जोड़ लिया होता है. जबकि सच्चाई यह है कि योनि के अंदर लिंग के प्रवेश के बाद बिना रुके लगातार सेक्स करने पर स्खलन का औसत समय 3 से 10 मिनट का होता है. यह अलग बात है कि लोग कई बार सेक्स के दौरान स्खलन से पूर्व घर्षण को विराम देकर स्खलन का समय बढ़ा लेते हैं.

मिथक 10- पहले सेक्स के दौरान लड़की को काफी पीड़ा होती है.

सच्चाईः ज्यादातर महिलाओं को यह कहते या बताते सुना या पढ़ा जा सकता है कि पहली बार सेक्स के दौरान उन्हे काफी पीड़ा हुई थी. कई बार तो पुरुष भी यह चाहते हैं कि जब पहली बार सेक्स किया जाता है तो महिला को काफी पीड़ा होनी चाहिए नहीं तो उसका कौमार्य भंग हो चुका है या वह सेक्स की आदी है. जबकि वास्तविकता यह है कि सेक्स के दौरान महिला को पीड़ा का अनुभव होना पुरुष की अज्ञानता है. दरअसल वह सेक्स के पूर्व महिला को उत्तेजित नहीं कर पाता जिससे योनि में पर्याप्त फैलाव नहीं हो पाता जिससे सेक्स पीड़ा दायी हो जाता है. दरअसल योनि एक तरह से मांसपेशी है. यह फैल सकती है तथा संकुचित हो सकती है यह काफी लचीली होती है. इस लिये योनि के लिये ऐसा कोई आधार नहीं जिससे उसे “टाइट” या “लूज” कहा जा सके. नही इन शब्दों को आधार बना कर यह कहा जा सकता है कि कितने पुरुषों के साथ महिला ने सेक्स किया है. सेक्स क्रिया के
दौरान महिला के उत्तेजित होने पर योनि फैल जाती है तथा गर्भाशय उपर उठकर योनि को और खाली स्थान दे देता है. इस लिये सेक्स से पहले पर्याप्त उत्तेजित करने से सेक्स पीड़ादायी नहीं रह जाता है. इसके अलावा लिंग जितना मोटा या पतला होगा योनि स्वयं में फैलाव या संकुचन के द्वारा खुद को लिंग के हिसाब से एडजस्ट कर लेती है. एक न्यूज चैनल की वैबसाइट की रिपोर्ट पर बताया गया है कि अमेरिका में एक पेशेवर महिला सेक्स वर्कर की आंख में पट्टी बांध कर उसके साथ अलग अलग लंबाई व मोटाई के लिंग वाले से सेक्स कराया गया. फिर पट्टी खोल कर उससे लिंग के संबंध में पूछे जाने पर वह बताने में असफल रहीं. वह रिपोर्ट यथा यहां दी जा रही है-

“There was an experiment performed in US where a beautiful professional prostitute, who was not carrying any sexually transmitted disease, was invited for an experiment. Her eyes were kept closed, and three men were told to perform intercourse with her. One man had a penis only two inches in length on erection, another man had a penis four inches long on erection and the third man had a penis six inches in length on erection. She did not know who was performing intercourse with her. After all the three men performed intercourse her eyes were opened and she was asked by a team of doctors to tell them what according to her was the size of the penis of the three men. She was unable to tell the size. Even a professional prostitute who was experienced could not make out what the length of their penis was, even though the difference was two inches, four inches and six inches. So the satisfaction of women does not depend on the size of the penis”

यह अलग है जब सेक्स के दौरान योनिच्छद या योनि की झिल्ली टूटती है तो दर्द होता है , या फिर जब महिला सेक्स के लिये पर्याप्त उत्तेजित न हो या सेक्स के लिये मानसिक तौर पर तैयार न हो.

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Wednesday, July 11, 2007

अन्य सेक्स पोजीशन (भाग 2)

5.श्वान पोजीशनः
यह पोजीशन महिलाओं की पसंदीदा पोजीशन मानी जाती है. इसमें महिला की पोजीशन श्वान की तरह (अपने दोनों हाथ व पैर के बल) होती है. अर्थात महिला कोहनी व घुटनों के बल श्वान की तरह पोजीशन बना लेती है . इस अवस्था के लिये उसे अपना वजन अपनी कोहनी पर लेना होता है. इस अवस्था में आने के बाद पुरुष महिला के पीछे घुटनो के बल बैठ कर प्रवेश की क्रिया प्रारंभ करता है. इस पोजीशन में धक्कों को कंट्रोल करने के लिये पुरुष चाहे तो महिला के कूल्हों को हाथों से सहारा दे सकता है. लेकिन यहां यह स्पष्ट कर देना चाहते है कि यह गुदा मैथुन बिल्कुल नहीं है क्योंकि शिश्न का प्रवेश भग क्षेत्र में ही किया जाता है न कि गुदा द्वार से. यह पोजीशन गहरे, कठोर और तेज प्रवेश के पूरे अवसर देती है. इसलिये यह पोजीशन गर्भावस्था के दौरान नहीं अपनानी चाहिये. इस पोजीशन में पुरुष महिला के स्तन, कूल्हे और भगशिश्न से सेक्स क्रिया के दौरान खिलवाड़ कर सकता है इसलिये यह तीव्र उत्तेजना के भी काफी अवसर प्रदान करती है. इस पोजीशन मे पुरुष को महिला के कूल्हों को कस कर दबाने, मसाज करने व चपत लगाने से नहीं चूकना चाहिये क्योंकि यह हरकत महिला को और उत्तेजना प्रदान करती है. यह पोजीशन जी-स्पॉट सेक्स के लिये बेहतर मानी गई है. इस पोजीशन में पुरुष का मुख्य रोल रहता है. यदि इस पोजीशन के तीव्र धक्कों के द्वारा किसी महिला को पीड़ा या अन्य परेशानी होती है तो वह इस पोजीशन में कुछ परिवर्तन कर सकती है. इस पोजीशन में कमी के नाम पर यह है कि इसमें सीधा आई कान्टेक्ट नहीं हो पाता तथा चुंबन क्रिया नहीं की जा सकती है. कई बार इस पोजीशन के दौरान महिलाएं योनि से वायु भी छोड़ देती हैं, जिससे भगक्षेत्र से हवा निकलने की अजीब सी आवाज आती है. लेकिन इस सब के बाद भी यह महिलाओं सहित पुरुषों की पसंदीदा पोजीशन है.कई बार इस पोजीशन के लिए महिला कोहनी का उपयोग न करके हाथ के बल भी अपनी पोजीशन संभालती है(देखें चित्र)

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☻ ☺
----------------------------------------------
· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻☺
----------------------------------------------
· अंतरंगता (Intimacy)
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻☺
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻☻

उन्नयनः
हाथः इस पोजीशन में हाथ खुले रहने से महिला को उत्तेजित करने में काफी सहायक होते है. पुरुष चाहे तो महिला के कूल्हों को कस कर दबा सकता है, हाथ फेर सकता है, थपथपा सकता है तथा महिला के स्तनों से खिलवाड़ भी कर सकता है.

परिवर्तनः
- अंगरक्षक पोजीशन








- मेंढक पोजीशन
- ठेलागाड़ी पोजीशन

- किनारे सेः इस पोजीशन में महिला किसी बिस्तर के किनारे पर बिस्तर के नीचे की ओर घुटनों से बल बैठती है और अपना उपरी हिस्सा बिस्तर के किनारे पर टिका देती है. अर्थात अपने उपरी हिस्से का भार बिस्तर के किनारे पर डाल देती है . इसके पश्चात पुरुष प्रवेश क्रिया प्रारंभ करता है.






6.मेंढक पोजीशनः
यह पोजीशन श्वान पोजीशन से मिलती जुलती है. इस पोजीशन को पाने के लिये महिला पांव के बल उकड़ू बैठ जाती है फिर अपने दोनों हाथों को जमीन पर रख लेती है. यह अवस्था देखने पर ऐसी लगती है मानों कोई मेढक की तरह बैठा हो. इस लिये इसे मेंढक अवस्था कहते हैं. इस अवस्था में आने के बाद पुरुष प्रवेश क्रिया प्रारंभ करता है. इस दौरान महिला जहां हाथों से अपने शरीर को सहारा देती है वहीं पुरुष महिला के कूल्हों को पकड़ कर गति नियंत्रित करता है. वहीं दूसरे तरीके में वह अपनी जांघें घुटनों से मोड़ कर टांगों में जोड़ कर सिर को भी नीचे ले आती है. इस अवस्था में उसकी योनि खुलकर सामने आ जाती है(देखें चित्र की दूसरी तस्वीर). एक अन्य तरीके महिला दो तकियों के उपर पेट के बल लेटती है. इस अवस्था में महिला के कूल्हे उसके कंधो से काफी उंचाई पर होते है . ऐसा करने पर योनि खुल कर सामने आती है और फिर पुरुष घुटनों के बल होकर प्रवेश क्रिया करता है. (देखें चित्र की तीसरी तस्वीर). इस पोजीशन की कुछ कमियां भी हैं मसलन पहली वाली पोजीशन में महिला की जांघों में दर्द की शिकायत हो सकती है तो दूसरी व तीसरी पोजीशन में पीठ दर्द की शिकायत हो सकती है. हालांकि यह परेशानी अल्प अवस्था के लिये ही होती है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी ☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☺
--------------------------------------------------
· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी ☻
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻☺
--------------------------------------------------
· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻☻
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻☺

उन्नयनः
तकियाः इसमें महिला अपने भगक्षेत्र और सिर के नीचे तकिया रख कर सेक्स क्रिया को सहज और आनंददायी बना सकती है.
हाथः इस पोजीशन में पुरुष हाथों से महिला के कूल्हों को सहारा दे सकता है तथा महिला को सहला कर सेक्स क्रिया और मजेदार बना सकता है.

परिवर्तनः
- अंगरक्षक पोजीशन
- श्वान पोजीशन
- पीछे से प्रवेश




7.कैंची पोजीशनः
यह पोजीशन निद्रा देवी पोजीशन से मिलती जुलती पोजीशन है. इस पोजीशन में दोनों पार्टनरों के पांव एक दूसरे को क्रास करके कैंची की तरह आकृति बनाते है. लेकिन यह पोजीशन निद्रा देवी पोजीशन से इसलिये बेहतर है क्योंकि इसमें शारीरिक छुअन निद्रा देवी से ज्यादा होती है साथ ही इसमें प्रवेश का बेहतर और शानदार कोण(एंगल ) मिलता है. इस पोजीशन में कम मेहनत में काफी कुछ मिल जाता है. लेकिन कुछ लोग इस पोजीशन को इसलिये नहीं पसंद करते क्योंकि महिला की टांगे काफी खुल जाती हैं तथा जांघों को काफी वजन सहना पड़ता है लेकिन परिवर्तन पसंद युवाओं की यह पोजीशन काफी पसंदीदा है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी ☺
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☺
------------------------------------------------
· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी ☻☻☻
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻
------------------------------------------------
· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☺

उन्नयनः
हाथः इस पोजीशन में पुरुष का उपरी हिस्से का हाथ खाली होने से वह चाहे तो महिला के स्तन सहला सकता है या टांगों को सहलाकर सेक्स क्रिया को और उत्तेजना भरी बना सकता है.

परिवर्तनः
- फंसी जांघेः इस पोजीशन में महिला अपनी टांगे फैला कर लेट जाती है फिर पुरुष उसकी टांगों के बीच योनि के निकट बैठ जाता है . फिर पुरुष अपनी एक जांघ महिला की जांघ के ऊपर और एक जांघ महिला की जांघ के नीचे कर लेता है. इस पोजीशन में उपर वाली जांघ के सहारे पुरुष धक्कों की गति नियंत्रित करता है. यह पोजीशन काफी मजेदार मानी गई है.

- पीछे से प्रवेश पोजीशन
- निद्रा देवी पोजीशन
- चमचा पोजीशन





8.तैराक पोजीशनः
कई महिलाएं इस पोजीशन को अत्यंत उत्तेजक मानती हैं तथा इस पोजीशन में भगशिश्न को बिना उकसाए या उत्तेजित किये कामोन्माद की प्राप्ति होती है. इस पोजीशन को पाने के लिये पुरुष अपने पांव फैला कर पीठ के बल लेट जाता है.इसके पश्चात महिला उसके उपर उसके साथ -साथ लेट जाती है. इससे उसके स्तन का दबाव पुरुष के सीने में पड़ने से उत्तेजना बढाने में सहायक होता है वहीं सेक्स क्रिया का नियंत्रण स्त्री के हाथ में होता है. स्त्री चाहे तो सेक्स के दौरान अपनी टांगे पुरुष की टांगों के बीच में लाते हुए आपस में अपने पांव जोड़ कर इस पोजीशन में थोड़ा परिवर्तन ला सकती है. इस पोजीशन में टोटल बॉडी कान्टेक्ट रहता है तथा चूमने के पर्याप्त अवसर रहते हैं. यह पोजीशन तब सबसे आनंद दायी होती है जब महिला पूरी तरह से पुरुष के समानान्तर उपर लेटी हो. अर्थात पांव के उपर पांव, जांघों के उपर जांघे,कमर के उपर कमर, पेट के उपर पेट, छाती के उपर स्तन, चेहरे के उपर चेहरा हो. यह पोजीशन उन महिलाओं के लिये बेहतर है जो प्रवेश का इन्द्रिय बोध करना चाहती हैं तथा अपने अंदर पुरुष के लिंग को महसूस करना चाहती हैं. यह पोजीशन उनके लिये भी बेहतर है जो कम गहराई वाला शांत सेक्स चाहती हैं लेकिन जो काफी अंदर तक तथा तीव्र धक्कों वाला सेक्स चाहती हैं उन्हे इस पोजीशन से थोड़ा निराश होना पड़ सकता है.

Saturday, June 30, 2007

अन्य सेक्स पोजीशन (भाग1)

सेक्स मूलतः रिश्तों की अंतर्दशा का शारीरिक पर्याय है. दो विपरीत लिंगियों या समलिंगिंयो के बीच के रिश्ते ही सेक्स की धारणा को मजबूत करते है. फिर उनके बीच रिश्तों की डोर कितनी मजबूत और किस स्तर की है इसपर भी सेक्स व उसका तरीका निर्भर करता है. रही बात आज के समय में रिश्तों की तो वह दिन-ब-दिन बदलते रहते है. यही वजह है कि सेक्स भी दिन-ब-दिन बदल रहा है.
कुछ लोगों की शिकायत होती है कि उनके सेक्स जीवन में नीरसता आ गई है. तो यहां भी रिश्तों की कमजोरी ही सामने आती है. क्योंकि कुछ समय बाद रिश्तों की गर्माहट भी कम होने लगती है. रही बात सेक्स नीरसता की तो रोमांच और परिवर्तन कुछ ऐसे पहलू है जो रिश्तों में तो गर्माहट लाते ही हैं साथ ही सेक्स को भी आनंददायी बनाने में सहायक होते हैं. यहां हम कुछ अन्य सेक्स पोजीशन दे रहे हैं जो काफी रोमांचक हैं. दूसरी ओर यह भी सत्य है कि परिवर्तन सदैव लोगों को पसंद आता है इसलिये जितनी ज्यादा पोजीशन की जानकारी होगा उतना ही बेहतर वे सेक्स करने में सफल हो सकते है.

1.महराब पोजीशनः
यह पोजीशन मिशनरी सेक्स पोजीशन का परिवर्तित रूप है. यह पोजीशन गहरा प्रवेश देती है तथा हस्त उत्तेजना का भी पर्याप्त अवसर देती है. यह आसान पोजीशन मानी जाती है तथा स्त्री-पुरुष दोनों को समान आनंद का अवसर प्रदान करती है. इस पोजीशन को पाने के लिये पीठ के बल महिला को लेटना होता है. फिर वह अपने तलवों को सतह पर रखकर पांव की पोजीशन ऐसे कर जैसे बैठने के दौरान होते है. अर्थात घुटनों से पांव मोड़ ले. इसके पश्चात महिला अपना भग क्षेत्र अपनी उच्चतम सीमा तक उपर उठाए इस दोरान उसके कंधे सतह से ही लगे रहेंगे. इसके पश्चात पुरुष घुटनों के बल उसके भग क्षेत्र के सामने से निकट पहुंचता है तथा योनि व शिश्न के एक सीध में आ जाने पर प्रवेश की क्रिया को अंजाम देता है. इसके पश्चात जब महिला स्थिर व दृढ़ अवस्था में आ जाए तो धक्के की क्रिया आरंभ कर दें. जब धक्कों की गति बढ़ानी हो तथा महिला से भी धक्कों की प्रतिक्रिया चाहनी हो तो अपने हाथों से उसके कूल्हों को पकड़े या सहारा दे सकते हैं. इस पोजीशन में पुरुष चाहे तो महिला के स्तनों या गुप्तांगों को सहला कर उत्तेजना में वृद्धि कर सकता है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी ☻☺
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☻☺
--------------------------------------------------
· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻☺
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻
--------------------------------------------------
· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☺
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻☻
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻☻

उन्नयनः
तकियाः
महिला अपने गर्दन व सर के नीचे तकिया रख कर पोजीशन को ज्यादा आरामदायक बना सकती है.
हाथः पुरुष सेक्स क्रिया को ज्यादा आरामदायक बनाने के लिये महिला के कूल्हों को अपने हाथों का सहारा दे सकता है.

परिवर्तनः
- गहरा भेदन
- ड्रिल पोजीशन
- मिशनरी पोजीशन



2.तितली पोजीशनः
यह महिलाओं की पसंदीदा पोजीशन मानी जाती है. जिन्हेंगुणवत्ता युक्त चरमोत्कर्ष की चाहत होती है उनके लिये यह पोजीशन काफी बेहतर मानी गई है. यह पोजीशन बगैर ज्यादा उर्जा खर्च किये कल्पनालोक की सैर कराती है. इस पोजीशन का सही आनंद उठाने के लिये महिला के लेटने का तरीका काफी महत्वपूर्ण होता है. इसके लिये महिला को सही उंचाई के बिस्तर, डेस्क, काउंटर, टेबल या फिर कार के हुड पर लेट सकती है लेकिन यह ध्यान रखें कि महिला का भगक्षेत्र लेटने वाले बिस्तर के किनारे पर होना चाहिए तथा पुऱुष के घुटनों से एक फीट से ज्यादा उपर न हो. अब जब महिला का पार्टनर उसके सामने हो तो वह पीठ के बल लेट जाए. इसके पश्चात अपने पैर उपर उठाकर पुरुष के कंधों पर टिका दें(यदि महिला कम उचाई वाली जगह पर लेटी है तो पुरुष घुटनों के बल बैठ सकता है यदि ऊंची जगह पर महिला लेटी है तो पुरुष खड़े रहकर पोजीशन को अनुरूप कर सकता है) . इसके पश्चात महिला अपने भग क्षेत्र को कूल्हों पर दबाव देते हुए तब तक उपर उठाएजब तक कि योनि शिश्न के सामने तक न पहुंच जाएं. इससे प्रवेश का बेहतरीन एंगल बनता है.इस दौरान आ प चाहें तो उसे अपने कूल्हों के नीचे हाथ लगाने को कह सकती है जिससे वह भी आपके भग क्षेत्र को अपने हिसाब से एडजस्ट कर सकता है. एक बार इस अवस्था में प्रवेश क्रिया शुरू होने के बाद ज्यादा आनंद के लिये पुरुष नीचे से हाथ हटाकर महिला के शरीर की अन्य पसंदीदा जगहों पर हाथ फेरने के लिये स्वतंत्र होता है. इस पोजीशन दोनो की दृश्यता एक दूसरे के अंगों पर होने के कारण ज्यादा उत्तेजक होती है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☺
-------------------------------------------------------
· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻ ☺
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻☻
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻☻
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻☻

उन्नयनः
तकियाः महिला अपनी सुविधानुसार नीचे तकिया लगाकर पोजीशन को आरामदायक बना सकती है.
हाथः पुरुष इस पोजीशन में अपने हाथों उसके गुप्तांगों में फेर कर सेक्स आनंद को और बढ़ा सकता है.

परिवर्तनः
- हर्षित पोजीशन
- मिशनरी पोजीशन
- पेंच पोजीशनः
इसमें महिला करवट के बल लेट जाती है तथा अपना भगक्षेत्र लेटने वाली वस्तु के किनारे पर करके अपने पांव घुटनों से मोड़ लेती है. तथा जांघों को बिस्तर के किनारे के समानान्तर कर लेती है.







3.गहरा भेदन पोजीशनः
इस पोजीशन और तितली पोजीशन में जो मूल अन्तर है वह यह है कि तितली पोजीशन में महिला का भग क्षेत्र बिस्तर के किनारे पर होता है जब कि इस पोजीशन में ऐसा नहीं होता है. इस पोजीशन में महिला का भगक्षेत्र और पुरुष के घुटने एक ही सतह पर होते है. इस पोजीशन को प्राप्त करने के लिए महिला अपनी पीठ के बल लेट जाती है और अपनी टांगों को उठाकर पुरुष के कंधों पर रख देती है. इस दौरान पुरुष अपने घुटनों के बल जिसमें टांगें उसकी बाहर की ओर फैली होती है (अर्थात पुरुष के पांव घुटनों से तलवे तक सतह से सटे रहते है या वे सतह के समानान्तर रहते हैं). इस अवस्था में वह प्रवेश की तैयारी करता है. इस पोजीशन में यदि महिला अपनी कमर के नीचे तकिया लगा लेती है तो पोजीशन काफी आरामदायक हो जाती है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· महिला (Receiver) को परेशानी
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☻
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻☺
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻☻
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻☻

उन्नयनः
तकियाः
महिला अपनी सुविधानुसार नीचे तकिया लगाकर पोजीशन को आरामदायक बना सकती है.
हाथः पुरुष इस पोजीशन में अपने हाथों उसके गुप्तांगों में फेर कर सेक्स आनंद को और बढ़ा सकता है.

परिवर्तनः
- महराब पोजीशन
- आनंद का आइना
- मिशनरी पोजीशन

- पेंच पोजीशन





4.हर्षित पोजीशनः
यह काफी आनंददायी और सहज पोजीशन है. इसमें पार्टनरों की निकटता होने तथा एक दूसरे को सहजता से देख पाने के कारण इस पोजीशन में काफी आनंद आता है. यह तितली पोजीशन में थोड़े संशोधन के बाद सहजता से प्राप्त हो जाता है. इस पोजीशन के लिये महिला किसी बिस्तर के किनारे पर पैर नीचे करके बैठ जाती है. फिर वो अपनी टागों को खोल लेती है अर्थात उसके टखने और कंधे एक समानान्तर अवस्था में आ जाते है. साथ ही इस पोजीशन के लिये महिला चाहे तो बिस्तर के अलावा डेस्क, काउंटर, टेबल या फिर कार के हुड पर भी बैठ सकती है. इस पोजीशन में पूरा आनंद पाने के लिये महिला के कूल्हे बिस्तर के एकदम किनारे होने चाहिए बल्कि थोड़ा से बाहर भी हों तो ज्यादा बेरतर होगा. अब पुरुष महिला के बैठने की उंचाई व अपनी सुविधानुसार चाहे तो घुटनों के बल बैठ कर या फिर खड़े होकर प्रवेश क्रिया पूरी कर सकता है. यह पोजीशन पुरुष को धक्कों की काफी स्वतंत्रता देती है.
यह पोजीशन कई कारणों से काफी रोमांचक भी बनती है . इस पोजीशन में पार्टनरों के चेहरे काफी पास होने के कारण एक दूसरे को चूमने की काफी स्वतंत्रता होती है. साथ ही इस पोजीशन में पुरुष काफी गहराई तक प्रवेश कराने में सक्षम होता है. इस पोजीशन की थोड़ी कमी यह है कि इस पोजीशन में सेक्स क्रिया के दौरान कभी-कभी पुरुष के शीघ्र स्खलित होने की भी संभावना रहती है. जिसे धक्कों को रोक कर खत्म किया जा सकता है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☺
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻☺
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻☻
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻☻

उन्नयनः
तकियाः
पुरुष जब घुटनों के बल हो तो घुटनों के नीचे तकिया लगा कर पोजीशन को आरामदायक बना सकता है.महिला भी चाहे तो अपने नीचे तकिया लगा सकती है.
हाथः इस क्रिया पुरुष के हाथ स्वतंत्र रहते हैं इसलिए वह इनका उपयोग महिला के शरीर में फेरकर उत्तेजना में वृद्धि कर सकता है.

परिवर्तनः
- तितली पोजीशन
- मिशनरी पोजीशन

- पेंच पोजीशन

Thursday, June 07, 2007

खड़े होकर सेक्स

यह पोजीशन स्वाभाविक तौर पर अति आनंद के लिये या फिर अकल्पनीय सेक्सुअल समागम के लिए प्रयोग की जाती है. सामान्यतः यह भारत में कम ही प्रयोग की जाती है लेकिन अब यह प्रचलन में आ रही है. वहीं कुछ लोगो का मानना है कि जहां बिस्तर की उपलब्धता न हो और प्रतीक्षा करने का कोई कारण उपलब्ध न हो तो यह पोजीशन सबसे सही रहती है. यह काफी बलिष्ठ , खिंची हुई और अति कठोर पोजीशन मानी जाती है, जिसके लिये काफी ताकत, जोर और समन्वय की आवश्यकता होती है. वहीं कुछ लोगों का मत है कि इस पोजीशन में सेक्स करने पर रक्त प्रवाह तेज होता है साथ इस पोजीशन के द्वारा पुरुषों में स्वयं में शक्तिशाली होने का अहसास होता है तो महिलाएं अपने को पूरी तरह निगला (गटका) हुआ महसूस करती हैं. और सबसे मुख्य बात रही वह यह है कि बेहतर सेक्सुअल आनंद के लिये पोजीशन बदल कर सेक्स करना काफी आनंददायी होता है.

1. अंगरक्षक पोजीशनः
यह पोजीशन खड़े होकर सामने या पीछे से प्रवेश की सेक्स पोजीशन है. ऱत्यात्मक कामुकता के आवेग में यह खड़े वर्ग की सभी सेक्स पोजीशनों में अनूठी होती है. इस पोजीशन के लिये महिला सीधे खड़ी होकर अपनी टांगे फैला देती है फिर पुरुष पीछे की ओर से या फिर सामने की ओर से प्रवेश क्रिया प्रारंभ करता है. पीछे से प्रवेश के लिये महिला पहले सीधी खड़ी होती है फिर कमर के पास से थोड़ा सा आगे की ओर झुके जिससे कूल्हे थोड़ा बाहर की ओर निकल आएंगे फिर अपने घुटनों को मोड़ते हुए थोड़ा नीचे झुकती है और इस दौरान वह अपने नितंबों को बाहर की ओर निकालती है इससे योनि का हिस्सा दिखने लगता है. तत्पश्चात पुरुष पीछे से प्रवेश की प्रक्रिया करता है. इस पोजीशन में रतिक्रीड़ा के दौरान पुरुष चाहे तो महिला के हाथ पकड़ कर या फिर महिला की कमर पकड़ कर धक्के की गति बढ़ा सकता है.
यह पोजीशन दोनों पार्टनरों को एक दूसरे के शरीर को बेहतर तरीके से अभिगम करने का अवसर प्रदान करती है. इस पोजीशन की सिर्फ एक कमी है वह है दोनों के गुप्तांगों को सहजता से पंक्तिबद्ध करना... लोग चाहे तो इसकी मूल पोजीशन में थोड़ा परिवर्तन कर सकते हैं.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻
· महिला (Receiver) को परेशानी
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☻
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻☻☺
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☺
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻

उन्नयन
कदमः महिला चाहे तो अपने पार्टनर के खिंचाव को कम करने के लिये सीढ़ी या फिर स्टूल पर चढ़ सकती है.

परिवर्तन
- श्वान पोजीशन

- मेंढक पोजीशनः इस पोजीशन को पाने के लिये महिला झुक कर मेढक की तरह पोजीशन बना लेती है(उकड़ू बैठ जाती है). फिर उसके पीछे पुरुष घुटनों के बल खड़ा होकर प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ करता है. इस दौरान महिला जहां हाथों से अपने शरीर को सहारा देती है वहीं पुरुष महिला के कूल्हों को पकड़ कर गति नियंत्रित करता है. वहीं दूसरे तरीके में वह अपनी जांघें घुटनों से मोड़ कर टांगों में जोड़ कर सिर को भी नीचे ले आती है. इस अवस्था में उसकी योनि खुलकर सामने आ जाती है(देखें चित्र की दूसरी तस्वीर)

- पीछे से प्रवेश पोजीशन
- ठेला गाड़ी पोजीशन


2.नृत्यांगना पोजीशनः
यह मिशनरी पोजीशन से मिलता जुलता रूप है जिसमें दोनों पार्टनर खड़े होकर सेक्स करते हैं. इस पोजीशन में जबरदस्त मजा है. ऐसे लोग जो खड़े होकर बेहतरीन संपर्क के साथ सेक्स चाहते है उनके लिये यह बेहतरीन पोजीशन है. इस पोजीशन को पाने के लिये दोनों पार्टनर सामान्य तरीके से खड़े हो जाते है. इसके पश्चात महिला अपनी एक टांग उपर उठाती है जिसे पुरुष अपने हाथों से सहारा देता है. इस दौरान महिला का हाथ पुरुष के सीने से लगा हुआ कंधे व गर्दन पर लिपटता है. यदि महिला काफी लचकदार है तो वह अपनी टांगे पुरुष के कंधे पर भी रख सकती है. इसके अलावा चाहे तो युगल अपने तरीके से इस पोजीशन में परिवर्तन कर सकते है. मसलन महिला अपनी टांगे पुरुष के पीछे रखी किसी टेबल पर या प्लेटफार्म पर भी रख सकती है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· महिला (Receiver) को परेशानी ☻☻
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☺
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी ☻☻
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☺
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☺
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻

उन्नयन
हाथः
पुरुष चाहे तो अपने खाली हाथों के सहारे महिला के कूल्हे , पीठ सहित उन सभी अंगों को सहला सकता है जहां तक उसके हाथ जा सके . यह उत्तेजना तेज करने का बेहतर तरीका है.
कदमः महिला चाहे तो अपने पार्टनर के खिंचाव को कम करने के लिये सीढ़ी या फिर स्टूल पर चढ़ सकती है.

परिवर्तन
- तितली पोजीशन
- हर्षित पोजीशन
- मिशनरी पोजीशन



3. खड़ी हस्तंगत पोजीशनः
यह फरेबी पोजीशन नहीं है. यह दमखम वालों के लिये उपयुक्त पोजीशन है. कमजोर लोगों को विशेषकर इस पोजीशन से बचना चाहिए. इसलिये ऐसे पुरुष जो प्रौढ़ हों या उनका शारीरिक शौष्ठव कमजोर हो उन्हे इस पोजीशन से किनारा कर लेना चाहिये. इस पोजीशन को पाने के लिये दो प्रचलित तरीके हैं. पहला नृत्यांगना पोजीशन पर आने के बाद महिला को उठा लिया जाता है या फिर हर्षित पोजीशन के बाद इस पोजीशन को प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावा भी आप अपने तरीके से इस पोजीशन को प्राप्त कर सकते हैं. इस पोजीशन में पुरुष कमर की उंचाई से महिला को जांघों या कूल्हों के सहारे उठाए रहता है. इस दौरान महिला अपनी टांगे पुरुष की कमर में लपेटे रहती है तथा बांहों को उसके कंधों पर सहारे के लिये घेर लेती है. इसके बाद महिला पुरुष के विपरीत दिशा में स्वयं को उपर नीचे करते हुए धक्के देती है इस दौरान पुरुष अपने हाथों से उसे सहारा देता है. पीठ दर्द व कमर दर्द की परेशानी वाले इस पोजीशन को न करें. यदि करना ही हो तो चिकित्सक से सलाह ले लें.

मूल्यांकन

· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी ☻☻☻
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☺
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी ☻☻☻☻☻
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☺
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻☻☺
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☺
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☺

उन्नयन
दीवारः
महिला चाहे तो दीवारा का सहारा लेकर पुरुष के धक्के को आनंददायी बना सकती

परिवर्तन

- तितली
- नृत्यांगना
- हर्षित
- मिशनरी


4. ठेला गाड़ी पोजीशनः
यह दिलचस्प और मनभावन सेक्स पोजीशन है लेकिन अधिकतर युगल इस पोजीशन की आजमाइश से दूर ही रहते है. चित्र को देखकर इसके चित्ताकर्षक तरीके को देख सकते हैं साथ ही इसकी कठिनता का भी अंदाजा लगा सकते हैं. इस पोजीशन में महिला को अपने शरीर के उपर के पूरे हिस्से का वजन अपने हाथों पर लेना पड़ता है तथा इस दौरान पुरुष उसके निचले हिस्से को कमर या जांघों के पास से सहारा देते हुए प्रवेश की क्रिया करता है. प्रायोगिक तौर पर यह पोजीशन काफी असुखद है तथा महिला के लिये कष्टकारी भी है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻
· महिला (Receiver) को परेशानी ☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☺
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी ☻☻☺
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻ ☻☺
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻☺
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻

परिवर्तनः

- तितली
- पीछे से प्रवेश
- खड़ी हस्तंगत
- उल्टी ठेलागाड़ीः यह पोजीशन थोड़ा कठिन तथा कसरती लोगों के लिए है. साधारणतया यह पोजीशन आमजन नहीं करते हैं. इस पोजीशन के लिये महिला सिर के बल खड़ी हो जाती है. (इसके लिये चाहे तो महिला पहले दीवार का सहारा ले सकती है ) फिर पुरुष उसके कू्ल्हों को सहारा देते हुए अपनी कमर की ओर खींच लेता है तत्पश्चात वह प्रवेश की क्रिया शुरू करता है.




Tuesday, May 15, 2007

जब पुरुष उपर हो

हम तब तक क्लासिकल म्यूजिक को नहीं समझ सकते जब तक कि उसे सुनकर उसकी गूढ़ता और भ्रामक सुन्दरता को समझने का प्रयास नहीं करते . कुछ ऐसा ही राग है सेक्स पोजीशन के मामले में जब पुरुष उपर हो. यहां अब वह समय आ गया है जब आदर्श (classic) पोजीशन को सभ्य व व्यवस्थित बनाएं तथा परीक्षण करके देखे कि किन कारणों से वे आदर्श पोजीशन हैं. साथ ही यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि जब पुरुष उपर होता है तो इसका यह कतई आशय नहीं लगाना चाहिये कि महिला को इसमें नकारात्मक शक्तिशाली संबंधों का अनुभव होगा. न ही इन पोजीशनों को पुराने जमाने की बोरिंग पोजीशन कहा जा सकता है जैसा कि कुछ लोग आज कर पुरुष के उपर रहने वाली पोजीशन के बारे में सोचते हैं. इनमें महज कुछ परिवर्तन करके इन्हें शानदार अनुभव वाली पोजीशन भी बनाया जा सकता है.
इन सभी पोजीशनों में धक्के का पूरा दारोमदार पुरुष पर होता है. किसी भी प्रारंभिक पोजीशन के पहले आपसी बातचीत महत्वपूर्ण होती है. यदि कम्युनिकेशन गैप रहेगा तो शायद कोई भी पोजीशन दोनों के लिये उतनी आनंददायी नहीं होगी जितने कि वे कल्पना करते हैं. मसलन हर महिला अपने पार्टनर का ऐसा आकार या ढांचा चाहती है जो उसे कामोन्माद की चरम स्थितितक पहुंचा सके और इसके लिये जरूरी है एक बेहतर पोजीशन की जो उससे चर्चा करके उसके सोचे गए आकार से मेल खाती हो और यह प्रयास पार्टनर के लिये प्रचण्ड कामोद्दीपक व तीव्र उत्तेजना प्रदान करने वाला होगा. यदि वे एक बार ऐसा करने में सफल हो गए तो वे अपने इष्टतम आनंददायी बिंदु पर निशाना साधते हुए सवारी का मजा ले सकेंगें. यहां यह बताना भी जरूरी है कि ज्यादातर पुरुष अपने को उपर रखने वाली पोजीशन इस लिये चुनते हैं ताकि पूर्ण उन्नत अवस्था को पा सकें. इस तरह पुरुषों के उपर रहने पर शक्तिशाली पोजीशन का होना इसका एक वास्तविक फायदा है. लेकिन इस पोजीशन में पुरुष शुरुआत से ही तेज गति और निकटता के साथ चलेंगे तो वे निश्चित तौर पर चरमोत्कर्ष के समय कमजोर और उत्तेजना खोने वाला भी बना सकती है क्योंकि वे सेक्स की कदमताल के कन्ट्रोल में नहीं रह पाते हैं.
यह पोजीशन नये प्रवेश करने वालों के लिये काफी बेहतर होती है, लेकिन जब इसे सृजनात्मकता से लिया जाता है तो यह सभी वर्ग के लिए मजेदार होती है. इसलिये जरूरी है कि महिलाएं भी अपने पार्टनर को बताएं कि वह नियंत्रण में रहे तथा प्रयोग करके यह भी देखे कि किसमें उन दोनों को ज्यादा आनंद आता है.

1. आराम कुर्सी पोजीशन
अपने नाम के अनुरूप ही यह काफी आरामदायक पोजीशन है इस पोजीशन पुरुष को काफी शक्तिशाली बना देती है जिससे महिला तेज आनंद का अनुभव करती है. इस पोजीशन को पाने के लिए महिला अपने पीठ के बल लेट जाती है. अपने कूल्हों को चूल की तरह इस्तेमाल करते हुए अपने पांव फैलाते हुए उपर उठा लेती है तथा घुटनों से मोड़ कर अपने पांवों को आरामदायक स्थिति में ले आती है. इसके पश्चात पुरुष घुटनों के बैठ कर आगे झुकते हुए प्रवेश करता है तथा अपने हाथों को सहारे के रुप में प्रयोग करता है साथ ही महिला के पांव भी उसे सहारा देते है. यह पोजीशन महिला को बाहर नहीं छोड़ पाती है. साथ ही जब पुरुष महिला के पांवों के बीच होता है तो इस दौरान उसके पास महिला के जी-स्पॉट को निशाने में लेने के पूरे मौके होते है. इसलिये यह पुरुष सहित महिला के लिए भी शानदार उत्तेजना की पोजीशन है. यह बेसिक पोजीशन भी मानी जाती है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी ☻ ☺
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☻
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻ ☺
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻ ☺
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻☻
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻☻

उन्नयन
हाथः इसमें महिला अपने पार्टनर के हाथों का सहारा अपने हाथों से लेकर पोजीशन को आरामदायक बना सकती है.
तकियाः महिला चाहे तो अपनी पीठ या कमर के नीचे तकिया लगा कर उठाव ले सकती है.

परिवर्तन
- हत्था कुर्सी पोजीशन

- गहरा भेदन
इस पोजीशन को प्राप्त करने के लिए महिला अपनी पीठ के बल लेट जाती है और अपनी टांगों को उठाकर पुरुष के कंधों पर रख देती है. इस दौरान पुरुष अपने घुटनों के बल जिसमें टांगें उसकी बाहर की ओर फैली होती है प्रवेश की तैयारी करता है. इस पोजीशन में यदि महिला अपनी कमर के नीचे तकिया लगा लेती है तो पोजीशन काफी आरामदायक हो जाती है.
-आनंद का आईना
यह पोजीशन भी गहरा भेदन पोजीशन की तरह ही है. इसमें अन्तर सिर्फ इतना है कि इस पोजीशन में महिला अपनी दोनों टांगें पुरुष के एक कंधे पर ही टिकाती है. यह पोजीशन उन दंपतियों के लिये बेहतर है जिनमें पुरुष का गुप्तांग काफी बड़ा होता है.


2. ड्रिल पोजीशन
इस पोजीशन को पाने के लिये महिला पीठ के बल लेट जाती है और अपनी टांगें उपर उठा कर फैला लेती है. इसके बाद पुरुष जब प्रवेश करता है तो पुऱुष की कमर के पास से अपने पैरों की कैंची से बांध लेती है. यह पोजीशन काफी गहरे प्रवेश के लिए जानी जाती है. इसमें महिला के उठे पांव पुरुष को गहराई तक प्रवेश की अनुमति देते हैं.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी ☻ ☺
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☻
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻ ☺
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻☻ ☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻ ☺
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻

उन्नयन
तकियाः महिला चाहे तो अपनी पीठ या कमर के नीचे तकिया लगा कर उठाव ले सकती है इससे सेक्स क्रिया में अतिरिक्त गति मिल सकती है.

परिवर्तन

- महराब पोजीशन
यह पोजीशन सेक्स का जमकर लुत्फ उठाने वाले लोगों की पसंदीदा पोजीशन है. थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन आनंददायी पोजीशन मानी जाती है. इस पोजीशन में महिला अपनी टांगे सीधे फैलाकर पीठ के बल लेट जाती है फिर इस पोजीशन को पाने के लिये अपनी टांगों को पीछे खींच कर कमर से अपने को उपर उठाती है. इस तरह वह एक पुल नुमा आकृति बना लेती है. इसके पश्चात पुरुष उसकी योनि के सामने घुटनों के बल बैठकर प्रवेश क्रिया को अंजाम देता है. इस पोजीशन को कई बार नजरअंदाज कर दिया जाता है क्योंकि यह देखने में काफी कठिन सी लगती है लेकिन मूलतः यह पोजीशन काफी सरल है और इस पोजीशन में प्रवेश और गहरे प्रवेश के लिए काफी बेहतर एंगल होता है.

- गहरा भेदन

- मिशनरी पोजीशन
यह सेक्स पोजीशन सबसे मूलभूत और प्राथमिक सेक्स पोजीशन है. यह सर्वाधिक प्रचलित सेक्स पोजीशन है और हिन्दुस्तान में लगभग 80 फीसदी लोग रति क्रीड़ा की शुरुआत इसी पोजीशन से करते हैं. इस पोजीशन के लिए महिला सामान्य तौर पर पीठ के बल लेट जाती है और पुरुष उसके उपर आकर प्रवेश की प्रक्रिया प्रारंभ करता है.




3. पद जहाज पोजीशन
यह सेक्स पोजीशन ज्यादा पुरानी नहीं है. इसको प्रचलन में आए महज दो दशक ही हुए है. जैसे की नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें पांवों के उपर सवारी करके चरमोत्कर्ष को पाया जाता है. इस पोजीशन को पाने के लिये महिला करवट लेकर लेट जाती है. इसके पश्चात वह अपनी उपर वाला पैर आसमान की ओर (उपर) उठा ले. इस प्रक्रिया के बाद उसका पार्टनर उसके निचले पांव की जांघों के उपर घुटनों के बल बैठ जाए फिर प्रवेश की प्रक्रिया चालू करें. प्रवेश के दौरान महिला चाहे तो अपने पांव पुरुष के कंधे पर रख सकती है या पुरुष उसके पांवों को अपने हाथ से सहारा देकर पांव सीधा रख सकता है.

मूल्यांकन

· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी ☻☺
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☻
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻☺
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☻
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻

उन्नयन
तकियाः
महिला चाहे तो अपनी साइड के नीचे तकिया लगा कर सेक्स क्रिया के लिये बेहतर एंगल पा सकती है साथ ही पार्टनर की जांघों के दबाव व भार को भी कम कर सकती है.
हाथः पुरुष अपने हाथों से महिला की टांगों को सहारा देकर गति सीमा के साथ खिलवाड़ करते हुए आनंद बढ़ा सकता है वहीं हाथों के द्वारा बाह्य गुप्तांग (भग क्षेत्र) और स्तनों को भी सहलाकर आनंदानुभूति बढ़ा सकता है.

परिवर्तन

- मिशनरी

- पीछे से प्रवेश
यह मिशनरी और श्वान पोजीशन का मिला जुला रूप है. यह जी-स्पॉट सेक्स के लिये बेहतरीन पोजीशन मानी जाती है. इसके लिये महिला पेट के बल अर्थात उल्टी लेट जाए. और अपनी टांगे खोल ले. इसके पश्चात पुरुष उसके उपर लेटते हुए प्रवेश करे.

- निद्रा देवी
यह पोजीशन काफी आरामदायक , काफी सहज और उकसाने वाली है. इसमें महिला करवट के बल लेट जाती है और अपनी उपरी टांग उपर उठा लेती है. फिर पुरुष उसकी निचली जांघ के उपर योनि के सामने अपने लिंग को करते हुए सामानान्तर लेट जाता है. इस दौरान महिला और पुरुष आपस में लगभग ९० डिग्री का कोण बना रहे होते है. अब पुरुष प्रवेश के बाद महिला अपनी टांगे नीचे ले आती है जिससे पुरुष उसकी दोनो टांगों के बीच गति करता है.


4. मिशनरी पोजीशनः
मिशनरी पोजीशन सर्वाधिक प्रचलित और पारंपरिक सेक्स पोजीशन है. एक सर्वेक्षण के मुताबिक 91 फीसदी लोग बहुधा इस सेक्स पोजीशन का प्रयोग सामान्यतः करते हैं . इस पोजीशन में स्त्री पुरुष के बीच सर्वाधिक समीपता होती है. मिशनरी पोजीशन दो विषमलिंगियों के बीच होने वाले सेक्स में सबसे ज्यादा बार और ज्यादा सहज व ज्यादा पसंद की जाने वाली पोजीशन मानी जाती है. इस पोजीशन को पाने के लिये महिला पीठ के बल टांगे फैला कर (या बंद करके) लेट जाती है फिर पुरुष उसके उपर आकर करीब जाते हुए प्रवेश की क्रिया दोहराता है. इस दौरान वह अपने हाथों के सहारे अपने शरीर के वजन को सम्हालता है. इस पोजीशन में पुरुष को पूरी स्वतंत्रता होती है कि वह किस गति और तरीके से रति क्रिया का संचालन करे. यदि वह सेक्स क्रिया के दौरान महिला के दौरान काफी करीब (नीचे झुकना) आता है तो इस दौरान वह महिला के शरीर के उपरी हिस्से पर अपने शरीर का कुछ वजन हल्का करते हुए आराम की अवस्था में आ सकता है. इस पोजीशन में महिला अपने शरीर का बीच का हिस्से को अपने पैर की सहायता से धक्के के लिये प्रयुक्त कर सकती है (जब वह कामोन्माद की अवस्था में हो या तीव्र धक्कों का आनंद लेना चाहे) या फिर अपने पैरों को पुरुष की कमर में लपेट कर पुरुष की गति को कम कर सकती है.
इस रतिक्रीड़ा के दौरान महिला पुरुष के चेहरे एक दूसरे के सामने व काफी निकट होने से चुंबन क्रिया भी बेहतर तरीके से हो सकती है. लेकिन यदि महिला गर्भवती हो तो उसे इस पोजीशन से बचना चाहिए साथ ही पीठ में दर्द रहने वाले भी इससे बचे. पीठ दर्द वाली महिला के लिये तौलियो का गोला बनाकर पीठ के नीचे और तकिया घुटनों के नीचे रखकर सेक्स करना चाहिए. यह भारत में सर्वाधिक प्रचलित पोजीशन है. ग्रामीण क्षेत्रों में सौ फीसदी लोग यही पोजीशन अपनाते हैं.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☻☺
· महिला (Receiver) को परेशानी
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻ ☺
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻ ☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻ ☺
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻

उन्नयन
तकियाः महिला चाहे तो अपनी पीठ या कमर के नीचे तकिया लगा कर सेक्स क्रिया के लिये बेहतर एंगल पा सकती है
हाथः इस पोजीशन में महिला अपने हाथों से पुरुष की पीठ को सहलाते हुए उसे और उन्मत्त कर सकती है या फिर अपने हाथों से पुरुष की पसंदीदा जगहों को और उत्तेजित कर सकती है. पुरुष को कूल्हों पर थपथपा कर गति और तेज कर सकती है.

परिवर्तन

- कंधों में मिशनरीः इसके लिये मिशनरी पोजीशन में महिला अपने पांव उठा कर पुरुष की कमर में लपेट ले फिर धीरे-धीरे पांवों को पुरुष के कंधों की ओर ले जाए. अंत में महिला अपने पांव पुरुष के कंधों में फंसा ले. इस दौरान पांवों को कंधो तक ले जाने में पुरुष सहायता कर सकता है. इसमें पुरुष को गहरे सेक्स के लिये बेहतर एंगल मिलता है.

- घुटनों में मिशनरीः उपरोक्त पोजीशन के बाद महिला अपने पांव फैलाते हुए कंधों से उतार लेती है. और घुटनों को मोड़ते हुए पंजों के सहारे पैर करके एड़ियां उठा लेती है . इस दौरान पुरुष अपने घुटनों के बल बैठ जाता है और घुटनों के नीचे से हाथ ले जाकर महिला की जांघों को सहारा देते हुए प्रवेश की क्रिया प्रारंभ करता है.

- महराब पोजीशन

- गहरा भेदन

- उल्टी मिशनरी पोजीशन

- मिशनरी 45º : इसके लिये मिशनरी पोजीशन में प्रवेश के पश्चात किसी भी दिशा में पुरुष 45ºघूम कर धक्के की क्रिया कर सकता है या फिऱ बगैर प्रवेश के मिशनरी पोजीशन में आकर 45º घूम कर फिर प्रवेश क्रिया करे लेकिन इस दौरान गहरे प्रवेश में दिक्कत हो सकती है.

- अगल बगल पोजीशनः यह ठीक मिशनरी पोजीशन की तरह है . इसमें दोनों पार्टनर लेटे रहते है और दोनों के चेहरे एक दूसरे की ओर होते बस इसमें दोनों एक दूसरे के उपर नीचे न होकर करवट लिए हुए एक दूसरे के अगल-बगल होते है.



5. पीछे से प्रवेश :
यह पोजीशन गुदा मैथुन या उसकी तरह नहीं है. इसमें पोजीशन में पुरुष अपने लिंग का प्रवेश स्त्री की योनि में कराता है जब वह स्त्री के पीछे होता है. इस पोजीशन में महिला का चेहरा पुरुष के दूसरी ओर रहता है और महिला इसमें पेट के बल लेटती है. इसी अवस्था में लेटे हुए वह अपनी टांगों को फैला लेती है. ऐसा करने पर महिला का भग क्षेत्र खुलकर सामने दिखने लगता है. इस दौरान पुरुष प्रवेश क्रिया संपन्न करता है. इस पोजीशन में लिंग प्रवेश के दौरान योनि की बाह्य दीवार पर सीधा धक्का देता है इसलिये इस पोजीशन में बेहतरीन जी-स्पॉट सेक्स का आनंद लिया जा सकता है. यह पोजीशन गहरे प्रवेश और बलशाली धक्कों को अनुमति देती है इस लिये गर्भवती महिलाओं को इस पोजीशन को बिल्कुल नहीं करना चाहिए. यह पोजीशन दो भागों में विभक्त की जा सकती है. पहली में जब महिला अपनी टांगे खोल कर लेटे, इसमें गहरा प्रवेश मिलता है . दूसरे में महिला जब टांगे चिपका कर (बंद कर ) लेटे. इसमें जी-स्पॉट सेक्स का आनंद मिलता है. इस पोजीशन की सबसे बड़ी कमजोरी बस यही है कि इसमें सीधा आई कान्टेक्ट नहीं बनता साथ ही इसमें चुंबन और स्तन मर्दन नहीं किया जा सकता है.

मूल्यांकन
· महिला (Receiver) को सहूलियत ☻☻☻☻
· महिला (Receiver) को परेशानी
· महिला (Receiver) को आनंद ☻☻☻☻
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· पुरुष (Giver) को सहूलियत ☻☻☻☻ ☺
· पुरुष (Giver) को परेशानी
· पुरुष (Giver) को आनंद ☻☻☻☻☻
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· अंतरंगता (Intimacy) ☻☻☻
· प्रवेश की गहराई ☻☻☻☺
· प्रवेश की गतिशीलता ☻☻☻☻☻

उन्नयन
तकियाः महिला चाहे तो अपनी योनि के सामने तकिया लगा कर सेक्स के लिये बेहतर एंगल बना सकती है.

परिवर्तन

- अंगरक्षक पोजीशन

- श्वान पोजीशन

- चमचा पोजीशनः यह अगल-बगल पोजीशन से मिलती है. इसमें अंतर इतना है कि दोनों पार्टनर के चेहरे आमने सामने नहीं होते है. इसमें महिला करवट के बल लेट जाती है फिर पुरुष महिला के पीछे की ओर से करवट के बल ही लेट कर प्रवेश की प्रक्रिया प्रारंभ करता हैं.

- ठेला गाड़ीः यह पोजीशन काफी मजबूत व दमदार लोगों के लिये है. इसमें पेट के बल लेटी महिला के पीछे खड़े होकर पुरुष महिला के पांव पकड़ कर उठा लेता है फिर महिला अपने हाथों के सहारे अपने शरीर को उठा लेती है. इसके बाद पुरुष अपने हाथों से पैरों को फैला कर महिला की जांघों के बीच घुस जाता है और धीरे-धीरे हाथों के जांघों के निकट लाकर जांघों के पास हाथ से महिला के शरीर को सहारा देते हुए प्रवेश क्रिया शुरू करता है. यह कामोन्माद का बेहतरीन जंगलीपन है.