Sunday, March 23, 2008

गर्भधारण के लिये बेहतर सेक्स पोजीशन

सामान्य तौर पर गर्भ धारण के लिये शुक्राणु का बेहतर होना माना जाता है. लेकिन अब सेक्स पोजीशन भी चिकित्सकीय नजरिये से गर्भधारण में महती रोल अदा करने लगी है. हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है लेकिन कई बार देखने में आया है कि कुछ सेक्स पोजीशन गर्भधारण में काफी सहयोगी भूमिका निभाती हैं.



क्या कुछ सेक्स पोजीशन गर्भधारण के लिये अन्य से बेहतर होती हैं?
हालांकि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कोई विशेष सेक्स पोजीशन गर्भधारण के लिये किसी अन्य पोजीशन से ज्यादा बेहतर है. लेकिन चिकित्साजगत के कुछ लोगों का मानना है कि जिस सेक्स पोजीशन से शुक्राणु को गर्भाशय में आसानी से प्रवेश व कम दूरी तय करनी पड़े उसमें गर्भधारण की संभावना ज्यादा होती है. इस आधार पर मिसनरी पोजीशन (जब पुरुष उपर हो) सबसे बेहतर पोजीशन मानी जाती है. लेकिन इसके साथ सही समय का चुनाव भी निर्णायक भूमिका निभाता है. अण्डोत्सर्ग के दौरान किया गया सेक्स गर्भधारण के लिये सबसे लाभदायक है. चूंकि पुरुष के शुक्राणु 2 से 5 दिन तक जीवित रह सकते हैं लेकिन महिला का अण्डाणु 12 से 24 घंटे ही जीवित रह सकता है. इसलिये अण्डोत्सर्ग के दौरान किया सेक्स गर्भधारण की ज्यादा गारंटी देता है.

क्या रति-निष्पत्ति (orgasm) गर्भधारण के अवसर बढ़ाने में मददगार होती है?
कुछ लोगों का मानना है कि जो महिला अपने पुरुष साथी के स्खलन के बाद चरमोत्कर्ष को पाती है उसके गर्भधारण की संभावना ज्यादा होती है लेकिन इस विचार की सत्यता के भी कोई प्रमाण या वैज्ञानिक तथ्य नहीं है. यहां हम यह बता देना चाहेंगे कि संभोग के दौरान किसी महिला का चरमोत्कर्ष किसी भी गर्भधारण के लिये महत्वपूर्ण नहीं है. लेकिन यह गर्भाशय के संकुचन में मददगार बनकर शुक्राणु को फेलोपियन ट्यूब में भेजने में उत्प्रेरक का कार्य करता हैं.

संभोग के बाद लेटना जरूरी होता है?
गर्भधारण की बेहतर परिस्थितियों के चिकित्सकों के मत के अनुसार संभोग के पश्चात महिला को कम से कम 15 मिनट लेटे रहना चाहिये. हालांकि इस बात के कोई बैज्ञानिक सबूत नहीं हैं. चिकित्सकों के अनुसार संभोग के पश्चात 15 मिनट या उससे ज्यादा समय तक लेटे रहने से योनि के अंदर ज्यादा मात्रा में वीर्य रुकता है और इस बजह से ज्यादा संख्या मे शुक्राणु निषेचन के लिये तैयार हो पाते हैं. अन्यथा यदि संभाग के बाद महिला सीधे उठ या खड़ी हो जाती है तो वीर्य उसकी योनि से बाहर आ जाता है साथ ही कम संख्या में शुक्राणु योनि में बच पाते है. इसके अलावा खड़े होने पर शुक्राणु को गुरुत्व के विपरीत तैर कर ऊपर गर्भाशय में प्रवेश करने के लिये संघर्ष करना पड़ता है.

Saturday, March 22, 2008

योनि स्राव और उसके संकेत

योनि मार्ग से सफेद, चिपचिपा गाढ़ा स्राव होना आज मध्य उम्र की महिलाओं की एक सामान्य समस्या हो गई है। सामान्य भाषा में इसे सफेद पानी जाना कहते हैं. भारतीय महिलाओं में यह आम समस्या प्रायः बिना चिकित्सा के ही रह जाती है। सबसे बुरी बात यह है कि इसे महिलाएँ अत्यंत सामान्य रूप से लेकर ध्यान नहीं देती, छुपा लेती हैं श्वेत प्रदर में योनि की दीवारों से या गर्भाशय ग्रीवा से श्लेष्मा का स्राव होता है, जिसकी मात्रा, स्थिति और समयावधि अलग-अलग स्त्रियों में अलग-अलग होती है। यदि स्राव ज्यादा मात्रा में, पीला, हरा, नीला हो, खुजली पैदा करने वाला हो तो स्थिति असामान्य मानी जाएगी। इससे शरीर कमजोर होता है और कमजोरी से श्वेत प्रदर बढ़ता है। इसके प्रभाव से हाथ-पैरों में दर्द, कमर में दर्द, पिंडलियों में खिंचाव, शरीर भारी रहना, चिड़चिड़ापन रहता है। इस रोग में स्त्री के योनि मार्ग से सफेद, चिपचिपा, गाढ़ा, बदबूदार स्राव होता है, इसे वेजाइनल डिस्चार्ज कहते हैं। इस रोग के कारणों की जांच स्त्री रोग विशेषज्ञ, लेडी डॉक्टर से करा लेना चाहिए, ताकि उस कारण को दूर किया जा सके।

योनिक स्राव क्या होता है और कब उसे असामान्य कहा जाता है?
ग्रीवा से उत्पन्न श्लेष्मा (म्युकस) का बहाव योनिक स्राव कहलाता है। अगर स्राव का रंग, गन्ध या गाढ़ापन असामान्य हो अथवा मात्रा बहुत अधिक जान पड़े तो हो सकता है कि रोग हो। योनिक स्राव (Vaginal discharge) सामान्य प्रक्रिया है जो कि मासिक चक्र के अनुरूप परिवर्तित होती रहती है. दरअसल यह स्राव योनि को स्वच्छ तथा स्निग्ध रखने की प्राकृतिक प्रक्रिया है वहीं अण्डोत्सर्ग के दौरान यह स्राव इसलिये बढ़ जाता है ताकि अण्डाणु आसानी से तैर सके. अण्डोत्सर्ग के पहले काफी मात्रा में श्लेष्मा (mucous) बनता है. यह सफेद रंग का चिपचिपा पदार्थ होता है. लेकिन कई परिस्थितियों में जब इसका रंग बदल जाता है तथा इससे बुरी गंध आने लगती है तो यह रोग के लक्षण का रूप ले लेता है. यहां प्रस्तुत है योनिक स्राव की विस्तृत जानकारी-
सफेद योनिक स्रावः मासिक चक्र के पहले और बाद में पतला और सफेद योनिक स्राव सामान्य है. सामान्यतः सफेद योनिक स्राव के साथ खुजलाहट या चुनमुनाहट नहीं होती है. यदि इसके साथ खुजली हो रही है तो यह खमीर संक्रमण (yeast infection) को प्रदर्शित करता है.
साफ और फैला (Clear and stretchy) हुआः यह उर्वर (fertile) श्लेष्मा है. इसका आशय है कि आप अण्डोत्सर्ग के चक्र में हैं.
साफ और पानी जैसाः यह स्राव महिलाओं में सामान्य तौर पर पूरे चक्र के दौरान अलग-अलग समय पर होता रहता है. यह भारी तब हो जाता है जब व्यायाम या मेहनत का काम किया जाता है.
पीला या हराः यह स्राव सामान्य नहीं माना जाता है तथा बीमारी का लक्षण है. यह यह दर्शता है कि योनि में या कहीं तीव्र संक्रमण है. विशेषकर जब यह पनीर की तरह और गंदी बदबू से युक्त हो तो तुरंत चिकित्सक के पास जाना चाहिये.
भूराः यह स्राव अक्सर माहवारी के बाद देख ने को मिलता है. दरअसल यह "सफाई" की स्वाभाविक प्रक्रिया है. पुराने रक्त का रंग भूरा सा हो जाता है सामान्य प्रक्रिया के तहत श्लेष्मा के साथ बाहर आता है.
रक्तिम धब्बे/भूरा स्राव: यह स्राव अण्डोत्सर्ग/मध्य मासिक के दौरान हो सकता है. कई बार बार शुरूआती गर्भावस्था के दौरान भी यह स्राव देखने को मिलता है. इस आधार पर कई बार इसे गर्भधारण का संकेत भी माना जाता है.

किन परिस्थितियों के कारण सामान्य योनिक स्राव में वृद्धि होती है?
सामान्य योनिक स्राव की मात्रा में निम्नलिखित स्थितियों में वृद्ध हो सकती है- योनपरक उत्तेजना, भावात्मक दबाव और अण्डोत्सर्ग (माहवारी के मध्य में जब अण्डकोष से अण्डे का सर्जन और विसर्जन होता है)

असामान्य योनिक स्राव के क्या कारण होते हैं?
असामान्य योनिक स्राव के ये कारण हो सकते हैं- (1) योन सम्बन्धों से होने वाला संक्रमण (2) जिनके शरीर की रोधक्षमता कमजोर होती है या जिन्हें मधुमेह का रोग होता है उनकी योनि में सामान्यतः फंगल यीस्ट नामक संक्रामक रोग हो सकता है।

असामान्य योनिक स्राव से कैसे बचा जा सकता है?
योनिक स्राव से बचने के लिए - (1) जननेन्द्रिय क्षेत्र को साफ और शुष्क रखना जरूरी है। (2) योनि को बहुत भिगोना नहीं चाहिए (जननेन्द्रिय पर पानी मारना) बहुत सी महिलाएं सोचती हैं कि माहवारी या सम्भोग के बाद योनि को भरपूर भिगोने से वे साफ महसूस करेंगी वस्तुतः इससे योनिक स्राव और भी बिगड़ जाता है क्योंकि उससे योनि पर छाये स्वस्थ बैक्टीरिया मर जाते हैं जो कि वस्तुतः उसे संक्रामक रोगों से बचाते हैं (3) दबाव से बचें। (4) योन सम्बन्धों से लगने वाले रोगों से बचने और उन्हें फैलने से रोकने के लिए कंडोम का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। (5) मधुमेह का रोग हो तो रक्त की शर्करा को नियंत्रण में रखाना चाहिए।

असामान्य योनिक स्राव के लिए क्या डाक्टर से सम्पर्क करना चाहिए?
हां, शीघ्र ही डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए। वे आपके लक्षणों की जानकारी लेंगे, जननेन्द्रिय का परीक्षण करेंगे और तदनुसार उपचार बतायेंगे।

Friday, March 21, 2008

सेक्स का दर्शन और अध्यात्म

... जब तुम किसी को आलिंगन में लेते हो, तब दूसरे का हड्डी-मांस-मज्जा ही तुम्हारे हाथ में आती है। वह कुछ तकिए से ज्यादा मूल्यवान नहीं है। आखिर हड्डी या मांस या चमड़ी तकिए से कैसे ज्यादा मूल्यवान हो सकती है ? बस तुम्हारा खयाल है कि दूसरा मौजूद है। इसलिए तुम अपने प्रेम को विस्तीर्ण कर पाते हो।जब तुम किसी आदमी के सिर पर चोट करते हो, तो उस चोट में और एक तकिए पर लकड़ी से चोट करने में क्या फर्क है ? फर्क तुम्हें दिखाई पड़ता है, क्योंकि तुम मानते हो, दूसरा वहां है और तकिया तो कोई भी नहीं। फर्क दिखाई पड़ता है, क्योंकि दूसरे से प्रत्युत्तर मिलेगा और तकिए से प्रत्युत्तर नहीं मिलेगा, इतना ही फर्क है।दूसरा जवाब देगा। जब तुम प्रेम से किसी व्यक्ति को आलिंगन में लोगे, तो वह भी तुम्हें आलिंगन में लेगा। उससे तुम्हें प्रेम करने में सुविधा पड़ेगी, क्योंकि प्रत्युत्तर जगाएगा, प्रत्युत्तर उत्तेजित करेगा और श्रृंखला निर्मित हो जाएगी।तकिए के साथ कठिनाई यह है कि तुम अकेले हो। तकिया कोई उत्तर न देगा। सब कुछ तुम्हें ही निर्मित करना पड़ेगा।लेकिन यह प्राथमिक कठिनाई सभी वेगों में होगी-काम हो, क्रोध हो या कोई भी वेग हों। थोड़े ही क्षणों में, थोड़े ही दिनों में, तुम समर्थ हो जाओगे। और तब तुम्हें बड़ी हंसी आएगी कि तुमने अब तक जितने लोगों को आलिंगन किया था, वे भी तकिए से ज्यादा नहीं थे, वे भी निमित्त थे।प्रेम भी तुम्हारा एकांत ध्यान बने, इसमें कई अड़चनें हैं। अड़चनें संस्कार की हैं। अड़चनें ऐसी हैं कि बचपन से कुछ बातें सिखाई गई हैं, और वे बाधा डालेंगी।जैसे पुरुष है, अगर कामवासना तकिए पर प्रकट करे, तो यह भी हो सकता है कि उसका वीर्य स्खलित हो जाए। तो भय है। वह भय बचपन से सिखाया गया है कि वीर्य की एक बूंद भी स्खलित हो जाए, तो महागर्त में गिर रहे हो, बड़ी जीवन-ऊर्जा नष्ट हो रही है। हिंदू मानते हैं कि चालीस दिन में भोजन करने से एक बूंद वीर्य बनता है। सरासर असत्य है, झूठ बात है, इसमें रत्तीभर भी सच्चाई नहीं। लेकिन बच्चों को डराने के लिए ईजाद की गई है। और बच्चे डरते हैं वह तो ठीक है बूढ़े भी डरते हैं।एक साधारण पुरुष सत्तर वर्ष के जीवन में आसानी से कोई चार हजार बार संभोग कर सकता है। प्रत्येक संभोग में कोई एक करोड़ से लेकर दस करोड़ तक वीर्याणु स्खलित होते हैं। एक शरीर के भीतर इतने वीर्याणु हैं कि अगर प्रत्येक वीर्याणु गर्भस्थ हो जाए, तो इस पृथ्वी पर जितनी जनसंख्या है, वह एक जो़ड़े से पैदा हो सकती है। चार अरब व्यक्ति एक स्त्री और एक पुरुष से पैदा हो सकते हैं।और यह जो वीर्य है, यह कोई आपके भीतर संचित संपदा नहीं है कि रखा हुआ है, इसमें से कुछ निकल गया, तो कुछ कम हो जाएगा। यह वीर्य प्रतिफल पैदा हो रहा है। शरीर श्वास ले रहा है भोजन कर रहा है, व्यायाम कर रहा है-यह वीर्य पैदा हो रहा है।और आप हैरान होंगे कि जो आधुनिक खोजें हैं चिकित्साशास्त्र की, वे बड़ी भिन्न हैं, विपरीत हैं। वे कहती हैं, जो व्यक्ति जितना वीर्य का उपयोग करेगा, उतने ज्यादा दिन तक पुंसत्व उसमें शेष रहेगा। जो जितनी जल्दी भय से बंद कर देगा वीर्य का उपयोग या संभोग उतने जल्दी उसका वीर्य खो जाएगा। क्योंकि जब तुम वीर्य का उपयोग करते हो, तो तुम्हारे पूरे शरीर को फिर वीर्य पैदा करने की क्रिया में संलग्न होना पड़ता है। जब तुम वीर्य का उपयोग नहीं करते, तो शरीर को संलग्न नहीं होना पड़ता। धीरे-धीरे शरीर की क्षमता वीर्य को पैदा करने की कम हो जाती है।यह बहुत उलटा दिखाई पड़ेगा। जो लोग जितना ज्यादा संभोग करेंगे, उतनी लंबी उम्र तक संभोग करने में समर्थ रहेंगे। जो लोग जितना कम संभोग करेंगे, उतनी जल्दी रिक्त हो जाएंगे और चुक जाएंगे।तो पश्चिम में चिकित्सक समझाते हैं कि बुढ़ापे तक, सत्तर और अस्सी वर्ष और नब्बे वर्ष तक भी अगर संभोग जारी रखा जा सके, तो तुम्हारे ज्यादा जीने की संभावना है। क्योंकि शरीर तुम्हारा ताजा रहेगा। वीर्य बाहर जाता है, तो नया वीर्य शरीर पैदा करता है। और नए वीर्य में शक्ति होती है, ताजगी होती है। पुराना वीर्य धीरे-धीरे बासा हो जाता है, जड़ हो जाता है। और वीर्य की जड़ता के साथ तुम्हारे पूरे शरीर में जड़ता व्याप्त हो जाती है।हमें यहां हैरानी होती है-पश्चिम में हम सुनते हैं, कोई नब्बे वर्ष का व्यक्ति शादी कर रहा है। हमें बहुत हैरानी होती है कि शादी का क्या प्रयोजन है अब ? लेकिन पश्चिम में नब्बे वर्ष का बूढ़ा भी संभोग कर सकता है। और करने का कारण सिर्फ यह है कि वीर्य के संबंध में सारी धारणा बदल गई है। और वैज्ञानिक धारणा सच्चाई के ज्यादा करीब है।जीवन के सभी अंगों में यह बात सच है कि उनका तुम उपयोग करो, तो वे सक्षम रहते हैं। एक आदमी चलता रहे, बुढ़ापे तक चलता रहे, तो पैर मजबूत रहते हैं चलना बंद कर दे, पैर कमजोर हो जाते हैं। एक आदमी मस्तिष्क का उपयोग करता रहे आखिरी क्षण तक, जो मस्तिष्क ताजा रहता है। उपयोग बंद कर दे, मस्तिष्क जड़ हो जाता है।सारी इंद्रियों का जीवन उपयोग पर निर्भर है, क्रियात्मकता पर निर्भर है।तुम जिन इंद्रियों का उपयोग करते हो, वे उतने ही ज्यादा दिन तक ताजी रहेंगी। और वीर्य भी एक इंद्रिय है। उसके लिए कोई अपवाद नहीं है। वह भी शरीर का ही अंग है। शरीर का नियम है कि तुम जितना ज्यादा उपयोग लोगे, उतना ज्यादा जीवंत रहेगा। तुम भयभीत हुए डरे, उपयोग बंद किया, उतनी ही जल्दी शरीर क्षीण हो जाएगा।और यह एक दुष्टचक्र है। क्योंकि जो व्यक्ति डरता है, कम उपयोग करता है, शरीर क्षीण होता है। क्षीण होने से और डरता है। और डरने से अपने को और रोकता है। और रोकने से और क्षीण होता है। फिर कोई उपाय नहीं। फिर उसने एक रास्ता पकड़ लिया, जिस पर वह जल्दी ही मिट जाएगा।भय रोकता है, रोकने से हम मरते हैं। निर्भय होकर जीवन को ऐसा उपयोग करो-रोजा लक्जेंबर्ग ने, एक जर्मन महिला ने कहा है-जैसे कोई मशाल दोनों तरफ से जले, ऐसे जलो।घबड़ाओ मत, तुम ज्यादा जलोगे, जीवन बड़ा विराट है। तुम्हारे दीए में बहुत तेल है। लेकिन तुम जलाओ ही नहीं बाती को, भयभीत हो जाओ, तो तुम डूब जाओगे।सारी दुनिया में पुरानी संस्कृति और सभ्यताओं ने वीर्य के संबंध में बड़ा भयभीत किया है लोगों को। इसके कारण हैं। क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति वीर्य के संबंध में भयभीत हो जाता है, उसे गुलाम बनाना आसान है। आपने उसकी जड़ पकड़ ली। वीर्य जड़ है। अगर किसी व्यक्ति को कामवासना के संबंध में बहुत अपराध से भर दिया, तो वह व्यक्ति न तो विद्रोही रह जाएगा, न शक्तिशाली रह जाएगा। और सदा अपराध की भावना इसको दबाएगी। अपराधी को दबाना बहुत आसान है।तो राज्य भी चाहता है कि आप अपराध अनुभव करें, समाज भी चाहता है। सभी-जिनके हाथ में सत्ता है-चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति, जो पैदा हो, वह भयभीत रहे। भयभीत रहे, तो उसकी मालकियत की जा सकती है, उसका मालिक हुआ जा सकता है। निर्भय हो जाए, तो वह सब बंधन तोड़ देगा, सब रास्ते, वह स्वतंत्रता से जीएगा। विद्रोही हो जाएगा।तो बचपन से हम बच्चों को सिखाते हैं कि वीर्य का स्खलन न हो जाए, सम्हालना। वीर्य के संबंध में हम कंजूसी सिखाते हैं। और इसको हम ब्रह्मचर्य कहते हैं।यह ब्रह्मचर्य नहीं है। कृपणता ब्रह्मचर्य नहीं है। और न वीर्य को जबर्दस्ती रोक लेने से ब्रह्मचर्य का कोई संबंध है। ब्रह्मचर्य तो एक ऐसे आनंद की घटना है, जब आपका अस्तित्व के साथ संभोग शुरू हो गया; और इसलिए व्यक्ति के साथ संभोग की कोई जरूरत नहीं रह जाती। यह जरा कठिन है समझना। और अगर मैं कहूं तो बहुत बेचैनी होगी। संत वैसा व्यक्ति है, जिसका अस्तित्व के साथ संभोग शुरू हो गया। वहां कोयल कूकती है, तो उसका पूरा शरीर संभोग के आनंद को अनुभव करता है। वहां वृक्ष में फूल खिलते हैं, तो उसके पूरे शरीर पर, जैसी संभोग में आपको थिरक अनुभव होती है, उसका रोआं-रोआं वैसा थिरकता है और नाचता है। सुबह सूरज उगता है, रात चांद आकाश में होता है तो हर घड़ी संभोग की समाधि उसे उपलब्ध होती रहती है। उसका रोआं-रोआं संभोग में समर्थ हो गया है; आपका केवल जननेंद्रिय संभोग में समर्थ है।इस संबंध में एक बात समझ लेनी जरूरी है। कभी खयाल भी नहीं आया होगा ! हमने शिव की प्रतिमा, शिवलिंग निर्मित की है। शिव जैसे पूरे के पूरे लिंग हैं, इसका मतलब यह होता है। इसका मतलब होता है, शिव के पास न आंखें हैं, न हाथ हैं, न पैर हैं, मात्र लिंग है, सिर्फ जननेंद्रिय है।यह संतत्व की आखिरी दशा है, जब व्यक्ति का पूरा शरीर जननेंद्रिय हो गया। इसका प्रतीक अर्थ यह हुआ कि अब वह पूरे शरीर के साथ जगत के साथ संभोग में रत है। अब यह संभोग लोकल नहीं है। यह जननेंद्रिय और जननेंद्रिय का मिलना नहीं है, अब यह अस्तित्व और अस्तित्व का मिलना है।शिव का शिवलिंग हमने निर्मित करके जगत को एक ऐसी धारणा दी है, जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है।लेकिन हिंदू भी यह अर्थ नहीं करेगा। अर्थ बिलकुल साफ है। अंधे हम हैं। हम इतने भयभीत हैं कि हम यह अर्थ ही नहीं करेंगे। हम तो छिपाने की कोशिश करते हैं।पश्चिम में बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक हुआ कार्ल गुस्ताव जुंग। वह भारत आया यात्रा पर। तो वह पुरी, कोणार्क, खजुराहो के मंदिर देखने गया। जब वह कोणार्क के मंदिर को देखने गया, तो जो पंडित उसे मंदिर दिखा रहा था, वह बड़ा बेचैन परेशान था-क्योंकि जगह-जगह नग्न-मैथुन की प्रतिमाएं थीं-और बहुत गिल्टी, अपराधी अनुभव कर रहा था। और जुंग बहुत प्रभावित था। क्योंकि जुंग इस सदी के उन थोड़े से लोगों में है, जिन्होंने मनुष्य की चेतना में बड़ा गहरा प्रवेश किया है।और जितनी गहराई में प्रवेश होगा, उतना ही मैथुन अर्थपूर्ण होगा। क्योंकि मैथुन से ज्यादा गहरा आपके भीतर कुछ भी नहीं जाता। शायद मैथुन के क्षण में आप जिस अवस्था में होते हैं, उससे ज्यादा गहरी अवस्था में साधारणत: आप कभी नहीं लेते। जिस दिन समाधि उपलब्ध होगी, उस दिन ही मैथुन के पार आप जाएंगे, उससे गहरी अवस्था उपलब्ध होगी।जो जुंग तो बहुत आनंद से देख रहा था। वह पंडित बहुत परेशान था। उसको लग रहा था कि क्या गलत चीजें हम दिखा रहे हैं। और यह आदमी पश्चिम में खबर ले जाएगा, तो हमारी संस्कृति के बाबत क्या सोचेंगे ?और ऐसा वह पंडित ही सोचता था, ऐसा नहीं है। गांधीजी तक सोचते थे कि कोणार्क और खजुराहों को मिट्टी के ढेर में दबा देना चाहिए, ताकि हमारी बदनामी न हो।एक लोग थे इस मुल्क में, जिन्होंने खजुराहो बनाया, कोणार्क बनाया। और बनाया था संतों के निर्देशन में क्योंकि ये मंदिर हैं। फिर महात्मा हमारे मुल्क में होने लगे जो उन्हें मिटा देना चाहते हैं या दबा देना चाहते हैं।गांधी को मैं कभी भी हिंदू नहीं मान पाता। वह ईसाई है। उनकी शिक्षा-दीक्षा उनकी पकड़ ईसाई की है। ईसाई बहुत डरा हुआ है इस तरह की चीजों से। ईसाई सोच ही नहीं सकता कि चर्च में और मैथुन की प्रतिमा हो सकती है, या शिवलिंग हो सकता है।जैसे ही मंदिर से विदा होने लगे जुंग, तो उस आदमी ने, पंडित ने, कान में कहा कि क्षमा करें, यह विकृति अतीत में कुछ लोगों के मन की प्रतिछवि है; यह कोई हमारा राष्ट्रीय प्रतीक नहीं है। और ऐसा मत सोचना आप कि यह हमारा धर्म या हमारा दर्शन है। यह तो कुछ विकृत मस्तिष्कों का उपद्रव है।जुंग ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैं हैरान हुआ कि इतनी महत्वपूर्ण प्रतिमाएं हैं, और इतने गहरे गई प्रतिमाएं हैं। लेकिन आज को हिंदू की यह दृष्टि है ! हिंदू भी कमजोर हो गया है।शिवलिंग का अर्थ है : एक ऐसी दशा, जब तुम्हारा पूरा शरीर रोएं-रोएं से संभोग अनुभव कर सकता है। तभी तुम्हें जननेंद्रिय के संभोग से छुटकारा मिलेगा और ब्रह्मचर्य उपलब्ध होगा।तो ब्रह्मचर्य भोग से मुक्ति नहीं है, परमभोग का आस्वाद है। लेकिन भोग इतना परम हो जाता है कि तु्म्हें उसे करने की अलग से जरूरत नहीं होती। हवा का झोंका आता है, तो तुम्हारा रोआं-रोआं उस पुलक को अनुभव करता है, जो प्रेमी अपनी प्रेयसी के स्पर्श से अनुभव करेगा।लेकिन हमने बच्चों को डराया हुआ है। उनको इतना डरा दिया है कि कभी काम में ठीक संभोग उपलब्ध ही नहीं हो पाता। वह भय बना ही रहता है। कंजूसी कृपणता बनी ही रहती है। डर बना ही रहता है कि कहीं शक्ति खो न जाए। एक-एक दर्जन बच्चों के मां-बाप हो जाने के बाद भी लोगों को यह डर बना रहता है कि शक्ति कहीं खो न जाए।शक्ति खोने का डर नास्तिक को हो सकता है। आस्तिक को नहीं होना चाहिए। आस्तिक कृपण हो जाए, बिलकुल समझ में नहीं आता।उस भय के कारण तुम्हें एकांत में प्रेम बड़ा मुश्किल मालूम पड़ेगा।लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ, भय छोड़ो। और जैसा तुमने क्रोध तकिए पर प्रकट किया है, वैसा ही तुम प्रेम तकिए पर प्रकट करो। जो भी परिणाम हों, परिणामों की फिक्र जल्दी मत करो। यह भी हो सकता है कि प्राथमिक चरणों में तुम इतने उत्तेजित हो जाओ कि वीर्य-स्खलन हो जाए। उस स्खलन को तुम परमात्मा के चरणों में समर्पण ही समझना। जिससे ऊर्जा आती है, उसी में वापस चली गई। तुम उससे भयभीत मत होना।जल्दी ही वह क्षण आ जाएगा, जब इस प्रेम के ध्यान में वीर्य का स्खलन नहीं होगा। और जब यह ध्यान गहन होगा और वीर्य का स्खलन न होगा, तब तुम एक नए स्वाद को उपलब्ध होओगे। वह स्वाद है बिना शक्ति को खोए आनंद के अनुभव का। शक्ति जब तुम्हारे भीतर दौड़ती है प्रगाढ़ता से, तुम एक तूफान बन जाते हो शक्ति के, तुममें एक ज्वार आता है, लेकिन यह ज्वार तुम उलीचकर फेंक नहीं देते, यह ज्वार एक नृत्य बनकर तुममें ही लीन हो जाता है।इस फर्क को ठीक से समझ लें। एक तो साधारण जीवन का ढंग है, जिसको हम भोग कहते हैं, वह ढंग यह है कि तुममें एक ज्वार आता है, वह ज्वार भी जैसे चाय की प्याली में आया तूफान, क्योंकि लोकल है, जननेंद्रिय से संबंधित है। तो सारे शरीर में जो भी तरंगें उठती हैं, वे जननेंद्रिय पर जाकर केंद्रित हो जाती है। एक दो क्षण में चुक जाता है ज्वार। एक हवा आई, तुम आंदोलित हुए, जननेंद्रिय ने सारी ऊर्जा को लेकर निष्कासित कर दिया। जैसे फुग्गे से हवा निकल गई, तुम मुर्दा पड़ गए, सो गए। यह जो क्षणभर के लिए ज्वार आना और खो जाना है, इसको तुमने भोग समझा है। यह तो भोग का अ, ब, स भी नहीं है।भोग की तंत्र की जो व्याख्या है, वह है, तुम्हारा पूरा शरीर ज्वार से भर जाए। रोआं-रोआं तरंगित हो, तुम अपने को इस तरंगायित स्थिति में बिलकुल विस्मृत ही कर जाओ, तुम्हें याद भी न रहे कि मैं हूं। नृत्य रह जाए, नर्तक न बचे। गीत रह जाए, गायक न बचे। तुम्हारा पूरा अस्तित्व एक्सटेटिक हो, समाधिस्थ हो, तो तुम एक ऊंचाई पर पहुंचोगे-ऊंचाई पर-रोज ऊंचाई बढ़ती जाएगी।और ध्यान रहे : यह जो ऊंचाई के बढ़ने की प्रतीति है, यह तुम्हारे पूरे शरीर को होगी, जैसे तुम्हारा पूरा शरीर स्पंदित हो रहा है, सजग हो रहा है। अभी जननेंद्रिय में तुम स्पंदन अनुभव करते हो, सजगता अनुभव करते हो। तब पूरा शरीर शिवलिंग हो जाएगा और तुम अनुभव करोगे कि तुम्हारे शरीर की जो रूपरेखा है, वह खो गई है।शिवलिंग कविता नहीं है, एक अनुभव है। और जब पूरे ज्वार से जीवन भर जाता है और तुम्हारा सारा शरीर रोमांचित होता है, तब तुम अपने आसपास ठीक शिवलिंग की आकृति में प्रकाश का एक वर्तुल देखोगे। तुम पाओगे कि तुम्हारे पूरे शरीर की रूपरेखा खो गई और शिवलिंग बन गया। एक प्रकाश का अंडाकार रूप, जिसमें तुम्हारी आंखें नहीं होंगी, नाक नहीं होगी, कान नहीं होंगे, हाथ नहीं होंगे, सिर्फ एक अंडाकार रूप रह जाएगा।यह ज्योतिर्मय जो रूप हैं, यह जो अंडाकार रूप है, यही तुम्हारी आत्मा का रूप है। जिस दिन तुम मां के गर्भ में प्रवेश हुए, ठीक शिवलिंग की आकृति का एक प्रकाश-बिंदु मां के गर्भ में प्रविष्ट हुआ। शरीर तो तुम्हें गर्भ के भीतर मिला। जब तुम शरीर को छोड़ेगो, मृत्यु घटित होगी-पहले भी घटित हुई है-तब तुम्हारा शरीर आकार पड़ा रह जाएगा; शिवलिंग ज्योतिर्मय पिंड तुमसे उठेगा और दूसरी यात्रा पर निकल जाएगा।जिस दिन तुम संभोग की परम अवस्था में आओगे और पूरा शरीर रोमांचित होगा, उस दिन तुम जैसे जन्म के समय में घटना घटी थी, मृत्यु के समय में घटी थी, लेकिन जन्म के समय तुम मूर्च्छित थे, मृत्यु के समय फिर तुम मूर्च्छित हो जाओगे, इस संभोग के क्षण में-इस संभोग का कोई संबंध दूसरे से नहीं है, इस संभोग का संबंध तुम्हारे भीतर शरीर के सब बांध को तोड़कर तुम्हारी चेतना का शिवलिंग बन जाने से है-तुम्हें पहली दफा अपने स्वरूप को अनुभव होगा। और यह स्वरूप अस्तित्व के साथ जो आनंद का अनुभव करता है, उसको तंत्र ने संभोग कहा है।यह एकांत में भी घट सकता है, किसी के साथ भी घट सकता है।लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, एकांत की ही तुम चिंता करना, क्योंकि दूसरे के साथ भी घटेगा, तो भी तुम जानोगे कि इसका दूसरे से कुछ लेना-देना नहीं है। यह घटना स्वतंत्र है। रोएं-रोएं से प्रकाश निकलता है, तुम्हारे भीतर एक ज्वार उठता है।और जो फर्क है...जब तुम्हारे भीतर पूर्ण ज्वार होता है, तो उस पूर्ण ज्वार का कोई भी स्खलन नहीं है। वह स्खलित होगा भी कैसे ? और जो अंडाकार आकृति है, वह स्खलन को रोकती है। उसमें कहीं छिद्र भी नहीं है, जहां से स्खलन हो सके। ऊर्जा वर्तुल में घूमने लगती है। और धीरे-धीरे, धीरे-धीरे तुममें फिर लीन हो जाती है, तुमसे बाहर नहीं जाती। तुममें उठती है, तुममें लीन हो जाती है। जैसे सागर में ज्वार आता है, फिर लीन हो जाता है। कहीं कुछ खोता नहीं।...

... यह अंश ओशो लिखित "ध्यान की कला" के हैं.
साभारः भारतीय साहित्य संग्रह
प्रेषकः डॉ. अरुण सिंह

गर्भावस्था सावधानी व सुझाव

सामान्य परीक्षण

सामान्य गर्भावस्था में भी किन-किन रोगों का परीक्षण नियमित रूप से किया जाता है?
लगभग सभी सामान्य गर्भों के दौरान एड्स, हैपेटिटिस - बी, साईफिलिस, आर एच अनुपयुक्तता और रूबेला का नियमित परीक्षण किया जाता है। गर्भकाल में अलग-अलग समय पर रक्त के सैम्पल लेकर डॉक्टर इन स्थितियों का परीक्षण करते हैं।

जन्मजात रोगों के सम्बन्ध में व्यक्ति को कब चिन्ता करनी चाहिए?
आपके बच्चे को जन्मजात रोगों का खतरा अधिक हो सकता है यदि वह निम्नलिखित तीन कारणों में से किसी में आता है। (1) पहले बच्चे में जन्मजात रोग (2) परिवार में जन्मजात विकारों का इतिहास जिनके दोहराये जाने की सम्भावना रहती है। (3) यदि मां की उम्र 35 वर्ष से अधिक हो तो बच्चे में अभावपरक संलक्षणों का खतरा बढ़ जाता है।

क्या सामान्य रक्त परीक्षणों से जन्मजात विकारों को परखा जा सकता है?
अध्ययन से पता चलता है कि प्रसव पूर्व होने वाली रक्त की जांचों से 90 प्रतिशत जन्मजात विकारों का पता नहीं चल पता है। जाने जा सकने योग्य 10 प्रतिशत जन्मजात रोगों के लिए अलग से चार प्रकार के टैस्ट हैं - एमनियोसेन्टीसिस, करौलिक विलि सैम्पलिंग, अल्फा फैटो प्रोटीन (ए एफ पी) जैसे टैस्ट और अल्ड्रासाउण्ड स्कैनस।
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सामान्य देखभाल

स्वास्थ्य परक आहार पर इतना अधिक जोर क्यों दिया जाता है?
अपने अजन्में बच्चें के पोषण की आप एकमात्र स्रोत हैं, आपके खाने की प्रवृत्ति का बच्चे के स्वास्थ्य और कुशल क्षेम पर प्रभाव पड़ता है। बड़ी हुई जरूरत को पूरा करने के लिए आप के शरीर को पर्याप्त पोषण की जरूरत होती है।

गर्भवती माँ को कितनी कैलोरी की जरूरत होती है?
गर्भवस्था के प्रारम्भिक महीनों में आप को अपने आहार में बदलाव लाने की जरूरत नहीं है। गर्भ के बढ़ने के साथ साथ आप को कैलोरी की मात्रा में लगभग 300 अतिरिक्त कैलोरिस जोड़ लेने की जरूरत पड़ सकती है। ऐसा सामान्यतः दूसरे और तीसरे ट्रिमस्टर में होता है। यहि आप अधिक खाते हैं तो आप का ही वज़न बढ़ेगा न कि आपके बच्चे का। इसलिए ध्यान रखें कि आप बरगर, तले पदार्थ, बिस्कुट जैसे केवल कैलोरी बढ़ाने वाले पदार्थ न लें। वस्तुतः आप को जरूरत होती है - प्रोटीन कार्बोहाइड्रेटस एवं मिनरल तथा विटामिन युक्त भोजन की जैसे कि चपाती, दालें, सोया, दूध अण्डे और सामिष भोजन, मेवे, हरे पत्तों वाली सब्जियां और ताजे फल।

लोग कहते हैं कि गर्भवती महिला दो जनों के लिए खाती है?
गर्भ के कारण आप को दो के बराबर खाने की जरूरत नहीं है। सच यह है कि अगर आप दो के बराबर खायेंगे तो आप का वज़न इतना बढ़ जायेगा कि आप अपने लिए अनावश्यक रूप से परेशानियां बढ़ा लेंगी और बाद में उसे घटाने में बहुत परेशानी होगी।

गर्भवती महिला के लिए सन्तुलित भोजन कौन सा होता है?
गर्भकाल के दौरान आप के आहार में निम्नलिखित होने चाहिए -3 बार श्रेष्ठतम प्रोटीन - अण्डा, सोयाबीन, सामिष।2 बार विटामिल सी युक्त पदार्थ - रसीले फल, टमाटर4 बार कैलशियम प्रधान पदार्थ (गर्भकाल में 4 बार स्तनपान में 5 बार) जैसे दूध, दही।3 बार हरी पत्तों वाली और पीली सब्जियां या फल पालक, बथुआ, छोले, सीताफल, पपीता, गाजर।1/2 बार अन्य फल एवं सब्जियां - बैंगन, बन्द गोभी4-5 बार साबुत अनाज और मिश्रित कार्बोहाइड्रेटस - चपाती चावल8-10 गिलास पानीडॉक्टर के परामर्श के अनुसार आहार परक दवाएं।

एक गर्भवती महिला को किन आहार पूरक दवाओं की जरूरत होती है?
एक गर्भवती महिला को अपने आहार में विटामिन, आयरन और कैलशियम की जरूरत रहती है। आयरन फोलिक और कैलशियम की गोलियां सभी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में मुफ्त उपलब्ध रहती हैं। ये दवाएं आमतौर पर सुविधा से उपलब्ध होती हैं कौन सी दवा लेनी है इसका सुझाव डॉक्टर से लेना चाहिए।
स्वस्थ गर्भ में कितने वज़न का बढ़ना आदर्श माना जाता है?महिला का वज़न औसतन 11 से 14 किलो के बीच बढ़ना चाहिए।

ट्रिमस्टर के अनुसार वज़न के बढ़ने का श्रेष्ठतम स्वरूप क्या है?
ट्रिमस्टर के अनुसार वज़न बढ़ने का आदर्श स्वरूप इस प्रकार है।
1. पहला ट्रिमस्टर - 1 से 2 किलो
2. दूसरा ट्रिमस्टर 5 से 7 किलो
3. चार से पांच किलो।

गर्भ के दौरान चाय, कॉफी अथवा फिजिपेय का पीना क्या सुरक्षित है?
गर्भ के दौरान चाय, कॉफी अथवा फिजिपेय पदार्थों का पान बहुत सीमित होना चाहिए।
कम पोषक तत्व वाले खाद्य पदार्थों की तीव्र इच्छा को कैसे वश में करें।या किसी अस्वास्थ्यकारी वस्तु के लिए तीव्र इच्छा जागृत हो तो पहले अपने मन को उधर से हटायें या उसका विकल्प ढूंढ लें। अगर फिर भी मन न माने तो जो भी लें थोड़ सा लें, अपने मन को समझा लें कि अपने बच्चे की पोषक परक जरूरतों से आपने कोई समझौता नहीं करना है।

यदि किसी विशिष्ट अखाद्य पदार्थ को खाने की अनोखी इच्छा जगे तो कोई क्या करें?
डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि उस में कोई पोषण परक विकार पैदा हो रहा है।
गर्भ के दौरान कब्ज से कैसे छुटकारा मिल सकता है?
कुछ गर्भवती महिलाओं का अर्धाश इस कब्ज से पीड़ित रहता है। कुछ सामान्य उपचार के साधन हैं। (1) 1-2 गिलास जूस सहित कम से कम 8 गिलास पानी पियें। (2) अपने भोज में अनाज, कच्चे फल और सब्जियों की मात्रा अधिक करें उन में फाइवर अधिक हो (3) हर रोज़ व्यायाम करें - सैर करना व्यायाम की अच्छी शैली है। व्यायाम एवं अच्छी शारीरिक स्थिति व्यक्ति को उसका पेट साफ रखने में मदद देती है। (4) अगर कब्ज बार बार होने लगे तो डॉक्टर की सलाह से कोई कब्ज निवारक दवा दें।

गर्भ के दौरान मसूड़ों का सूजना या उनसे रक्त आना स्वाभाविक क्रिया है?
गर्भ के दौरान शरीर में जो अतिरिक्त हॉरमोन आ जाते हैं उन से मसूड़े सूज सकते हैं या उन से रक्त आ सकता है। नरम टुथब्रश लेकर नियमित रूप से ब्रश करते रहें। गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति में दांतों का चैक अप करवा लेना चाहिए ताकि मुख को स्वास्थ्य सही रहे।

छाती में जलन से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
छाती की जलन से बचने के लिए (1) बार-बार परन्तु थोड़ा थोड़ा खायें, दिन में 2-3 बार खाने की अपेक्षा 5-6 बार खायें। भोजन के साथ अधिक मात्रा में तरल पदार्थ न लें। (2) वायु-विकार पैदा करने वाले, मसालेदार या चिकने भोजन से बचें। (3) सोने से पहले कुछ खायें या पियें नहीं (4) खाने के दो घन्टे बाद ही व्यायाम करें। (5) शराब या सिगरेट न दियें। (6) बहुत गर्म या बहुत ठन्डे तरल पदार्थ न लें।

गर्भकाल के दौरान यौन-सम्भोग करते रहना क्या सुरक्षित होता है?
कुछ दम्पतियों को गर्भकाल में सम्भोग करने से चिन्ता होती है। उन्हें गर्भपात का भय लगा रहता है। स्वस्थ महिला के सामान्य गर्भ की स्थिति में गर्भ के अन्तिम सप्ताहों तक कुछ दम्पतियों को गर्भकाल में सम्भोग करने से चिन्ता होती है। उन्हें गर्भपात का भय लगा रहता है। स्वस्थ महिला के सामान्य गर्भ की स्थिति में गर्भ के अन्तिम सप्ताहों तक सम्भोग सुरक्षित होता है। आप और आप का साथी आरामदायक स्थिति में सम्भोग कर सकते हैं।

गर्भकाल में टांगों में पड़ने वाले क्रैम्पस क्या सामान्य हैं?
हां, गर्भ के दूसरे और तीसरे ट्रिमस्टर में हो सकता है कि आप की टांगों में कैम्पस बढ़ जाये। अधिक मात्रा में कैलशियम लें। (तीन गिलास दुध या दवा) और पोटैशियम (केला संतरा) लें। सोने से पहले टांगों का खिंचाव देकर सीधा करने से शायद आपको कुछ राहत मिले।

क्या गर्भ के दौरान यात्रा करनी चाहिए?
अधिकतर औरतें सुरक्षित रूप से यात्रा कर लेती है। जब तक कि प्रसव काल नज़दीक नहीं आ जाता। अधिकतर, गर्भावस्था के मध्यकाल को सब से सुरक्षित माना जाता है। इस दौरान कम से कम समस्याएं होती है।

गर्भकाल के दौरान व्ययाम क्यों करना चाहिए?
निम्नलिखित कारणों से व्यायाम करना चाहिए (1) आकृति और अभिव्यक्ति में सुधार लाने के लिए (2) पीठ दर्द से छुटकारे के लिए (3) प्रसव काल के लिए मांसपेशियों को सशक्त बनाने और ढीले पड़े जोड़ो को सहारा देने के लिए (4) मांसपेशियों के कैम्पस से राहत के लिए (5) रक्त संचार को बढ़ाने के लिए (6) लचीलेपन को बढ़ाने के लिए (7) थकावट दूर करने के लिए ऊर्जा वृद्धि के लिए (8) भले चंगे होने की भावना भरने और आत्मछवि के सकारात्मक विकास के लिए। आपका डॉक्टर आप को सही ढंग से व्ययाम के सम्बन्ध में बतायेगा।

क्या व्यायाम से मेरे बच्चे को लाभ पहुंचेगा?
हां भ्रूण के लिए व्यायाम अति उत्तम है क्योंकि इस से रक्त प्रवाह बढ़ता है और बच्चे की वृद्धि और विकास को सुधारता है। व्यायाम से बच्चे का मस्तिष्क और अन्य टिशु श्रेष्ठ स्थिति में काम करने लगते हैं।

गर्भकाल के दौरान कौन सा व्यायाम सुरक्षित माना जाता है?
किसी प्रकार के खेल-कूद या व्ययाम को जारी रखने में कोई समस्या नहीं है, जब तक कि वह सीमा में हो। फिर बी पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

किस प्रकार का व्यायाम बिल्कुल नहीं करना चाहिए?
जॉगिंग जैसा व्यायाम रीढ, श्रोणि, नितम्बों, घुटनों स्तनों और पीठ पर बड़ा भारी पड़ता है। इसलिए उसे नहीं करना चाहिए। जिस व्यायाम से पेट की मांसपेशियां खिंचे जैसे टांगे उठाना, उठक बैठक भी गर्भ के दौरान नहीं करने चाहिए। और गर्भवती नवीन चेष्टाओं से तालमेल बैठाने में शरीर को कुछ समय लगता है। चौथे महीने के बाद, पीठ के बल लेटकर व्यायाम न करें, क्योंकि आपके गर्भाशय का वज़न रक्त वाहिकाओं को दबा सकता है और रक्त भ्रमण में बाधा दे सकता है।

गर्भधारण करने के कितने समय बाद तक मैं काम करती रह सकती हूँ?
जिस गर्भवती महिला को कोई समस्या न हो वह नौवें महीने तक काम करती रह सकती है। हाँ, उन्हें कुछ सावधानियां बरतनी पडेंगी जैसे कि भारी थकान वाली गतिविधि से बचें, सीढ़ियां चढ़ने, तापमान की अति और धुये भरे क्षेत्र से दूर रहें। बार-बार आराम करें और यदि थकान लगे तो जल्दी ही काम से लौट जायें यदि बहुत देर तक खड़ी रही हैं तो बैठ जायें और पैर ऊपर कर लें। अन्तिम तीन महीनों में लम्बे समय तक खड़े रहना, भारी चीज़ों को उठाना, मुड़ना या झुकना नहीं चाहिए। गर्भवती महिला को नियमित भोजन करना चाहिए एक जगह बैठकर किया जाने वाला काम जिस से ज्यादा परेशानी न हो वह घर बैठने की अपेक्षा कम दबाव वाला होता है।
गर्भकाल में निम्नलिखित तकनीकें सहायक होती हैं-
1. पीठ के बल लेटो सिर तकिये पर हो और टांगों का निचना भाग कुर्सी पर हो। आंखें बन्द कर के 10-15 मिनट तक आराम करें। पैरों और टखनों की सूजन से भी इस में राहत मिलती है।
2. बगल से लेटो और सिर के नीचे तकिया रख लो, भुजा के ऊपरी भाग को ओर टांगों को ऊपर की ओर खीचों, घुटने के नीचे तकिया रख लो। टांग के निचले भाग को सीधा रखो। आंखे बन्द करो और मस्तिष्क को साफ करो। श्वास अन्दर भरो और दस तक गिनो। धीरे धीरे श्वास बाहर निकालो। पूरी तरह विश्राम करो।

गर्भवती महिला को बाई ओर सोना चाहिए, ऐसा सुझाव डॉक्टर क्यों देते हैं?
हालांकि पीठ के बल सोना शुरू में अधिक आरामदायक हो सकता है। इस से पीठ में दर्द और हॉरमोरोहोऑटाडस हो सकता है और पाचन, श्वसन और रक्त भ्रमण में रूकावट आती है ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भाशय का सारा वज़न पीठ पर आ जाता है। जबकि बाई ओर के अंगों को सीधा करने से रक्त स्राव भरपूर होता है और बीजाण्ड है। जबकि बाई ओर के अंगों को सीधा करने से रक्त स्राव भरपूर होता है और बीजाण्ड का पोषण होता है, किडनी का कार्य सुचारू रूप से होता है जिस से मल का त्याग बेहतर रूप से होता है (जिसके न होने से सूजन आता है) अतः इसे अत्यन्त आरामदायक स्थिति माना जाना चाहिए।
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एच आई वी और गर्भ

यदि मां में एच आई वी पॉजिटिव हो तो बच्चे के एच आई वी पॉजिटिव होने की कितनी सम्भावना होती है?
उसके एच आई वी पॉजिटिव होने की सम्भावना 25 प्रतिशत है।

ऐसी मां के पास कौन से विकल्प है जिनसे कि वह अपने बच्चे को इस रोग के संक्रमण से बचा सके?एच आई वी पॉजिटिव महिला को गर्भकाल के दौरान अधुनातन व्यस्क निर्देशों के अनुसार संस्तुत जो भी इन्टीवाइरल कीमोथैरेपी हो उसे लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रसव के तीन घन्टे पूर्व तथा काट कर किए जाने वाले प्रसव के तौरान इन्टरावीनस थैरेपी के साथ इन्टीवाइरल लेना चाहिए। जन्म के पहले छ सप्ताह तक बच्चे का इन्टीवाइरल सिरप लेना होगा इस समय नये जन्मे बच्चे में इस के संक्रमण की सम्भावनाओं को न्यूनतम बनाने के लिए श्रेष्ठतम थैरेपी है। सुझाव है कि ऐसे में शल्यक्रिया द्वारा ही प्रसव करायें।

यदि महिला एन्टी वाइरल थैरेपी ले और सीजेरियन प्रसव कराये तो शिशु में संक्रमण की कितनी सम्भावना रह जाती है?
जब गर्म के दौरान महिला को एन्टी वाइरल थैरेपी दी जाती है तो संक्रमण की सम्भावना लगभग 8 प्रतिशत तक कम हो जाती है। जब शल्यक्रिया की जाती है और एन्टी वाइरल थैरेपी प्रसव के दौरान दी जाती है तो संक्रमण की दर भी घटकर 2 प्रतिशत रह जाती है।

गर्भधारण के बारे में जाने सबकुछ

किसी महिला की पूर्णता सामान्यतौर पर तभी मानी जाती है जब वह मां बनने का सुख प्राप्त करती है. इसके लिये उसे गर्भधारण से प्रसव तक की परिस्थितियों से जूझना पड़ता है. यहां प्रस्तुत है संभोग की सफलता से होने वाले गर्भधारण की जानकारी का पूरा संग्रह-

गर्भ परीक्षण

गर्भ परीक्षण क्या होता है और वह कैसे होता है?
गर्भ परीक्षण में रक्त अथवा मूत्र में उस विशिष्ट हॉरमोन को परखा जाता है जो गर्भवती होने पर ही महिला में रहता है। ह्यूमक कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन (एच सी जी) नामक हॉरमोन को गर्भ हॉरमोन भी कतहे हैं जब उर्वरित अण्डा गर्भाषय से जुड़ जाता है तो आपके शरीर में एच सी जी नामक गर्भ हॉरमोन बनता है। सामान्यतः गर्भधारण के छह दिन बाद ऐसा होता है।

गृह गर्भ परीक्षण (एच पी टी) क्या होता है?
यह गृह गर्भ परीक्षण अपना परीक्षण स्वयं करो की शैली का परीक्षण है जो कि अपने घर पर सुगमता पूर्वक किया जा सकता है। यह सर्वसुलभ है, परीक्षण है जो कि अपने घर पर सुगमता पूर्वक किया जा सकता है। यह सर्वसुलभ है, इसकी कीमत 40-50 रुपये होती है। महिला को एक साफ शीषी में अपना 5 मिली मूत्र लेना होता है और परीक्षण के लिए किट में दिए गए विशिष्ट पात्र में दो बूंद मूत्र डालना होता है। उसके बाद कुछ मिनट तक इन्तजार करना होता है। अलग अलग ब्रान्ड के किट इन्तजार का समय अलग अलग बताते हैं समय बीतने पर रिजल्ट विंडों पर ररिणाम को देखें। यदि एक लाईन या जमा का चिन्ह देखे तो समझ लें कि आपने गर्भ धारण कर लिया है। लाईन हल्की हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। हल्की हो या स्पष्ट अर्थ सकारात्मक माना जाता है।

एक बार पीरियड न होने पर कितनी जल्दी एच पी टी से सही सही परिणाम प्राप्त कर सकते हैं?
बहुत से एच पी टी पीरियड के निश्चित तिथि तक न होने पर 99 प्रतिशत उसी दिन सही परिणाम बताने का दावा करते हैं।
एच पी टी से नकारात्मक परिणाम पाकर भी क्या गर्भ धारण की सम्भावना हो सकती है?
हां, इसलिए अधिकतर एच टी पी महिलाओं को कुछ दिन या सप्ताह बाद पुनः परीक्षण का सुझाव देते हैं।

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गर्भधारण की प्रारम्भिक स्थिति :

पहला ट्रिमस्ट

रगर्भधारण के प्रारम्भिक लक्षण क्या हैं?
सामान्यतः औरतें माहवारी के न होने को गर्भधारण की सम्भावना से जोड़ती हैं, परन्तु गर्भधारण की प्रारम्भिक स्थिति में जो अन्य लक्षण एवं चिन्हों का अनुभव भी अधिकतर महिलाएं करती हैं इन में शामिल हैं (1) स्तनों में सूजन महसूस करना, ढीलापन या दर्द (2) घबराहट एवं उल्टी जिसे कि पारम्परिक रूप से प्रातःकालीन बीमारी से जोड़ा जाता है। (3) बार-बार मूत्र त्याग (4) थकावट (5) खाने की चीज़ से जी मितलाना या तीव्र चाहत (6) मूड में उतार चढ़ाव (7) निप्पल के आसपास का रंग गररा हो जाना (8) चेहरे के रंग का काला पड़ना।

एक बार माहवारी का न होना क्या हमेशा गर्भ धारण का पहला चिन्ह माना जा सकता है?
एक बार माहवारी का न होना सामान्यतः गर्भ धारण का चिन्ह होता है, हालांकि किसी किसी महिला को उस समय के आसपास कुछ रक्त स्राव हो सकता है या धब्बे लग सकते हैं। हाँ, जिस औरत की माहवारी नियमित नहीं रहती उस को यह पता लगने से पहले कि वास्तव में माहवारी नहीं हुई अन्य प्रारम्भिक लक्षणों से पता चल सकता है।

प्रसव की सम्भावित तिथि की गणना कैसे की जाती है?
आप की अन्तिम माहवारी के पहले दिन से लेकर सामान्यतः गर्भ 40 सप्ताह तक रहता है, यदि आप को अन्तिम माहवारी की तिथि याद हो और आपका चक्र नियमित हो तो आप घर बैठे प्रसव की सम्भावित तिथि की गणना कर सकते हैं। यदि आप का चक्र नियमित और 28 दिन लम्बा हो तो अन्तिम माहवारी के आधार पर (एल एम पी) आप पहले दिन में नौ महीने और 7 दिन जोड़कर प्रसव की सम्भावित तिथि का निर्धारण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप की अन्तिम माहवारी 5 सितम्बर को शुरू हुई थी तो प्रसव की सम्भावित तिथि अगले वर्ष 12 जून होगी।

गर्भ के प्रारम्भिक दिनों में क्या घबराहट और उल्टी केवब प्रातःकाल में ही होता है?
गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति से सम्बधित घबराहट और उल्टी दिन और रात में किसी भी समय हो सकती है।

गर्भ सम्बन्धिक घबराहट और उल्टी से कैसे निपटना चाहिए?
मितली को रोकने एवं सहज करने के लिए कुछ निम्नलिखित टिप्स की आजमायें (1) थोड़ी थोड़ी देर के बाद थोड़ा थोड़ा खायें, दिन में तीन मुख्य भोज लेने की अपेक्षा 6-8 बार ले लें। (2) मोटापा बढ़ाने वाले तले हुए और मिर्ची वाले पदार्थ न लें। (3) जब जी मितलाये तब स्टार्च वाली चीजें खायें जैसे रस्क या टोस्ट। अपने बिस्तर के पास ही कुछ ऐसी चीजें रख लें ताकि सुबह बिस्तर से उठने से पहले खा सकें। अगर आधि रात को जी मितलाये तो उन चीजों को लें (4) बिस्तर से धीरे धीरे उठें। (5) घबराहट होने पर नीबू चूसने का प्रयास करें।

मित्तली के लिए क्या डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए?
यदि आप को लगे कि उल्टी बहुत ज्यादा हो रही है तो डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए। अत्यधिक उल्टी से अन्दर का पानी खत्म हो सकता है, ऐसी स्थिति में अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ सकती है।

गर्भावस्था में बार-बार मूत्र त्याग की जरूरत क्यों पड़ती है?
गर्भ की प्रारंभिक स्थिति में बढ़ते हुए गर्भाशय से ब्लैडर दबता है - इसी से बार-बार मूत्रत्याग करना पड़ता है।

दूसरा ट्रिमस्टर

गर्भ की दूसरी स्थिति (ट्रिमस्टर) के क्या लक्षण एवं चिन्ह होते हैं?
दूसरी स्थिति में (1) मित्तली और थकावट कम हो जाती है। (2) पेट बढ़ जाता है (3) वज़न बढ़ता है (4) पीठ दर्द (5) पेट पर फैलाव के निशान (6) चेहरे का रंग बदलना।

तीसरा ट्रिमस्टर

गर्भ धारण की तीसरी स्थिती (ट्रिमस्टर) के क्या लक्षण एवं चिन्ह होते हैं?
तीसरी स्थिति में निम्नलिखित लक्षण एवं चिन्ह उभरते हैं (1) बच्चे के बढ़ने से दबाव के कारण श्वास लेने में कठिनाई बढ़ जाती है। (2) जल्दी जल्दी मूत्र त्याग (3) छाती में जलन वाली दर्द (4) कब्ज (5) सूजे हुए ढीले स्तन (6) अनिद्रा (5) पेट में मरोड़।

अपरिपक्व प्रसव किसे कहते हैं?
37 वें सप्ताह से पहले ही प्रसव की सम्भावना को अपरिपक्व प्रसव कहते हैं।

अपरिपक्व प्रसव के लक्षण क्या होते हैं?
अपरिपक्व प्रसव के लक्षणों में शामिल हैं -
1. पीठ के निचले भाग में दर्द और दबाव।
2. नितम्बों पर दबाव
3. योनि से पानी जैसा गुलाबी अथवा भूरा स्राव होता है।
4. माहवारी जैसे क्रैम्पस, घबराहट, डॉयरिहा या बदहज़मी।
5. योनि के मैम्ब्रेन का फटना।

पेट में खिचाव क्यों पड़ते हैं?
पेट में खिचाव पीड़ा विहीन होते हैं और दसवें हफ्ते में ही शुरू हो जाते हैं परन्तु पूरी तरह वे अन्तिम ट्रिमस्टर में ही उभरते हैं जब ये खिचाव जल्दी और ज्यादा होने लगते हैं तो कभी कभी उसे प्रसव की प्रारम्भावस्था मान लेने की भूल भी हो जाती है।

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चेतावनी संकेत

गर्भ को खतरे की सूचना देने वाले कौन कौन से लक्षण होते हैं?
निम्नलिखित संकेतों को गम्भीर स्थिति का सूचक माना जा सकता है। (1) योनि से रक्तस्राव या धब्बे लगना (2) अचानक वज़न बढ़ना (3) लगातार सिर में दर्द (4) दृष्टि का धूमिल होना (5) हाथ पैरों का अचानक सूजना (6) बहुत समय तक उल्टियां (7) तेज बुखार और सर्दी लगना (गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति में अचानक पेट में तेज दर्द (9) भ्रूण की गतिविधि को महसूस न करना।

योनि से रक्त स्राव अथवा धब्बे किस के सूचक हैं?
प्रारम्भिक महीनों में योनि से रक्त स्राव या धब्बे लगने के साथ-साथ पेट में दर्द भी हो तो उसे सम्भावित गर्भपात की चेतावनी माना जा सकता है। बाद के महीनों में यदि रक्त स्राव होता है तो उसे इस का संकेत माना जा सकता है कि बीजाण्डासन (प्लैसैन्टा) बहुत नीचे है अथवा वह गर्भाशय की दीवारों से अलग हो गया है।

अचानक वजन बढ़ना, लगातार सिर दर्द, धूमिल दृष्टि, हाथ पैरों में अचानक सूजन आना किस चीज़ के संकेत है?
ये लक्षण गर्भकाल में उच्च रक्त चाप के जिसे कि टौक्सीमिया भी कहा जाता है, उसके सूचक हो सकते हैं। ऐसे लक्षण होने पर महिला को रक्त चाप सामान्य करने के लिए अथवा भ्रूण परीक्षण के लिए अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ सकती है। टौक्सीमिया से कई कठिनाइयां हो सकती है जैसे कि भ्रूण की अपर्याप्त वृद्धि, अपरिपक्व प्रसव या प्रसव के दौरान भ्रूण पर संकट।

गर्भकाल में तेज़ बुखार खतरनाक क्यों होता है?
ठंडी कंपकंपी के साथ तेज बुखार अथवा बिना सर्दी के तेज़ बुखार इन बात का संकेत हो सकता है कि भ्रूण के आसपास के मैमब्रेन्स में सूजन है जिसे कि एम्निओनिटिस भी कहते हैं। यह भ्रूण के लिए विशेषकर खतरनाक होता है और इस के परिणामस्वरूप अपरिपक्व प्रसव भी हो सकता है।

Thursday, March 20, 2008

महिलाओं की जननांगो संबंधी समस्या (भाग 1)

माहवारी सम्बन्धी समस्याएं
ज्यादातर महिलाएं
Menstrual cycle'>माहवारी की समस्याओं से परेशान रहती है लेकिन अज्ञानतावश या फिर शर्म या झिझक के कारण लगातार इस समस्या से जूझती रहती है. यहां समस्या बताने से पहले यह भी बता दें कि माहवारी है क्या. दरअसल दस से पन्द्रह साल की लड़की के अण्डाशय हर महीने एक परिपक्व अण्डा या अण्डाणु पैदा करने लगता है। वह अण्डा डिम्बवाही थैली (फेलोपियन ट्यूब) में संचरण करता है जो कि अण्डाशय को गर्भाशय से जोड़ती है। जब अण्डा गर्भाशय में पहुंचता है तो रक्त एवं तरल पदाथॅ से मिलकर उसका अस्तर गाढ़ा होने लगता है। यह तभी होता है जब कि अण्डा उपजाऊ हो, वह बढ़ता है, अस्तर के अन्दर विकसित होकर बच्चा बन जाता है। गाढ़ा अस्तर उतर जाता है और वह माहवारी का रूधिर स्राव बन जाता है, जो कि योनि द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है। जिस दौरान रूधिर स्राव होता रहता है उसे माहवारी अवधि/पीरियड कहते हैं। औरत के प्रजनन अंगों में होने वाले बदलावों के आवर्तन चक्र को माहवारी चक्र कहते हैं। यह हॉरमोन तन्त्र के नियन्त्रण में रहता है एवं प्रजनन के लिए जरूरी है। माहवारी चक्र की गिनती रूधिर स्राव के पहले दिन से की जाती है क्योंकि रजोधर्म प्रारम्भ का हॉरमोन चक्र से घनिष्ट तालमेल रहता है। माहवारी का रूधिर स्राव हर महीने में एक बार 28 से 32 दिनों के अन्तराल पर होता है। परन्तु महिलाओं को यह याद करना चाहिए कि माहवारी चक्र के किसी भी समय गर्भ होने की सम्भावना है।

पीड़ा दायक माहवारी क्या होती है?
पीड़ा दायक माहवारी मे निचले उदर में ऐंठनभरी पीड़ा होती है। किसी औरत को तेज दर्द हो सकता है जो आता और जाता है या मन्द चुभने वाला दर्द हो सकता है। इन से पीठ में दर्द हो सकता है। दर्द कई दिन पहले भी शुरू हो सकता है और माहवारी के एकदम पहले भी हो सकता है। माहवारी का रक्त स्राव कम होते ही सामान्यतः यह खत्म हो जाता है।

पीड़ादायक माहवारी का आप घर पर क्या उपचार कर सकते हैं?
निम्नलिखित उपचार हो सकता है कि आपको पर्चे पर लिखी दवाओं से बचा सकें। (1) अपने उदर के निचले भाग (नाभि से नीचे) गर्म सेक करें। ध्यान रखें कि सेंकने वाले पैड को रखे-रखे सो मत जाएं। (2) गर्म जल से स्नान करें। (3) गर्म पेय ही पियें। (4) निचले उदर के आसपास अपनी अंगुलियों के पोरों से गोल गोल हल्की मालिश करें। (5) सैर करें या नियमित रूप से व्यायाम करें और उसमें श्रोणी को घुमाने वाले व्यायाम भी करें। (6) साबुत अनाज, फल और सब्जियों जैसे मिश्रित कार्बोहाइड्रेटस से भरपूर आहार लें पर उसमें नमक, चीनी, मदिरा एवं कैफीन की मात्रा कम हो। (7) हल्के परन्तु थोड़े-थोड़े अन्तराल पर भोजन करें। (8) ध्यान अथवा योग जैसी विश्राम परक तकनीकों का प्रयोग करें। (9) नीचे लेटने पर अपनी टांगे ऊंची करके रखें या घुटनों को मोड़कर किसी एक ओर सोयें।

पीड़ादायक माहवारी के लिए डाक्टर से कब परामर्श लेना चाहिए?
यदि स्व-उपचार से लगातार तीन महीने में दर्द ठीक न हो या रक्त के बड़े-बड़े थक्के निकलते हों तो डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए। यदि माहवारी होने के पांच से अधिक दिन पहले से दर्द होने लगे और माहवारी के बाद भी होती रहे तब भी डाक्टर के पास जाना जाहिए।

माहवारी से पहले की स्थिति के क्या लक्षण हैं?
माहवारी होने से पहले (पीएमएस) के लक्षणों का नाता माहवारी चक्र से ही होता है। सामान्यतः ये लक्षण माहवारी शुरू होने के 5 से 11 दिन पहले शुरू हो जाते हैं। माहवारी शुरू हो जाने पर सामान्यतः लक्षण बन्द हो जाते हैं या फिर कुछ समय बाद बन्द हो जाते हैं। इन लक्षणों में सिर दर्द, पैरों में सूजन, पीठ दर्द, पेट में मरोड़, स्तनों का ढीलापन अथवा फूल जाने की अनुभूति होती है।

पी.एम.एस. (माहवारी से पहले बीमारी) के कारण क्या हैं?
पी.एम.एस. का कारण जाना नहीं जा सका है। यह अधिकतर 20 से 40 वर्षों की औरतों में होता है, एक बच्चे की मां या जिनके परिवार में कभी कोई दबाव में रहा हो, या पहले बच्चे के होने के बाद दबाव के कारण कोई महिला बीमार रही हो- उन्हें होता है।

पी.एम.एस (माहवारी के पहले की बीमारी) का घर पर कैसे इलाज हो सकता है?
पी.एम.एस के स्व- उपचार में शामिल है- (1) नियमित व्यायाम - प्रतिदिन 20 मिनट से आधे घंटे तक, जिसमें तेज चलना और साईकिल चलाना भी शामिल है। (2) आहारपरक उपाय साबुत अनाज, सब्जियों और फलों को बढ़ाने तथा नमक, चीनी एवं कॉफी को घटाने या बिल्कुल बन्द करने से लाभ हो सकता है। (3) दैनिक डायरी बनायें या रोज का रिकार्ड रखें कि लक्षण कैसे थे, कितने तेज थे और कितनी देर तक रहे। लक्षणों की डायरी कम से कम तीन महीने तक रखें। इससे डाक्टर को न केवल सही निदान ढ़ंढने मे मदद मिलेगी, उपचार की उचित विधि बताने में भी सहायता मिलेगी। (4) उचित विश्राम भी महत्वपूर्ण है।

माहवारी के स्राव को कब भारी माना जाता है?
यदि लगातार छह घन्टे तक हर घंटे सैनेटरी पैड स्राव को सोख कर भर जाता है तो उसे भारी पीरियड कहा जाता है।

भारी माहवारी के स्राव के सामाय कारण क्या हैं?
भारी माहवारी स्राव के कारणों में शामिल है - (1) गर्भाषय के अस्तर में कुछ निकल आना। (2) जिसे अपक्रियात्मक गर्भाषय रक्त स्राव कहा जाता है। जिस की व्याख्या नहीं हो पाई है। (3) थायराइड ग्रन्थि की समस्याएं (4) रक्त के थक्के बनने का रोग (5) अंतरा गर्भाषय उपकरण (6) दबाव।

लम्बा माहवारी पीरियड किसे कहते हैं?
लम्बा पीरियड वह है जो कि सात दिन से भी अधिक चले।
लम्बेमाहवारी पीरियड के सामान्य के कारण क्या हैं?(1)अण्डकोष में पुटि (2) कई बार कारण पता नहीं चलता तो उसे अपक्रियात्मक गर्भाषय रक्त स्राव कहते हैं (3) रक्त स्राव में खराबी और थक्के रोकने के लिए ली जाने वाली दवाईयां (4) दबाव के कारण माहवारी पीरियड लम्बा हो सकता है।

अनियमित माहवारी पीरियड क्या होता है?
अनियमित माहवारी पीरियड वह होता है जिसमें अवधि एक चक्र से दूसरे चक्र तक लम्बी हो सकती है, या वे बहुत जल्दी-जल्दी होने लगते हैं या असामान्य रूप से लम्बी अवधि से बिल्कुल बिखर जाते हैं।
किशोरावस्था के पहले कुछ वर्षों में अनियमित पीरियड़ होना क्या सामान्य बात है?हां, शुरू में पीरियड अनियमित ही होते हैं। हो सकता है कि लड़की को दो महीने में एक बार हो या एक महीने में दो बार हो जाए, समय के साथ-साथ वे नियमित होते जाते हैं।

अनियमित माहवारी के कारण क्या है?
जब पीरियड असामान्य रूप में जल्दी-जल्दी होते हैं तो उनके कारण होते हैं- (1) अज्ञात कारणों से इन्डोमिट्रोसिस हो जाता है जिससे जननेद्रिय में पीड़ा होती है और जल्दी-जल्दी रक्त स्राव होता है। (2) कभी-कभी कारण स्पष्ट नहीं होता तब कहा जाता है कि महिला को अपक्रियात्मक गर्भाषय रक्तस्राव है। (3) अण्डकोष की पुष्टि (4) दबाव।

सामान्य पांच दिन की अपेक्षा अगर माहवारी रक्त स्राव दो या चार दिन के लिए चले तो चिन्ता का कोई कारण होता है?
नहीं, चिन्ता की कोई जरूरत नहीं। समय के साथ पीरियड का स्वरूप बदलता है, एक चक्र से दूसरे चक्र में भी बदल जाता है।

भारी, लम्बे और अनियमित पीरियड होने पर क्या करना चाहिए?
(1) माहवारी चक्र का रिकॉर्ड रखें- कब खत्म हुए, कितना स्राव हुआ (कितने पैड में काम में आए उनकी संख्या नोट करें और वे कितने भीगे थे) और अन्य कोई लक्षण आप ने महसूस किया हो तो उसे भी शामिल करें। (2) यदि तीन महीने से ज्यादा समय तक समस्या चलती रहे तो डाक्टर से परामर्श करें।

माहवारी का अभाव क्या होता है?
यदि 16 वर्ष की आयु तक माहवारी न हो तो उसे माहवासी अभाव कहते हैं। कारण है- (1) औरत के जनन तंत्र में जन्म से होने वाला विकास (2) योनि (योनिच्छद) के प्रवेशद्वारा की झिल्ली में रास्ते की कमी (3) मस्तिष्क की ग्रन्थियों में रोग।

Wednesday, March 19, 2008

जाने नपुंसकता के बारे में

भारतीय सामाजिक ढांचे की वजह से आज भी नपुंसकता के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं. कई बार पर्याप्त जानकारी न होने पर लोग अवसाद में जाकर आत्महत्या जैसा भी कदम उठा लेते हैं.


नपुंसकता क्या है?


यौनपरक सम्भोग में पर्याप्त आन्न्द पाने के लिए जब पुरूष का लिंग खड़ा नहीं हो पाता या खड़ा होकर रूक नहीं पाता तो उसे नपुंसकता कहते हैं।

नपुंसकता के कारण क्या होते हैं?
नपुंसकता निम्नलिखित कारणों से हो सकती है।
1. मानसिक दबाव और अवसाद
2. शराब / ड्रग का नशा
3. धुम्रपान
4. मधुमेह
5. हृदय रोग
6. उच्च रक्त चाप
7. रक्त चाप, दबाव और पाचक रोगों में प्रयुक्त कुछ दवाइयां।

नपुंसकता का उपचार कैसे होता है?
नपुंसकता का उपचार करने के लिए
1. शराब और सिगरेट छोड़ दें।
2.(वियाग्रा) सिल्डेनाफिल टैस्टोस्टरोन जैसे ड्रग.....
3. मूत्रनली या लिंग में दवा का इंजैक्शन लगाये
4. लिंग को खड़ा करने वाले उपकरणों का प्रयोग करें।
5. शल्य चिकित्सा
6. मनोचिकित्सा।

वियाग्रा कितनी प्रभावशाली होती है?
शारीरिक अथवा मानसिक कारणों से लिंग के खड़े न हो पाने के रोग में वियाग्रा का उपयोग किया जाता है। जिन पुरूषों को हृदय तंत्री का रोग, मौल्लिटस मधुमेह, उच्च रक्त चाप, अवसाद हृदय की बाईपास सर्जरी हो चुकी हो और जो पुरूष अवसाद मुक्ति या रक्त चाप से मुक्ति देने वाली दवाएं लेते हैं उन में लिंग को खड़ा करने के लिए इसे प्रभावशाली माना जाता है। चिकित्सा प्रयोगों में, देखा गया है कि मधुमेह वाले 60 प्रतिशत और बिना मधुमेह वाले 80 प्रतिशत लोगों को वियाग्रा से लिंग के खड़े होने में बेहतर मदद मिलती है।

वियाग्रा कितनी मात्रा में लेनी चाहिए?
वियाग्रा देते समय डॉक्टर रोगी की उम्र स्वास्थ्य की सामान्य स्थिति और जो दवाएं वह ले रहा हो उन सब का ध्यान रखता है। प्रारम्भ करने की अधिकतर पुरूषों में मात्रा 50 मि.ग्रा. होती है, पर सह प्रभावों एवं प्रभविषुणता को देखते हुए डॉक्टर मात्रा को बढ़ा या घटा सकता है। अधिक से अधिक 100 मि.ग्रा. प्रत्येक चौबीस घन्टे की अवधि में संस्तुष्ट की जाती है।

वियाग्रा किस प्रकार दी जानी चाहिए?
सिल्डेनाफिल 15, 50 और 100 मि.ग्रा. की मौखिक गोलियों में उपलब्ध है। सम्भोग परक गतिविधि के प्रारम्भ के एक घन्टा पहले इसे लेना चाहिए। श्रेष्ठ परिणाम के लिए इसे खाली पेट लेना चाहिए क्योंकि खाने के बाद, यदि गरिष्ठ भोजन किया हो तो इसका प्रभाव और स्राव घट जाता है।

वियाग्रा के सह प्रभाव क्या होते हैं?
बिना विशेष सह प्रभावों के वियाग्रा अधिकतर लोगों को लाभ पहुंचाती है। जो सहप्रभाव सामने आये हैं वे बहुत हल्के हैं जिसमें सिर दर्द, पानी-पानी हो जाना, नाक बन्द होना, घबराहट, गैस बनना डॉयरिहा और दृष्टि की असामान्यता (नीला नीला दिखना या चमचमाहट शामिल है।

नपुंसकता का उपचार करने के लिए लिंग या मूत्र नली में जो दवाईयां इंजैक्शन द्वारा दी जाती हैं वे कितनी प्रभावशाली होती हैं?
खड़ेपन को बनाने और बनाये रखने के लिए लिंग में सीधे दवाइयां इंजेक्शन द्वारा दी जा सकती है। हालांकि ऐसे इंजैक्शन प्रभावशाली हो सकते हैं पर उनका बहुत उपयोग नहीं किया जाता क्योंकि वे बहुत पीड़ादायक होते हैं इस से लिंग में घाव भी हो सकते हैं और इस में छह घन्टे से भी अधिक लम्बे समय तक लिंग के खड़े रहने और पीड़ा देने का खतरा भी रहता है। लिंग को खड़ा करने के लिए मूत्र नली में दवा की गोली भी डाली जा सकती है। यह विधि भी अधिक लोकप्रिय नहीं है क्योंकि कई बार इससे लिंग में पीड़ा या शुक्राणुकोश में पीड़ा, मूत्रनली से हल्का रक्तस्राव, चक्कर आना और सम्भोग की साथिन की योनि में जलन जैसे प्रभाव पड़ सकते हैं।

वैक्युम यन्त्र क्या होते हैं?
मशीनी वैक्युम यन्त्र द्वारा लिंग के आसपास खालीपन का दबाव बनाया जाता है जिस से वह रक्त को लिंग में खींचता है, उसे बड़ा करता है और खड़ा करता है जिससे खड़ापन आ जाता है।
नपुंसकता के सन्दर्भ में कौन सी सर्जरी की जाती है?नपुंसकता से ग्रस्त बहुत से पुरूषों में खड़ापन लाने के लिए परौसथीसिस नामक न डाले जाने वाले एक यन्त्र का प्रयोग किया जाता है।

मनोवैज्ञानिक थैरेपी क्या होती है?
विशेषज्ञ नपुंसकता का उपचार मनोविज्ञान आधारित तकनीक से करते हैं जिससे व्यक्ति की सम्भोग सम्बन्धी परेशानियां दूर हो जाती है। रोगी की साथी इस तकनीक को क्रियान्वित करने में मदद दे सकती है जिसमें अंतरंगता का विकास और उत्तेजक प्रेरणा भी शामिल है। जब शारीरिक नपुंसकता का उपचार होता है उस समय भी ऐसी तकनीकें चिन्ता को दूर करने में मदद देती हैं।

Tuesday, March 18, 2008

गर्भ निरोध के उपाय

आज के समय में गर्भ निरोध एक आवश्यक जरूरत बन गया है लेकिन इसकी पर्याप्त जानकारी न हो पाने से लोग काफी परेशान होते हैं. प्रस्तुत है गर्भ निरोधकों की जानकारी का संग्रह-


सामान्य

पुरूषों के लिए क्या गर्भनिरोधक विकल्प उपलब्ध हैं?
पुरूषों के लिए गर्भ निरोधक विकल्प है - अस्थायी सुरक्षा के लिए कंडोम और स्थायी सुरक्षा के लिए नसबन्दी।
महिलाओं के लिए गर्भ निरोधक विकल्प क्या-क्या है?
महिलाओं के लिए उपलब्ध गर्भ निरोधक विकल्प हैं (1) जनाना कंडोम (2) स्पर्मिसाइडस (3) मौखिक गोलियां (4) इंजैक्शन द्वारा दिए जाने वाले गर्भ निरोधक (5) इन्टरा युटरीन डिवाइज (6) ट्यूब को बन्द करना (ट्यूबक्टोमी)
जरूरत के आधार पर उपलब्ध गर्भ निरोधकों की पहुंच कहां तक है?
जरूरत के आधार पर उपलब्ध गर्भनिरोधकों की पहुंच निम्न प्रकार से हैः
1. किशोर/युवा विवाहित दम्पत्ति - जिन की कोई सन्तान न हो।
- स्त्री/परुष के कंडोम
- संयुक्त हॉरमोन गर्भनिरोधक गोलियां
- प्रोजेस्ट्रीन की गोलियां
- सेन्टकरोमन (सहेली)
- प्राकृतिक परिवार-नियोजन
2. विवाहित दम्पत्ति - /जिनके बच्चे हैं, बच्चों में अन्तराल चाहते हैं।
- स्त्री/पुरूष के कंडोम
- संयुक्त हारमोनल गर्भ निरोधक गोलियां
- आई यू डी
3. विवाहित दम्पत्ति - जिनके परिवार परिपूर्ण हैं।
- प्रोजेस्टीन केवल गोलियां
- डैपो - प्रोवेरा
- आई यू डी
- स्त्री/पुरूष नसबन्दी
4. स्तनपान कराने वाली माताएं
- स्त्री/पुरूष कंडोम
- प्रोजेस्टीन की केवल गोलियां
- डैपो - प्रोवेरा
- आई यू डी

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पुरूष कंडोम
पुरूष कंडोम क्या होता है?
पुरूष कंडोम वह थैली है जो कि पुरूष के खड़े लिंग पर चढ़ाने के लिए बनाई जाती है।
यह किस चीज से बनाई जाती है?
अधिकतर कंडोम लेटैक्स रबर से बनाए जाते है।
कंडोम के उपयोग के क्या लाभ होते हैं?
कंडोम के उपयोग के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं - (1) जब नियमित रूप से और सही रूप से कंडोम का इस्तेमाल किया जाता है तो वह सबसे अधिक भरोसे की विधियों में से एक है जिनसे जन्म पर नियन्त्रण बनता है। (2) इनका उपयोग उपभोक्ता के लिए सरल है। थोड़े से अभ्यास से वे इसका उपयोग करके सम्भोग के आनन्द से आत्मविश्वास पा सकते हैं। (3) कंडोम की जरूरत तभी पड़ती है जबकि आप सम्भोग करना चाहते हैं जबकि अन्य गर्भनिरोधक आपको हर समय लेने पड़ते हैं या धारण करने पड़ते हैं। (4) कंडोम एकमात्र ऐसा साधन है जो कि यौन सम्बन्धों से फैलने वाले रोगों को फैलने से रोकता है इनमें एच आई वी भी शामिल हैं जब उनका नियमित और सही इस्तेमाल हो। (5) किसी भी उम्र के पुरूष इसे धारण कर सकते हैं। (6) सरलता से उपलब्ध होते हैं और सभी जगह मिलते हैं।
एक कंडोम के उपयोग की हानियां क्या हो सकती हैं?
कंडोम के उपयोग की हानियां निम्नलिखित हैं - (1) जिन लोगों को लेटैक्स से अलर्जी होती है उन्हें खुजली दे सकता है। (2) सम्भोग के समय कंडोंम के फट जाने या खिसक जाने की आशंका रह सकती है। (3) यदि वैसलीन या तेल से चिकना करके इस्तेमाल किया जाए तो कंडोम कमजोर पड़ सकता है या टूट सकता है।
गर्भ से सुरक्षा देने में कंडोम कितना प्रभावशाली है?
यदि 100 महिलाओं के साथी नियमित रूप से और सही रूप से कंडोम का उपयोग शुरू करते हैं तो पहले वर्ष में 100 में से 3 गर्भधारण होते हैं। यदि उपयोग अनियमित हो या सही न हो तो 14 गर्भधारण की सम्भावना हो सकती है।
गलत या अनुचित उपयोग के क्या सम्भावित कारण हो सकते हैं?
निम्नलिखित कारणों से इसका गलत या अनुचित उपयोग हो सकता है - लिंग के पूरी तरह खड़े होने से पहले ही कंडोम पहन लेने के कारण या कंडोम को पूरा ऊपर तक न पहनने के कारण आदि।
कंडोम के उपयोग को सही करने की क्या तकनीक है?
कंडोम के सही उपयोग की विधि इस प्रकार है -
1. सुनिश्चित करें कि पैकेट और कंडोम अच्छी स्थिति में हैं, यदि उस पर समाप्ति की तारीख दी हो तो ध्यान दें कि कहीं तारीख निकल तो नहीं चुकी।
2. पैकेट को एक कौने से खोलें, ध्यान दें कि अपने नाखूनों, दांत से या बड़ी बरूखी से कंडोंम को साथ में न काट दें।
3. रोल किए हुए कंडोम को अपने खड़े लिंग के टिप पर रखें।
4. उसे नीचे की ओर लिंग के मूल आधार तक पूरा खोल दें, अगर कोई हवा के बब्बल आ गए हैं तो उन्हें निकालें (हवा के बबूले कंडोंम को तोड़ सकते हैं)
5. ऊपर कंडोम के टिप पर कम से कम आधा इंच जगह छोड़ दें ताकि विर्य उसमें एकत्रित हो सके।
6. यदि आपको कुछ चिकनापन चाहिए तो उसे कंडोम के बाहर लगाएं। परन्तु हमेशा जल आधारित चिकनाई का प्रयोग करें (जैसे कि 'के वाई' जैली जो कि दवा की दुकान पर आमतौर पर मिल जाती है) तेल आधारित चिकनाई जैसे वैसलीन/बेबी ऑयल। नारियल तेल का उपयोग न करें क्योंकि इससे लेटैक्स टूट सकता है।
यदि रोल किया हुआ कंडोम खुले न तो क्या करना चाहिए?
कंडोम को लिंग के ऊपरी भाग पर रिम से रोल करते हुए सरलता से और कोमलता से खोलना चाहिए। यदि आपको उससे जुझना पड़े तो या कुछ सैकेन्ड से अधिक समय लगे तो सम्भवतः इसका अर्थ है कि आप उसे उल्टा चढ़ा रहे हैं। कंडोम को उतारने के लिए उसे ऊपर तक वापिस रोल नहीं करना है। रिम से उसे पकड़ो और खींच लो और फिर दूसरा नया कंडोम चढाओ।
कंडोम को कब हटाना चाहिए?
लिंग के ढीले पड़ने से पहले उस खींचना है और कंडोम को लिंग के अन्त में रोको, ध्यान पूर्वक खोंचो कि वीर्य बाहर की ओर बिखरे नहीं।
कंडोम को फेंकना कैसे चाहिए?
कंडोम को सही तरीके से फेंकना चाहिए - उदाहरणतः किसी कागज या टिशू में लपेट कर फेंकना चाहिए। उसे टॉयलेट मे डालना उचित नहीं - यह प्राकृतिक रूप से घुलता नहीं इसलिए सीवर को बन्द कर सकता है।
यदि सम्भोग करते हुए कंडोम फट जाए तो क्या करना चाहिए?
यदि सम्भोग करते समय कंडोम फट जाए, तो जल्दी से उसे उतारें और दूसरा लगायें। सम्भोग करते हुए, समय-समय पर कंडोम को देखते रहें कि कहीं वह खिसक न जाए या फट न जाए। यदि कंडोम फट जाए या आप को लगे कि सम्भोग के दौरान वीर्य बाहर निकल गया है तो आपातकालीन गर्भनिरोधक लेने पर विचार करें जैसे कि सुबह उठते ही गोली ले लेना।
क्या एक की अपेक्षा दो कंडोम अधिक प्रभावशाली रहते है?
एक ही समय में दो कंडोम का उपयोग न करें, क्योंकि जब दो लेटैक्स आपस में रगड़ खायेंगे तो फट जायेंगे।
कंडोम की देखभाल से सम्बन्धित कुछ टिप्स बतायें।
1. सम्भव हो सके तो कंडोम को ठन्डे अंधेरे स्थान पर रखें।
2. कंडोम को अतिरिक्त गर्मी, रोशनी और हुमस से बचायें।
3. सावधानी से पकड़ें। नाखून और अंगूठी उसे हानि पहुंचा सकते हैं।
4. उपयोग से पहले उसे खोले नहीं, इससे वे कमजोर हो जाते हैं और खोले बिना भी चढ़ाना कठिन है।
यदि कंडोम अथवा चिकनाई से जननेन्द्रिय मे खुजली या रैश हो जाए तो क्या करना चाहिए?
यदि कंडोम अथवा चिकनाई से जननेन्द्रिय में खुजली या रैश हो जाए तो निम्नलिखित उपचार करें -
1. पानी को चिकनाई की तरह इस्तेमाल करने का प्रयास करें
2. खुजली और एलर्जी तो नहीं है इसके लिए डाक्टर के पास जायें।
यदि कंडोम चढाते हुए या उसका उपयोग करते समय किसी पुरूष का लिंग खड़ा नही रह पाता तो क्या करना चाहिए?
ऐसी स्थिति मे निम्नलिखित करें -
1. स्परमिसिड के बिना वाले सूखे कंडोम का उपयोग करने का प्रयास करें।
2. अपनी साथी महिला साथी से उसे चढ़ाने के लिए कहें जिससे उसके प्रयोग से ज्यादा मजा आयेगा।
3. लिंग पर अधिक पानी जल आधारित चिकनाई जैसे कि के वाई जैली का प्रयोग करें और कंडोम चढे लिंग पर बाहर से अधिक चिकनाई लगायें।
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महिला कंडोम

महिला कंडोम क्या होता है?
महिला कंडोम 17 सेमी. (6.5 इंच) लम्बी पोलीउस्थ्रेन की थैली होतीहै। सम्भोग के समय पहना जाता है। यह सारी योनि को ढक देती है जिससे गर्भ धारण नहीं होता और एच आई वी सहित यौन सम्पर्क से होने वाले रोग नहीं होते।
महिला कंडोम की क्या विशेषता है?
कंडोम के दोनों किनारों पर लचीला रिंग होता है। थैली के बन्द किनारे की ओर से लचीले रिंग को योनि के अन्दर डाला जाता है ताकि कंडोम अपनी जगह पर लग जाए। थैली की दूसरी ओर खुले किनारे का रिंग बल्वा के बाहर योनि द्वार पर रहता है। लिंग को अन्दर डालते समय वह रिंग एक मार्गदर्शक का काम करता है और थैली को योनि में ऊपर नीचे उछलने से रोकता है। कंडोम में पहले से ही सिलिकोन आधारित चिकनाई लगी रहती है।
महिला के उपयोग के लाभ क्या हैं?
महिला कंडोम के उपयोग के लाभ इस प्रकार हैं -
1. कंडोम प्रयोग को अपने साथी के साथ के बांटने का अवसर महिला को मिलता है।
2. यदि पुरूष कंडोम प्रयोग के लिए राजी न हो तो महिला अपने लिए कर सकती है।
3. पौलियूरथेन से बने महिला कंडोम से पुरूष के लेटैक्स से बने कंडोम की अपेक्षा एलर्जी की सम्भावनाएं कम रहती हैं।
4. यदि सही इस्तेमाल किया जाए तो यह गर्भ धारण एवं एसटीडी से बचाता है।
5. सम्भोग के आठ घन्टे पहल से लगाया जा सकता है इसलिए इससे रतिक्रिया में बाधा नहीं पड़ती।
6. पौलियूथरेन पतला होता है और ऊष्मता को सह जाता है अतः यौन अनुभूत बनी रहती है।
7. इसे तेल आधारित चिकनाई से काम में लाया जा सकता है।
8. इसको रखने के लिए किसी विशेष सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि पोलियूथेन पर तापमान और आर्द्रता के बदलाव का असर नहीं पड़ता। जनाना कंडोम निर्मित के पांच साल बाद तक काम में लायें जा सकते हैं।
गर्भधारण को रोकने में जनाना कंडोम कितना प्रभावशाली है?
यदि इसका सही ढ़ंग से और नियमित रूप से प्रयोग किया जाए तो इसकी प्रभविष्णुता 98 प्रतिशत है अगर सही और नियमित न हो तो प्रभविष्णुता की दर घट जाती है।
जनाना कंडोम के उपयोग की सही विधि क्या है?
जनाना कंडोम के उपयोग की सही विधि इस प्रकार है -
1. पैकेट को सावधानी से खोलें- अन्दर डालने के लिए सुविधाजनक स्थिति चुने-पालथी, एक टांग उठाकर, बैठकर या लेटकर
2. कंडोम के अन्दर वाले रिंग को अन्दर दबाएं अंगूठे और मध्यमा की मदद से ताकि वह लंम्बा और तंग हो जाए और तब आन्तरिक रिंग और थैली को यानि द्वार से डालें।
3. तर्जनी को कंडोम के अन्दर डालें और रिंग जहां तक जाये उसमें दबा दें।
4. सुनिश्चत करें कि कंडोमं सीधा लगा है और योनि में जाकर मुडे नहीं। बाहरी रिंग योनि से बाहर ही रहना चाहिए।
5. लिंग को डालते हुए उसे कंडोम के अन्दर ले जाने का रास्ता दिखायें और ध्यान रखें कि वह कंडोम से बाहर योनि में न चला जाए।
क्या महिला कंडोम का प्रयोग सरल है?
महिला कंडोम का उपयोग कठिन नहीं है परन्तु उसके उपयोग के लिए अभ्यास की जरूरत है। पहली बार सम्भोग के दौरान इसका उपयोग करने से पहले महिला को डालने और निकालने का अभ्यास कर लेना चाहिए। संस्तुति की जाती है कि इसके उपयोग में आत्मविश्वस्त होने और सुविधा महसूस करने के लिए उपयोग से पहले कम से कम तीन बार इसका अभ्यास कर लेना चाहिए।
क्या महिला कंडोम के लिए चिकनाई का प्रयोग किया जाना चाहिए, यदि हां तो कैसी चिकनाई?
महिला कंडोम में पहले से ही चिकनाई होती है, उनमें सिलिकोन आधारित स्परमिसिडिल रहित चिकनाई होती है। इससे कंडोम को लगाने में आसानी होती है और संभोग की गतिविध में सुविधा रहती है। पहले हो सकता है कि चिकनाई से कंडोम फिसले। यदि बाहरी रिंग कंडोम कंडोम के अन्दर चला जाये या योनि से बाहर आ जाए तो और अधिक चिकनाई की जरूरत पड़ती है। इसके अतिरिक्त, अगर सम्भोग के समय कंडोम का शोर हो तो थोड़ी सी चिकनाई और लगायें। महिला कंडोम जल आधारित के वाई जैली और तेल आधारित वैसलीन या बेबी ऑयल दोनों प्रकार की चिकनाई से लगाये जा सकते हैं।
सम्भोग के दौरान यदि कंडोम खिसक जाए या फट जाए तो क्या करना चाहिए?
यदि सम्भोग के समय कंडोम फट जाए या लिंग योनि में चला जाए तो एकदम रूकें और कंडोम को बाहर निकालें। नया कंडोम लगाएं और थैली के द्वार पर लिंग पर अतिरिक्त चिकनाई लगायें।
कंडोंम को कैसे निकालें या फैकें?कंडोम को निकालने के लिए बाहरी रिंग को हल्के से घुमायें और कंडोम को इस तरह बाहर निकालें कि वीर्य उसी में रहे। कंडोम को टिशु या पैकेट में लपेट कर फैकें। उसे टॉयलट में मत डालें।
क्या महिला कंडोम का दोबारा उपयोग हो सकता है?
नहीं इसका दोबारा उपयोग नहीं करना चाहिए।
महिला कंडोम कंडोम से क्या हानियां हो सकती हैं?
इसके उपयोग से निम्नलिखित हानियां देखने को आई हैं -
1. क्योंकि बाहरी रिंग योनि से बाहर रहता है तो कुछ कुछ औरतों का ध्यान उसी में रहता है।
2. सम्भोग के समय आवाजें कर सकता है। अधिक चिकनाई से यह सम्स्या हल हो सकती है।
3. कुछ महिलाओं को इसे लगाना और हटाना बड़ा कठिन लगता है।
4. गोली जैसे अनवरोधक की अपेक्षा इसकी असफलता दर कुछ ऊंची है।
क्या एक ही समय महिला और पुरूष कंडोम दोनो का उपयोग किया जा सकता है?
एक एक समय में दोनो प्रकार के कंडोम का उपयोग नहीं करना चाहिए। साथ-साथ उपयोग करने से रगड़ लगने पर कोई एक या दोनों ही फिसल सकते हैं या फट सकते हैं या बाहरी रिंग को हिलाकर योनि में डाल सकते हैं।
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स्परमिसिडिस

स्परमिसिडिस क्या है?
स्परमिसिडिस रासायनिक पदार्थ है जो कि सम्भोग से पूर्व महिला की योनि में डाल दिए जाते हैं ये वीर्य के जीवाणुओं को निष्क्रिय कर देते हैं या मार देते हैं ये विविध गर्भनिरोधक पदार्थों के रूप में उपलब्ध हैं, जिसमें क्रीम, फिल्म, फोम जैली और अन्य तरल एवं ठोस गोलियां हैं जो अन्दर डालने पर घुल जाती हैं।
इनकी प्रभविष्णुता क्या है?
इनकी कुशलता 80 से 85 प्रतिशत के बीच रहती है। यदि इन्हें मेकैनिकल अवरोधक साधनों जैसे कि कंडोम के साथ मिलाकर उपयोग मे लाया जाये तो इनकी कुशलता बढ़ जाती है।
ये किस प्रकार काम करते हैं?
ये जीवाणु को नष्ट कर देते हैं। या अचल कर देते हैं।
क्या एस टी आई और एच आई वी@एड्स से स्परमिडिस कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान करते हैं?स्परमिडिस कुछ हद तक सुरक्षा दे सकते हैं पर ये सुरक्षा के लिए दी नहीं जाती। इसके विपरीत एन ओ एन ओ एक्स वाई एन ओ एल - 9 नामक स्ममिसिड का एच आई वी के खतरे वाले या गुदा परक कई बार प्रयोग करें तो टिशु उत्तेजित हो जाते हैं जिससे एच आई वी या अन्य एस.टी.डी की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं।
स्परमिसिड का प्रयोग कैसे करें?
पैकेट के ऊपर सही उपयोग के लिए विस्तृत आदेश लिखे रहते हैं इस प्रकार के पदार्थ का उपयोग करने से पहले ध्यान रखें कि आप आदेश पढ़ लें और समझ लें। सामान्यतः महिला बैठकर या पालथी मारकर इन्हें अपनी योनि में धीरे- धीरे गहरे में उतारती है। गर्भ निरोधक फोम्स, क्रीम्स, जैलिस, फिल्म और डालने वाली गोलियों को सम्भोग शुरू करने से पहले कम से कम दस मिनट चाहिए होते हैं ताकि वे घुल सकें। यह साधन डाले जाने के एक घन्टा बाद तक ही प्रभावशाली रहता है। जितनी बार योनि सम्भोग दोहराया जाए उतनी बार इसे डाला जाना चाहिए।
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संयुक्त मौखिक गर्भनिरोधक गोलियां (सी ओ सीज)

संयुकत मौखिक गर्भनिरोधक गोलियां क्या होती हैं?
संयुक्त मौखिक गर्भनिरोधक गोलियां जिन्हें सामान्यतः 'द पिल' कहा जाता है, वह औइस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन का सम्मिलन है - जिसे कि प्राकृतिक उर्वतकता को रोकने के लिए महिलाएं मुख से लेती है। संयुक्त मौखिक पिल कैसे काम करता है?
इस पिल का कार्य मुख्यतः इस प्रकार होता है।
1. शरीर मे हॉरमोन के सन्तुलन को बदल देता है जिससे कि प्राकृतिक रूप उत्पन्न शरीर में हॉरमोन वाला अण्डा उत्पन्न ही नहीं हो।
2. ग्रीवा से निसृत म्युकस को गाढ़ा कर देता है जो कि ग्रीवा में 'म्युकस प्लग' बना देता है जिससे कि वीर्य गर्भ में पहुंचकर अण्डे को उर्वर नहीं बना पाता।
3. इस पिल में गर्भाशय का अस्तर पतला हो जाता है जिससे उर्वरित अण्डे का गर्भाशय से सम्पर्क कठिन हो जाता है।
संयुक्त मौखित पिल प्रभावशाली है?
इसका उपयोग यदि सही ढंग से किया जाए तो 99 प्रतिशत से अधिक प्रभावशाली होता है। सही ढंग का अर्थ है एक भी गोली लेने से न चूकना और सही समय पर गोली लेना।
पिल से क्या लाभ है?
पिल से लाभ निम्नलिखित हैं (1) बहुत प्रभावशाली है (2) सम्भोग में बाधा नहीं डालता (3) पीरियडस अधिकतर हल्के, कम पीड़ादायक और अधिक नियमित हो जाते है। माहवारी से पहले वाला तनाव दूर हो जाता है। (4) इससे स्तनों में होने वाले सुसाध्य रोगों से सुरक्षा प्राप्त होती है (5) अण्डकोश में कुछ प्रकार के काइस्टस के खतरे को कम करता है। (6) अण्डकोश और गर्भाशय में कैंसर विकास की आशंका को कम करता है।
क्या इस पिल से एस टी आई एवं एच आई वी@एड्स से सुरक्षा प्राप्त होती है?
नहीं, इससे कोई सुरक्षा प्राप्त नहीं होती।
पिल के अन्य क्या प्रभाव हो सकते हैं?
पिल लेने वाली अधिकतर महिलाओं पर कोई अन्य प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि कुछ औरतों पर कुछ पड़ते भी हैं - (1) बीमार महसूस करना (2) सिर दर्द (3) स्तनों में सूजन (4) थकावट (5) सम्भोग भावना में परिवर्तन (6) त्वचा में बदलाव जैसे मुहासे और तेलीय त्वचा या त्वचा में रंजकता (पिगमैन्टेशन) (7) मूड में बदलाव (8) पीरियड के बीच रक्त स्राव या धब्बे लगना।
कुछ प्रभाव ऐसे होते हैं जिनमें तत्काल सावधानी की जरूरत होती है। इनमें शामिल है - (1) तेज सिर दर्द (2) छाती में एवं टांगों में भयंकर पीड़ा (3) टांगों में सूजन (4) श्वास लेनें में कठिनाई (5) यदि खांसी में खून आये (6) दृष्टि या वाणी में अचानक खराबी (7) भुजा या टांग में कमजोरी या नमी।
किन परिस्थितियों में यह पिल नहीं दिया जाता?
निम्नलिखित परिस्थितियों में पिल नहीं दिया जाना चाहिए - (1) यदि आप किसी रक्तवाहिनी से पहले थक्का (क्लॉट) आ चुका हो (2) अत्यधिक मोटापा (3) चल फिर न सकना (अर्थात व्हील चेयर के सहारे रहना) (4) काबू से बाहर मधुमेह (5) उच्च रक्तचाप (6) यदि आपके किसी नजदीकी रिश्तेदार को 45 वर्ष की आयु से पहले थरौमबोसिस, दिल का दौरा या लकवा (स्ट्रोक) हुआ हो। (7) तेज माइग्रेन (8) यदि आप 35 वर्ष से ऊपर के हैं तो धूम्रपान का इतिहास (9) स्तनपान कराने वाली माताएं (10) माइग्रेन का इतिहास होने पर।
पिल का प्रयोग कैसे होता है?
यह संयुक्त पिल सामान्यतः 28 पिल्स के पैकेट में आता है। माहवारी चक्र के पांचवे दिन से पहले पिल लेना होता है (माहवारी के पहले दिन को पहला मानकर चलें)- जहां (स्टार्ट) शुरू लिखा है उस ओर से गोलियां लेनी शुरू करें।- इक्कीस दिन तक हर रोज एक ही समय पर एक पिल लेते रहें- अन्तिम सात दिनों में आयरन रहता है। इसी दौरान माहवारी का समय हो जाता है।- फिर से नया पैकेट लेकर शुरू करें।
यदि कोई पिल लेना भूल जायें तो क्या करें?
यदि कोई एक पिल लेना भूल जायें तो, यह जरूरी है याद आते ही ले लें और अगला पिल पहले से निश्चित समय पर लें।- यदि लगातार दो पिल लेना भूल जाए, ... दो दिन तक दो दो पिल लें और फिर पहले की तरह लेने लगें।- यदि कोई तीन या उसके अधिक पिल लेना भूल जाए - तो पिल लेना बन्द कर दें और अगले माहवारी चक्र के शुरू होने तक कोई अन्य जन्म निरोधक लें। यदि माहवारी चक्र समय पर शुरू न हो तो डाक्टर के पास जाना जरूरी है।
यदि पिल लेते समय मितली महसूस हो तो क्या करना चाहिए?
पिल को रात के समय या खाने के साथ लें।
इसके प्रभाव स्वरूप यदि हल्का सिर दर्द हो तो उससे कैसे निपटना चाहिए?
इब्रफिन, पैरासिटामोल जैसी अन्य कोई पीड़ा निवारक दवा ले लेनी चाहिए।
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मौखिक गर्भनिरोधक प्रोजेस्टिन मात्र (मिनी पिल)

प्रोजेस्टन मात्र क्या होते हैं?
प्रोजेस्टोजन ओनली या प्रोजेस्टिन ओनली पिल्स (पी ओ पी) ऐसा गर्भ निरोधक है जिसमें केवल सिन्थेटिक है और ओइसट्रोजन नहीं है। इन्हें मिनी पिल्स भी कहते हैं।
पी ओ पी कैसे काम करता है?
इस गर्भ निरोधक में तीन चीजें होती हैं।
(1) पहले सामान्य गर्भनिरोधक की तरह, पीओपी आपके शरीर को यह एहसास देता है कि आप गर्भवती हैं और आप के अण्डकोश को अण्ड विसर्जन से रोकता है।
(2) दूसरे, ये मिनी पिल्स आपकी कोख (जहां बच्चा पनपता है) में बदलाव ले आता है। (कि यदि अण्ड विसर्जन हो भी जाए तो आपका गर्भाशय उसे गर्भ धारण नहीं करने देता)
(3) तीसरे, पी ओ पी से अण्डकोश और योनि के बीच का म्युकस गाढा हो जाता है (गर्भाशय के बाहर आने के लिए योनि एक द्वार है) गाढे म्युकस से अण्डे तक पहुंचने के लिए वीर्य को काफी कठिनाई झेलनी पड़ सकती है।
प्रो जेस्टीन ओनली पिल किन महिलाओं के लिए उचित है?
प्रोजेस्टीन ओनली पिल सामान्य जन्म निरोधक गोलियों से बेहतर होती है (1) क्योंकि यदि आप स्तनपान करवा रही हैं तो यह आपके दूध बनने की प्रक्रिया को बदलता नहीं (2) यदि आप 35 वर्ष से अधिक आयु के हैं (3) जो महिलाएं धूम्रपान करती हैं। (4) जिन्हें उच्च रक्तचाप रहता है (5) वजन बहुत अधिक हो (6) रक्त के थक्के बनते हों तो यह लाभदायक रहताहै।
प्रोजेस्टीन ओनली पिल किन महिलाओं को नहीं लेना चाहिए?
(1) यदि आप किसी असामान्य गर्भधारण से गुजर चुकी हैं जिसमें भ्रूण गर्भाशय से बाहर था। (2) यदि आपको रक्तवाहिकाओं का कोई तीव्र रोग हो या असामान्य रूप से ऊंचाक्लोस्ट्रोल हो या अन्य रक्त परक फैट की समस्या हो (3) यदि आपको स्तन का कैंसर हो (4) यदि आपको योनि से रक्तस्राव हो रहा हो जिसका कारण पता न चल रहा हो तो डाक्टर अपने आप प्रोजेस्टीन ओनली पिल आप को देने से मना कर देगा।
प्रोजेस्टीन ओनली पिल लेने के बाद भी, क्या गर्भधारण हो सकता है?
प्रोजेस्टीन ओनली पिल को सही ढंग से लगातार लेने वाली 100 महिलाओं में से दो या तीन गर्भ धारण कर जाती हैं।
क्या प्रोजेस्टीन ओनली पिल से कुछ हानियां भी हो सकती हैं?
प्रोजेस्टीन ओनली पिल के निम्नलिखित सह प्रभाव हो सकते हैं (1) पीरियड्स के बीच धब्बे लगना या रक्त स्राव इसमें असुविधा तो होती है पर स्वास्थ्यपरक कोई खतरा नहीं होता। यदि लगे कि रक्त स्राव पहले से भारी है या उससे परेशान हों (2) वजन बढ़ जाए (3)स्तनों में ढीलापन लगे तो डाक्टर से परामर्श कर सकते हैं।
मिनी पिल को कैसे खाना चाहिए?
प्रत्येक पैकेट में 28 पिल्स होते हैं। प्रत्येक पिल में हॉरमोन होते हैं। रक्त स्राव के पांचवे दिने से इन्हें लेना शुरू करते हैं हालांकि, अगर आप पक्की तरह जानती हैं कि आपने गर्भधारण नहीं किया तो पीरियड चक्र में किसी भी समय शुरू किया जा सकता है।
पिल शुरू करने के एकदम बाद क्या सहप्रभाव पड़ सकते हैं?
जब आप पीओपी को पहले पहले शुरू करते हैं और जैसे ही शरीर को इसकी आदत पड़ती है आपके शरीर पर इसका कुछ प्रभाव दिखाई दे सकता है जैसे कि पीरियडस के बीच में ही रक्त स्राव होने लगना और सिर दर्द रहना। उनसे कोई खतरा नहीं होता और सामान्तः पहले दो महीने में ठीक भी हो जाती है। अगर ऐसे लक्षण दिखें जो कि बहुत देर तक चलने वाले हों या बहुत तीव्र हों तो डाक्टर से परामर्श करें।
यदि पिल लेना भूल जायें तो देर से लें तो क्या होता है?
1. यदि आप एक पीओपी लेना भूल गए हैं या तीन या उसके अधिक घन्टे की देर हो जाए तो याद आने के साथ ही उसे खा लें। उसके बाद नियमित समय पर पीओपी लेते रहें। ध्यान रखें कि अगले 48 घन्टे में अगर आप करें तो कंडोम जैसे अन्य सहायक साधन का इस्तेमाल जरूर करें।
2. यदि लगातार दो या अधिक पीओपी लेना भूल जायें, तो उसी समय शुरू कर दें और दो दिन तक दो पिल लेते रहें। अन्य सहायक साधनों का इस्तेमाल एकदम शुरू कर दें। यदि 4 से 6 हफ्ते में पीरियड शुरू न हो तो डाक्टर से मिलें।
3. यदि आपने असुरक्षित सम्भोग किया है, बिना सहायक साधन के सम्भोग और पीओपी लिये नहीं या देर से लिये हैं तो 4-6 हफ्ते तक पीरियड शुरू न होने पर डाक्टर सें आपातकालीन गर्भनिरोधक देने के लिए कहें, डाक्टर से मिलें।
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आपातकालीन गर्भनिरोधक

आपातकालीन गर्भनिरोधक या आपातकालीन जन्म नियंत्रण क्या होता है?
जब कोई महिला बिना गर्भनिरोधक के प्रयोग के असुरक्षित यौन सम्भोग करती है तो उसे गर्भधारण से बचने के लिए आपातकालीन गर्भनिरोधक का प्रयोग किया जाता है।
किन परिस्थितियों में हमें आपातकालीन गर्भनिरोधक की जरूरत पड़ती है?
जिस महिला ने असुरक्षित सम्भोग किया है और गर्भधारण नहीं करना चाहती वे निम्न परिस्थियों में आपातकालीन गर्भनिरोधक ले सकती हैं। (1) उन्हें सम्भोग की सम्भावना नहीं थी और किसी प्रकार के गर्भनिरोधक नहीं कर रहीं थी। (2) उसकी अनुमति के बिना जबरदस्ती सम्भोग किया गया। (3) कंडोम फट गया या स्लिप हो गया (4) गर्भनिरोधक समाप्त हो गए थे या लगातार दो तीन पिल्स लेना भूल गई थी।
आपातकालीन गर्भनिरोधक कैसे करते हैं?
आपातकालीन गर्भनिरोधक आपको गर्भधारण से बचा सकते हैं (1) अण्डे का अण्डकोश से बाहर नहीं आने देकर (2) वीर्य को अण्डे से न मिलने देकर (3) उर्वरित अण्डे को कोख से न जुड़ने देकर।
यौनपरक सम्भोग के कितनी देर बाद तक आपातकालीन गर्भनिरोधक पिल्स लिए जा सकते हैं?असुरक्षित यौनपरक सम्भोग के पहले 72 घन्टे में आपातकालीन गर्भनिरोधक उपाय किए जा सकते हैं फिर भी यही परामर्श है कि जल्दी से जल्दी ले लें।
आपातकालीन गर्भनिरोधक कितने प्रकार के होते हैं?
दो प्रकार के हैं (1) आपातकालीन गर्भनिरोधक पिल्स (ईसीपीस) (2) आई यू डीस
आपातकालीन पिल क्या होता है और इसका उपयोग कैसे होता है?
इस पील में लीवोनर्जेस्ट्रल नामक पदार्थ होता है जो कि आपातकालीन गर्भनिरोध के लिए काम में लाया जाता है। दो पिल दो बार में लेने होते हैं (एक परन्तु और दूसरा अगले 12 घन्टे के बाद) या दोनों पिल एक साथ भी लिये जा सकते हैं।
एक आईयूडी आपातकालीन गर्भनिरोधक के रूप में कैसे काम करता है?
यह आईयूडी 'टी' के आकार का प्लास्टिक से बना यन्त्र होता है जिसे कि सम्भोग के पांच दिनों के अन्दर अन्दर डाक्टर कोख में लगाता है। आई यू डी का काम होता है (1) वीर्य को अण्डे से मिलने देकर (2) अण्डे को गर्भाशय से न मिलने देने से। आपके अगले पीरिययड के बाद डाक्टर आई यू डी को बाहर निकाल सकता है अथवा दस साल तक जनन नियंत्रण के लिए लगे भी रहने दिया जा सकता है।
आपातकालीन गर्भनिरोधक पिल के क्या कोई सह प्रभाव भी होते हैं?
आपातकालीन गर्भनिरोधक लेने पर पड़ने वाले अत्यन्त सामान्य सहप्रभाव निम्नलिखित हैं। (1) मित्तली और उल्टी (2) अनियमित योनिपरक रक्त स्राव (3) थकावट (4) सिर दर्द (5)सिर घूमना (6) स्तनों का ढीलापन।
पिल लेते समय मित्तली से कैसे निपटना चाहिए?
मित्तली कम करने के लिए (1) पिल लेने से पहले कुछ खा लेने की कोशिश करें। (2) दूसरी बार पिल्स लेने से उनके प्रभाव को कम करने के लिए मित्तली न होने देने वाली दवा लीजिए। (3) पिल्स को दूध या पानी के साथ लें।
क्या आपातकालीन गर्भनिरोधक हमेशा होते हैं?
हां, ये पर्याप्त प्रभावशाली हैं। यदि 100 महिलाएं आपातकालीन गर्भनिरोधक का उपयोग करें तो केवल एक गर्भवती होती है।
आपातकालीन गर्भनिरोधक लेते समय कौन से संकेत खतरे के माने जाते हैं जिनसे व्यक्ति को सावधान रहना चाहिए?
आपातकालीन गर्भनिरोधक लेने वाली कोई महिला यदि निम्नलिखित लक्षणों को महसूस करे तो उसे तुरन्त डाक्टर के पास जाना चाहिए। (1) पेट में तेज दर्द (2) आगे आने वाले पीरियड में सामान्य रूप से कम रक्त स्राव (3) यदि अगली माहवारी न हो।
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प्रौजैस्टिन ओनली इनजैक्टेबलस

प्रोजैस्टिन ओनली इनजैक्टेबलस क्या होते हैं?
इन इंजैक्शनों को प्रोजैक्ट्रोन डालकर तैयार किया जाता है। दो प्रकार के उपलब्ध है- डी एम पी ए - वे डिप्पो जो हर तीसरे महीने लगाये जाते हैं और नेट इन (नरेथिडरोन एननथेट) जो हर दूसरे महीने लगाये जाते हैं।
ये प्रौजेस्टिन ओनली इनजैक्टेबल कैसे काम करते हैं?
ये इंजैक्शन (1) अण्डों के बनने को रोककर (2) ग्रीवा परक ग्युकस को गाढ़ा करते हैं ताकि वीर्य ऊपर के मार्ग में प्रवेश ने करे - इस तरह काम करते हैं।
डी एम पी ए के उपयोग के क्या लाभ हैं?
लाभ निम्नलिखित हैं (1) ये बहुत प्रभावशाली हैं। (2) लम्बे समय तक गर्भधारण से सुरक्षा देता है और इसे बदला जा सकता है। (3) उपयोग में सरल प्रतिदिन पिल्स लेने के झमेले को दूर करता है। (4) यह इंजैक्शन के सह प्रभावों से मुक्त है जैसे कि धमनियों में रक्त के थक्के बनना। (5) इक्टोपिक गर्भ से बचाता है (गर्भाशय के बाहर का गर्भ) और अण्डकोश के कैंसर से बचाता है।
डी एम पी ए के क्या कोई सह प्रभाव होते हैं?
डी एम पी ए का प्रयोग करते हुए कुछ महिलाओँ के माहवारी पीरियड्स में कुछ बदलाव आ जाता है - (1) अनियमित और असंभावित रक्त स्राव या धब्बे लगना। (2)माहवारी रक्त स्राव में बढ़ाव या घटाव या बिल्कुल बन्द। अन्य सम्भावित सह प्रभाव है -वजन बढना, सिर दर्द, घबराहट, पेट में खराबी, चक्कर आना, कमजोरी या थकावट।पीरियडस न होने में कोई नुकसान नहीं है और सामान्यतः पीरियडस डेपो प्रोवेश के बन्द करने पर पुनः स्वाभाविक हो जाते हैं यद असामान्य रूप से भारी या लगातार रक्त स्राव हो तो डाक्टर से मिलें।
डी एम पी ए कितना प्रभावशाली है?
डी एम पी ए उतना ही प्रभावशाली है जितना कि अपनी ट्यूबों को बंधवाना और गर्भनिरोध के कई अन्य साधनों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली है जसमें गर्भनिरोधक गोलियां, कंडोंम और डॉयफ्राग्मस शामिल हैं पर यह एड्स या एसटीडी से सुरक्षा प्रदान नहीं करता।
क्या डी एम पी ए का प्रभाव स्थायी है?
नहीं, डी एप पी ए का प्रभाव लगभग तीन महीने तक रहता है। गर्भ से बचने के लिए इसे तीन महीने के बाद दोहराना जरूरी है। डी एम पी ए के प्रयोग को छोड़ते ही अण्डाशय अपने प्राकृतिक कार्यों को जल्द ही करने लगता है। अन्तिम बार लेने के बाद औसतान 9से 10 महीने के बाद गर्भ धारण किया जा सकता है।
डी एम पी ए किस प्रकार दिया जाता है?
डीएम पी ए का इंजैक्शन नितम्बों में या भुजबली में हर तीसरे महीने दिया जाता दै।
डी एम पी ए कब शुरू करना चाहिए?
1. माहवारी चक्र नियमित है -तो माहवारी के बाद पहले सात दिनों में कभी भी
2. बच्चे के जन्म के बाद यदि स्तन पान करा रही है - तो बच्चे के जन्म के छह सप्ताह के बाद
3. बच्चे के जन्म के बाद, यदि स्तनपान नहीं करा रही - तो तुरन्त या बच्चे के जन्म के पहले छह हफ्तों के दैरान कभी भी।
4. गर्भपात या गर्भ गिरवाने पर - तो पहले या दूसरे करवाए गए गर्भपात या गर्भधारण न करने के पहले सात दिन के अन्दर
डी एम पी ए के उपयोग के लिए कौन उपयुक्त है?
इसका उपयोग उन महिलाओं के लिए सुरक्षित है जो (1) स्तनपान करवा रही हैं (2) सिगरेट पीती हैं। (3) कोई बच्चा नहीं है। (4) किशोरावस्था से लेकर 40 वर्ष की आयु तक कभी भी (5) स्तनों में सुसाध्य रोग (6) हल्के से माध्यम स्तर तक का उच्चरक्तचाप।
डी एम पी ए का उपयोग किन्हें नहीं करना चाहिए?
जिन औरतों को निम्नलिखित कोई समस्या हो उन्हें डी एम पी ए का उपयोग नहीं करना चाहिए - पीलिया रह चुका हो, रक्त के थक्के, अनजाने कारण से योनिपरक रक्त स्राव स्तनों का कैंसर य प्रजनन अंगों का कैंसर, गर्भधारण अथवा आशंका या डेपो-प्रोवेश की दवाओं से एलर्जी।
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इन्ट्रा युटरीन डिवाइज

इन्ट्रा युटरीनडिवाइज क्या है ?


इसे छोटे में आई यू डी कहते हैं, टी की आकृति में छोटा सा, प्लास्टिक का यन्त्र है जिसके अन्त में धागा लगा रहता है। गर्भ रोकने के लिए आईयूडी को गर्भाशय के अन्दर लगाया जाता है। इसे डाक्टर के क्लीनिक में लगवाया जा सकता है। एक बार ठीक जगह लग जाने पर यह तब तक गर्भाशय में रहता है जब तक कि डाक्टर उसे निकाल न दे।
यह कैसे काम करता है?


आई यू डी वीर्य को अण्डे से मिलने से रोकती है। ऐसा करने के लिए यह अण्डे को वीर्य तक जाने में असमर्थ बनाकर और गर्भाशय के अस्तर को बदल कर करती है।
आई यु डी किस प्रकार की होती है?


आ यु डी के अलग-अलग प्रकार हैं - (1) कॉपर लगी आई यू डी - इसमें एक प्लास्टिक की ट्यब के अन्दर कॉपर की तार लगी रहती है। (2) नई प्रकार के आई यु डी में हॉरमोन छोड़ने वाला आई यु डी है - जो कि प्लास्टिक से बना होता है और उसमें प्रोजेस्ट्रोन हॉरमोन छोटी मात्रा में भरा रहता है।
कॉपर की आई यु डी की अपेक्षा हॉरमोन वाले आई यु डी के क्या लाभ हैं?


हॉरमोन वाले युडी (1) कॉपर वाले आई यु डी से अधिक प्रभावशाली हैं (2) माहवारी को हल्का बनाते हैं। कॉपर की आई यु डी की अपेक्षा हॉरमोन वाले आई डी यु की क्या हानियां हैं?हॉरमोन वाले आई यु डी (1) कापर वाले की अपेक्षा महंगे हैं (2)उपयोग के पहले छह महीनों में अनियमित रक्तस्राव या धब्बे लगने की समस्या हो सकती है।
आई यु डी के क्या लाभ हैं?


आई यु डी के बहुत से लाभ हैं - (1) यह गर्भनिरोध के लिए अत्यन्त प्रभावशाली है। (2) सुविधाजनक है - पिल लेने का कोई झंझट नहीं है। (3) मंहगा नहीं है। (4) डाक्टर किसी समय भी निकाल सकते हैं। (5) तुरन्त काम शुरू कर देता है। (6) सहप्रभावों को आशंका कम रहती है। (7) आई यू डू का उपयोग करने वाली माताएं सुरक्षा पूर्वक स्तनपान करवा सकती हैं।
गर्भनिरोधक में आई यू डी कितनी प्रभावशाली है?


यह गर्भनिरोध का सबसे प्रभावशाली साधन है। इसे यदि सही ढंग से लगाया जाए तो यह 99 प्रतिशत प्रभावशाली है।
आई यू डी कितनी देर तक प्रभावशाली रहता है?


निर्भर करता है कि आपका डाक्टर आपको कौन सा आई यू डी लगवाने को कहता है। कॉपर आई यू डीः टी यू 380 ए जो कि अब राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत उपलब्ध है, वह दस वर्ष के लम्बे समय तक आपके शरीर में रह सकता है। हॉरमोन वाले आई यू डी को हर पांचवे वर्ष में बदलने की जरूरत पड़ती है। इनमें से किसी को भी आपका डाक्टर हटा सकता है। यदि आप गर्भधारण करना चाहें या प्रयोग न करना चाहें तो।
इसकी हानियां क्या हैं?


हानियां निम्नलिखित हैं (1) गर्भाशय मे आई यू डी लगाने के पहले कुछ घन्टों में आपको सिरदर्द और पेट दर्द हो सकता है। (2) कुछ औरतों को यह लगवाने के बाद कुछ हफ्तों तक रक्त स्राव होता रहता है और उसके बाद भारी माहवारी होती है। (3) बहुत कम पर कभी, आई यू डी अन्दर डालते समय गर्भाशय में घाव हो सकता है। (4) यह आपको एड्स या एस टी डी से सुरक्षा प्रदान नहीं करता। वस्तुतः ऐसे संक्रामक रोग आई यू डी वाली औरतों के लिए संघात्मक हो सकते हैं। इसके अलावा, अधिक लोगों के साथ सम्भोग करने पर संक्रमण की आशंकाएं बढ़ सकती हैं।
आई यू डी को गर्भनिरोधक के रूप में काम में लाने के लिए कौन उपयुक्त है?


किसी भी परिस्थित में वे औरतें आई यू डी का उपयोग कर सकती हैं जो (1) स्तनपान करा रहीं हों (2) सिगरेट पीती हों (3) उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, जिगर या गालब्लैडर के रोग, मधुमेह या मिरगी का उपचार करा रही हों।
आई यू डी लगवाने वाले का उचित समय कौन सा है?


आई यू डी लगवाने का उचित समय निम्न है - (1) माहवासी चक्र के रहते - माहवारी चक्र के दौरान किसी भी समय - माहवारी रक्तस्राव के आरम्भ होने के बाद के पहले 12 दिनों में लगवाएं। (2) बच्चे के जन्म@गर्भपात- बच्चे के जन्म के 24 घन्टे के अन्दर अन्छर लगवायें।
आई यू डी कैसे लगाई जाती है?


सामान्यतः एक पीरियड की समाप्ति या उसके तुरन्त बाद लगाया जाता है। हालांकि इसे किसी भी समय लगवाया जा सकता है यदि आपको भरोसा हो कि आप गर्भवती नहीं हैं। आपको योनि परीक्षण करवाना होगा। डाक्टर या नर्स गर्भाशय का माप और स्थिति देखने के लिए एक छोटा सा यन्त्र उसमें डालेंगे। तब आई यू डी लगाया जाएगा। आपको सिखाया जाएगा कि उसके धागे को कैसे महसूस किया जाता है ताकि आप उशे ठीक जगह रख सकें सर्वश्रेष्ठ है कि आप उसे नियमित रूप से चक्र करते रहें, हर महीने के पीरियड के बाद कर लेना उत्तम है।
आई यू डी अपनी ठीक जगह पर हैं या नहीं, यह कब चैक करने का परामर्श दिया जाता है?


परामर्श है कि महिला (1) आई यू डी लगवानें के एक महीने के बाद सप्ताह में एक बार उसे चैक करें (2) असामान्य लक्षण दिखने पर चैक करें। (3) माहवारी के बाद चैक करें।
आई यू डी अपनी सही जगह पर है यह चैक करने के लिए महिला को क्या सावधानी बरतनी चाहिए?आई यू डी चैक करने के लिए महिला को चाहिए कि (1) अपने हाथ धोये (2) पालथी मार कर बैठे (3) योनि में अपनी अक या दो अंगुली डालें और जब तक धागे को छू न ले अन्दर तक ले जायेय़ (4) फिर हाथ से धोये।
आई यू डी लगवाये हुए महिला को कब डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए?


तब डाक्टर से मिलना चाहिए जब (1) उसके साथी को सम्भोग के दौरान वह धागा छूता हो और उससे वह परेशान हो। (2) भारी और लम्बी अवधि तक होने वाले रक्त स्राव से होने वाली परेशानी (3) पेट के निचले भाग में तेज और बढ़ता हुआ दर्द विशेषकर अगर साथ में बुखार भी हो (4) एक बार माहवारी न होना (5) योनि से दुर्गन्ध भरा स्राव (6) परिवार नियोजन की कोई और विधि अपनाना चाहें या आई यू डी निकलवाना चाहें तब।
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सेंट्चरोमन


सेंट्चरोमन क्या है?


सेंट्चरोमन एक नया, स्टीरॉयड विहीन, सप्ताह में एक बार लिया जाने वाला मौखिक गर्भनिरोधक है जिसका हॉरमोनल मौखिक गर्भनिरोधक से कोई सम्भन्ध नहीं। यह उर्वारत अण्डे को गर्भाशय के अस्तर से जुड़ने से रोककर गर्भधारण से बचाता है।
सेंट्चरोमन के उपयोग के क्या लाभ हैं?


यह सुरक्षित है और घबराहट, वजन बढने, तरल पदार्थों के अवरोधन, उच्च रक्तचाप आदि जैसे हॉरमोनल उपाय से होने वाले सहप्रभावों से मुक्त है।
सेट्चरोमन का प्रयोग कब नहीं करना चाहिए?


निम्नलिखित परिस्थितियों में सेंट्चरोमन लगाये जाने की संस्तुति नहीं की जाती (1) पीलिया या लीवर के रोग के हाल ही मे हुए उपचार के कारण (2) अण्डकोश के रोग (3) तपेदिक (4) गुर्दे का रोग।
ये पिल्स कैसे लेने चाहिए?इसका कोर्स 30 मिलीग्राम की एक गोली सप्ताह में दो बार तीन महीने के लिए देकर शुरू करना चाहिए, बाद में जब तक गर्भ निरोधक की जरूरत महसूस हो तब तक सप्ताह में एक गोली देनी चाहिए। माहवारी चक्र के पहले दिन पहली गोली ली जानी चाहिए। गोली निश्चित दिन और निश्चित समय पर ली जानी चाहिए। बाद में होने वाले माहवारी चक्र की ओर ध्यान दिए बिना डोस नियमित रूप से चलता रहना चाहिए।
इसके सहप्रभाव क्या हो सकते हैं?


कुछ सहप्रभाव हैं - (1) माहवारी चक्र का लम्बा हो जाना (2) माहवारी में विलम्ब - पन्द्रह दिन से अधिक विलम्ब होने पर डाक्टर से परामर्श करें कि कहीं गर्भधारण तो नहीं हो गया।


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महिला बन्ध्यीकरण - ट्यूब बंधी


ट्यूबबंधी क्या होती है?


ट्यूब बंधी जिसे सामान्यतः अपनी ट्यूब बंधवाने के रूप में जाना जाता है, महिलाओं के बन्ध्यीकरण की यह शल्यक्रिय है। इस प्रक्रिय से अण्डवाही ट्यूबों को बन्द कर दिया जाता है जिससे कि अण्डा गर्भाशय तक पहुंच नहीं पाता। यह वीर्य को भी अण्डवाही ट्यूब तक पहुंचाकर अण्डे को उर्वरित होने से रोकता है।
जनाना बन्ध्यीकरण कितना भरोसे के लायक है?


जो औरतें और बच्चे नहीं चाहती उनके लिए यह स्थायी गर्भनिरोधक है। यह 99 प्रतिशत से अधिक प्रभावशाली है। इस बन्ध्यीकरण से 200 में से कोई एक महिला गर्भवती होती है। क्योंकि कटने या बन्द होने के बाद कभी कभार ही वे ट्यूबें वापिस जुड़ जाती हैं।
यह कैसे किया जाता है?


लोकल या रीढ़ की हड्डी में एनसथीशिया देकर ट्यूब बंधी करने की दो विधियां हैं - (1) एक मिनिलापरोटोमी के अन्तर्गत पेट में एक छोटा सा कट लगाया जाता है जिसके द्वारा ट्यूब को ढूंढकर काटा जाता है और बबन्द कर दिया जाता है। (2)लैपरोस्कोपिक ट्यूब बंधी के अन्तर्गत कार्बन डॉयोक्साईड या निटरोअस आक्साइड गैस से पेट को फुलाया जाता है, पेट की दीवार में छोट सा छन्द किया जाता है जिससे फाईब्रोप्टिक लाईट और बिजली के करंट से ट्यूबों को ठोस बना देने वाला एक यन्त्र डाला जाता है या हर ट्यूब के अन्त में प्लास्टिक का बैन्ड या क्लिप लगा दिया जाता है।
जनाना बन्ध्यीकरण के क्या लाभ हैं?


यह स्थायी है फिर आपको दोबारा गर्भनिरोध के बारे में सोचना नहीं पड़ता।
जनाना बन्ध्यीकरण की हानियां क्या हैं?


क्योंकि यह स्थायी है इसलिए आगे आने वाले वर्षों में हो सकता है कि आपको पछतावा हो विशेषकर अगर परिस्थितियां बदल जायें तो। मर्दाना नसबन्दी की अपेक्षा इस स्थिति को पुनः बदलना कठिन है।
इसका प्रभाव कितनी जल्दी पड़ता है?


अगली माहवारी होने तक आपको गर्भनिरोध के अन्य किसी साधन का उपयोग करते रहना चाहिए।
क्या बन्ध्यीकरण से महिला की माहवारी में कोई बदलाव आयेगा या रक्त स्राव बन्द हो जाएगा?नही बन्ध्यीकरण का महिला की माहवारी पर कोई ऐसा प्रभाव नहीं पड़ता।
क्या इससे मेरी सम्भोग (सैक्स) की इच्छा में कमी आ जाएगी?


नहीं, बल्कि हो सकता है कि उसमें पहले से अधिक आनन्द मिले क्योंकि अन्य गर्भनिरोधक साधनों से होने वाली असुविधा इसमें नहीं है।
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पुरूष बन्ध्यीकरण - नसबन्दी


नसबन्दी क्या होती है?


यह एक ऐसा ऑपरेशन है जिससे कि फिर पुरूष जीवनभर किसी महिला को गर्भवती नहीं बना सकता। इसमें शुक्रवाहिका नामक दो ट्यूबों को काट दिया जाता है ताकि शुक्राणु वीर्य तक पहुँच ही न पायें।
नसबन्दी कैसे की जाती है?


सामान्यतः बहिरंग रोगी प्रक्रिया के अन्तर्गत ही यह आनऑपरेशन किया जाता है। इस में लगभग आधा घन्टा लगता है। इस प्रक्रिया के दौरान आप जागृत रहते हैं। आप के अण्डकोश को सुन्न करने के लिए आप को लोकल एनसथमीशिया देगा। इसके बाद वह आप के अण्डकोश की ओर छोटा सा छेद करेगा और उससे शुक्रवाहिका को उस ओर खींच लेगा। आप को थोड़ी चुभन और थोड़ा खिंचाव महसूस होगा। शुक्र वाहिका का एक छोटा सा अंश निकाल दिया जाता है। शुक्रवाहिका के किनारों को सिलकर या सेक देकर जोड़ा जाता है अथवा अन्य किसी भी माध्यम से बन्द कर दिया जाता है। यही प्रक्रिया डॉक्टर दूसरी ओर भी करेगा। अण्डकोश के दोनों द्वारों को सिल कर बन्द कर दिया जाएगा।
बिना चाकू के नसबन्दी क्या होती है?


इसके अन्तर्गत अण्डकोश में कट लगाने की अपेक्षा एक छोटा सा छेद किया जाता है। वह छेद इतना छोटा सा होता है कि बिना टांकों के ही भर जाता है।
गर्भनिरोध करने में नसबन्दी कितनी प्रभावशाली होती है इसे जन्म नियन्त्रण का सबसे सुरक्षित साधन माना जा सकता है। नसबन्दी करने के एक साल में 10,000 दम्पतियों में से केवल 15 के गर्भधारण होता है।
क्या कोई ऐसा कारण भी है जिसके कारण नसबन्दी नहीं करवानी चाहिए?


जब तक आप का निश्चय पक्का न हो कि भविष्य में आप को सन्तान नहीं चाहिए तब तक नसबन्दी न करायें। यदि आप के जननांगों में या उसके आसपास कुछ संक्रमण हो रहा हो तो नसबन्दी करने में विलम्ब हो सकता है अथवा रक्त स्राव का कोई विकार हो तो भी विलम्ब हो सकता है।
क्या नसबन्दी को वापिस पलटा जा सकता है?


कुछ नसबन्दियों को पलटा जा सकता है या नकारा किया जा सकता है परन्तु यह शल्यक्रिया महंगी है और सामान्यतः पहुंच से बाहर होती है। हालांकि पलटने के बाद अधिकतर पुरूष शुक्राणुओं का निष्कासन करने लगते है। परन्तु सामान्यतः वे शुक्राणु अण्डे को उर्वरित करने में सक्षम हो पाते।
ऑपरेशन के लिए मुछे किस प्रकार तैयार होना चाहिए?


ऑपरेशन के दिन अपने साथ आरामदेह जांघिया लायें और सुनिश्चित करें कि आपके जननांग अच्छी तरह साफ हैं। हो सकता है कि आप का डॉक्टर भी आप को निर्देश दें कि आने से पहले किस तरह सफाई करनी है। हो सकता है कि वह आपको यह निर्देश भी दे कि अपने साथ किसी ऐसे व्यक्ति को लेकर आयें जो कि शल्य क्रिया के बाद आप को घर वापिस लें जा सके।
ऑपरेशन के बाद मैं क्या आशा कर सकता हूं?


ऑपरेशन के एकदम बाद आप का डॉक्टर आप के अण्डकोश पर बर्फ का पैक रखकर कुछ घन्टों तक आप को लिटाकर रखेगा। हो सकता है कि शल्य क्रिया के क्षेत्र में आप को कुछ घाव हों। घाव धीरे धीरे भरेंगे और दो हफ्ते में ठीक हो जायेंगे। कुछ हफ्तों में आपका स्वास्थ्य पूरी तरह सामान्य हो जाएगा।
मैं काम पर वापिस कब जा सकता हूं?


आराम दो दिन तक किया जाता है। कुछ दिन तक भारी काम और जोरदार व्यायाम से परहेज करना चाहिए।
क्या नसबन्दी एकदम से काम शुरू कर देगी?


नहीं, दोनों शुक्राशय से शुक्राणुओं को पूरी तरह खाली करने के लिए आप को 15 से 20 बार उनका निष्कासन करना होगा। इस कारण से शल्य प्रक्रिया के बाद तीन महीने तक कंडोम या परिवार नियोजन की किसी विधि का प्रयोग करना जरूरी है।
नसबन्दी के सहप्रभाव क्या क्या होते हैं?


नसबन्दी के बाद होने वाली समस्याओं में शामिल है : (1) रक्त स्राव (2) दर्द (3) संक्रमण
सामान्य फॉलोअप के अतिरिक्त वे कौन सी परिस्थितियां है जबकि नसबन्दी वाले पुरूष को डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए?


डॉक्टर से सम्पर्क करें
1. यदि आप को बुखार है।
2. किसी प्रकार की सूजन जो कि कम न हो रही हो या बिगड़ रही हो।
3. मूत्रत्याग में कठिनाई हो।
4. अण्डकोश में कोई लम्प बनता हुआ महसूस हो।
5. किये गये छिद्र से रक्त का बहाव यदि दस मिनट तक उस स्थान पर 2 गेज के पैड लगाने पर भी रूके नहीं।
क्या नसबन्दी से व्यक्ति के सम्भोग परक जीवन पर कुछ प्रभाव पड़ता है?


नसबन्दी का घाव भर जाने के बाद आपके यौन सम्बन्धों में बिल्कुल भी बदलाव नहीं आना चाहिए। पहले की तरह ही अब भी आपका वीर्य निष्कासित होगा और यौनेच्छा में आपको बिल्कुल भी बदलाव महसूस नहीं होगा।
नसबन्दी के बाद वीर्य का क्या होता है?


एक बार जब वीर्य को शुक्राशय में प्रवेश नहीं मिलता तो आपकी अण्डग्रन्थियां कम शुक्राणु बनायेगी। जो शुक्राणु बनेंगे वे शरीर में ही समाहित हो जायेंगे।
पुरूष द्वारा नसबन्दी या औरत द्वारा बन्ध्यीकरण में से क्या बेहतर है?


प्रत्येक दम्पति को यह आपस में निर्णय लेना होता है कि उनके लिए क्या उत्तम है। दोनों ही प्रभावशाली, सुरक्षित और स्थायी है। हालांकि महिला बन्ध्यीकरण की अपेक्षा पुरूष की नसबन्दी अधिक सरल और सुरक्षित होती है। कम महंगी भी है और अधिक प्रभावशाली भी है।
क्या नसबन्दी से प्रोस्ट्रेट के कैंसर का खतरा हो जाता है?


नहीं, नसबन्दी से प्रोस्ट्रेट के कैंसर का खतरा नहीं बढ़ता है।
क्या एच आई वी से प्रभावित व्यक्ति नसबन्दी करवा सकता है?


हां, एच आई वी से प्रभावित व्यक्ति नसबन्दी करवा सकता है।
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प्राकृतिक परिवार नियोजन विधि


परिवार नियोजन की प्राकृतिक विधियां क्या हैं?


ये वह विधियां हैं जिनके अन्तर्गत माहवारी चक्र की उर्वरक अवधि में महिला सम्भोग से परहेज करती है।
महिला को उर्वरक माना जाता है?


अण्डे के निष्कासन और उससे कुछ दिन पहले की अवधि को उर्वरक अवधि माना जाता है। सामान्यतः चक्र की मध्यावधि में अण्ड निष्कासन होता है। अधिक पक्के तौर पर हम कह सकते हैं कि यह सामान्यतः रक्त स्राव के प्रारम्भ से 14 दिन पहले होता है।
प्रचलित प्राकृतिक परिवार नियोजन की कुछ विधियां कौन सी हैं?


प्रचलित प्राकृतिक परिवार नियोजन विधि में शामिल हैं - आवर्तन प्रणाली, ग्रीवा परक ग्युकस विधि, शरीर के मूलभूत तापमान (बीबीटी) की विधि, मानक दिन विधि (एस डी एम)
आवर्तक (रिदम) प्रणाली क्या है?


आवर्तक प्रणाली इस भाव पर आधारित है कि माहवारी चक्र शुरू होने के चौदह दिन पहले महिला अण्डा विसर्जित करती है। इसी मान्यता के आधार पर आवर्तन प्रणाली में महिला से अपेक्षा की जाती है कि पीरियड के पहले दिन से वह पिछले चौदह दिनों को गिने। सम्भावना है कि यही अण्डा विसर्जन का दिन रहा होगा और अगले महीने भी इसी दिन होगा। इस अवधि में वह या तो सम्भोग से बचेगी या कंडोम जैसी किसी अन्य विधि का प्रयोग करेगी अगर गर्भधारण नहीं करना चाहती।
आवर्तन में कमियां क्या है?


आवर्तन प्रणाली की असफलता की दर 13 से 20 प्रतिशत जितनी ऊँची है। जिन औरतों का माहवारी चक्र अनियम्त होता है या जिनके चक्र में हर महीने एक समान दिन नहीं होते उनके लिए इस प्रणाली की संतुष्टि नहीं की जाती।
ग्रीवापरक ग्युकस प्रणाली क्या है?


यह प्रणाली इस भाव पर आधारित है कि अण्डे के निष्कासन के समय या आसपास के दिनों में ग्रीवापरक ग्युकस पतला और चिपकने वाला हो जाएगा।
128. यह प्रणाली इस भाव पर आधारित है कि अण्डे के निष्कासन के समय या आसपास के दिनों में ग्रीवापरक ग्युकस पतला और चिपकने वाला हो जाएगा। अतः यदि आप गर्भधारण करना नहीं चाहते तो जैसे ही फिसलन भरा, लचीला म्युकस निकलता देखें तो सम्भोग से परहेज करें और उसके बन्द होने के दो दिन बाद तक करते रहें।
ग्रीवापरक म्युकस का परीक्षण कैसे किया जाता है?


अपनी अंगुली से या टॉयलट पेपर से योनि के आसपास पोछें और फिर म्युकस को देखें। उसके घनत्व को देखें और उसे अपनी अंगुलियों में खींच कर देखें। यदि बिना टुटे कम से कम तीन इंच तक खिंच जाए तो सोच लें कि अण्डा देने का समय होने वाला है।
ग्रीवापरक म्युकस प्रणाली की कमियां क्या हैं?


इसकी असफलता दर 20 प्रतिशत जैसी ऊंची है।
मूलभूत शारीरिक तापमान प्रणाली क्या है?


(बी बी टी)यह प्रणाली इस तथ्य पर आधारित है कि अण्डा निःसृति के समय के आसपास शरीर का तापमान 0.5 डिग्री से 1 डिग्री तक बढ़ जाता है। जब तापमान को निरन्तर बढ़ते देखें और अगर वह कम से कम तीन दिन तक रहे तो समझ लें कि अण्डा निःसृत हो गया है, इससे यह समझा जा सकता है चक्र के शेष भाग में सम्भोग करते रहने से गर्भधारण नहीं होगा।
बी बी टी प्रणाली को कैसे किया जाता है?


सुबह बिस्तत से उठने से पहले हर रोज महिला को अपना तापमान देखना होता है। देखकर उसे एक चार्ट में रिकार्ड करें ताकि आप दिन प्रतिदिन के उतार चढ़ाव को देख सकें। जिस दिन शरीर का तापमान बढ़ा हुआ रहे उस दिन और उसके बाद सात दिन तक सम्भोग से परहेज करें।
बी बी टी प्रणाली की प्रभविष्णुता कैसी है?


बी बी टी प्रणाली की असफलता दूर औसतन 15 प्रतिशत की है पर सही इस्तेमाल करने वालों के लिए 2 प्रतिशत प्रतिवर्ष जैसी कम भी है।
मानक दिन प्रणाली (एस डी एम) क्या है?


26 से 32 दिन के बीच के माहवारी चक्र वाली औरतों के लिए यह एक नवीन प्राकृतिक परिवार नियोजन की प्रणाली है। प्रत्येक माहवारी चक्र के उर्वरक दिन को जानना इस प्रणाली में शामिल है। ऐसी महिलाएं आठवें से उन्नीसवें दिन तक असुरक्षित सम्भोग का परहेज कर के गर्भधारण से बच सकती हैं।
एस डी एम प्रणाली व्यवहार कैसे किया जाता है?


एस डी एम का उपयोग काफी सीधा साधा है। दो प्रकार की प्रणालियों का व्यवहार किया जाता है।
(1) पारम्परिक प्रणाली - गिनते रहें कि आप का माहवारी चक्र कितना लम्बा है, ताकि आप सुनिश्चित कर सकें कि 8वें से 19वें दिन कब है (1) जब आपकी माहवारी का पहला दिन होता है वही चक्र का पहला दिन होता है। (2) दिन 1 और 7 के बीच गर्भधारण की सम्भावना बिल्कुल भी नहीं रहती इसलिए इन दिनों बिना किसी निरोधक साधन के सम्भोग करना सुरक्षित माना जाता है। (3) दिन 8 से 19 तक आप पूरी तरह उर्वरक रहते हैं या तो आप सम्भोग न करें अथवा कंडोम जैसे किसी साधन का उपयोग करें (4) दिन 20 से 32 में फिर गर्भधारण की सम्भावना नहीं रहती इसलिए आप पुनः सम्भोग कर सकते हैं।
(2) बीड चक्र - यह कण्ठहार की आकृति में 32 रंगदार बीड्स की माला होती है। उस में अक रबड़ का रिंग होता है जिसे कि हर बीड पर लगाया जा सकता है जिससे कि पता चलता है कि आप चक्र के कौन से दिन पर हैं। कण्ठहार में तीन रंग के बीड्स होते हैं (क) लाल : साईकल बीड हार में एक लाल बीड होता है। यह आपकी माहवारी के पहले दिन का सूचक है। इसी दिन आप को माहवारी होती है। (ख) भूरा (ब्राउन) - बीड्स दिखाते हैं कि आप के चक्र में वे दिन कौन से हैं जबकि गर्भ धारण की आशंका नहीं होदी। (ग) सफेद - अंधेरे में चमकने वाले ये बीड्स उर्वरक दिनों के सूचक हैं (8 से 19)। हर दिन के बीतने पर आप रिंग को अगले बीड पर डाल देते हैं। जब रिंग सफेद बीड्स पर आयेगा तो आप को पता चल जाएगा कि अब सम्भोग से बचना है या गर्भनिरोधक का उपयोग करना है।
मानक दिन (एस डी एम) का उपयोग कौन कर सकता है?


एस डी एम का उपयोग अधिकतर महिलाएं कर सकती हैं, फिर भी, प्रयोग से पहले देखना जरूरी है कि आप में ये विशेषताएं हैं
1. आप का माहवारी चक्र नियमित है
2. आप का चक्र 26 दिन और 32 दिन लम्बा है (यदि चक्र 26 दिनों से कम और 32 दिनों से अधिक लम्बा हो तो एस डी एम का असर कम होता है।
3. आप और आपका साथी उर्वरक दिनों में सम्भोग से परहेज करने अथवा निरोधपरक साधनों का प्रयोग करने के लिए तैयार हो।
एस डी एम विधि कितनी प्रभावशाली है?


जब नियंत्रित एवं सही ढंग से उपयोग किया जाता है तो एस डी एम अत्यन्त प्रभावशाली माध्यम है जन्म-नियन्त्रण के लिए। कुशलतापूर्वक प्रयोग करने पर 100 औरतों में से केवल पांच ही गर्भधारण करती हैं इस का अर्थ है कि गर्भ निरोध में यह उपाय 95 प्रतिशत प्रभावशाली है। यदि आप इसका सही इस्तेमाल नहीं कर पाते या आप की चक्र 36 से 32 दिनों की परिधि से बाहर है तो एस डी एम का प्रभाव अपेक्षाकृत कम रहेगा, लगभग 88 प्रतिशत कह सकते हैं।